दुर्धरा पाटलिपुत्र
जैन-ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि बिन्दुसारके माता का नाम दुर्धरा था। परिशिष्टपर्वन ् नामक ग्रन्थ उसके जन्म के विष्य में एक रोचक प्रसंग आया है। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को विष का अभ्यास डालने के उद्देश्य से उसको भोजन में अल्पमात्रा में विष देना आरम्भ किया था। इसका उद्देश्य यह था कि यदि कोई शत्रु विष अथवा विषकन्या द्वारा चन्द्रगुप्त की हत्या करना चाहे तो वह सफल न हो सके। एक दिन चन्द्रगुप्त की पत्नी दुर्धरा ने भी चन्द्रगुप्त के साथ भोजन किया, किन्तु विष के प्रभाव से उसकी मृत्यु हो गई। उस समय रानी दुर्धरा गर्भवती थी। चाणक्य ने शीध्र ही उसके उदर को चिरवाकर बच्चे को निकलवा दिया। इस बालक के मस्तक पर विष की एक बूंद लगी थी, अतः उसका नाम बिन्दुसार रक्खा गया।
बिन्दुसार एक शक्तिशाली एवं योग्य शासक था उसके शासनकाल में मौर्य - साम्राज्य ने अत्यधिक उन्नति की। उसे प्रौढ़, धृष्ट, प्रगल्भ, प्रियवादी व संवृन्त कहा गया है। बिन्दुसार की मृत्यु 273 ई0 पूर्व में हुई।
बिन्दुसार की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र अशोक ( 269 ई0 पूर्व - 232 ई0 पूर्व ) शासक बना। अशोक का शासनकाल भारतीय इतिहास का अत्यन्त गौरवमयी काल था क्योंकि उस समय में अशोक ने अपनी असाधारण क्षमताओंसे भारत को सर्वोन्मुखी उन्नति प्रदान की। यही कारण है कि अशोक को न केवल भारत के वरन् विश्व के महानतम शासकों में से एक माना जाता है। साम्राज्य विस्तार, प्रशासनिक व्व्यवस्था, धर्म-संरक्षण, हृदय की उदारता, कला के विकास एवं प्रजा-वत्सलता, आदि प्रत्येक दृष्टिकोण से अशोक का स्थान सर्वोच्च है। उसने अपने सुविशाल साम्राज्यके प्रशासन को पूर्ण बनाने तथा अपनी प्रजा को सुखी बनाने के लिये जो बिड़ा उठाया था, इसके लिए वह कोई कोशिश बाकी नहीं छोड़ी।
अशोक ने कलिंग पर आक्रमण 261 ई0 पूर्व किया। कलिंग के निवासियों ने अत्यन्त वीरतापूर्वक मौर्य-सेना का सामना किया। अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए वहाँ की स्रियों व पुरुषों ने प्राणों की बाजी लगा दी। अतः यह युद्ध अत्यधिक रक्तरंजित हुआ। इस युद्ध का वर्णन अशोक के तेहरवें शिलालेख में मिलता है। इस अभिलेख के अनुसार, "राज्याभिषेक के आठ वर्ष पश्चात् देवताओं के प्रिय सम्राट प्रियदर्शी (अशोक) ने कलिंग पर विजय प्राप्त की। इस युद्ध मे 1,50,000 व्यक्ति व पशु बन्दी बनाकर कलिंग से लाए गए व 1,00,000 व्यक्ति युद्ध भूमि में मारेे गए तथा उनके कई गुणा अन्य कारणों से नष्ट हो गए। युद्ध के पश्चात् महामना सम्राट ने दया के धर्म की शरण ली, इस धर्म से अनुराग किया और इसका सम्पूर्ण साम्राज्य में प्रचार किया। इस विनाश की ताण्डव लीला ने, जो कि कलिंग राज्य को जीतने में हुआ, सम्राट के हृदय को द्रवित कर दिया व पश्चाताप से भर दिया।" यह इस प्रकार अशोक ने युद्ध की नीति सदैव के लिए त्याग दिया तथा दिग्विजय के स्थान पर 'धम्म-विजय' को अपनाया।
अशोक के मृत्यु के पश्चात् उसके किसी भी उत्तराधिकारी के उसके समान योग्य न होने के कारण, शीध्र ही मौर्य-साम्राज्य का पतन हो गया। अशोक के मृत्यु के बाद उसका पुत्र कुणाल शासक बना। कुणाल के पश्चात् दशरथ शासक बना। दशरथ के पश्चात् सम्प्रति, शालिशुक, देववर्मन व शतधनुष शासक हुए। उनके पश्चात् बृहद्रथ के सेनापति पुष्पमित्र शुंग ने उसकी दुर्बलता का लाभ उठाकर 184 ई0 पूर्व में उसकी हत्या कर दी तथा राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार 184 ई0 पूर्व में मौर्य-साम्राज्य का पतन हो गया।
36 वर्ष तक शासन करने पश्चात् 148 ई0 पूर्व में पुष्पमित्र की मृत्यु हो गई, किन्तु इन 36 वर्षों में अनेक उपलब्धियां प्राप्त कर उसने भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान अर्जित किया। पुष्पमित्र एक महान सेनानी, कुशल संगठनकर्त्ता तथा दूरदर्शी शासक था। वह एक वीर साम्राज्यवादी व योग्य शासक ही नहीं वरन् महान साहित्य एवं कलाप्रेमी भी था। पुश्पमित्र ने ब्राह्मणधर्म के विलुप्त हो रहे वैभव को पुनः गौरव के उच्च शिखर तक पहुँचाया तथा भारत में पुनः वैदिक संस्कृति को सशक्त बनाया। पुष्पमित्र ने वैदिक-धर्म को राजधर्म घोषित किया तथा पाली के स्थान पर संस्कृत को राजभाषाका रुप प्रदान किया। इस प्रोत्साहन के परिणामस्वरुप पातंजलि का महाभाष्य तथा मनु की मनुस्मृति की रचना हुई। इस प्रकार राजनैतिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में उसने महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की। पुष्पमित्र शुंग की मृत्यु 148 ई0 पूर्व में हुई।
शुंग-वंश के शासकों ने 112 वर्ष तक राज्य किया।शुंग-वंश के शासकों में अग्निमित्र, वसुज्येष्ठ, तत्पश्चात् अग्निमित्र का पुत्र वसुमित्र शासक बना। वसुमित्र के पश्चात् क्रमशः आंध्रक, पुलिण्डक, घोष, वज्रमित्र, भाग तथा देवभूति ने शासन किया। देवभूति शुंग-वंश का अन्तिम शासक था। देवभूति की हत्या उसके मंत्री वासुदेव कण्व ने कर दी तथा कण्व-वंश की स्थापना की । इस प्रकार शुंग-वंश की समाप्ति 72 ई0 पूर्व हुई।
कण्व-वंश में चार शासक वसुमित्र, भूमिमित्र, नारायण मित्र व सुशर्मा हुए जिन्होने क्रमश 9, 14, 12 व 10 वर्ष शासन किया। इस प्रकार कण्व-वंश ने कुल 45 वर्ष तक ( 72 ई0 पूर्व - 27 ई0 पूर्व ) शासन किया। कण्व-वंश के शासक भी ब्राह्मण थे, अतः उन्होने भी सम्भवतः ब्राह्मण- धर्म के पुरुत्थान के लिये प्रयतेन किया होगा।
हुआ
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