मनोविज्ञान और मनोरोग का एक लम्बा इतिहास है जो सामान्य और असामान्यता केप्रतिवाद के क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। असामान्यता मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की ही एक शाखाहै। जिसके अन्तर्गत असामान्य व्यवहार को विवेचित करते हैं। असामान्यता का शाब्दिकअर्थ सामान्यता से विचलन है। आप आश्चर्यचकित होंगे कि इसे ही असामान्य व्यवहारकहते है। असामान्य व्यवहार कि व्याख्या मनुष्य के अन्दर एक अवयव के रूप में नहीं करसकते है। यह विभिन्न जटिल विशेषताओं से आपस में जुड़ा होता है। आमतौर परअसामान्यता एक समय में उपस्थिति अनेक विशेषताओं को निर्धारित करता है। असामान्यव्यवहार में जिन लेखों की विशेषताओं को परिभाषित किया जाता है, वो हैं, विरल घटना,आदर्श का उल्लंघन, व्यक्तिगत तनाव, विक्रिया और अप्रत्याशित व्यवहार। आइये इनअवधारणाओं को समझते हैं-
1. विरल घटना-
लोगों का बहुमत औसतन उस व्यवहार को दर्शाता है जो कि उनकीजीवन की किसी घटना से सम्बन्धित होता है। जो लोग औसत विचल को दर्शाते हैंवो बहुत प्रवृत्तिशील होते है।। लेकिन आवृति को सुविचारित नहीं किया जा सकता,जैसे एक मात्र मूलतत्व को असामान्य व्यवहार में निर्धारित नहीं किया जा सकता है।
2. आदर्श का उल्लंघन-
यह उपागम सामाजिक आदश्र्ाी और सांस्कृतिक मूल्यों परआधारित है। जो विशिष्ट स्थितियों में व्यवहार का मार्ग-प्रदर्शक होता है। यदि एकविशिष्ट व्यक्ति सामाजिक आदर्शो को तोड़ता है, धमकाता है, या दूसरों को चिंतितकरता है तो यह विचार असामान्य व्यवहार जैसा है। असामान्यता, स्वीकृत आदर्शोसे उच्चस्तर पर विचलित करना माना जाता है। लेकिन इसमें ध्यान देने योग्य बातये है कि आदर्श मूल्य अलग-अलग सांस्कृतियों में अलग-अलग होते है। एक जगहजो नैतिक होता है वो दूसरी जगह अनैतिक भी हो सकता है यह अवधारणा अपनेआपमें बहुत व्यापक है जैसे अपराधी और वैश्याएं सामाजिक मूल्य जोड़ते है परन्तुआवश्यक नहीं है कि उन्हें असामान्य मनोविज्ञान में पढ़ा जाये।
3. व्यक्तिगत तनाव -
एक व्यवहार, यदि वो सुविचारित असामान्य है, तो यह तनावउत्पन्न करता है किसी व्यक्ति में जो इसे महसूस करता है। उदाहरण के लिए, एकलगातार और भारी मात्रा में उपभोक्ता अपनी मद्यसार की आदत को पहचानता हैकि यह अस्वास्थ्यकर हे, और इस आदत को रोकना चाहिए। यह व्यवहार असामान्यजैसी पहचान देता हे। व्यक्तिगत तनाव, आत्म-स्व का नमूना नहीं है, परन्तु जोलोग इससे पीड़ित होते है वो ही इसकी सूचना दे सकते और निर्णय करते है।विभिन्न लोगों में तनाव का स्तर भी बदलता रहता है।
4. विक्रिया-
विक्रिया या अयोग्य नमूना उसी व्यक्ति की असामान्य मानता है यदि उसकेसंवेग, क्रियाएं और विचार उसकी सामान्य सामाजिक जीवन जीने में हस्तक्षेप करतेहै।उदाहरण के लिए असमान तत्वों के दुरूपयोग के कारण एक व्यक्ति केकार्य-निष्पादन, में बाधा आती है।
5. अप्रत्याशिता-
इस प्रारूप में अप्रत्याशित व्यवहार की पुनरावृत्ति होने को लिया जाताहै।उपर्युक्त सभी निर्धारक असामान्यता को परिभाषित करने में सहायक होते है।असामान्य व्यवहार के अंतरतम भाग का वर्णन किया है, वह है कुसमायोजन।दिनप्रतिदिन के जीवन की अपेक्षाओं से जुझने एवं उनकी पूर्ति के मार्ग में व्यक्ति काअसामान्य व्यवहार कठिनार्इ उत्पन्न करता है। सामान्य और सामान्य के बीच कोर्इस्पष्ट विभक्तिकरण रेखा नहीं होंती। यह एक मन की स्थिति होती है जिसकाअनुभव प्रत्येक व्यक्ति करता है। एक मनोवैज्ञानिक के अनुसार- ‘‘व्यवहार असामान्यहै। यह एक मानसिक विकार का द्योतक है, यदि यह दोनों विद्यमान तथा गम्भीरस्तर तक होते है तो व्यक्ति की सामान्य स्थिति की निरन्तरता के विरूद्ध तथाअथवा मानव समुदाय जिसका वह व्यक्ति सदस्य होता है के विपरित होता है। यहभी विचारणीय है कि असामान्यता की परिभाषा किसी सीमा तक संस्कृति परआधारित होती है।
उदाहरणार्थ-अपने आप से बात करना। एक आसान्य व्यवहार केरूप में माना जाता है। परन्तु कुछ निश्चित पोलीनेशियन देशों तथा परीक्षा अमेरिकीसमाजों में इसे देवियों द्वारा प्रत्येक विशिष्ट स्तरीय उपहार माना जाता है।