मृत्युभोज पर निबंध
जानवर भी अपने किसी साथी के मरने पर मिलकर वियोग प्रकट करते हैं, परन्तु यहाँ किसी व्यक्ति के मरने पर उसके साथी, सगे-सम्बन्धी भोज करते हैं। मिठाईयाँ खाते हैं। किसी घर में खुशी का मौका हो, तो समझ आता है कि मिठाई बनाकर, खिलाकर खुशी का इजहार करें, खुशी जाहिर करें। लेकिन किसी व्यक्ति के मरने पर मिठाईयाँ परोसी जायें, खाई जायें, इस शर्मनाक परम्परा को मानवता की किस श्रेणी में रखें।
राजस्थान के चार उत्तरी जिलों – झुंझुनूँ, सीकर, चुरू और हनुमानगढ़ को छोड़ दें। शेष 29 जिलों में किसी परिजन के मरने पर क्रिया कर्म के साथ मृत्युभोज करने की एक स्थापित कुरीति है। हमारे ध्यान में केवल ओसवाल जाति ऐसा नहीं करती है। बाकी सभी जाति समूह मृत्युभोज करते हैं। इस भोज के अलग-अलग तरीके हैं। कहीं पर यह एक ही दिन में किया जाता है। कहीं तीसरे दिन से शुरू होकर बारहवें-तेहरवें दिन तक चलता है। हमने यहां तक देखा है कि कई लोग श्मशान घाट से ही सीधे भोजन करने चल पड़ते हैं और जमकर मिठाई खाते हैं। हमने तो ऐसे लोगों को सुझाव भी दिया था कि क्यों न वे श्मशान घाट पर ही टेंट लगाकर जीम लें। कहीं-कहीं मोहल्ले के लोग, मित्र और रिश्तेदार भोज में शामिल होते हैं, कहीं गांव, तो कहीं पूरा क्षेत्र। तब यह हैसियत दिखाने का अवसर बन जाता है। आस-पास के कई गाँवों से ट्रेक्टर-ट्रोलियों में गिद्धों की भांति जनता इस घृणित भोज पर टूट पड़ती है। क़स्बों में विभिन्न जातियों की ‘न्यात’ एक साथ इस भोज पर जमा होती है। 60 वर्षों से स्कूल-कॉलेज हम चला रहे हैं, परन्तु शिक्षित व्यक्ति भी इस जाहिल कार्य में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। इससे समस्या और विकट हो जाती है, क्योंकि अशिक्षित लोगों के लिए इस कुरीति के पक्ष में तर्क जुटाने वाला पढ़ा-लिखा वकील खड़ा हो जाता है। मूल परम्परा क्या थी ? लेकिन जब हमने 80-90 वर्ष के बुज़ुर्गों से इस कुरीति के चलन के बारे में पूछा, तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। उन्होंने बताया कि उनके जमाने में ऐसा नहीं था। रिश्तेदार ही घर पर मिलने आते थे। उन्हें पड़ोसी भोजन के लिए ले जाया करते थे। सादा भोजन करवा देते थे। मृत व्यक्ति के घर बारह दिन तक कोई भोजन नहीं बनता था। 13 वें दिन कुछ सादे क्रियाकर्म होते थे और ब्राह्मणों एवं घर-परिवार के लोगों का खाना बनता था। शोक तोड़ दिया जाता था। बस। शास्त्र भी यही कहते हैं। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि किसी भी मृत व्यक्ति के घर बारह दिन तक पानी पीना भी हिन्दुओं के लिए वर्जित है। मुस्लिम परम्परा और ग्रन्थ भी यही कहते हैं। उनमें भी नियत समय तक मृतक के घर ऐसे भोजन को गैर इस्लामी कहा गया है। 12-13 वें दिन के बाद घर की शुद्धि और आत्मा की शांति के लिए कुछ क्रियाकर्मों का प्रावधान है। मुस्लिमों में ऐसा 40 वें दिन पर होता है। घर-परिवार और पंडित-पुरोहित-फ़क़ीरों के लिए भोजन बन जाये, ताकि शोक को औपचारिक रूप से तोड़ा जा सके। इस भारतीय परम्परा का अपना मनोवैज्ञानिक पहलू भी है। इस प्रकार की प्रक्रियाओं में उलझने और आने-जाने वालों के कारण परिवार को परिजन के बिछुड़ने का दर्द भूलने में मदद हो जाती है। मृत्युभोज का तमाशा लेकिन इधर तो परिजन के बिछुड़ने के साथ एक और दर्द जुड़ जाता है। मृत्युभोज के लिए 50 हजार से 2 लाख रुपये तक का साधारण इन्तज़ाम करने का दर्द। ऐसा नहीं करो तो समाज में इज्जत नहीं बचे। क्या गजब पैमाने बनाये हैं, हमने इज्जत के? अपने धर्म को खराब करके, परिवार को बर्बाद करके इज्जत पाने का पैमाना। कहीं-कहीं पर तो इस अवसर पर अफीम की मनुहार भी करनी पड़ती है। इसका खर्च मृत्युभोज के भोजन के बराबर ही पड़ता है। बड़े-बड़े नेता और अफसर इस अफीम का आनन्द लेकर कानून का खुला मजाक उड़ाते अकसर देखे भी जाते हैं। कपड़ों का लेन-देन भी ऐसे अवसरों पर जमकर होता है। कपड़े, केवल दिखाने के, पहनने लायक नहीं। बरबादी का ऐसा नंगा नाच, जिस प्रदेश में चल रहा हो, वहाँ पर पूँजी कहाँ बचेगी, उत्पादन कैसे बढ़ेगा, बच्चे कैसे पढ़ेंगे? राजस्थान में नकली घी-शक्कर-तेल-आटे-कपड़े-अफीम का यह खेल लगभग 10 से 15000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष में बैठता है। नरेगा में सरकार कितना पैसा परिवारों तक पहुँचा पायेगी। उससे तो ज्यादा खर्च मृत्युभोज पर ही हो जाता है। इस खेल को प्रायोजित करने में भू-माफिया, ब्याज-माफिया और मिलावट-माफिया संगठित होकर आगे आते हैं। अपने-अपने समाज के ठेकेदार बनकर ये माफिया, मृत्युभोज की कुरीति को आगे बढ़ाते हैं। इसे पक्का करने के लिए उनके स्वयं के परिजनों की मौत पर बढ़-चढ़ कर खर्च करते हैं, ताकि मध्यम और निम्र वर्ग इसे आवश्यक परम्परा मानकर चलता रहे। अजीब लगता है जब यह देखते हैं कि जवान मौतों पर भी समाज के लोग मिठाईयाँ उड़ा रहे होते हैं। हम आदिवासियों को क्या कहेंगे, जब हमारा तथाकथित सभ्य समाज भी ऐसी घिनौनी हरकतें करता है। लोग शर्म नहीं करते, जब जवान बाप या माँ के मरने पर उनके बच्चे अनाथ होकर, सिर मुंडाये आस-पास घूम रहे होते हैं। और समाज के प्रतिष्ठित लोग उस परिवार की मदद करने के स्थान पर भोज कर रहे होते हैं। आप आश्चर्य करेंगे कि इधर शहीदों तक को नहीं बख्शा गया है। उनका स्मारक बनाने के नाम पर फोटो खिंचवाते ‘देशभक्त’ नेता और समाज के लोग, शहीद के परिवार को मिली सहायता स्वाहा करने से भी नहीं चूकते। शासन और बुद्धिजीवियों का मौन शासन और बुद्धिजीवियों के लिए यह समस्या अभी अपनी गम्भीरता प्रकट नहीं कर पायी है। वे तो बाल विवाह के पीछे पड़े हैं, बालिका शिक्षा उनकी फैशनेबल मुहिम है। उन्हें नहीं पता कि एक मृत्युभोज, किसी भी परिवार की आर्थिक स्थिति को अंदर तक हिला देता है। गाँवों और क़स्बों की इस कड़वी सच्चाई का या तो उन्हें बोध नहीं है और या फिर वे कुछ नहीं कर पाने के कारण मौन धारण कर बैठ गये हैं। मृत्युभोज की वीभत्सता अभी ठीक से प्रदेश के मंच पर आ ही नहीं पायी है। इसके आर्थिक दुष्परिणामों के बारे में अभी ठीक से सोचा नहीं गया है। अब देखिये, वह परिवार क्या बालिका शिक्षा की सोचेगा, जो ऐसी कुरीतियों के कारण कर्जे में डूब गया है। ऐसा परिवार बाल विवाह भी मजबूरी में करता है, ताकि कैसे भी करके एक सामाजिक जिम्मेदारी पूरी हो जाये। मृत्युभोज को रोकने के लिए 1960 में मृत्युभोज निवारण अधिनियम भी बना है, जिसके तहत सजा व जुर्माने का स्पष्ट प्रावधान है। परिवार एवं पंडित-पुरोहितों को मिलाकर 100 व्यक्तियों तक का भोजन ही कानूनन बन सकता है। इससे बड़े आयोजन पर उस क्षेत्र के सरपंच, ग्राम सेवक, पटवारी व नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी की कुर्सी छिन सकती है। लेकिन शासन अभी भी इस पर मौन है। वोटों के लालच में। यहाँ तक कि ऐसे मृत्युभोजों में नेता-अफसर स्वयं भाग भी लेते रहते हैं। फिर किसकी मजाल, जो शिकायत करे। फिर भी चार ज़िलों में जब हमने मृत्युभोज के विरूद्ध 2005 से 2007 तक संघर्ष किया, तो 70 प्रतिशत तक कामयाबी मिल ही गयी। परन्तु प्रशासन टस से मस नहीं हुआ। बुद्धिजीवी भी घर से बाहर नहीं निकले। ऐसा लगा, जैसे वे भी प्रशासन के साथ मृत्युभोज के पक्ष में ही थे। न्यायपालिका ने भी प्रशासन की झूठी दलीलों पर हमारी जनहित याचिका को ठुकरा दिया। लेकिन मजबूत इच्छा शक्ति के चलते और प्रबल जनजागरण से हमारा मृत्युभोज के विरूद्ध आन्दोलन काफी सफल रहा। फिर भी मिठाई बनना अभी बंद नहीं हुआ है। हाँ, आयोजन का स्तर जरूर छोटा हो गया है। आज भी अख़बारों में खुले आम ‘गंगा प्रसादी’ की घोषणा की जाती है। यह ‘गंगाप्रसादी’ और कुछ नहीं मृत्युभोज है। कानूनी अड़चनों से बचने के लिए कुछ न्यायविदों (?) ने यह शब्द सुझा कर समाज की सेवा (?) की है! वे कहते हैं कि हम गंगा मैया का प्रसाद बाँट रहे हैं। यह अलग बात है कि इस प्रसाद को मिठाईयों में डालकर बाँट रहे हैं। कुतर्कों का जाल अब आइये कुछ कुतर्कों से जूझें। क्योंकि जब भी मृत्युभोज रोकने का प्रयास होगा, तो ये सामने लाये जायेंगे। कमाल तो यह है कि ये कुतर्क पूरे राजस्थान के क़स्बों-गाँवों में समान रूप से सुधारकों के सामने फेंके जाते हैं। ये कुतर्क शास्त्री महिलाओं और बुज़ुर्गों का अपना खास निशाना बनाते हैं। कभी शराब बन्दी की बात को बीच में लाकर इस मुद्दे से ध्यान हटाने की भी कोशिश करते हैं। पहले शराब बंद करो, फिर मृत्युभोज बंद करेंगे, का अड़ंगा राजस्थान के प्रत्येक भाग में समान रूप से लगाया जाता है। कल को कह देंगे कि मोबाइल बंद करो! अब शराब और मोबाइल का मृत्युभोज से क्या कनेक्शन है, क्या लेना-देना है? फिर भी स्वार्थी लोगों की क्षमता तो देखिये कि वे अपनी बात को कितनी सावधानी से फैलाने में कामयाब हो जाते हैं। और सही बात कहने वाले चिल्लाते रहते हैं, परन्तु उनकी बात का प्रचार गति आसानी से नहीं पकड़ता। 1. माँ-बाप जीवन भर हमारे लिए कमाकर गये हैं, तो उनके लिए हम कुछ नहीं करें क्या? इस पहले कुतर्क से हमें भावुक करने की कोशिश होती है। हकीकत तो यह है कि आजकल अधिकांश माँ-बाप कर्ज ही छोड़ कर जा रहे हैं। उनकी जीवन भर की कमाई भी तो कुरीतियों और दिखावे की भेंट चढ़ गयी। फिर अगर कुछ पैसा उन्होंने हमारे लिए रखा भी है, तो यह उनका फर्ज था। हम यही कर सकते हैं कि जीते जी उनकी सेवा कर लें। लेकिन जीते जी तो हम उनसे ठीक से बात नहीं करते। वे खोंसते रहते हैं, हम उठकर दवाई नहीं दे पाते हैं। अचरज होता है कि वही लोग बड़ा मृत्युभोज या दिखावा करते हैं, जिनके माँ-बाप जीवन भर तिरस्कृत रहे। खैर! चलिए, अगर माँ-बाप ने हमारे लिए कमाया है, तो उनकी याद में हम कई जनहित के कार्य कर सकते हैं, पुण्य कर सकते हैं। जरूरतमंदो की मदद कर दें, अस्पताल-स्कूल के कमरे बना दें, पेड़ लगा दें। बहुत कार्य हैं करने के। परन्तु हट्टे-कट्टे लोगों को भोजन करवाने से उनकी आत्मा को क्या आराम मिलेगा? जीवन भर जो ठीक से खाना नहीं खा पाये, उनके घर में इस तरह की दावत उड़ेगी, तो उनकी आत्मा पर क्या बीतेगी? या फिर अपने क्रियाकर्म के लिए अपनी औलादों को कर्ज लेते, खेत बेचते देखेंगे, तो कैसी शान्ति अनुभव करेंगे? जो जमीन जीवन में बचाई, उनके मरने पर बिक गयी, तो क्या आत्मा ठण्डी हो जायेगी? 2. क्या घर आये मेहमानों को भूखा ही भेज दें? पहली बात को शोक प्रकट करने आने वाले रिश्तेदार और मित्र, मेहमान नहीं होते हैं। उनको भी सोचना चाहिये कि शोक संतृप्त परिवार को और दुखी क्यों करें? अब तो साधन भी बहुत हैं। सुबह से शाम तक वापिस अपने घर पहुँचा जा सकता है। इस घिसे-पिटे तर्क को किनारे रख दें। मेहमाननवाजी आडे दिन भी की जा सकती है, मौत पर मनुहार की जरूरत नहीं है। बेहतर यही होगा कि हम जब शोक प्रकट करने जायें, तो खुद ही भोजन या अन्य मनुहार को नकार दें। समस्या ही खत्म हो जायेगी। 3. हम किसी के यहाँ भोजन कर आये हैं, तो उन्हें भी बुलाना होगा! इस मुर्ग़ी पहले या अंडे की पहेली को यहीं छोड़ दें। यह कभी नहीं सुलझेगी। अब आप बुला लो, फिर वे बुलायेंगे। फिर कुछ और लोग जोड़ दो। इनसानियत पहले से ही इस कृत्य पर शर्मिंदा है, और न करो। किसी व्यक्ति के मरने पर उसके घर पर जाकर भोजन करना वाकई में निंदनीय है और अब इतनी पढ़ाई-लिखाई के बाद तो यह चीज प्रत्येक समझदार व्यक्ति को मान लेनी चाहिए। गाँव और क़स्बों में गिद्धों की तरह मृत व्यक्तियों के घरों पर मिठाईयों पर टूट पड़ते लोगों की तस्वीरें अब दिखाई नहीं देनी चाहिए। अभिनव राजस्थान में अभिनव राजस्थान में मृत्युभोज की कुरीति को जड़ से समाप्त करने के लिए प्रदेश भर में व्यापक जनजागरण कार्यक्रम होंगे। सभी तरह के प्रचार माध्यमों का उपयोग कर मृत्युभोज जैसी अमानवीय परम्परा के खिलाफ माहौल बनाया जायेगा। विशेष रूप से युवा वर्ग को मृत्युभोज के आयोजनों से दूर रहने के लिए प्रेरित किया जायेगा। इस कार्य में प्रदेश के बुद्धिजीवी वर्ग की अहम भूमिका होगी। ऐसा ही शादियों की फिजूलखर्ची, दहेज एवं दिखावे के खिलाफ होगा। जातीय संगठनों एवं गाँवों की सभाओं में निर्णय करवाये जायेंगे, ताकि नये राजस्थान का, अभिनव राजस्थान की नींव रखी जा सके। तब शायद शासन भी साथ दे दे और मुहिम और तेज गति पकड़ ले।Mrutyu bhoj nibandh kyon nahin Nikal
Mrutyu bhoj per nibandh likhkar bataiye
Mritue भोज पर nibhand
मृतुभोज पर निबंध लिखकर बताएँ
मृत्यु भोज पर निबंध हिंदी में
Mrutyu bhoj ki man main line bataiye
Mrityu bhoj par nibandh kaise likhe
मृत्युभोज
मृत्यु भोज पर निबंध
आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें
Culture
Current affairs
International Relations
Security and Defence
Social Issues
English Antonyms
English Language
English Related Words
English Vocabulary
Ethics and Values
Geography
Geography - india
Geography -physical
Geography-world
River
Gk
GK in Hindi (Samanya Gyan)
Hindi language
History
History - ancient
History - medieval
History - modern
History-world
Age
Aptitude- Ratio
Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
Simplification
Time and distance
Train
Trigonometry
Volume
Work and time
Biology
Chemistry
Science
Science and Technology
Chattishgarh
Delhi
Gujarat
Haryana
Jharkhand
Jharkhand GK
Madhya Pradesh
Maharashtra
Rajasthan
States
Uttar Pradesh
Uttarakhand
Bihar
Computer Knowledge
Economy
Indian culture
Physics
Polity
इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।