झुनिया का चरित्र चित्रण
चरित्र-चित्रण या पात्र-योजना
उपन्यास-कला की श्रेष्ठता की एक प्रमुख कसौटी यह भी होती है कि उसके पात्र कितने जीवंत, विश्वसनीय और प्रभावी हैं. स्वयं प्रेमचंद ने उपन्यास को परिभाषित करते हुए कहा है – “मैं उपन्यास को मानव-चरित्र का चित्र मात्र समझता हूँ. मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उनके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है... जैसे सब आदमियों के हाथ, पाँव, आँख, कान, नाक मुँह होते है पर उतनी समानता पर भी जिस तरह उनमें विभिन्नता मौजूद रहती है उसी भांति सब आदमियों के चरित्र में भी बहुत कुछ देखना है. समानता होते हुए भी कुछ विभिन्नताएँ होती हैं. यही चरित्र संबंधी समानता और विभिन्नता, अभिन्नत्व और विभिनत्व में अभिन्नत्व दिखाना उपन्यास का मुख्य कर्तव्य है.[1] ऐतिहासिक विकासक्रम में देखें तो हम पाते हैं कि प्रेमचंद पूर्व हिंदी उपन्यास घटनाओं के द्वारा निर्मित होकर किसी विचार या उद्देश्य को रेखांकित करते हैं. इसलिए यहाँ मुख्य रूप से दो तरह के उपन्यासों की प्रचुरता मिलती है. 1. सामाजिक उपन्यास- इसमें विचार, आदर्श और समाज सुधार की भावना को ध्यान में रखकर घटनाओं का निर्माण किया गया है. यहाँ पात्र जीवित इकाई नहीं एक माध्यम मात्र है जो परिस्थितियों में नहीं बल्कि रचनाकार के विचार या उद्देश्य से गतिशील होतें हैं. जैसे भाग्यवती (श्रद्धाराम फुल्लौरी), निस्सहाय हिन्दू (राधाकृष्ण दास), आदर्श दंपत्ति (लज्जाराम शर्मा). 2. दूसरे तरह के उपन्यास विशुद्ध मनोरंजन प्रधान हैं, जैसे तिलस्मी, जासूसी उपन्यास यहाँ भी पात्र मात्र माध्यम हैं उदाहरण- चंद्रकांता संतति (देवकी नंदन खत्री), अद्भुत लाश (गोपाराम त्रह्मर), खौफनाक खून (बांकेलाल चतुर्वेदी) इत्यादि. सामाजिक उपन्यास जहाँ विचारों के प्रतिनिधि हैं जीवन के नहीं, (इसलिए रचनाकार के विचारों और आदर्शों के प्रति जबाबदेह है). वहीँ तिलस्मी, ऐय्यारी या वह जासूसी उपन्यासों के पात्र विचारों के प्रति नहीं घटनाओं के प्रति जबाबदेह है. स्पष्ट है प्रेमचंद पूर्व हिंदी उपन्यास में जीवन की प्रामाणिकता दिखाई नहीं देती क्योंकि जीवन न तो सिर्फ विचार है और न संभव-असंभव घटनाओं का चमत्कार. इसलिए प्रेमचंद जब कथा क्षेत्र में आये तो उन्होंने न सिर्फ उपन्यास को परिभाषित किया अपितु मानव-जीवन में परिस्थिति, चरित्र एवं विचारों पर भी नये सिरे से विचार किया.
अब ‘गोदान’ की बात करें तो गोदान में चरित्रांकन की वर्णनात्मक और नाटकीय विधियों का सर्वाधिक प्रयोग किया गया है. गोदान के चरित्र-चित्रण संबंधी निम्नांकित विशेषताएँ हैं[2] –
I. ‘गोदान’ में लगभग 55 पात्र हैं जिनमें 35 ग्रामीण और 20 शहरी पात्र हैं. स्पष्ट है उपन्यास में ग्रामीण पात्रों की प्रमुखता है. पात्रों के नामकरण शहरी तथा ग्रामीण जीवन के अनुरूप हैं तथा नामकरण में वंश, जाति, कर्म आदि का ध्यान रखा गया है. जैसे ग्रामीण पात्रों के नाम ग्रामीण जीवन के ही अनुरूप हैं उदाहरण- होरी, गोबर, मंगरु, साह आदि. शहरी पात्रों के नाम सुसंस्कृत हैं जैसे –मालती, ओंकारनाथ, प्रो० मेहता इत्यादि.
II. गोदान के चरित्रांकन में वर्णनात्मक विधि का सर्वाधिक प्रयोग किया गया है यहाँ पात्रों के तीन प्रकार के वर्णन मिलते हैं- क.) शारीरिक वर्णन- ग्रामीण पात्रों का अधिकतर शारीरिक वर्णन किया गया है. ख.) चारित्रिक वर्णन- नागर पात्रों का चारित्रिक वर्णन अधिक किया गया है. ग.) मिश्रित वर्णन – उपन्यास के कतिपय पात्रों का चारित्रिक एवं शारीरिक दोनों वर्णन किया गया है. जैसे धनिया का यह वर्णन मिश्रित वर्णन का ही उदाहरण है – “ छतीसवाँ साल ही तो था, पर सारे बाल पक गए थे, चहरे पर झुर्रियां पड़ी थी. सारी देह ढल गई थी. वह सुन्दर गेहुआ रंग सांवला गया था और आँखों से भी कम सूझने लगा था. पेट ही के चिंता के कारण तो”
III. उपन्यास में प्रेमचंद ने लेखकीय वर्णन द्वारा भी पात्रों का चरित्रांकन करने का सफल प्रयास किया है. यथा होरी का यह कथन कि ‘खेती में जो मरजाद है वह नौकरी में नहीं’ लेखक के ही विचार है जो होरी के चरित्र को उद्घाटित करने में पूर्णतया सक्षम हैं.
IV. गोदान में पात्रों के चरित्रांकन के लिए मानसिक कार्य-पद्धतियों का भी प्रयोग किया गया है. हीरा, मालती, मातादीन में उदात्तीकरण की प्रवृत्ति विद्यमान है. हीरा द्वारा होरी पर पुरानी कमाई से गाय खरीदने का आरोप ‘आरोपण मानसिक कार्य-व्यापार पद्धति’ का उदाहरण है. शिकार यात्रा के समय तेंदुआ देखकर भयभीत हो जाना तथा रायसाहब द्वारा अपना मजाक उड़ायें जाने पर खन्ना अहिंसावाद का सहारा लेता हुआ कहता है “मैं शिकार खेलना उस ज़माने का संस्कार मानता हूँ जब आदमी पशु था”, यह तर्काभास का उदहारण है. होरी के भी अनेक कार्य ‘निर्देशन मानसिक कार्य-व्यापर’ पद्धति से संचालित होते हैं.
V. पात्र-योजना के मनोविश्लेषणात्मक पद्धति में से केवल निराधार प्रत्यक्षीकरण का प्रयोग किया गया है. होरी मृत्यु से पूर्व कहता है “तुम आ गए गोबर? मैंने मंगल के लिए गाय ले ली है. वह खड़ी है देखो.” इस कथन के समय उसके सम्मुख न तो गोबर होता है न ही गाय, लेकिन पुत्र और गाय की प्रबल लालसा इन दोनों को होरी के सम्मुख खड़ा कर देता है.
VI. गोदान के पात्रों के अनेक ऐसे कार्य हैं जिन्हें उनकी अन्तः प्रेरणाओं को जानकर ही समझा जा सकता है. होरी गाय आने से पहले उसे अन्दर बांधने का निर्णय करता है लेकिन गाय आने पर उसे बाहर बांधता है. उसके इस कार्य के पीछे उसको आत्म-प्रदर्शन की अन्तः प्रेरणा काम करती है. “वह गाँव वालों को गाय दिखाना चाहता था, जिससे लोगों को मालूम हो कि यह होरी महतो का घर है.”
VII. गोदान में पात्रों के संवाद भी चरित्रांकन में सहायक हुए हैं. इसमें पात्र अपने संवादों से स्वयं अपना, दुसरे उपस्थित पात्र और तीसरे अनुपस्थित पात्र का चरित्रांकन करते हैं. आत्म चरित्रांकन की प्रवृत्ति होरी और मेहता में अधिक है. धनिया के संबंध में अलग-अलग पात्रों की अलग-अलग राय है. परमेश्वरी धनिया को कर्कशा, दारोगा दिलेर औरत, झुनिया गुस्सैल तथा होरी उसे त्याग और ममता की मूर्ति मानता है.
उपन्यास में घटनाओं द्वारा भी पात्रों का का चरित्र –चित्रण हुआ है. यथा- हीरा द्वारा गाय को जहर देकर मारना उसकी ईर्ष्या वृत्ति का ही प्रकाशन करता है. स्वयं होरी द्वारा दमड़ी बंसार को बांस बेचने के प्रसंग में अपने भाइयों के रुपये मारने की चेष्टा उसके स्वार्थी प्रवृत्ति का उद्घाटन करती है.
IX. गोदान में पात्रों के आवेगज आचरणों का पूर्ण प्रयोग हुआ है. धनिया के व्यक्तित्व में तो आवेगज आचरणों का भण्डार है. होरी शांतिप्रिय होने पर भी आवेगज आचरण करने लगता है. पुनिया के चिल्लाने पर वह समझता है कि दमड़ी बंसार ने उसे मारा है. वह तुरंत दमड़ी को लात मारता है और कहता है “कोई तिरछी आँख से देखें तो आँख निकल ले.” पात्रों के आवेगज आचरण, कथा-विकास, पात्रों के अव्यक्त गुणों के प्रकाशन, अन्य पात्रों के दंभ स्फोट आदि कार्यों में सहायक हुए हैं.
इस प्रकार हम पाते हैं कि ‘गोदान’ में पूर्व उपन्यासों के चरित्रोद्घाटन की विधियाँ वर्णनात्मक और नाटकीय का ही सर्वाधिक प्रयोग किया गया है. पात्रों को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करना तथा उनके अचेतन मन के विश्लेषण की ओर लेखक की विशेष रुचि नहीं है. इसमें चरित्र-चित्रण की जितनी भी विधियों को अपनाया गया है वे सफल एवं प्रभावशाली हैं.
Jhuniya kon thi
गोदान में दुनिया का चरित्र व्याख्या
Godan k naari charitchatran
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