मोपला विद्रोह 1836
मालाबार के मोपला किसानों का विद्रोह सबसे पुराना किसान विद्रोह है, जो 1836 में शुरू हुआ था। कहनेवाले कहते हैं कि ये मोपले कट्टर मुसलमान होने के नाते अपना आंदोलन धार्मिक कारणों से ही करते रहे हैं। असहयोग-युग के उनके विद्रोह के बारे में तो स्पष्ट ही यही बात कही गई है। मगर ऐसा कहने-माननेवाले अधिकारियों एवं जमींदार-मालदारों के लेखों तथा बयानों से ही यह बात सिद्ध हो जाती है कि दरअसल बात यह न हो कर आर्थिक एवं सामाजिक उत्पीड़न ही इस विद्रोह के असली कारण रहे हैं और धार्मिक रंग अगर उन पर चढ़ा है तो कार्य-कारणवश ही, प्रसंगवश ही। 1920 और 1921 वाले विद्रोह को तो सबों ने, यहाँ तक कि महात्मा गाँधी ने भी, धार्मिक ही माना है। मगर उसी के संबंध में मालाबार के ब्राह्मणों के पत्र 'योगक्षेमम' ने 1922 की 6 जनवरी के अग्रलेख में लिखा था कि "केवल धनियों तथा जमींदारों को ही ये विद्रोही सताते हैं, न कि गरीब किसानों को"
"Only the rich and the landlords are suffering in the hands of the rebels, not the poor peasants."
अगर धार्मिक बात होती तो यह धनी-गरीब का भेद क्यों होता? इसी तरह ता. 5/2/1921 में दक्षिण मालाबार के कलक्टर ने जो 144 धारा की नोटिस जारी की थी उसके कारणों में लिखा गया था कि "भोले-भोले मोपलों को न सिर्फ सरकार के विरुद्ध, वरन हिंदू जन्मियों (जमींदारों─मालाबार में जमींदार को 'जन्मी' कहते हैं) के भी विरुद्ध उभाड़ा जाएगा"─
"The feeling of the ignorant Moplahs will be inflamed against not only the Government but also against the Hindu Jenmies (landlords) of the district."
इससे भी स्पष्ट है कि विद्रोह का कारण आर्थिक था। नहीं तो सिर्फ जमींदारों तथा सरकार के विरुद्ध यह बात क्यों होती?
बात असल यह है कि मालाबार के जमींदार ब्राह्मण ही हैं। उत्तरी मालाबार में शायद ही दो-एक मोपले भी जमींदार हैं। और ये मोपले गरीब किसान हैं। इनमें खाते-पीते लोग शायद ही हैं। इन किसानों को जमीन पर पहले कोई हक था ही नहीं और झगड़े की असली बुनियाद यही थी, यही है। यह पुरानी चीज है और शोषक जमींदारों के हिंदू (ब्राह्मण) होने के नाते ही इन संघर्षों पर धार्मिक रंग चढ़ता है। नहीं-नहीं, जान-बूझकर चढ़ाया जाता है। 1880 वाले विद्रोह में मोपलों ने दो जमींदारों पर धावा किया था। उनने तत्कालीन गवर्नर लार्ड बकिंघम को गुप्तनाम पत्र लिखकर जमींदारों के जुल्मों को बताया था और प्रार्थना की थी कि उन्हें रोका जाए, नहीं तो ज्वालामुखी फूटेगा। गवर्नर ने मालाबार के कलक्टर और जज की एक कमेटी द्वारा जब जाँच करवाई तो रिपोर्ट आई कि इन तूफानों के मूल में वही किसानों की समस्याएँ हैं। पीछे यह भी बात ब्योरेवार मालूम हुई कि जमींदार किसानों को कैसे लूटते और जमीनों से बेदखल करते रहते हैं। इसीलिए तो 1887 वाला काश्तकारी कानून बना।
1921 तथा उसके बाद मौलाना याकूब हसन मालाबार के कांग्रेसी एवं गाँधीवादी नेता थे। मगर उनने भी जो पत्र गाँधी जी को लिखा था उसमें कहते हैं कि “अधिकांश मोपले छोटे-छोटे जमींदारों की जमीनें ले कर जोतते हैं और जमींदार प्रायः सभी हिंदू ही हैं। मोपलों की यह पुरानी शिकायत है कि ये मनचले जमींदार उन्हें लूटते-सताते हैं और यह शिकायत दूर नहीं की गई है”─
"Most of the Moplahs were cultivating lands under the petty landlords who are almost all Hindus. The oppression of the Janmies (landlords) is a matter of notoriety and a long-standing grievance of the Moplahs that has never been redressed."
इससे तो जरा भी संदेह नहीं रह जाता किमोपला-विद्रोह सचमुच किसान-विद्रोह था।
1836 से 1853 तक मोपलों ने 22 विद्रोह किए । वे सभी जमींदारों के विरुद्ध थे। कहीं-कहीं धर्म की बात प्रसंगतः आई थी जरूर। मगर असलियत वही थी। 1841 वाला विद्रोह तो श्री तैरुम पहत्री नांबुद्री नामक जालिम जमींदार के खिलाफ था, जिसने किसानों को पट्टे पर दी गई जमीन बलात छीनी थी। 1843 में भी दो संघर्ष हुए─एक गाँव के मुखिया के विरुद्ध और दूसरा ब्राह्मण जमींदार के खिलाफ। 1851 में उत्तर मालाबार में भी एक जमींदार का वंश ही खत्म कर दिया गया। 1880 की बात कह ही चुके हैं। 1898 में भी उसी तरह एक जमींदार मारा गया। 1919 में मनकट्टा पहत्री पुरम में एक ब्राह्मण जमींदार और उसके आदमियों को चेकाजी नामक मोपला किसान के दल ने खत्म कर दिया और लूट-पाट की। क्योंकि उसने चेकाजी के विरुद्ध बाकी लगान की डिग्री से संतोष न कर के उसके पुत्र की शादी भी न होने दी।
1920 के अक्तूबर में कालीकट में जो काश्तकारी कानून के सुधार का आंदोलन शुरू हुआ, 1921 वाली बगावत इसी का परिणाम थी। जमींदार मनमाने ढंग से लगान बढ़ाते और बेतहाशा बेदखलियाँ किया करते थे। इसीलिए सैकड़ों सभाएँ हुईं। स्थान-स्थान पर किसान-सभाएँ बनीं, कालीकट के राजा की जमींदारी में एक 'टेनेन्ट रिलीफ असोसियेशन' कायम हुआ और मंजेरी की बड़ी कॉन्फ्रेंस में किसानों की माँगों का जोरदार समर्थन हुआ। इसी के साथ खिलाफत आंदोलन भी आ मिला। मगर असलियत तो दूसरी ही थी। इस तरह देखते हैं कि आज से सैकड़ों साल पूर्व विशुद्ध किसान-आंदोलन किसान हकों के लिए चला और 1920 में आकर उसने कहीं-कहीं संगठन का जामा पहनने की भी कोशिश की।
असल मे
केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा 1921 मे ब्रितानियों के विरुद्ध किया गया विद्रोह मोपला विद्रोह कहलाता है। यह विद्रोह मालाबार के एरनद और वल्लुवानद तालुका में खिलाफ़त आन्दोलन के विरुद्ध अंग्रेजों द्वारा की गयी दमनात्मक कार्यवाही के विरुद्ध आरम्भ हुआ था।
केरल के मालाबार क्षेत्र में मोपलाओं द्वारा 1920 ई. में विद्राह किया गया। प्रारम्भ में यह विद्रोह अंग्रेज़ हुकूमत के ख़िलाफ़ॅ था। महात्मा गाँधी, शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे नेताओं का सहयोग इस आन्दोलन को प्राप्त था। इस आन्दोलन के मुख्य नेता के रूप में 'अली मुसलियार' चर्चित थे। 15 फ़रवरी, 1921 ई. को सरकार ने निषेधाज्ञा लागू कर ख़िलाफ़त तथा कांग्रेस के नेता याकूब हसन, यू. गोपाल मेनन, पी. मोइद्दीन कोया और के. माधवन नायर को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद यह आन्दोलन स्थानीय मोपला नेताओं के हाथ में चला गया। चुंके वहां के ज़मीनदार ब्रहमन थे और वो अंग्रेज़ो के ख़ास थे तो विद्रोहीयो ने उनको भी नुक़सान पहुंचाया. जबके खिलाफ़त आन्दोलन और असहयोग आंदोलन को हिन्दु और मुसलमान दोनो का समर्थन प्रापत था पर ब्रहमन ज़मीनदारो पर हुए हमले को आधार बना कर अंग्रेज़ों ने हिन्दुओ को मुसलमानो के ख़िलाफ़ भड़काया और देखते ही देखते 1922 ई. में इस आन्दोलन ने हिन्दू-मुसलमानों के मध्य साम्प्रदायिक आन्दोलन का रूप ले लिया, परन्तु शीघ्र ही इस आन्दोलन को कुचल दिया गया। इसमें काफी संख्या में हिन्दुओं और मुसलमानो का कत्ल अंग्रेज़ो द्वारा किया गया।
Ye sara matrial kis book s use Kiya gya hai
Mopala vidroh kaha hua tha????
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