मृदा अपरदन को रोकने के उपाय
मृदा पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत है जो कि जीवन बनाये रखने में सक्षम है| किसानों के लिए मृदा का बहुत अधिक महत्व होता है, क्योंकि किसान इसी मृदा से प्रत्येक वर्ष स्वस्थ व अच्छी फसल की पैदावार पर आश्रित होते हैं| बहते हुए जल या वायु के प्रवाह द्वारा मृदा के पृथक्कीकरण तथा एक स्थान से दूसर स्थान तक स्थानान्तरण को ही मृदा अपरदन से प्रभावित लगभग 150 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल है जिसमें से 69 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल अपरदन की गंभीर स्थिति की श्रेणी में रखा गया है| मृदा की ऊपरी सतह का प्रत्येक वर्ष अपरदन द्वारा लगभग 5334 मिलियन टन से भी अधिक क्षय हो रहा| देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 57% भाग मृदा ह्रास के विभिन्न प्रक्ररों से ग्रस्त है| जिसका 45% जल अपरदन से तथा शेष 12% भाग वायु अपरदन से प्रभावित है| हिमाचल प्रदेश की मृदाओं में जल अपरदन एक प्रमुख समस्या है|
अपरदन के कारणों को जाने बिना अपरदन की प्रकियाओं व इसके स्थानान्तरण की समस्या को समझना मुशिकल है| मृदा अपरदन के कारणों को जैविक व अजैविक कारणों में बांटा जा सकता है| किसी दी गई परिस्थति में एक यह दो कारण प्रभावी हो सकते हैं परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि दोनों कारण साथ-साथ प्रभावी हों| अजैविक कारणों में जल व वायु प्रधान घटक है जबकि बढ़ती मानवीय गतिविधियों को जैविक कारणों में प्रधान माना गया है जो मृदा अपरदन को त्वरित करता है|
हमारे देश में मृदा अपरदन के मुख्य कारण निम्नलिखित है:
मृदा अपरदन की प्रक्रियां
जब वर्षा जल की बूंदें अत्यधिक ऊंचाई से मृदा सतह पर गिरती है तो वे महीन मृदा कणों को मृदा पिंड से अलग कर देती है| ये अलग हुए मृदा कण जल प्रवाह द्वारा फिसलते या लुढ़कते हुए झरनों, नालों या नदियों तक चले जाते हैं| अपरदन प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
मृदा अपरदन के प्रकार
मृदा अपरदन को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया गया है|
जल अपरदन के प्रकार
जल के अभिगमन द्वारा मृदा का ह्रास जल अपरदन कहलाता है| उच्च व माध्यम ढाल वाली भूमि में मृदा ह्रास का मुख्य कारण जल अपरदन हो होता है| जब अत्यधिक वर्षा के कारण उत्पन्न जल बहाव के द्वारा मृदा को बहा का दूर ले जाया जाता है तो जल अपरदन होता है| जल अपरदन के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित है:
जल अपरदन को प्रभावित करने वाले कारक
मृदा अपरदन के नियंत्रण हेतु निति निर्धारण के लिए अपरदन को प्रभावित करने वाले कारकों का ज्ञान होना अति आवश्यक है| अपरदन को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक है:
हमारे देश में भूमि कटाव की समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है| अतः जल ग्रहण व्यवस्था में भूमि संरक्षण प्रमुख कार्य होता है| इसकी उपयोगिता पर्वतीय जल संग्रहं करने से और अधिक बढ़ जाती है| जल संग्रहण क्षेत्र सामान्यतया ढलानदर होते हैं| इससे ढाल का भूमि क्षरण पर प्रयत्क्ष प्रभाव होता है| ढाल अधिक होने से बहने वाले जल का वेग अधिक हो जाता है| गिरती हुई वस्तु के नियम के अनुसार वेग, खड़े ढाल के वर्गमूल के अनुसार बदलता है| यदि भूमि का ढाल चार गुणा बढ़ जाता है तो बहते हुए जल का वेग लगभग दो गुणा हो जाता है| बहते हुए जल का वेग दो गुणा हो जाने पर जल जिक क्षरण क्षमता चार गुणा अधिक हो जाती है| इस प्रकार जल परिवहन क्षमता 32 गुणा बढ़ जाती है| यही कारण है कि ढलानदार स्थानों में भूक्षरण अधिक होता है| मृदा एंव जल संरक्षण के लिए किये गए उपायों को मुख्यतया दो भागों में बांटा जा सकता है (क) जैविक उपाय (ख) अभियन्त्रिकी उपाय|
(क) जैविक उपाय
(ख) फसलों या वनस्पतियों में सस्य क्रियाओं द्वारा भू-क्षरण को नियंत्रित करने के लिए उपयोग में लाई गई विधियाँ जैविक उपायों के नाम से जाने जाते हैं|
भू-क्षरण को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित जैविक उपायों का प्रयोग किया जाता है:
क) अभियांत्रिकी उपाय
मृदा सतह पर जल संरक्षण करने योग्य अभियान्त्रिकी संरचनाओं का निर्माण मृदा अपरदन को रोकने का एक प्रभावी विकल्प है जो अतिरिक्त वर्षा जल निकास में भी सक्षम होता है| इसके अतिरिक्त निम्नलिखित संरचनाएं सम्मिलित है:
क) बाह्यमुखी सीढ़ीनुमा वेदिकाएं (आउटवर्ड वैंच टेरेसेज) : ये वेदिकाएं मुख्यतया कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जहाँ की मृदा अधिक पारगम्य हो वहां बनाई जाती है, फलस्वरुप मृदा वर्षा जल को पूर्णतया सोख लेती है जिससे अप्रवाहित जल की मात्रा कम हो जाती है| अतिरिक्त वर्षा जल के सुरक्षित निकास के लिए स्वस्थ बंधों का निर्माण भी किया जाता है|
ख) समतल सीढ़ीनुमा वेदिकाएं (लेवल वैंच टेरेसेज): माध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में जहाँ भूमि समतल तथा मृदा अधिक पारगम्य हो वहां इन वेदिकाओं का निर्माण किया जाता हैं| ऐसा करने से वर्षा जल वितरण सामान्य हो जाता है और अधिकांशतः वर्षा जल मृदा के अंदर प्रवेश कर जाता है जिससे वर्षा जल अप्रवाह में काफी कमी आ जाती है|
ग) अन्तर्मुखी सीढ़ीनुमा वेदिकाएं (इनवर्ड वैंच टेरेसेज): मुख्यतया अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इन वेदिकाओं की उपयोगिता अधिक होती है जहाँ अधिकांशतः वर्षा जल का खेत से सुरक्षित निकास आवश्यक होता है| उनमें एक उपयुक्त निकास नाली का निर्माण किया जाता है जिसे अंत में एक उपयुक्त निकासद्वार से जोड़ दिया जाता है| इन्हें पर्वतीय सीढ़ीनुमा वेदिकाओं के नाम से भी जाना जाता है|
मृदा एंव जल संरक्षण के उपयुक्त एंव प्रभावी उपायों जैसे जैविक तथा अभियांत्रिकी का संयुक्त प्रयोग अत्यधिक लाभदायक होता है| अतः इन दोनों का एक साथ प्रयोग करने की पुरजोर सिफारिश की जाती है|
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