सगुण Bhakti Kavya Ki Visheshta सगुण भक्ति काव्य की विशेषता

सगुण भक्ति काव्य की विशेषता

Pradeep Chawla on 12-05-2019

भक्तिकाल अथवा पूर्व मध्यकाल हिंदी साहित्य का महत्वपूर्ण काल है जिसे ‘स्वर्णयुग’ विशेषण से विभूषित किया जाता है. इस काल की समय सीमा विद्वानों द्वारा संवत 1375 से 1700 तक मान्य है.राजनैतिक, सामाजिक,धार्मिक,दार्शनिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अंतर्विरोधों से परिपूर्ण होते हुए भी इस काल में भक्ति की ऐसी धारा प्रवाहित हुयी कि विद्वानों ने एकमत से इसे भक्ति काल कहा.



‘भज’ धातु में ‘क्तिन’ प्रत्यय के साथ निर्मित शब्द ‘भक्ति’ अत्यंत व्यापक एवं गहन है. शांडिल्य और नारद भक्ति सूत्र में ‘भक्ति’ को ‘सा परानुरक्तिरीश्वरे’ एवं ‘सा त्वस्मिन परम प्रेम रूपा’ कहकर पारिभाषित किया है. वस्तुतः भक्ति और प्रेम मनुष्य की सहजात भाव स्थितियां हैं जिनके आधार पर भक्ति दो रूपों में प्रस्फुटित हुई – निर्गुण और सगुण.



निर्गुण का शाब्दिक अर्थ है – निःगुण अर्थात जो लौकिक गुणों (सत्व, रज और तम) में सिमित नहीं है. हम यह भी कह सकते हैं कि आराध्य का वह स्वरुप जो अनादि, अनन्त, असीम और अव्यक्त होते हुए भी सर्वव्यापक एवं सर्वनियन्ता है, स्वयं सृजन कर्ता है और कण-कण में समाया है. श्वेताश्वरोपनिषद में निर्गुण के विषय में कहा गया –



एकोदेवः सर्वभूतेषु गूढ़ सर्वव्यापी सर्वभूतान्तारात्मा.



कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेताव केवलो निर्गुणश्च.



अर्थात निर्गुण एक अद्वितीय देव है जो सर्वव्यापी है, सब प्राणियों में निवास करता है, सभी कर्मों का अधिष्ठाता है, साक्षी है और सबको चेतना प्रदान करता है.



वस्तुतः वेदों-उपनिषदों में ब्रह्म को इसी रूप में वर्णित किया गया है. यहाँ ऋषि- मुनि ज्ञान के आधार पर ईश्वर के ‘नेति-नेति’ स्वरुप को जानने और समझने का प्रयास करते रहे. ज्ञान और भक्ति साधना के दो पृथक रूप माने गए जबकि ये दोनों परस्पर गहन रूप से सम्बद्ध हैं. व्यावहारिक तौर पर देखा जाये तो किसी तत्व अथवा व्यक्ति के विषय में हम यदि बाह्य और अन्तः दोनों दृष्टियों से समझ-जान लेते है तो उसे ज्ञान कहा जाता है. इस प्रक्रिया के उपरांत हमारा ह्रदय उसके प्रति अनुरक्त होने लगता है, हम निरंतर उसी का स्मरण करते हैं, उसे भजते हैं- जिसे भक्ति कहते हैं. आदि गुरु शंकराचार्य ने ज्ञान के साथ अनुभूति अथवा भाव को आवश्यक माना. उन्होंने जीव का परिचय ‘अहं ब्रह्मास्मि’ अर्थात मैं ब्रह्म हूँ- के रूप में दिया लेकिन वह तभी संभव है जब अनुभूति के धरातल पर दोनों में अभेदता हो जाये. यह ब्रह्म और जीव का एक हो जाना है, अद्वैत है. इसी भाव को संत कबीर कहते हैं- ‘तूं तूं करता तूं भया, मुझ में रही न हूँ.’



सगुण भक्ति का अर्थ है- आराध्य के रूप – गुण, आकर की कल्पना अपने भावानुरूप कर उसे अपने बीच व्याप्त देखना. सगुण भक्ति में ब्रह्म के अवतार रूप की प्रतिष्ठा है और अवतारवाद पुराणों के साथ प्रचार में आया. इसी से विष्णु अथवा ब्रह्म के दो अवतार राम और कृष्ण के उपासक जन-जन के ह्रदय में बसने लगे. राम और कृष्ण के उपासक उन्हें विष्णु का अवतार मानने की अपेक्षा परब्रह्म ही मानते हैं, इसकी चर्चा यथास्थान की जाएगी.



कृष्ण काव्य : अनुभूति एवं अभिव्यक्तिगत विशेषताएँ



भक्तिकाल की सगुण काव्य धरा के अंतर्गत आराध्य देवताओं में श्रीकृष्ण का स्थान सर्वोपरि है. वेदों में श्रीकृष्ण का उल्लेख हुआ है, ऋगवेद में कृष्ण (आंगिरस) का उल्लेख है. पुराणों तक आते- आते राम और कृष्ण अवतार रूप में प्रतिष्ठित हो गए. श्रीमद्भाग्वद्पुराण में उन्हें पूर्ण ब्रह्म के रूप में चित्रित किया गया है.



भक्तिकाल में कृष्ण भक्ति का प्रचार कृष्ण की जन्म एवं लीलाभूमि में व्यापक रूप में हुआ. वैष्णव भक्ति सम्प्रदायों में वल्लभाचार्य –पुष्टिमार्ग. निम्बार्काचार्य- निम्बार्क, श्री हितहरिवंश – राधावल्लभ, स्वामी हरिदास- हरिदासी, चैतन्य महाप्रभु- गौडीय संप्रदाय सभी सम्प्रदायों में पूर्ण ब्रह्म श्री कृष्ण तथा श्री राधा उनकी आह्लादिनी शक्ति की उपासना की गयी. सत, चित, आनंद स्वरुप श्री कृष्ण नन्द और यशोदा के आँगन में विभिन्न बाल लीलाओं के माध्यम से समस्त गोकुलवासियों को आनंद प्रदान करते है. बाल रूप में ही राक्षस – राक्षसियों का विनाश कर अपने दिव्य रूप को सहज ग्राह्य बना देते हैं. वे ही सर्वव्यापक, अविनाशी, अजर, अमर, अगम आदि विशेषणों से युक्त होते हुए भी ब्रज के प्रत्येक प्राणी को उसके भावानुरूप आनंद प्रदान करते है.



हिंदी साहित्य में कृष्ण भक्ति पर आधारित काव्यों की लम्बी परंपरा है (आदिकालीन कृष्ण काव्य में चंदवरदाई और विद्यापति उल्लेखनीय है) भक्तिकालीन कृष्ण भक्त कवियों पर महाप्रभु वल्लभाचार्य का विशेष प्रभाव है. उन्होंने श्रीकृष्ण के बाल एवं किशोर रूप की लीलाओं का गायन किया तथा गोवर्धन पर श्रीनाथ जी को प्रतिष्ठित कर एक मंदिर बनवाया.उन्होंने भगवान के अनुग्रह की महत्ता पर बल दिया. दर्शन के क्षेत्र में विष्णुस्वामी के शुद्धाद्वैत का प्रभाव इन पर दिखाई देता है. अपने इस भक्ति मार्ग को उन्होंने पुष्टिमार्ग कहा और अनेक शिष्यों को कृष्ण भक्ति का मन्त्र देकर दीक्षित भी किया. जिन्हें अष्टछाप के कवि अथवा अष्ट सखा कहा गया. इनमें सूरदास, कुम्भनदास, परमानंददास,कृष्णदास – चार श्री बल्लभाचार्य के शिष्य और गोविन्दस्वामी, नन्ददास, छीतस्वामी और चतुर्भुजदास – चार बल्लभाचार्य के पुत्र श्री विट्ठलनाथ के शिष्य थे. आठ की संख्या होने से इन्हें अष्ट छाप कहा गया.



इन सभी भक्त कवियों ने श्रीमदभागवत के आधार पर ही कृष्ण लीला गान किया है. इसके लिए अपने आराध्य श्रीकृष्ण की कृपा से प्राप्त भगवत प्रेम ही महत्वपूर्ण है. पुष्टिमार्ग का अनुयायी भक्त आत्मसमर्पण युक्त रसात्मक प्रेम द्वारा भगवान की लीला में तल्लीन हो आनन्दावस्था को प्राप्त होता है.



सभी कृष्ण भक्त कवियों की रचनाएँ भक्ति, संगीत और कवित्व का समन्वित रूप है. लीलामय श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति के आवेश में इन अष्टछाप कवियों के ह्रदय से गीतिकाव्य की जो निर्झरिणी प्रस्फुटित हुई उसने भगवदभक्तों को आकंठ निमग्न कर दिया.

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Comments प्रवीण on 06-11-2023

सगुण काव्य धारा की विशेषता

Arohi on 05-09-2023

Sagun Kavya Shara k prichai

सगुण on 30-08-2023

भक्तिकाल सगुण कबि सूरदास

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Pooja on 29-08-2023

Lok mangal ki bhavana

Nilesh on 10-08-2023

सगुण भक्ति साख की विषेताए

Jagesh on 23-06-2023

जय शंकर प्रसाद कीकाव्य गत विशेष ताए लिरिवए

Akriti on 20-12-2022

Madhyakalin Hindi ka Hindi kavya ka kal khandan lagbhag kab se kab tak hai

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Benoo yadav on 15-12-2022

सगुण भक्ति काव्यधारा विशेषताएं

Hemant dhakad on 10-12-2022

Surdas ki bhakti kis prakar ki hai spasht kijiye

Hemkumarnaik km on 16-10-2022

Sagun bhakti shakha ki visheshatavon ko spashta kijiye

Suman Kumari on 17-08-2022

भक्तिकाल का परिचय देते हुए उनके पवृतिया बताए

Avijeet on 27-07-2022

Bhakti Kavya ki samanya visheshtaen bataiye tatha 500 shabdon mein likhiye

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Arohi on 16-05-2022

Sagun Kavy dhara k prichai

Ajay baghel on 29-04-2022

Lagbhag kavyadhara ka Parichay dete hue unki samanya visheshta likhiye

Payal sahu on 03-04-2022

Sagun bhakti dhara ki visheshta

Batao

Shivani on 16-03-2022

Sagun bhakti ke kavi vah Kavya visheshtaen

Neelam on 04-03-2022

Sagun or nirgun bhaktidhara ki pravertiya Kya hai

Jagesh on 18-02-2022

सगुण भक्ति धारा की विशेष ताए लिखिए

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Manju Manju on 01-02-2022

Nir gud aur segued bharti ki visehtaye aur unke kaviyo ke name

Aafreen on 17-12-2021

Shagun bhakti ka sankshipt parichay de

भक्ति काल को किस प्रवृत्ति ने भक्ति काल नाम दिया on 05-11-2021

भक्ति काल को किस प्रवृत्ति ने भक्ति काल नाम दिया

Sagun kawiy dhara kya hai on 01-10-2021

Sagun kawiy dhara kya hai

Mohit rana on 26-09-2021

सगुण काव्य धारा की धाराओ के नाम बताते हुए उनकी विशेषताएं लिखो।

Angel on 20-09-2021

Hindi me project work krna h usme topic h bhakti kaal ke pure topic chaiye h please

kailash on 04-09-2021

mangan ki rasna ka name bataye

Komal on 16-08-2021

सगुण भक्ति?

Deepak Patel on 27-06-2021

सगुण थक्तिधारा की विशेषता

ममम on 27-04-2021

सगुण काव्यधारा की विशेषता

Ashish on 24-04-2021

Sagun bhakti shakha ki panch visheshtaen

Hum sagun bhakti kyun krte h on 15-04-2021

Hum sagun bhakti kyun krte h

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Priti Kumari pasi on 10-04-2021

Bhakti Dhara aur nirgun bhakti Dhara ke bich samya veshya mein Hindi mein PDF

Sachin on 25-02-2021

Sagun bhakti kavya dhara ka parichay dete huve samanya vishashataa bataiye

Tanu Rathod on 06-01-2021

सगुण भक्ति काव्य धारा की विशेषता

Anoop Ratna on 31-12-2020

Hindi me bhakti kaal ke alawa aur kaun kaun see kaal hai

Anshika on 27-11-2020

Sagud dhara ki vishesta

आर on 14-11-2020

सगुण भक्ति काव्य धारा का परिचय

Hemant vashistha on 19-09-2020

Sagun bhakti kavya ke visheshta

Math on 23-06-2020

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Kumari amrita on 10-01-2020

Sagun bhakti ke darshnik aadhro ka vivechan kijiye
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