भाषा विज्ञान की शाखाएँ
इस प्रकार भाषाविज्ञान की प्रमुख शाखाएँ निम्न हैं –
ध्वनिविज्ञान अथवा स्वनविज्ञान (Phonetics) – इसके अन्तर्गत भाषा की आधारभूत सामग्री का अध्ययन किया जाता है। किसी भी भाषा का कोई भी उच्चार ध्वनियों अथवा स्वनों का अविच्छिन्न प्रवाह है। भाषा की ध्वनियाँ स्वतः अर्थहीन होती हैं। ध्वनियों का उच्चारण भौतिक घटनाएँ हैं तथा इस रूप में ये भौतिक विज्ञान में भी विवेच्य हैं। ध्वनिविज्ञान अथवा स्वनविज्ञान में वाक् ध्वनियों के उत्पादन, संचरण एवं संवहन का अध्ययन किया जाता है।
स्वनिमविज्ञान (Phonemics) - इसमें विवेच्य भाषा की ध्वनियों अथवा स्वनों के वितरण के आधार पर अर्थ-भेदक अथवा विषम वितरण में वितरित स्वनिमों का अध्ययन किया जाता है। प्रत्येक भाषा में ध्वनियों की अपनी व्यवस्था होती है। दो भाषाओं में ध्वनियाँ समान हो सकती हैं किन्तु उनका भाषाओं में प्रकार्य समरूप नहीं होता। इस कारण ध्वनियों की संरचनात्मक इकाइयों में भेद होता है। जब हम ध्वन्यात्मक व्यवस्था की विवेचना करते हैं तब हमारा तात्पर्य किसी विशिष्ट भाषा के स्वनिमों से होता है। उदाहरण के लिए हिन्दी एवं तमिल में क् एवं ग् ध्वनियों का उच्चारण होता है। हिन्दी में इनका स्वनिमिक महत्व है। तमिल में इनका स्वनिमिक महत्व नहीं है। इसी कारण तमिल की लिपि में इनके लिए अलग अलग वर्ण नहीं हैं।
रूपिमविज्ञान (Morphemics) अथवा शब्दरूपप्रक्रिया (Morphology)
वाक्यविज्ञान (Syntax) –
रूपिमविज्ञान एवं वाक्यविज्ञान को अलग-अलग शाखाएँ माना जाए अथवा नहीं – यह भी विवाद का विषय है। किसी भाषा के स्वनिमों के विशिष्ट क्रम से निर्मित रूपात्मक या व्याकरणिक इकाइयों की व्यवस्थाओं एवं संरचनाओं का अध्ययन इन शाखाओं का विवेच्य है। स्वनिम व्यवच्छेदक अर्थात् अर्थ भेदक होते हुए भी स्वयं अर्थ शून्य होते हैं किन्तु इन्हीं के विशेष क्रम से संयोजित होने वाले रूप, शब्द, वाक्यांश एवं वाक्य भाषा के अर्थवान तत्त्व होते हैं। भाषावैज्ञानिक भाषा की व्याकरणिक व्यवस्था को जानने के लिए इन्हीं तत्त्वों के द्वारा संरचित संरचना स्तरों का अध्ययन करता है। (रूपों का संचय एवं उससे निर्मित रूपिम, शब्द, वाक्यांश, एवं वाक्य आदि)। भाषा में प्रत्येक स्तर पर रचना की विशिष्ट व्यवस्था होती है। प्रत्येक स्तर की इकाई अपने से निम्न स्तर की एक अथवा एकाधिक इकाइयों से मिलकर बनती है। दूसरे शब्दों में निम्न स्तर की एक अथवा एकाधिक इकाइयाँ मिलकर बड़े स्तर की इकाई की रचना करती हैं। उदाहरण के लिए वाक्य स्तर की इकाई एक अथवा एकाधिक उपवाक्य / उपवाक्यों द्वारा बनती है। हिन्दी भाषा के संदर्भ को ध्यान में रखकर इनको इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है –
संरचना स्तर संरचित इकाई संरचक (एक अथवा एकाधिक)
वाक्यीय स्तर वाक्य उपवाक्य
उपवाक्यीय स्तर उपवाक्य वाक्यांश अथवा पदबंध
वाक्यांश अथवा पदबंध स्तर वाक्यांश अथवा पदबंध पद (सविभक्तिक शब्द)
पदीय स्तर पद (सविभक्तिक शब्द) शब्द
शब्द स्तर शब्द रूपिम
प्रत्येक स्तर की संरचक इकाई/ इकाइयों के क्रम, विस्तार आदि की अभिरचनाएँ (Patterns) होती हैं। इन अभिरचनाओं की नियमबद्धता एवं परस्पर सम्बंधों के नियम उस स्तर की व्यवस्था को स्पष्ट करते हैं। विविध स्तरों की इकाइयों के परस्पर मिलकर अपने से बड़े स्तर की इकाइयों की रचना के नियम संरचना को स्पष्ट करते हैं। विविध स्तरों का परस्पर अधिक्रम होता है। अधिक्रम में एक स्तर में आनेवाली इकाइयों का संरचनात्मक मूल्य समान होता है। संरचनात्मक मूल्य से उस व्याकरणिक इकाई की पहचान होती है। एक स्तर की व्याकरणिक इकाई अधिक्रम में अपने से नीचे स्तर की व्याकरणिक इकाई/ इकाइयों की पहचान कराती है। जो विद्वान रूपिमविज्ञान एवं वाक्यविज्ञान को अलग-अलग शाखाएँ मानते हैं उनके मतानुसार रूपिमविज्ञान में हम लघुतम अर्थयुक्त् इकाईयों से बड़ी इकाईयों के अध्ययन की ओर प्रवृत्त होते हैं तथा वाक्यविज्ञान में बड़ी इकाइयों से छोटी इकाइयों की ओर प्रवृत्त होते हैं। निम्न स्तर की संरचना की इकाई अपने से बड़े स्तर की संरचना की संरचक होती है। उदाहरण के लिए शब्द स्तर पर संरचक रूपिम होते हैं। वाक्यांश स्तर पर संरचक शब्द होते हैं। उपवाक्य स्तर पर संरचक वाक्यांश एवं वाक्य स्तर पर संरचक उपवाक्य होते हैं। किसी भाषा की व्याकरणिक व्यवस्था का अध्ययन करने के लिए उसका रूपिम एवं वाक्य विन्यासीय अध्ययन करते हैं। रूपिमविज्ञान में उच्चारों को रूपों में विभाजित करके, वितरण के आधार पर रूपिम में वर्गबद्ध करते हैं। आबद्ध रूपिमों को व्युत्पादक एवं विभक्ति प्रत्ययों में वर्गीकृत किया जाता है। इस अध्ययन से भाषा की व्युत्पन्न प्रतिपादिक रचना एवं विभक्ति व्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। विभक्ति प्रत्यय किसी/किन्हीं वैयाकरणिक रूप/रूपों की सिद्धि करते हैं। कोटियों के अनुरूप वैभक्तिक होने तथा/अथवा वैभाक्तिक शब्दों के वाक्यीय प्रकार्य के आधार पर भाषा के समस्त शब्दों को ‘वाग्भागों’ में विभक्त किया जाता है। प्रत्येक वाग्भाग का अध्ययन वैयाकरणिक कोटियों के अनुरूप रूपान्तरित होने वाले वर्गों उपवर्गों के अनुरूप किया जाता है। वाक्यविज्ञान में विवेच्य भाषा के वाक्यों की संरचना सम्बंधी अध्ययन किया जाता है। सामान्यतः किसी भाषा के सामान्य वाक्य को पहले संज्ञा वाक्यांश (NP) एवं क्रिया वाक्यांश (VP) में विभक्त किया जाता है।नॉम चॉम्स्की ने गहन संरचना के नियमों को जानने के लिए रचनांतरण व्याकरण का मॉडल प्रस्तुत किया। प्रकार्यात्मक भाषाविज्ञान के अध्ययन के बाद विवेच्य भाषा के वाक्य संरचना के विभिन्न तत्त्वों का संरचनात्मक एवं अर्थपरक आधारों पर अध्ययन किया जाता है। इसमें सबसे अधिक महत्व भाषा के वाक्य प्रकारों, मूल अथवा आधार वाक्यों का निर्धारण, मूल अथवा आधार वाक्यों के साँचों एवं उपसाँचों का अध्ययन किया जाता है।
अर्थविज्ञान (Semantics) – इसमें विवेच्य भाषा के शब्दों के अर्थों का अध्ययन किया जाता है। शब्दार्थ का अध्ययन ऐतिहासिक, तुलनात्मक एवं शब्द के वर्तमानकालिक संदर्भानुसार अर्थ प्रयोगों सहित किया जाता है। उदाहरण के लिए शब्दार्थ के ऐतिहासिक अध्ययन में शब्द में कालक्रमानुसार हुए अर्थ परिवर्तनों के कारणों एवं विभिन्न प्रकार के अर्थ परिवर्तनों के सम्बंध में विचार किया जाता है।
इस प्रकार भाषाविज्ञान की प्रमुख शाखाएँ निम्न हैं –
ध्वनिविज्ञान अथवा स्वनविज्ञान (Phonetics) – इसके अन्तर्गत भाषा की आधारभूत सामग्री का अध्ययन किया जाता है। किसी भी भाषा का कोई भी उच्चार ध्वनियों अथवा स्वनों का अविच्छिन्न प्रवाह है। भाषा की ध्वनियाँ स्वतः अर्थहीन होती हैं। ध्वनियों का उच्चारण भौतिक घटनाएँ हैं तथा इस रूप में ये भौतिक विज्ञान में भी विवेच्य हैं। ध्वनिविज्ञान अथवा स्वनविज्ञान में वाक् ध्वनियों के उत्पादन, संचरण एवं संवहन का अध्ययन किया जाता है।
स्वनिमविज्ञान (Phonemics) - इसमें विवेच्य भाषा की ध्वनियों अथवा स्वनों के वितरण के आधार पर अर्थ-भेदक अथवा विषम वितरण में वितरित स्वनिमों का अध्ययन किया जाता है। प्रत्येक भाषा में ध्वनियों की अपनी व्यवस्था होती है। दो भाषाओं में ध्वनियाँ समान हो सकती हैं किन्तु उनका भाषाओं में प्रकार्य समरूप नहीं होता। इस कारण ध्वनियों की संरचनात्मक इकाइयों में भेद होता है। जब हम ध्वन्यात्मक व्यवस्था की विवेचना करते हैं तब हमारा तात्पर्य किसी विशिष्ट भाषा के स्वनिमों से होता है। उदाहरण के लिए हिन्दी एवं तमिल में क् एवं ग् ध्वनियों का उच्चारण होता है। हिन्दी में इनका स्वनिमिक महत्व है। तमिल में इनका स्वनिमिक महत्व नहीं है। इसी कारण तमिल की लिपि में इनके लिए अलग अलग वर्ण नहीं हैं।
रूपिमविज्ञान (Morphemics) अथवा शब्दरूपप्रक्रिया (Morphology)
वाक्यविज्ञान (Syntax) –
रूपिमविज्ञान एवं वाक्यविज्ञान को अलग-अलग शाखाएँ माना जाए अथवा नहीं – यह भी विवाद का विषय है। किसी भाषा के स्वनिमों के विशिष्ट क्रम से निर्मित रूपात्मक या व्याकरणिक इकाइयों की व्यवस्थाओं एवं संरचनाओं का अध्ययन इन शाखाओं का विवेच्य है। स्वनिम व्यवच्छेदक अर्थात् अर्थ भेदक होते हुए भी स्वयं अर्थ शून्य होते हैं किन्तु इन्हीं के विशेष क्रम से संयोजित होने वाले रूप, शब्द, वाक्यांश एवं वाक्य भाषा के अर्थवान तत्त्व होते हैं। भाषावैज्ञानिक भाषा की व्याकरणिक व्यवस्था को जानने के लिए इन्हीं तत्त्वों के द्वारा संरचित संरचना स्तरों का अध्ययन करता है। (रूपों का संचय एवं उससे निर्मित रूपिम, शब्द, वाक्यांश, एवं वाक्य आदि)। भाषा में प्रत्येक स्तर पर रचना की विशिष्ट व्यवस्था होती है। प्रत्येक स्तर की इकाई अपने से निम्न स्तर की एक अथवा एकाधिक इकाइयों से मिलकर बनती है। दूसरे शब्दों में निम्न स्तर की एक अथवा एकाधिक इकाइयाँ मिलकर बड़े स्तर की इकाई की रचना करती हैं। उदाहरण के लिए वाक्य स्तर की इकाई एक अथवा एकाधिक उपवाक्य / उपवाक्यों द्वारा बनती है। हिन्दी भाषा के संदर्भ को ध्यान में रखकर इनको इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है –
संरचना स्तर संरचित इकाई संरचक (एक अथवा एकाधिक)
वाक्यीय स्तर वाक्य उपवाक्य
उपवाक्यीय स्तर उपवाक्य वाक्यांश अथवा पदबंध
वाक्यांश अथवा पदबंध स्तर वाक्यांश अथवा पदबंध पद (सविभक्तिक शब्द)
पदीय स्तर पद (सविभक्तिक शब्द) शब्द
शब्द स्तर शब्द रूपिम
प्रत्येक स्तर की संरचक इकाई/ इकाइयों के क्रम, विस्तार आदि की अभिरचनाएँ (Patterns) होती हैं। इन अभिरचनाओं की नियमबद्धता एवं परस्पर सम्बंधों के नियम उस स्तर की व्यवस्था को स्पष्ट करते हैं। विविध स्तरों की इकाइयों के परस्पर मिलकर अपने से बड़े स्तर की इकाइयों की रचना के नियम संरचना को स्पष्ट करते हैं। विविध स्तरों का परस्पर अधिक्रम होता है। अधिक्रम में एक स्तर में आनेवाली इकाइयों का संरचनात्मक मूल्य समान होता है। संरचनात्मक मूल्य से उस व्याकरणिक इकाई की पहचान होती है। एक स्तर की व्याकरणिक इकाई अधिक्रम में अपने से नीचे स्तर की व्याकरणिक इकाई/ इकाइयों की पहचान कराती है। जो विद्वान रूपिमविज्ञान एवं वाक्यविज्ञान को अलग-अलग शाखाएँ मानते हैं उनके मतानुसार रूपिमविज्ञान में हम लघुतम अर्थयुक्त् इकाईयों से बड़ी इकाईयों के अध्ययन की ओर प्रवृत्त होते हैं तथा वाक्यविज्ञान में बड़ी इकाइयों से छोटी इकाइयों की ओर प्रवृत्त होते हैं। निम्न स्तर की संरचना की इकाई अपने से बड़े स्तर की संरचना की संरचक होती है। उदाहरण के लिए शब्द स्तर पर संरचक रूपिम होते हैं। वाक्यांश स्तर पर संरचक शब्द होते हैं। उपवाक्य स्तर पर संरचक वाक्यांश एवं वाक्य स्तर पर संरचक उपवाक्य होते हैं। किसी भाषा की व्याकरणिक व्यवस्था का अध्ययन करने के लिए उसका रूपिम एवं वाक्य विन्यासीय अध्ययन करते हैं। रूपिमविज्ञान में उच्चारों को रूपों में विभाजित करके, वितरण के आधार पर रूपिम में वर्गबद्ध करते हैं। आबद्ध रूपिमों को व्युत्पादक एवं विभक्ति प्रत्ययों में वर्गीकृत किया जाता है। इस अध्ययन से भाषा की व्युत्पन्न प्रतिपादिक रचना एवं विभक्ति व्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। विभक्ति प्रत्यय किसी/किन्हीं वैयाकरणिक रूप/रूपों की सिद्धि करते हैं। कोटियों के अनुरूप वैभक्तिक होने तथा/अथवा वैभाक्तिक शब्दों के वाक्यीय प्रकार्य के आधार पर भाषा के समस्त शब्दों को ‘वाग्भागों’ में विभक्त किया जाता है। प्रत्येक वाग्भाग का अध्ययन वैयाकरणिक कोटियों के अनुरूप रूपान्तरित होने वाले वर्गों उपवर्गों के अनुरूप किया जाता है। वाक्यविज्ञान में विवेच्य भाषा के वाक्यों की संरचना सम्बंधी अध्ययन किया जाता है। सामान्यतः किसी भाषा के सामान्य वाक्य को पहले संज्ञा वाक्यांश (NP) एवं क्रिया वाक्यांश (VP) में विभक्त किया जाता है।नॉम चॉम्स्की ने गहन संरचना के नियमों को जानने के लिए रचनांतरण व्याकरण का मॉडल प्रस्तुत किया। प्रकार्यात्मक भाषाविज्ञान के अध्ययन के बाद विवेच्य भाषा के वाक्य संरचना के विभिन्न तत्त्वों का संरचनात्मक एवं अर्थपरक आधारों पर अध्ययन किया जाता है। इसमें सबसे अधिक महत्व भाषा के वाक्य प्रकारों, मूल अथवा आधार वाक्यों का निर्धारण, मूल अथवा आधार वाक्यों के साँचों एवं उपसाँचों का अध्ययन किया जाता है।
अर्थविज्ञान (Semantics) – इसमें विवेच्य भाषा के शब्दों के अर्थों का अध्ययन किया जाता है। शब्दार्थ का अध्ययन ऐतिहासिक, तुलनात्मक एवं शब्द के वर्तमानकालिक संदर्भानुसार अर्थ प्रयोगों सहित किया जाता है। उदाहरण के लिए शब्दार्थ के ऐतिहासिक अध्ययन में शब्द में कालक्रमानुसार हुए अर्थ परिवर्तनों के कारणों एवं विभिन्न प्रकार के अर्थ परिवर्तनों के सम्बंध में विचार किया जाता है।
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भाषा अध्ययन कि दिशाएं
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