संत काव्य की प्रवृत्तियाँ
हिंदी साहित्य के भक्ति काल को अगर कालक्रम की दृष्टि से देखा जाए तो हिंदी सन्त काव्य का प्रारम्भ निर्गुण काव्य धारा से होता है | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने नामदेव और कवीर द्वारा प्रवर्तित भक्ति धारा को ‘निर्गुण ज्ञानाश्रयी धारा’ की संज्ञा प्रदान की है | डा. रामकुमार वर्मा ने इसे ‘सन्त काव्य परम्परा’ जैसे विशेषण से अभिहित किया है | आचार्य हजारी प्रसाद व्दिवेदी ने इसे ‘निर्गुण भक्ति साहित्य’ का नाम दिया है | निर्गुण काव्य धारा मे सन्त काव्य का विशेष महत्व है | संत काव्य धारा को ज्ञानश्रयी शाखा भी कहा जाता है |
सदाचार के लक्षणों से युक्त व्यक्ति को सन्त कहा जाता है | इस प्रकार का व्यक्ति आत्मोन्नति एवं लोक मंगल मे लगा रहता है | डा. पीताम्बर दत्त बडथ्वाल ने सन्त का सम्बंध शान्त से माना है और इसका अर्थ उन्होने किया है – निवृत्ति मार्गी या वैरागी |
सन्त शब्द सत से बना है जिसका अर्थ है – ईश्वरोन्मुखी कोई भी सजग पुरूष |
ज्ञानाश्रयी शाखा या सन्त काव्य धारा के प्रमुख कवियों एवं उनकी रचनाओ का विवरण इस प्रकार है –
रामानन्द जी के आविर्भाव काल , निधन काल , जीवन चरित आदि के सम्बंध मे कोई प्रामाणित सामग्री उपलब्ध नहीं है | ये लगभग 15 वीं शती के उत्तार्द्ध मे हुए थे | ‘श्री भक्तमाल सटीक’ के अनुसार इनका जन्म प्रयाग मे कान्यकुब्ज ब्राह्मण कुल मे हुआ था | इनकी शिक्षा – दीक्षा काशी मे हुई | इनके गुरु का नाम राघवानन्द था | जो काशी मे रहते थे |
ये रामानुजाचार्य परम्परा के शिष्य थे | इनकी समय मे दिल्ली का सुल्तान सिकंदर लोदी था | रामानन्द ने अपने ग्रंथ ‘श्रीरामार्चन पद्धति’ मे अपनी पूरी गुरु परम्परा का वर्णन किया है | रामानन्द से पहले रामानुज सम्प्रदाय मे केवल व्दिजातियों को ही दीक्षा दी जाती थी | परन्तु रामानन्द ने राम भक्ति के व्दार सब जातियों के लिये खोल दिया | भक्त माल के अनुसार इनके शिष्यो के नाम इस प्रकार है – अनन्त दास , सुखानन्द , सुरसुराननन्द , नरहर्यानन्द , भवानन्द , पीपा , कबीर , सेन , धन्ना , रैदास , पद्मावती और सुरसुरी| रामानन्द के इन 12 शिष्यो में , सेन – नाई , कबीर – जुलाहा और रैदास चमार थे | रामानन्द ने काशी मे रामावत सम्प्रदाय के स्थापना की |
ये महाराष्ट्र के भक्त के रुप मे प्रसिद्ध है | सतारा जिले के नरसी बैनी गांव मे सन् 1267 ई0 मे इनका जन्म हुआ था | इनके गुरु का नाम सन्त विसोवा खेवर था | नामदेव मराठी और हिंदी दोनो भाषाओ मे भजन गाते थे | उन्होने हिन्दू और मुस्लमान की मिथ्या रूढियों का विरोध किया | उदाहरण स्वरुप –
हिन्दू अन्धा तुरको काना, दुऔ से ग्यानी सयाना |
हिन्दू पूजै देहरा, मुस्लमान मसीख ||
कबीर सन्त परम्परा के प्रमुख और प्रतिनिधि कवि है | इनके जीवन के विषय मे प्रामाणित साक्ष्य उपलब्ध नही है | जनश्रुतियों के अनुसार कबीर का जन्म 1398 ई0 मे और मृत्यु 1518 ई0 मे हुई | कहा जाता है कि कबीर किसी विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे | उसने अपनी लोक ,लाज के भय से बच्चे के लहरतारा नामक तालाव मे फेंक आयी | नीरु और नीमा नामक जुलाहे ने बच्चे का लालन – पालन किया | यही बच्चा बाद मे बडा होकर कबीर के नाम से जाना गया | कबीर के पत्नी का नाम लोई तथा पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली था | कबीर के गुरु रामानन्द थे |
कबीर अनपढ थे | उनके शिष्यो ने कबीर की वाणीको सजोकर रखा तथा बाद मे पुस्तक का आकार दिया | इनकी रचना ‘बीजक’ नाम से जानी जाती है | कबीर ने मूर्ति पूजन , तीर्थब्रत , पूजापाठ का विरोध किया | कबीर जीवन भर सामाजिक अंधविश्वासो का विरोध किये तथा समाजिक बुराइयों का भी विरोध किया |
दादूदयाल का जन्म 1544 ई0 मे अहमदाबाद मे हुआ था | तथा इनकी मृत्यु 1603 ई0 मे मानी जाती है | दादू पन्थ के लोग कहते है कि ये किसी ब्राम्हण को साबरमती मे बहते हुए पानी मे मिले थे | एक अन्य जनश्रुति के अनुसार इन्हे मुसलमान (धुनिया) का पुत्र माना जाता है | इनका मूल नाम दाऊद बताया गया है | ये अन्य स्रोत मे इनका पहला नाम महाबली बताया गया है |
दयालुता के कारण इन्हे दादूदयाल कहा जाने लगा | इनकी वाणी से पता चलता है की वे कबीर को अपना गुरु मानते थे | दादू की वाणी एक प्रकार से कबीर की वाणी की ही ब्याख्या है | कहा जाता है कि दादू के 52 शिष्य थे | इनके प्रमुख शिष्यो मे रज्जब , सुन्दरदास , जगन्नाथ दास , प्रागदास , जनगोपाल आदि | इनके पंथ को ‘परम ब्रम्ह सम्प्रदाय’ भी कहा जाता है |
दादूदयाल के दो शिष्य सुन्दरदासऔर जगन्नाथ दास ने ‘हरडेवाणी’ शीर्षक से इनकी रचनाओ का संकलन किया | ‘अंग वधू’ इनका प्रसिद्ध काव्य संग्रह है , जिसका संकलन उनके शिष्य रज्जब ने किया |
मध्ययुगीन सादको मे रविदास का प्रमुख स्थान है | इनका जन्म काशी मे हुआ | जन्म काल के विषय मे बडा मत भेद है | डा. भण्डारकर और भक्त माल के आधार पर इनका जन्म 1200 ई0 मे हुआ था | डा. भगवत स्वरुप मिश्र ने यह निष्कर्ष दिया कि इनका जन्म 1398 ई0 तथा मृत्यु 1448 ई0 है | ये जाति के चमार थे |
इन्हे स्वामी रामानन्द ने दीक्षा दी थी | इन्हे मीराबाई का गुरु भी माना गया है | रैदास की पत्नी का लोना था | संत वाणी सीरीज के अंतर्गत इनकी रचनाओ का संकलन ‘रविदास की वाणी’ शीर्षक से प्रकासित हुआ है | इनके लिखे हुए चालीस पद गुरु ग्रंथ साहब मे भी संकलित है | रैदास सिकंदर लोदी के निमंत्रण पर दिल्ली भी गये थे |
अब कैसे छूटे राम, नाम रट लागी |
प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी, जाकी अंग – अंग वास समानी |
प्रभु जी तुम धन बन हम मोरा, जैसे चितवन चन्द्र चकोरा |
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती |
प्रभुजी तुम मोती हम धागा, जैसे सोने मिलत सुहागा |
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करे रैदासा ||
सिख सम्प्रदाय के गुरुनानक देव इतिहास प्रसिद्ध व्यक्ति है | गुरुनानक जी का जन्म 1469 ई0 मे तलवण्डी मे हुआ था | जो अब ननकाना साहब के नाम से जाना जाता है | नानक के पद गुरु ग्रंथ साहब मे संकलितहै | इनकी मृत्यु 1538 ई0 मे हुई थी | इनके पिता का नाम कालूचन्द्र और माता का नाम तृप्ता था | इनके दो पुत्र भी हुए है , जिनके नाम है – लक्ष्मीचन्द्र और श्रीचन्द्र |
इनकी रचनाएँ निम्न है –
(i)जपुजी
(ii)असा दीवार
(iii)रहिरास
(iv)सोहिला
इन्होने निरंजनी सम्प्रदाय की स्थापना किया था | इस सम्प्रदाय को नाथ पंथ एवं संत काव्य के बीच की कडी माना जा सकता है | इनके मत का सर्वप्रथम प्रचार उडीसा मे हुआ था | इनकी रचनाओ का विवरण निम्नलिखित है –
(i) ब्रह्मस्तुति
(ii)अष्टपदी
(iii)जोगग्रंथ
(iv)हंसप्रबोध ग्रंथ
(v)निरपखमूल
(vi)पूजायोग ग्रंथ
(vii)समाधिजोग ग्रंथ
मलूकदास का जन्म 1574 ई0 मे इलाहाबादके कडा गांव मे हुआ था | इनका पिता का सुंदरलाल खत्री था | इनका जन्म अकबर के समय मे तथा इनकी मृत्यु औरंगजेब के राज्य काल मे हुआ | इनकी मृत्यु सन 1682 ई0 मे हुई | मलूकदास ने अवधी और ब्रज भाषा मे रचना की है |
इनके लिखे ग्रंथो के नाम निम्नलिखित है –
(i)ज्ञान बोध
(ii)रतन खान
(iii)भक्तवच्छावली
(iv)भक्ति विवेक
(v)ज्ञान परोछि
(vi)बारहखडी
(vii)रामअवतार लीला
(viii)ब्रजलीला
(ix)ध्रुवचरित
(x)विभवविभुति
(xi)सुखसागर
(xii)स्फुट पद
आलसियों का प्रसिद्ध दोहा मलूकदास का ही रचा हुआ है | जो इस प्रकार है –
अजगर करै न चाकरी , पंछी करै न काम |
दास मलूका कहि गये , सबके दाता राम ||
निर्गुण संत कवियों मे सुन्दरदास सर्वाधिक प्रतिभाशाली एवं शिक्षित थे | इनका जन्म सन 1596 ई0 मे जयपुर राज्य की राजधानी दौसा मे हुआ था |
ये खंडेलवाल जाति के थे | इन्हे लिखे ग्रंथ निम्न है –
(i)ज्ञानसमुंद्र
(ii)सुंदरविलाश
सुंदरदास ने श्रृंगार रस का खुल कर विरोध किया |
ये बांधोगढ के निवासी थे | कबीर से इनका गहरा वाद विवाद हुआ था | अन्ततोगत्वा , ये कबीर से प्रभावित होकर निर्गुण ब्रह्म के उपासक बन गये | धर्मदास ने ही ‘बीजक’ मे कबीर की रचनाएँ संकलित की |
धर्मदास के प्रमुख रचना ‘सुखनिधान’ है |
संत सींगा का जन्म मध्य भारत की रियासत बडवानी के खजूर गांव के एक ग्वाल परिवार मे हुआ था | उनकी काव्य भाषा निमाडी है |
सींगा जी की रचनाओ का विवरण इस प्रकार है –
(i)सींगा जी का दृढ उपदेश
(ii)सींगा जी का आत्मध्यान
(iii)सींगा जी का दोष बोध
(iv)सींगा जी का नरद
(v)सींगा जी का शरद
(vi)सींगा जी की वाणी
(vii)सींगा जी की वाणावली
(viii)सींगा जी का सातवार
(ix)सींगा जी की पन्द्रह तिथि
(x)सींगा जी का बारहमासा
(xi)सींगा जी के भजन
शेख फरीद पंजाब के सन्त कवियों मे उल्लेखनीय हैं | इन्हे शकरगंज भी कहा जाता है | आदि ग्रंथ मे इनके चार पद संकलित हैं |शेख फरीद चार वर्ष की आयु मे कुरान याद कर लिये थे |
गुरु अंगद ने गुरु मुखी अक्षरों का संस्कार दिया और लंगर प्रथा चलायी | गुरु अंगद ने नानक की रचनाओं का संकलन किया, और ब्रजभाषा मिश्रित पंजाबी मे सरस गेय पदो की रचना की |
ये पहले वैष्णव थे, बाद मे गुरु नानक का एक पद सुनकर इनकी ओर आकृष्ट हुए |
15. गुरु अर्जुन देव – (1563 ई0 – 1606 ई0) – इनका सर्वप्रमुख कार्य आदि ग्रंथका सम्पादन व संकलन है | ये एक अच्छे कवि थे |
गुरु ग्रंथ साहिब मे उनके 6000 पद संकलितहै | इनकी प्रसिद्ध रचनाएँ निम्नलिखित है |
(i)सुखमनी
(ii)बावनअखरी
(iii)बारहमसा
साहित्यिक दृष्टि से उल्लेखनीय संत थे |
इन्होने दुर्गा सप्तशती का अनुवाद ‘चण्डीशतक’के नाम से किया | उनका महत्वपूर्ण ग्रंथ है – ‘विचित्रनाटक’ |
रज्जब पठान से इनके पिता आमेरनरेश राजा मान सिंह की फौज मे सैनिक थे | इनके सम्बंध मे एक कहानी प्रचलित है कि – जब रज्जब शादी के लिये बारातियों के साथ जा रहे थे तो दूल्हे के वेश मे ही ये दादू महराज के पास पहुँच गये , और दादू जी के दर्शन हुए | दादू जी के मुख से ये शब्द निकला –
रज्जब तैं गज्जब किया, सिर बाधाँ मौर |
आया था हरिभजन को, करा नरक को ठौर ||
इसी बात पर रज्जब बैरागी हो गये | उन्होने अपने भाई से कहा –
भैया मैं शादी नही करुंगा , आजीवन ब्रह्मचारी रहुगाँ | इनके निम्न प्रमुख ग्रंथ हैं –
(i)छप्पय
(ii)सब्बंगी
ये भोजपुरी भाषा मे अपना संदेश देते थे | इनके प्रमुख ग्रंथ हैं –
(i)प्रेमप्रकाश
(ii)सत्यप्रकाश
ये मकूकदास के शिष्य थे | इन्होने मलूकदास की जीवनी ‘मलूक परिचय’ नाम से लिखी |
बावरी ‘साहिबा’ एक ऊचे घराने की महिला और अकबर को समकालीन थी | इन्होने ‘बावरी पंथ’ की स्थापना की |
ये अलवर के निवासी थे | इन्होने ‘लालपंथ’की स्थापना की |
ये क्षत्रिय थे | इन्होने ‘बाबालाली सम्प्रदाय’ की स्थापना की | बडौदा मे उनका एक मठ है जिसे ‘बाबालाल का शैल’ कहते है | इस सम्प्रदाय का प्रधान स्थान गुरुदासपुर का श्रीध्यानपुर गांव है | सम्प्रदाय के अनुयायियों के अनुसार उनका जन्म स्थान पंजाब प्रांत का कुसूर या कुसपुर नामक गांव था | प्रसिद्ध है कि आठ वर्ष की अवस्था मे ही उन्होने प्रमुख ग्रंथो का अध्ययन कर लिया था |
संत पीपा पंद्रहवीं शताब्दी के पूर्वांद्ध मे विद्यमान थे | ये खींची वंश के राजपूत गृहस्थ थे | इन्होनो स्वामी रामानंद से दीक्षा ली थी |
प्रो0 रानाडे ने इनका समय सन् 1450 ई0 के लगभग निर्धारित किया |ये जाति के नाई थे, और रामानंद के शिष्य थे | आदि ग्रंथ मे इनका केवल एक पद संकलित है |
इनका जन्म 1415 ई0 निर्धारित किया गया है | ये जाति के ‘जाट’ थे | इन्होने आत्मानन्द से दीक्षा ली थी | आदि ग्रंथ मे इनके चार पद संकलित है |
ये चौदहवीं शताब्दी के मध्य मे विद्यमान थे | इनकी पदावली काल प्रवाह मे लुप्त हो चुकी है | ‘आदि ग्रंथ’ मे संकलित इनके एक पद के आधार पर केवल इतना ही कहा जा सकता है कि साध्यके प्रति इनके मन मे अनन्य समर्पण भावना थी |
संत बेनी का जीवन विवरण प्राप्त नही है | अनुमान लगाया जा सकता है कि ये पन्द्रहवीं शताब्दी मे विद्यमान रहे होंगे | ‘आदि ग्रंथ’ मे इनके केवल तीन पद संकलित हैं | मूर्ति पूजा और आडम्बरो की इन्होने कटु आलोचना की है |
जोधपुर राज्य मे राजपूत परिवार में 1451 ई0 मे इनका जन्म हुआ था | जम्भनाथ ने ‘विश्नोई सम्प्रदाय’ की स्थापना की |
अक्षय अनन्य सन् 1653 ई0 के आस – पास मौजूद थे | ये दतिया रियासत के अंतर्गत सेनुहरा के कायस्थ थे , और कुछ दिनो तक दतिया के राजा पृथ्वीचंद्र के दीवान थे | ये योग और वेदांत के अच्छे ज्ञाता थे |
इनके ग्रंथो के नाम इस प्रकार है -
(i)राजयोग
(ii)विज्ञानयोग
(iii)ध्यानयोग
(iv)सिद्धांतबोध
(v)विवेक दीपिका ब्रह्मज्ञान
(vi)अनन्य प्रकाश
इनके जीवनी के विषय मे कोई प्रमाणित उल्लेख नही मिलता है | अनुमानत: ये 1530 ई0 – 1560 ई0 के मध्य अवश्य विद्यमान थे | रैदास की परम्परा मे उदयदास के शिष्य थे , और ‘साध सम्प्रदाय’ मे दीक्षित थे | इन्होने सतनामी सम्प्रदाय की स्थापना की | सतनामी लोग अपने को मुंडिया कहते है | इनका प्रमुखग्रंथ ‘पोथी’ है |
इनका जन्म धरकन्धा आरा मे हुआ था | इनके दो प्रधान ग्रंथ निम्न है –
(i)दरिया सागर
(ii)ज्ञानदीपक
ये जाति के कुनवी थे | गाजीपुर के रहने वाले थे |
इनका निवास अलवर था, ये जाति के बनिया थे | इनका वास्तविक नाम रणजीत था | सहजोबाई इनकी शिष्या थी |
ये बाराबंकी के चंदेल ठाकुर थे | इन्होने सतनामी सम्प्रदाय मे पुन: जागरण पैदा किया था | जगजीवन दास 1761 ई0 के लगभग वर्तमान थे |
ये जाति के ब्राह्मण थे | इनका निवास स्थान अलीगढ था |इन्होने आवापंथ की स्थापना की थी | इनकी रचना निम्न है –
(i)घटरामायण
(ii)रत्नसागर
ये जाति के बनिया तथा फैजाबाद के निवासी थे |
ये एक जैनी थे , जो बाद मे संत हो गये |
भीखा साहब ., गोविंद साहब , गुलाल साहब आदि संत हुए | प्रयाग के वेलवेडियर प्रेस ने इस प्रकार के बहुत पंथो की बानियाँ प्रकासित की हैं |
कौन सी प्रवृति संत काव्य में नही है?
HA,BAHUT DUKH DETA HAI.
त काव्य की प्रवर्तियो का विवेचन कीजिये
किजिए
Kabeer ka samnyavay baadi kavy
संंतकाव्य की प्रवृतियों का विवेचन कीजिए?
संत काव्य की प्रवृत्तीया स्पष्ट किजिये
Sant kavya ki pravittiyo ki vivechna kijiye
Sant kabya dhara ki pramukh pravirtyo VA prasangikta par prakash daliye
संत काव्य की प्रवर्तियो का विवेचन कीजिये
Santkavya ki pramukh praverta
Soofi kavye me jayshi ke mahatv ko nirdharit kijiye
संत काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए
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