भारत के दूसरे प्रधानमंत्री कौन थे
Second Prime Minister of India – भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के देहान्त के बाद यह सुनिश्चित् कर पाना कठिन हो रहा था, कि पंडित जी के बाद भारत का दूसरा प्रधान मंत्री कौन बनेगा। क्योंकि उस समय स्थिति ऐसी थी कि यदि इस पद के लिए सही उम्मीदवार का चुनाव नही होता, तो भारत का एक जुट होकर आगे बढने का सपना टूट सकता था। इसलिए यह एक बहुत ही अहम् प्रश्न था की नेहरू के बाद दूसरा प्रधानमंत्री कौन होगा ?
जवाहरलाल नेहरू के देहान्त के मात्र दो घण्टे बाद ही कांग्रेस के बड़े ही पुराने जाने माने नेता गुलजारी लाल नन्दा को अस्थाई प्रधान मंत्री घोषित कर दिया गया था, क्योंकि बिना प्रधानमंत्री के देश से सम्बंधित महत्वपूर्ण फैसले नहीं लिए जा सकते, जिससे सम्पूर्ण देश पर खतरा आ सकता है और उस समय स्थिति ऐसी थी कि एक क्षण के लिए भी देश को प्रधानमंत्री विहीन नहीं रखा जा सकता था।
क्योंकि 1962 में भारत के साथ चीन का जो युद्ध हुआ था, उससे उत्पन्न हुई परिस्थितियां अभी तक सामान्य नहीं हो पाई थीं और अचानक से प्रधानमंत्री की मृत्यु हो जाने के कारण कोई भी पडौसी देश भारत पर बुरी नजर डाल सकता था क्योंकि सारी दुनियां को पता है कि भारत के राजतंत्र का सबसे बडा पदाधिकारी प्रधानमंत्री ही होता है जो देश की सुरक्षा से सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण निर्णय लेता है, और यदि प्रधानमंत्री की ही मृत्यु हो जाए, तो तुरन्त किसी न किसी को कार्यकारी प्रधानमंत्री तय करना अनिवार्य होता है।
प्रधानमंत्री के इस पद के लिए असली उत्तराधिकरी कौन होगा, इस सवाल का जवाब केवल एक ही व्यक्ति के पास था और वो थे उस समय के कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के़. कामराज के पास।
जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद 27 मई 1964 को कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के़. कामराज के सामने एक ऐसी चुनौती थी, जिसमें कांग्रेस पार्टी के अन्दर से एक ऐसे व्यक्ति को चुनना था जिसे सभी सहर्ष अपना नेता भी मान लें और न केवल वह व्यक्ति देश का बल्कि स्वयं कांग्रेस पार्टी का भी नेतृत्व कर सके, जबकि उस समय कई ऐसी घटनाऐं हुई थीें, जिनकी वजह से स्वयं कांग्रेस पार्टी की भी आंतरिक स्थिति ठीक नहीं थी।
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के़. कामराज के लिए यह काम सरल नही था क्योंकि उस समय कांग्रेस पार्टी के कई दिग्गज नेता, प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे। के़. कामराज को नेता तो चुनना ही था परन्तु यह काम ऐसे करना था, जिससे पार्टी के किसी भी व्यक्ति को ये न लगे की उसके साथ अन्याय हुआ है।
कामराज से यह प्रश्न बार-बार पूछा जा रहा था कि नेहरू जी के बाद भारत का प्रधान मंत्री कौन होगा, परन्तु कामराज जी नेहरू जी की अन्तिम संस्कार से पहले कुछ बोलना नही चाहते थे। प्रधानमंत्री बनने के लिए कुछ नाम जो उभर कर सामने आ रहे थे, जयप्रकाश नरायण और इन्दिरा गाँधी के थे।
चूंकि लाल बहादुर शास्त्री चाहते थे कि प्रधानमंत्री का चुनाव सर्वसहमति से होना चाहिए, इसलिए उन्होंने ही ये दो नाम कुलदिप नैयर को बताए थे, जो कि उस समय के एक राजनीतिक पत्रकार थे और सरकार से सम्बंधित खबरों पर नजर रखते थे।
कुलदिप नैयर इन दोनों नामों का प्रस्ताव लेकर मोरारजी देसाई के पास गये क्योंकि मोरारजी देसाई, नेहरू जी की केबिनेट में वित्तमंत्री थे और जब महाराष्ट्र और गुजरात एक राज्य हुआ करता था, तब वे उस राज्य के मुख्यमंत्री थे। यानी मोरारजी देसाई, कांग्रेस के एक बड़े नेता थे, इस कारण से अगले प्रधानमंत्री के रूप में भारतीय जनता उन्हें भी नेहरू जी के उत्तराधिकारी के रूप में देख रही थी।
मोरारजी देसाई को इन दोनों नामाें के बारे में पता चला तो उन्होंने इन दोनों ही नामों का विरोध किया क्योंकि उनका मानना था कि जयप्रकाश एक भ्रमित व्यक्ति है इसलिए उसे इतनी बड़ी जिम्मेदारी नही दी जा सकती और ईन्दिरा गाँधी इस जिम्मेदारी के लिए अभी बहुत छोटी है। अत: उन्होंने शास्त्री जी के इन दोनों ही प्रस्तावित नामों का खण्डन कर दिया था।
जबकि कामराज नही चाहते थे कि मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और इसका कारण था मोरारजी देसाई की जल्दबाज प्रवृति और उनका पिछला रिकोर्ड, जो उनके प्रधानमंत्री बनने में एक बहुत ही बड़ी बाधा खड़ी कर रहा था। परन्तु कुछ लोगो की मंशा थी की मोरारजी देसाई को ही अगला प्रधानमंत्री बना दिया जाए और इसी कारण कुछ लोग कामराज जी के भी खिलाफ थे।
लेकिन कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के़. कामराज को इससे कोई भी फर्क नही पड़ा और अगले प्रधानमंत्री के चुनाव करने के लिए वे देश भर के अलग-अलग नेताओं से मिलने लगे। यह प्रक्रिया तीन दिन तक चली जिसके अर्न्तगत वे अलग-अलग कांग्रेसी नेताओं से मिले और वर्तालाप करके एक आम राय बनाने की कोशिश की, जबकि देश अभी अस्थाई प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा के दिशा निर्देश में ही चल रहा था क्योंकि अभी तक भारत का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इस सन्दर्भ में कोई निश्चित निर्णय नही हो पाया था।
1 जून 1964 को कामराज ने मोरारजी देसाई के साथ एक मीटिंग की और उसमें उन्होंने अपने स्वयं के द्वारा पूरे देश के कांग्रेस मंत्रियों से हुई वार्तालाप का सारांश बताया। लेकिन मोरारजी देसाई को लगा कि यह सब केवल कामराज जी की बनाई गई राय है और उन्हें लगता था की कामराज जी ने उनके साथ पक्षपात किया है। परन्तु कामराज के समझाने पर मोरारजी देसाई ने कांग्रेस पार्टी के बहुमत की राय मान ली, जहां सभी ने सर्वसम्मति से लालबहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री के रूप में चुन लिया था। इसलिए अन्तत: उन्होंने भी कांग्रेस पार्टी के बहुमत का साथ देना ही उचित समझा व हमारे देश को लालबहादुर शास्त्री के रूप में सर्वसम्मति से दूसरा प्रधानमंत्री मिला।
लालबहादुर शास्त्री एक बहुत ही साधारण परिवार से थे। वे एेसी गरीबी देख चुके थे कि एक बार उनके घर में उनकी खुद की बेटी बीमार थी और उनके पास इतना भी पैसा नही था कि वे अपने बेटी को दवा खरीद कर खिला सके और अन्तत: उनकी उस बेटी की मृत्यु हो गई। इसलिए उन्हें भारतीय लोगों की गरीबी बहुत अखरती थी और वे भारत को एक आत्मनिर्भर व समृद्ध देश की तरह देखना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने प्रयास भी किए।
लालबहादुर शास्त्री का प्रधानमंत्री काल काफी घटनापूर्ण भी था जिसने शास्त्री जी के गुणों की काफी परीक्षा ली, लेकिन शास्त्री जी लगभग हर मोर्चे पर सफल साबित हुए। उनके प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया और बुरी तरह से हारा। उन्हीं के प्रधानमंत्री काल में उन्होंने जय जवान जय किसान का नारा देकर भातर को अन्न उत्पादन के क्षैत्र में आत्म निर्भर बनने की प्रेरणा दी, जिसकी वजह से आज भारत कई अन्य देशों में अनाज निर्यात करता है।
हालांकि जब लालबहादुर शास्त्री जी को प्रधानमंत्री पद के लिए सभी अन्य कांग्रेसी सदस्यों ने समर्थन दिया था, तो ज्यादातर ने केवल यही सोंचकर समर्थन दिया था कि शास्त्री जी काफी नम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं, इसलिए उनके हाथों की कठपुतली बनकर रहेंगे। प्रधानमंत्री के रूप में केवल नाम शास्त्री जी का होगा, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से शासन तो उनका ही रहेगा। लेकिन जब शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री पद सम्भाला, तब सभी को पता चला कि वे कितने दृढ इच्छाशक्ति वाले देशभक्त व्यक्ति हैं।
इस प्रकार से पण्डित जवाहर लाल नेहरू की अचानक मृत्यु हो जाने से मात्र 3 दिन में कांग्रेस के अध्यक्ष के. कामराज द्वारा लाल बहादुर शास्त्री को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में चुन लिया गया और सर्वसम्मति से उन्हें प्रधानमंत्री भी बना दिया गया, जिसकी उम्मीद स्वयं शास्त्री जी को भी नहीं थी क्योंकि उन्होंने स्वयं काे कभी भी प्रधानमंत्री पद की दौड में रखा ही नहीं था, इसीलिए किसी भी अन्य कांग्रेसी को उनके प्रधानमंत्री बनने से कोई परेशानी ही नहीं थी, क्योंकि किसी भी अन्य कांग्रेसी ने, शास्त्री जी को कभी भी प्रधानमंत्री पद के लिए अपना प्रतिस्पर्धी महसूस ही नहीं किया था, इसलिए शास्त्री जी के लिए किसी भी कांग्रेसी के मन में किसी प्रकार के संशय की भावना ही नहीं थी।
शास्त्रीजी के इस तरह से अचानक प्रधानमंत्री बन जाने की घटना से एक बात ये समझी जा सकती है कि जब हम अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ व बिना किसी के साथ कोई प्रतिस्पर्धा किए हुए करते रहते हैं, तो हम उन अन्य लोगों से ज्यादा तेजी से आगे बढ जाते हैं, जो कि प्रतिस्पर्धा में होते हैं क्योंकि प्रतिस्पर्धा में हाेने पर हमें अपने अन्य प्रतिस्पर्धी साथियों की स्थितियों का भी ध्यान रखना होता है कि वे कहां हैं ताकि हम हमेंशा उनसे आगे रहने की कोशिश कर सकें। लेकिन अपने सह-प्रतिस्पर्धियों का ध्यान रखने में जितना समय व्यर्थ होता है, उतना ही समय यदि केवल अपने काम को बेहतर तरीके से करने में व्यय किया जाए, तो हम वैसे भी अपने सह-प्रतिस्पर्धियों से आगे निकल जाते हैं, जैसे लाल बहादुर शास्त्री जी निकल गए।
अक्सर लाल बहादुर शास्त्री जी को भारत का दूसरा प्रधानमंत्री कहा जाता है, जबकि वास्तव में वे भारत के तीसरे प्रधानमंत्री थे क्योंकि जब भारत के पहले प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू की अचानक से मृत्यु हो गई थी, तो कार्यकारी प्रधानमंत्री के रूप में गुलजारी लाल नंदा को प्रधानमंत्री बनाया गया था। इसलिए एक तरह से देखें तो गुलजारी लाल नंदा भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे लेकिन यदि हम दूसरे तरीके से देखें, तो भारत के दूसरे प्रधानमंत्री शास्त्री जी थे, क्योंकि जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के पश्चात सम्पूर्ण कांग्रेस की सर्वसम्मति से जिसने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, वे लाल बहादुर शास्त्री थे।
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