राजस्थान विधानसभा चुनाव 1952
राजस्थान में जन-प्रतिनिधियों के सदन के विकास का भारत के संवैधानिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है, चूंकि यह तत्कालीन राजपूताने की 22 देशी रियासतों के भारत संघ में विलय का परिणाम थाI
भारत के संविधान के अनुच्छेद 168 के प्रावधानों के अनुसार, प्रत्येक राज्य को एक या दो सदनों वाले विधानमंडल की स्थापना करनी थीI राजस्थान ने एकसदनीय व्यवस्था को चुना और इसका विधानमंडल राजस्थान विधान सभा के नाम से जाना जाता हैI
राजस्थान विधान सभा का अभी चौदहवां कार्यकाल चल रहा है, पहली विधान सभा का गठन 23 फरवरी, 1952 को वयस्क मताधिकार द्वारा हुए चुनाव के बाद किया गया था और यह प्रक्रिया 1967, 1977, 1980 और 1992 के अपवादों को छोड़कर, जब राष्ट्रपति शासन प्रवर्तन में था, निरंतर जारी हैI
राजस्थान विधान सभा की सदस्य संख्या, जिसका निर्धारण परिसीमा आयोग द्वारा किया जाता है, 1952 में 160 थी और वर्तमान में, आयोग की कई सिफारिशों के बाद 200 हैI
राजस्थान विधान सभा ने सदन और उसकी समितियों के कार्य को विनियमित करने के लिए राजस्थान विधान सभा के कार्य संचालन एवं प्रक्रिया के नियमों का निर्माण किया हैI ये सर्वप्रथम 1956 में बनाये गए थे और कई संशोधनों के उपरांत, नवीनतम चौदहवां संस्करण 2014 में मुद्रित किया गया हैI
राज्य के राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 174 के अनुसार यह ध्यान में रखते हुए कि किसी सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के मध्य की अवधि छह महीनों से अधिक न हो, समय-समय पर सदन को आहूत करते हैंI नियमों के अनुसार, राजस्थान विधान सभा के एक कैलेंडर वर्ष में न्यूनतम तीन सत्र होने चाहिएI सदन के कार्य का निर्धारण सदन द्वारा कार्य सलाहकार समिति की सिफारिशों के आधार पर किया जाता हैI
प्रश्नों की तीन श्रेणियां है:
तारांकित प्रश्न
अतारांकित प्रश्न
अल्प सूचना प्रश्न
तारांकित और अतारांकित प्रश्नों के लिए 14 दिनों की सूचना और अल्प सूचना प्रश्नों के लिए 10 से कम दिनों की सूचना से साथ विहित प्रारूप में प्रश्नों का दिया जाना अनिवार्य हैI
अतारांकित प्रश्न अन्त:सत्रीय अवधि में भी ग्रहण किये जाते हैंI कोई सदस्य अन्त:सत्रकाल के दौरान प्रति सप्ताह एक से अधिक अतारांकित प्रश्न की सूचना नहीं दे सकताI ऐसे किसी प्रश्न का उत्तर निरपवाद रूप से सरकार द्वारा सीधे सदस्य को, विधान सभा को उत्तर की प्रति के साथ, 15 दिनों की अवधि में भेजा जाता हैI
प्रश्नों के अतिरिक्त, सदस्य आधे घंटे की चर्चा, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, नियम 295 के अंतर्गत (विशेष उल्लेख प्रक्रिया) अल्पावधि की चर्चा, स्थगन प्रस्ताव आदि विधाओं के माध्यम से अविलंबनीय और सामयिक लोक महत्त्व के मामले सदन के समक्ष उठा सकते हैI
विधायन सम्बन्धी सभी प्रस्ताव विधानमंडल के समक्ष विधेयकों के रूप में लाये जाते हैI ये या तो सरकारी विधेयक हो सकते है या निजी सदस्यों के विधेयक हो सकते हैI सरकारी विधेयक राज्य सरकार के विधि विभाग द्वारा प्रारूपित एवं तैयार किये जाते हैंI विधेयक को पारित करने के लिए सभा में तीन वाचन (चरण) होते हैI प्रथम वाचन का तात्पर्य विधेयक को प्रस्तुत करने की अनुमति एवं उसके अंगीकरण के प्रस्ताव से हैI द्वितीय वाचन में विधेयक के सिद्धांतों पर चर्चा और खंड-दर-खंड उस पर विचारण किया जाता हैI तृतीय वाचन तब पूर्ण होता है जब सदन द्वारा विधेयक को पारित करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता हैI सदन में विधेयक को पारित करने के उपरांत उसे राज्यपाल/राष्ट्रपति को उनकी सहमति प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया जाता हैI इस सहमति और शासकीय राजपत्र में इसके प्रकाशन के साथ ही यह विधेयक राज्य का क़ानून बन जाता हैI
वित्त मंत्री द्वारा सभा में बजट प्रस्तुत किया जाता है और जिस दिन इसे सदन में प्रस्तुत किया जाता है उस दिन बजट पर कोई चर्चा नहीं की जातीI बजट पर लगभग चार दिन सामान्य चर्चा के लिए निर्धारित किये जाते हैंI बजट पर सामान्य चर्चा के उपरांत, सरकार के विभिन्न विभागों की अनुदान की मांगों पर, जैसा कि कार्य सलाहकार समिति द्वारा प्रस्तावित किया जाए, सदन में चर्चा की जाती है और शेष मांगें गिलोटिन (मुख बंद) का उपयोग करके पारित कर दी जाती हैंI ऐसा सदन के व्यस्त कार्यक्रम के कारण किया जाता हैI परिणामस्वरूप, जैसे ही सदन द्वारा अनुदान पारित किये जाते है, सदन द्वारा प्राधिकृत व्यय की पूर्ति के लिए सरकार द्वारा मांगी गई सभी राशियों के राज्य की संचित निधि से विनियोग हेतु एक विधेयक प्रस्तुत किया जाता हैI
सामान्यतः सदन के विनिश्चयों का निर्धारण ध्वनिमत के माध्यम से किया जाता हैI यदि, विपक्ष ऐसे ध्वनि मत की सत्यता पर आपत्ति करता है या जब विपक्ष मतों को अंकित करने की मांग करता है तब सदस्यों को मत विभाजन के लिए हाँ और ना प्रकोष्ठ (लॉबी), जैसा भी मामला हो, में जाने का अनुरोध किया जाता हैI विधान सभा के सदन में इलेक्ट्रोनिक वोटिंग की भी व्यवस्था की गई है।
इस प्रणाली में प्रत्येक सदस्य की डेलीगेट यूनिट में उपलब्ध इलेक्ट्रोनिक वोटिंग पैनल में वांछित स्विच दबाकर अपना वोट दे सकते हैं। सदस्यों द्वारा दिये गये इस वोट को दर्शाने के लिए अध्यक्ष के आसन के दायें तथा बायें एलएफडी स्क्रीन स्थापित की गई हैं।
विधायी समितियों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - स्थायी समितियाँ और तदर्थ समितियाँI राजस्थान विधान सभा में 18 स्थायी समितियाँ हैं जिनमें से चार वित्तीय हैं और शेष अन्य विषयों से सम्बंधित हैंI वित्तीय समितियाँ हैं - जन लेखा समिति, राजकीय उपक्रम समिति और दो प्राक्कलन समितियाँ (प्राक्कलन समिति ‘क’ एवं प्राक्कलन समिति ‘ख)’I वित्तीय समितियों का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के आधार पर किया जाता है और शेष का मनोनयन विधान सभा अध्यक्ष द्वारा किया जाता हैI इन सभी समितियों के सभापतियों का मनोनयन स्पीकर द्वारा इन समितियों के सदस्यों में से किया जाता हैI
जन लेखा समिति का मुख्य कार्य सरकार के सचिवों से नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन में उनके विभागों के सम्बन्ध में बतायी गई अनियमितताओं के बारे में पूछताछ करना हैI इसी तरह, राजकीय उपक्रम समिति से वांछित है कि वह विभिन्न लोक उपक्रमों के कृत्यों की पड़ताल करे और उससे यह भी अपेक्षित है कि वह नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन में उनके नियंत्रण में दर्शाई गई अनियमितताओं के सम्बन्ध में उपक्रमों का परीक्षण करेI
दोनों प्राक्कलन समितियों को यह दायित्व सौंपा गया है कि वे प्रतिवेदित करें कि क्या मितव्ययिताएं प्रभाव में लायी जा सकती हैं और क्या सुधार किसी संगठन विशेष में किये जा सकते हैं तथा वैकल्पिक नीतियाँ भी सुझाएँ ताकि प्रशासन में मितव्ययिता और कुशलता लायी जा सके। साथ ही बजट प्राक्कलनों के प्रारूप में परिवर्तन भी सुझाएँI
ऊपर उल्लिखित चार वित्तीय समितियों के अतिरिक्त, राजस्थान विधान सभा में 18 अन्य स्थायी समितियां हैI
1. | अधीनस्थ विधान सम्बन्धी समिति | 2. | अनुसूचित जनजातियों के कल्याण सम्बन्धी समिति |
---|---|---|---|
3. | अनुसूचित जातियों के कल्याण सम्बन्धी समिति | 4. | कार्य सलाहकार समिति |
5. | गृह समिति | 6. | नियम समिति |
7. | पुस्तकालय समिति | 8. | याचिका समिति |
9. | विशेषाधिकार समिति | 10. | सरकारी आश्वासनों सम्बन्धी समिति |
11. | सामान्य प्रयोजनों सम्बन्धी समिति | 12. | प्रश्न एवं सन्दर्भ समिति |
13. | महिलाओं एवं बालकों के कल्याण सम्बन्धी समिति | 14. | पिछड़े वर्गों के कल्याण सम्बन्धी समिति |
15. | अल्पसंख्यकों के कल्याण सम्बन्धी समिति | 16. | पंचायती राज संस्थाओं और स्थानीय निकायों सम्बन्धी समिति |
17. | पर्यावरण सम्बन्धी समिति | 18. | आचरण समिति |
इन समितियों का गठन सामान्यतः सत्तारूढ़ दल के साथ साथ विपक्षी दलों के सदस्यों में से सदन में उनके संख्याबल के अनुपात में किया जाता हैI समिति के सदस्यों का कार्यकाल सामान्यतः एक वर्ष होता हैI सरकारी विधेयकों पर प्रवर समितियों के अलावा, कोई भी मंत्री किसी समिति का सदस्य नहीं हो सकताI जहाँ तक कार्य सलाहकार समिति का सम्बन्ध है, यह प्रावधान, सदन के नेता जो कि मुख्यमंत्री होता है, के मामले में लागू नहीं होताI आमतौर पर, इन समितियों के प्रतिवेदन समितियों के सभापतियों द्वारा सदन में प्रस्तुत किये जाते हैं लेकिन अन्त:सत्रकाल में सभापति समिति का प्रतिवेदन अध्यक्ष को प्रस्तुत कर सकता हैI ये प्रतिवेदन सामान्यतः सदन में, कार्य सलाहकार समिति और विशेषाधिकार समिति के प्रतिवेदनों के अपवाद के अतिरिक्त, नहीं उठाये जाते हैI
भारत के संविधान के अनुच्छेद 194 में विधानमंडल के सदन, उसके सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां दी गई हैंI विधानमंडल में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विधानमंडल या उसकी किसी समिति में कही गई किसी बात या दिये गए मत के सम्बन्ध में न्यायालय की प्रक्रिया से सदस्यों की उन्मुक्ति; विधानमंडल की कार्यवाहियों की न्यायालय द्वारा जांच करने पर रोक और सदन के सत्र के जारी रहने के दौरान सिविल मामलों में सदस्यों को गिरफ़्तारी से उन्मुक्ति आदि कुछ महत्त्वपूर्ण विशेषाधिकार हैंI
विधान सभा सचिवालय परिसर में विभिन्न कक्षों में स्थापित टेलीविज़न सैट्स पर सदन की कार्यवाही का प्रसारण देखा जा सकता है। यह प्रणाली सदस्यों के फायदे के लिए है जो किसी समय-विशेष पर सदन में उपस्थित नहीं है और उनके लिए भी जो सभा की बैठकों को प्रत्यक्ष रूप से नहीं देख सकतेI
राजस्थान विधान सभा संसदीय बहस के अपने उच्च स्तर और सदन में कार्यवाहियों के अनुशासित आयोजन के साथ कुछ सुधारवादी विधियों, जिन्हें पूरे देश से प्रशंसा प्राप्त हुई, के लिए भी प्रतिष्ठित हैI
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कांग्रेस के कितनी सीट आयी थी 1952 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में
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