Stanley Miler Ka Prayog स्टेनले मिलर का प्रयोग

स्टेनले मिलर का प्रयोग

Pradeep Chawla on 15-10-2018

पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई?


विज्ञान के अब तक के सभी प्रयासों के बावजूद पृथ्वी के बाहर किसी स्थान पर जीवन होने की पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है। पृथ्वी पर एक कोषिकीय, बहुकोश‍िकीय, कवक, पादप, जन्तु आदि लाखों प्रकार के जीव पाए जाते हैं मगर वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि इन सब का प्रथम पूर्वज एक ही था। आज भी इस प्रश्न का उत्तर जानना शेष है कि सभी जीवों का प्रथम पूर्वज पृथ्वी पर ही जन्मा था या किसी अन्य खगोलीय पिण्ड से पृथ्वी पर आया? प्रथम जीव की उपपत्ति में ईश्वर जैसी किसी शक्ति की कोई भूमिका रही है या यह मात्र प्राकृतिक संयोग की देन है? प्रथम जीव के अजीवातजनन को समझाने वाले ओपेरिन व हाल्डेन के विचारों को भी जोरदार चुनौति दी जा रही है।


लगभग सभी धर्मों में विशि‍ष्ट सृजन की बात कही गई है। इस मान्यता के अनुसार पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवों को ईश्वर ने ठीक वैसा ही बनाया जैसे वे वर्तमान मे पाए जाते हैं। मनुष्य को सबसे बाद में बनाया गया। इस मान्यता में विश्वास करने वाले इसाई धर्म गुरु आर्चबिशप उशर (Archbishop Ussher) ने सन् 1650 में अपनी गणना के आधार पर बताया था कि ईश्वर ने विश्व सृजन का कार्य 01 अक्टोबर 4004 ईसापूर्व को प्रारम्भ कर 23 अक्टोबर 4004 ईसा पूर्व को पूरा किया। इस मान्यता के पक्ष में किसी प्रकार के प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।


अपने अवलोकनों के आधार पर अरस्तू जैसे दार्शनिकों ने निर्जीव पदार्थों से जीवों की उपपत्ति को समझाने का प्रयास किया। इस मान्यता के अनुसार प्रकृति में निर्जीव पदार्थों जैसे कीचड़ से मेढ़क, सड़ते मांस से मक्खियां आदि सजीवों की उत्पत्ति होती रहती है। वान हेल्मोन्ट (Van Helmont) जैसे वैज्ञानिक ने प्रयोग द्वारा पुराने कपड़ों व अनाज द्वारा चूहे जैसे जीव पैदा होने की बात प्रयोग द्वारा सिद्ध करने का प्रयास भी किया था। निर्जीव पदार्थों से सजीव उत्पन्न होने की मान्यता उन्नीसवीं शताब्दि में तक चलती रही जबतक लुई पाश्चर ने अपने प्रयोगों के बल पर निर्विवाद रूप से इसका अन्त नहीं कर दिया। आज सभी यह जानते है कि कोई भी जीव पहले से उपस्थित अपने जैसे जीव से ही उत्पन्न हो सकता है मगर यह प्रष्न अभी भी महत्वपूर्ण है कि सबसे पहला जीव कहाँ से आया?


प्रथम जीव का अजैविक जनन
जीव की उत्पत्ति में ईश्वर की भूमिका को नकार कर प्राकृतिक नियमों के अनुरूप जीव की उत्पत्ति की सर्वप्रथम विवेचना करने का श्रेय चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) को जाता है। अपनी पुस्तक आॅरिजन आॅफ स्पेसीज (Origin of Species) में पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न जीवों की उत्पत्ति को जैवविकास के सिद्धान्त से समझाते हुए चार्ल्स डार्विन, चर्च के डर से, ईश्वर की भूमिका को पूरी तरह नकार नहीं सके थे। अपनी इच्छा के विपरीत डार्विन को यह बहना पड़ा कि ईश्वर ने सभी जीवों को अलग अलग नहीं बना कर एक सरल जीव बनाया तथा वर्तमान सभी जीवों की उत्पत्ति उस एक पूर्वज से, जैव विकास की विधि द्वारा हुई है। अपने मित्रों तथा अन्य जिज्ञासुओं से डार्विन ने अपने विचार की असलियत को नहीं छुपाया।


डार्विन ने जीव की उपपत्ति में ईश्वर की भूमिका को नकारते हुए कहा था कि प्रथम जीव की उत्पत्ति निर्जीव पदार्थों से हुई। 01 फरवरी 1871 को उत्पत्ति को लिखे पत्र में चार्ल्स डार्विन ने संभावना प्रकट कि अमोनिया, फास्फोरस आदि लवण घुले गर्म पानी के किसी गढ्ढे में, प्रकाश, उष्मा, विद्युत आदि के प्रभाव से, निर्जीव पदार्थां से पहले जीव की उत्पत्ति हुई होगी।


रुसी वैज्ञानिक अलेक्जेण्डर इवानोविच ओपेरिन (Alexander Ivanovich Oparin) ने 1924 में जीव की उत्पत्ति नाम से निर्जीव पदार्थों से जीवन की उत्पत्ति का सर्व प्रथम सिद्धान्त प्रतिपादित किया था। ओपेरिन ने कहा कि लुई पाश्चर का यह कथन सच है कि जीव की उत्पत्ति जीव से ही होती है मगर प्रथम जीव पर यह सिद्धान्त लागू नहीं होता। प्रथम जीव की उत्पत्तितो निर्जीव पदार्थों से ही हुई होगी। ओपेरिन ने कहा कि सजीव व र्निजीव में कोई मूलभूत अन्तर नहीं होता। रसायनिक पदार्थों के जटिल संयोजन से ही जीवन का विकास हुआ है। विभिन्न खगोलीय पिण्डों पर मिथेन की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि पृथ्वी का प्रारम्भिक वायुमण्डल मिथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन तथा जल वाष्प से बना होने के कारण अत्यन्त अपचायक रहा होगा। इन तत्वों के संयोग से बने योगिकों ने आगे संयोग कर और जटिल योगिकों का निर्माण किया होगा। इन जटिल योगिकों के विभिन्न विन्यासों के फलस्वरूप उत्पन्न नए गुणों ने जीवन की नियमितता की नींव रखी होगी। एक बार प्रारम्भ हुए जैविक लक्षण ने स्पर्धा व संघर्ष के मार्ग पर चलकर वर्तमान सजीव सृष्टि का निर्माण किया होगा।


अपने सिद्धान्त के पक्ष में ओपेरिन ने, कुछ कार्बनिक पदार्थों के व्यवस्थित होकर कोश‍िका के सूक्ष्म तन्त्रों में बदलने उदाहरण दिए। बाद में डच वैज्ञानिक जोंग के द्वारा किए गए प्रयोगों में बहुत से कार्बनिक अणुओं के आपस में जुड़ कर विलयन से भरे पात्र जैसी सूक्ष्म रचनाओं के बनने से ओपेरिन के सिद्धान्त को बल मिला। कार्बनिक अणुओं की पर्त से बने सूक्ष्म पात्रों को ही डी जुंग ने कोअसरवेट नाम दिया था। कोअसरवेट द्वारा परासरण जैसी क्रियाओं के प्रर्दशन के कारण इन्हें उपापचय क्रियाओं का आधार मानते हुए जीवन के प्रथम के घटक के रूप में देखा गया। ओपेरिन का मानना था कि आद्य समुद्र में अनेकानेक कोअसरवेट बने होगे तथा उनके जटिल संयोजन से ही अचानक प्रथम जीव की उत्पत्ति हुई होगी।


1929 में जे.बी.एस. हाल्डेन (JBS Halden) ने ओपेरिन के विचारों को ओर विस्तार दिया। हाल्डेन ने पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर सुकेन्द्रकीय कोषिका की उत्पत्ति तक की घटनाओं को आठ चरणों में बांट कर समझाया। हाल्डेन ने कहा कि सूर्य से अलग होकर पृथ्वी धीरे धीरे ठण्डी हुई तो उस पर कई प्रकार के तत्व बन गए। भारी तत्व पृथ्वी के केन्द्र की ओर गए तथा हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, आॅक्सीजन आर्गन से प्रारम्भिक वायुमण्डल बना। वायुमण्डल के इन तत्वों के आपसी संयोग से अमोनिया व जलवाष्प बने। इस क्रिया में पूरी आॅक्सीजन काम आजाने के कारण वायुमण्डल अपचायक हो गया था। सूर्य के प्रकाश व विद्युत विसर्जन के प्रभाव से रसायनिक क्रियाओं का दौर चलता रहा और कालान्तर में अमीनो अम्ल, शर्करा, ग्लिसरोल आदि अनेकानेक प्रकार के यौगिक बनते गए। इन यौगिको के जल में विलेय होने से पृथ्वी पर पूर्वजीवी गर्म सूप बना।


सूप का घनत्व बढ़ता गया तथा उसमें कोलायडी कण बनने लगे। जल की सतह पर तैरते इन कणों ने आपस में जुड़कर झिल्ली का रूप लिया होगा। इस झिल्ली ने बाद में सू़क्ष्म पात्रों का निर्माण कर लिया जिन्हे कोसरवेट नाम दिया था। इस प्रकार जीवनपूर्व रचनाओं का उदय हुआ होगा। एन्जाइम जैसे उत्प्रेरकों के प्रभाव के कारण कोसरवेट में भरे रसायनों में संश्लेषण विश्लेषण जैसी क्रियाएं होने लगी होगी। धीरे धीरे अवायु श्वसन होने लगा। कोअसरवेट में कोई रसायन कम होता तो बाह्य वातावरण से अवषोषण कर उसकी पूर्ती करली जाती। चिपचिपेपन के कारण कोअसरवेट का आकार बढ़ता रहता तथा अधिकतम आकार होजाने पर वह स्वतः विभाजित होजाता था। बाद में नाभकीय अम्लों के रूप में कार्बनिक नियन्त्रक-तन्त्र विकसित हुए जो वृद्धि व जनन जैसी जैविक क्रियाओं को नियन्त्रित करने लगे। प्रारम्भिक कोषिका परपोषी प्रकार की रही होगी। बाद में पर्णहरित यौगिक तथा हरितलवक कोषिकांग के कोषिका में प्रवेष करने से पहली स्वपोषित कोषिका बनी होगी। प्रकाष संष्लेषण की क्रिया के प्रारम्भ होने पर जल का विघटन होने लगा जिससे आक्सीजन उत्पन्न होने लगी। वायुमण्डल में आॅक्सीजन की मात्रा साम्य स्थापित होने तक बढती रही होगी।


स्टेनले मिलर का प्रयोग
ओपेरिन तथा हाल्डेन की कल्पनाओं का कोई प्रयोगिक आधार नहीं था। 1953 में स्टेनले मिलर (Stanley Miller) ने ‘‘प्रारम्भिक पृथ्वी अवस्था में अमीनो अम्लों का उत्पादन संभव’’ लेख प्रकाषित कर ओपेरिन व हाल्डेन के विचारों का समर्थन किया। स्टेनले मिलर ने अपने गुरु हारोल्ड यूरे के निर्देषन में एक बहुत ही अच्छे प्रयोग की योजना तैयार कर उसे क्रियान्वित किया था। मिलर ने पृथ्वी के प्रारम्भिक वायुमण्डल जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर यह देखना चाहता था कि क्या ओपेरिन ने जो कहा वैसा होना सम्भव है?


मिलर ने प्रयोग करने के लिए एक विद्युत विसर्जन उपकरण बनाया। उपकरण में एक गोल पेंदे का फ्लास्क, एक विद्युत विसर्जन बल्ब तथा एक संघनक लगा था। गोल पेंदे के फ्लास्क में पानी भरने के बाद उपकरण में हवा निकाल कर उसमें मिथेन, अमोनिया व हाइड्रोजन को 2:1:2 अनुपात में भर दिया गया। विद्युत विसर्जन के साथ साथ पानी को उबलने दिया जाता तो उत्पन्न भाप के प्रभाव के कारण गैसे निरन्तर वृत में घूमती रहती। विद्युत विर्सजन बल्ब से निकलने वाली जलवाष्प के संघनित होने पर उसे विष्लेषण हेतु बाहर निकाला जा सकता था। मिलर ने निरन्तर एक सप्ताह विद्युत विर्सजन होने के बाद संघनित द्रव का विष्लेषण किया। विश्लेषण करने पर उस द्रव में अमीनो अम्ल, एसिटिक अम्ल आदि कई प्रकार के कार्बनिक पदार्थ उपस्थित पाए गए।


मिलर के प्रयोग द्वारा ओपेरिन के रसानिक विकास की परिकल्पना की पुष्टि होने से इस सिद्धान्त की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गई। मिलर के प्रयोग के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि शनि के उपग्रह टाइटन के वायुमण्डल में जीव की उत्पत्ति की संभावना की पड़ताल के सन्दर्भ में इस प्रयोग को पुनः दोहराया गया है। प्रयोग से प्राप्त आकड़ों के आधार पर कहा जाने लगा है कि जल की अनुस्थिति में भी वायुमण्डल में जीवन के घटकों का संश्लेषण संभव है।


मिलर के प्रयोग से पृथ्वी के प्रारम्भिक वातावरण में कार्बनिक अणुओं के बनने की बात तो समझ में आगई थी मगर अब प्रश्न यह था कि इन एकल अणुओं ने आपस में जुड़ कर बहुलक अणुओं का निर्माण किस प्रकार किया होगा? 1950 से 1960 के मध्य सिडनी फोक्स (Sidney Fox) ने कुछ प्रयोग किए जिनमें यह पाया गया कि पृथ्वी के प्रारम्भिक समय में अमीनो अम्ल स्वतः ही पेप्टाइड बंधों से जुड़ कर पोलीपेप्टाइड बनाने में सफल रहे होंगे। ये अमीनो अम्ल तथा पोलीपेप्टाइड जुड़ कर गोलाकार झिल्ली व प्रोटीनाॅइड माइक्रोस्फेयर में व्यवस्थित होसकते थे जैसा कि प्रारम्भिक जीवन रहा होगा।



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Comments Shivani kumari on 23-01-2021

Stable molar ke pahle prayog ka naam

Miller our urey ka sidhant on 09-01-2021

jardi

Sanju on 13-02-2020

Stanley miller

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स्टेनले मिलर के प्रयोग का सचित्र वर्णन कीजिए?

Shubham on 29-09-2018

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Shivendra.singh Shivendra.singh Shivendra.sing on 24-08-2018

staneliy Miller ka pryog

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