मध्यप्रदेश देश का सर्वाधिक तेंदूपत्ता ( डायोसपायरस मेलेनोक्ज़ायलोन की पत्तियॉ) उत्पादक राज्य है। प्रदेश का औसत वार्षिक तेंदूपत्ता उत्पादन लगभग 25 लाख मानक बोरा है जो देश के कुल तेंदूपत्ता वार्षिक उत्पादन का लगभग 25 प्रतिशत है। म.प्र. में तेंदूपत्ता के एक मानक बोरे में 50-50 पत्ते की 1000 गड्डियॉ होती हैं। | |
ये पत्ते तेंदू के वृक्ष (डायोसपायरस मेलेनोक्जायलोन) से प्राप्त होते है जो इबेनेसी परिवार का पौधा है एवं भारतीय उप महाद्वीप की प्रजाति है । ट्रूप (1921) के अनुसार डायोसपायरस मेलेनोक्जायलोन (डायोसपायरस टोमेन्टोज़ा एवं डायोसपायरस टुपरू) समस्त भारत में शुष्क पर्णपाती वनों की एक मुख्य प्रजाति है तथा यह नेपाल, भारतीय पठार, गंगा के पठार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिमी समुद्री तट में मलाबार तक तथा पूर्वी समुद्री तट में कोरोमंडल तक पाई जाती है। यह प्रजाति दक्षिण में नीलगिरी एवं सैरावली पहाड़ों में भी पाई जाती है। |
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तेंदूपत्ता अपने आसानी से लपेटे जाने वाले गुण एवं अत्यधिक उपलब्धता के कारण बीड़ी बनाने के लिये सर्वाधित उपयुक्त पत्ता माना जाता है। देश के कई हिस्सों मे पलाश, साल आदि प्रजातियों के पत्ते भी बीड़ी बनाने में उपयोग किये जाते है। परंतु तेंदू के पत्ते के Texture, Flavour and Workability अतुलनीय है। बीड़ी उद्योग में ... का व्यापक उपयोग मुख्यतः इसके अत्यधिक उत्पादन सुरूचि पूर्ण Flavour, Resistent to Decay एवं आग को जलाये रखने की क्षमता पर आधारित है । मौटे तौर पर जिन गुणों के कारण इस पत्ते को बीड़ी बनाने के लिये चयन एवं श्रेणीकरण किया जाता है वे हैं- आकार, पत्ते का मोटापन, Texture, मुख्य एवं सहायक नसो की परस्पर तुलनात्मक मोटाई । |
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बीड़ी बनाना एक प्राथमिक कार्य है जो बहुत ही आसान है तथा किसी भी स्थान पर किसी भी समय किया जा सकता है। लाखों ग्रामवासियों के लिये यह अतिरिक्त आय का एक प्रमुख साधन है। बीड़ी उद्योग के कारण ग्रामीणों को खाली समय में तेंदूपत्ता संग्रहण कार्य से रोजगार मिलता है। इस प्रकार ग्राम कल्याण एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में बीड़ी उद्योग का एक महत्वपूर्ण स्थान है। |
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तेंदूपत्ते के संग्रहण एवं प्रसंस्करण कार्य का लगभग पूर्ण मानकीकरण हो चुका है तथा सर्वत्र लगभग एक ही प्रकार की प्रक्रिया अपनाई जाती है। माह फरवरी-मार्च में तेंदू की झाड़ियों का शाखकर्तन किया जाता है एवं लगभग 45 दिनों के पश्चात् परिपक्व पत्ते एकत्रित कर लिये जाते हैं। पत्तों को 50 से 100 पत्तों के बन्डल में बांधा जाता है एवं लगभग 1 सप्ताह तक धूप में सुखाया जाता है। सूखी गड्डियों को कोमल बनाने के लिये पानी से सींचकर जूट के बोरों में भरा जाता है एवं 2 दिन तक पुनः धूप में रखा जाता है। इस प्रकार अच्छी तरह भरे एवं उपचारित बोरे इनके बीड़ी उत्पादन में उपयोग तक भंडारित किये जा सकते है। तेंदूपत्ता की तुड़ाई, उपचार एवं भण्डारण में बहुत सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है। यह एक अत्यंत संवेदनशील उत्पाद है एवं उपरोक्त प्रक्रिया में थोड़ी सी भी गलती या लापरवाही के कारण इसकी गुणवत्ता खराब हो सकती है एवं यह बीड़ी बनाने के लिये अनुपयुक्त हो सकता है। |
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राज्य शासन ने 1964 में एक अधिनियम लागू कर तेंदूपत्ते के व्यापार पर अपना एकाधिकार स्थापित किया । वनवासियों को तेंदूपत्ते के संग्रहण एवं व्यापार से और अधिक लाभ दिलाने के उद्देश्य से वर्ष 1984 में मध्यप्रदेश राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ मर्यादित का गठन किया गया । वर्ष 1988 में राज्य शासन ने तेंदूपत्ता के व्यापार में सहकारी समितियों को सम्मिलित करने का निर्णय लिया। इस उद्देश्य से एक त्रिस्तरीय सहकारी संरचना की परिकल्पना की गई। मध्यप्रदेश राज्य लघु वनोपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ मर्यादित को इस संरचना के शीर्ष पर स्थापित किया गया। प्राथमिक स्तर पर प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियां गठित की गई । द्वितीय स्तर पर जिला वनोपज सहकारी संघ गठित किये गये। |
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वास्तविक संग्राहकों की प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियों द्वारा तेंदूपत्ता का संग्रहण किया जाता है। इसके लिये संपूर्ण राज्य में 15,000 से अधिक संग्रहण केन्द्र स्थापित किये जाते हैं। संग्रहण का कार्य मौसम पर आधारित होता है और यह लगभग 6 सप्ताह तक चलता है। जिले की भौगोलिक स्थिति के आधार पर संग्रहणकाल अप्रैल के मध्य से मई के मध्य तक किसी भी समय प्रारंभ होता है। संग्रहण का कार्य मानसून के आगमन से 10 से 15 दिवस पूर्व बन्द कर दिया जाता है ताकि संग्रहित पत्तों को उपचारण एवं बोरों में भरकर सुरक्षित रूप से गोदामों तक परिवहन किया जा सकें। |