सूचना प्रौद्योगिकी युग और हिन्दी
आज का युग सूचना , संचार व विचार का युग है । सूचना प्रौद्योगिकी एक सरल तंत्र है जो तकनीकी प्रयोग के सहारे सूचनाओं का संकलन , प्रक्रिया व संप्रेषन करता है । सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग मे कंप्यूटर का महत्व कल्पवृक्ष से कम नहीं है जिससे व्यवसायिक , वाणिज्यिक , जन संचार , शिक्षा , चिकित्सा , आदि कई क्षेत्र लाभांवित हुये हैं। कंप्यूटर व सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जो विकास हुआ है वह भाषा के क्षेत्र में भी मौन क्राँति का वाहक बन कर आया है । अभी तक भाषा जो केवल मनुष्यों के आवशकताओं को पूरा कर रही थी , उसे सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में मशीन व कंप्यूटर की नित नई भाषायी मांगों को पूरा करना पड़ रहा है ।
चूँकि वर्तमान समय सूचना प्रौद्योगिकी का युग है , सभी कार्यालयों में तमाम काम कंप्यूटरों पर ही किये जाते हैं। रोजमर्रा की जिन्दगी मानो सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित है । मोबाइल फोन, एटीएम , इंटरनेट बैंकिंग से लेकर रेलवे आरक्षण , ऑनलाइन शॉपिंग , आदि तक सूचना प्रौद्योगिकी हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी है । संविधान के अनुच्छेद 343 के आधार पर हिंदी को भारत में राजभाषा का दर्जा प्राप्त है जिसकी वज़ह से हिंदी भाषा का प्रयुक्ति क्षेत्र बहुत विस्तृत है , सभी सरकारी कार्यालयों में हिंदी को कार्यालयीन भाषा का दर्जा प्राप्त है व इसका कार्यक्षेत्र केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों, कार्यालयों , निगमों , विभागों व उपक्रमों आदि तक फैला हुआ है ।समकालीन समय में सूचना प्रौद्योगिकी जिसकी आत्मा कंप्यूटर है , किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी बना हुआ है। यह सर्वज्ञात है कि कंप्यूटर में राजभाषा हिंदी में कार्य करना सुगम बनाया है । हिंदी में कंप्यूटर स्थानीयकरण का कार्य काफी पहले प्रारंभ हुआ और अब यह आंदोलन की शक्ल लेचुका है । हिंदी सॉफ्टवेयर लोकलाइजेशन का कार्य सर्वप्रथम सी- डैक द्वारा 90 के दशक में किया गया था । वर्तमान में हिंदी भाषा के लिये कई संगठन कार्य करते है , जिसमें सी –डैक, गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग केंद्रीय हिंदी संस्थान और अनेकों गैर सरकारी संगठन जैसे सराय , इंडलिक्स, आदि प्रमुख हैं।
एक ओर यूनिकोड के प्रयोग ने हिंदी के प्रयोग को आगे बढ़ाने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है वहीं आज सिस्टम जेनरेटेड प्रोग्रामों में हिंदी की स्थिति कुछ खास नही है।अधिकतर सॉफ्टवेयर प्रोग्राम पहले ही तैयार कर लिये जाते हैं, उसके बाद उनमॆं हिंदी की सुविधा तलाश की जाती है। इसके बावजूद भी यह संतोष का विषय है कि 21 वीं सदी में भाषा के प्रचार –प्रसार में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिक अहम हो गयी है व भाषाओं के मानकीकरण का कार्य आसान हो गया है ।
हिंदी यूनिकोड के अस्तित्व में आने के बाद अब हर कंप्यूटर , लैपटॉप यहाँ तक की स्मार्ट फोन पर भी हिंदी में काम करना व करवाना कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है ।यूनिकोड एक अंतर्राष्ट्रीय मानक कोड है जिसमें हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं सहित विश्व की लगभग 200 भाषाओं के लिये कोड निर्धारित किये गये हैं । चूँकि कंप्यूटर मूल रूप से किसी भाषा से नहीं बल्कि अंकों से संबंध रखता हैइसलिये हम किसी भी भाषा को एनकोडिंग व्यवस्था के तहत मानक रूप प्रदान कर सकते हैं ।साथ ही इसी आधार पर उनके लिये फॉण्ट भी निर्मित किये जा सकते हैं , जैसे अंग्रेज़ी भाषा अथवा रोमन लिपि के लिये एरियल फॉण्ट की एनकोडिंग की गयी है , उसी तरह हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के लिये निर्मित आधुनिक यूनिकोड फॉण्ट्स की भी एंकोडिंग की गयी है जिसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर एप्पल, आइबीएम, माइक्रोसॉफ्ट , सैप , साइबेस , यूनिसिस जैसी सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की प्रमुख कंपनियों ने अपनाया है ।मानकीकरण का यह कार्य अमेरिका स्थित यूनिकोड कंसोर्शियम द्वारा किया जाता है जो कि लाभ ना कमाने वाली एक संस्था है ।भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक विभाग ने भी इस कंसोर्शियम के जरिये हिंदी के यूनिकोड फॉण्ट जैसे मंगल , कोकिला, एरियल यूनिकोड एमएस , आदि की एनकोडिंग करायी है जिसकी वज़ह से आधुनिक कंप्यूटरों में यह फॉण्ट पहले से ही विद्यमान होते हैं।यूनिकोड 16 बिट की एक एनकोडिंग व्यवस्था है जो कि पालि और प्राकृत जैसी प्राचीन भाषाओं से भी परिचित है। इसकी विशेषता यह है कि एक कम्प्यूटर पर के पाठ को दुनिया के किसी भी अन्य यूनिकोड आधारित कम्प्यूटर पर खोला व पढ़ा जा सकता है। इसके लिए अलग से उस भाषा के फोंट का प्रयोग करने की अनिवार्यता नहीं होती; क्योंकि यूनिकोड केन्द्रित हर फोंट में सिद्धांतत: विश्व की हर भाषा के अक्षर मौजूद होते हैं। यूनिकोड आधारित कम्प्यूटरों में प्रत्येक कार्य भारत की किसी भी भाषा में किया जा सकता है, बशर्ते कि ‘ऑपरेटिंग सिस्टम’ पर इन्स्टॉल सॉफ्टवेयर यूनिकोड व्यवस्था आधारित हो। आज बाज़ार में आने वाला हर नया कंप्यूटर व अन्य गैजट ना सिर्फ हिंदी , बल्कि दुनिया की आधिकत्तर भाषाओं में कार्य करने में सक्षम है क्योंकिं यह सभी लिपियाँ यूनिकोड मानक मॆं शामिल हैं।
मौजूदा समय में हिंदी ‘ग्लोबल हिंदी” में परिवर्तित हो गयी है , आज तकनीकी विकास के युग में दूसरे देशों के लोग भी, भले की विपणन के लिए ही सही , हिंदी भाषा सीख रहे हैं । आज स्थिति यह है कि भारत व चीन के व्यवसायिक संबंधों को बढ़ाने की संभावनाओं के तलाश के लिये लगभग दस हज़ार लोगपेइचिंग में हिंदी सीख रहे हैं। आज से लगभग 45 वर्ष पूर्व कंप्यूटर पर हिंदी में कार्य आरंभ हुआ और इसी तरह एंकोडिंग व डिकोडिंग के माध्यम से विश्व की विभिन्न भाषाएँ भी कंप्यूटर पर सुलभ होने लगी, इस तकनीकी विकास ने भारतीय भाषाओं को जोड़ा है , कंप्यूटर के माध्यम से विभिन्न सॉफ्टवेयरों,सी-डैक संस्था के हिंदी सीखने सीखाने के विभिन्न कंप्यूटरीकृत कार्यक्रमों जैसे- प्रबोध, प्रवीण व प्राज्ञ पाठ्यक्रमों के लिये लीला वाचिक तकनीक के प्रयोग ने भाषा सीखने की प्रक्रिया को विभिन्न भाषा माध्यमों से बिलकुल आसान बना दिया जिससे भाषायी निकटता का उदय हुआ, जिसके वज़ह से भाषायी एकता आना स्वाभाविक था ।
वर्तमान समय में मोबाइल फोन ने लैंडलाइन फोन का स्थान ले लिया है। मोबाइल फोन पर हिंदी समर्थन हेतु निरंतर कार्य चल रहा है । कई मोबाइल कंपनियाँ , सोनी , नोकिया, सैमसंग आदि हिंदी टंकण , हिंदी वाइस सर्च व हिंदी भाषा में इंटरफेस की सुविधा प्रदान कर रही है। इसके साथ ही आज आइ पैड पर हिंदी लिखने की सुविधा उपलब्ध है ।अंग्रेज़ी के साथ-साथ आज हिंदी भाषा का भी नेटवर्क़ पूरे विश्व मॆं फैलता जा रहा है । जागरण, वेब दुनिया, नवभारत टाइमस , विकिपिडिया हिंदी , भारत कोष, कविता कोष, गद्य कोष , हिंदी नेक्स्ट डॉट कॉम , हिंदी समय डॉट कॉम , आदि इंटरनेट साइटों पर हिंदी सामग्री देखी जा सकती है।आज विज्ञापन से संबंधित एसएमएस से खाता-शेष तक हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में प्राप्त किया जा सकता है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के तहत कार्यरत सी-डैक (पुणे) बाईस भाषाओं में अपनी विभिन्न तकनीकी आयामों से वेबसाइटों, सॉफ्टवेयरों, रिपोर्टों, महाराष्ट्र सरकार की मराठी भाषा में तथा असम सरकार कीअसमिया भाषा में वेबसाइट निर्माणों, रिज़र्व बैंक के राजभाषा रिपोर्ट जेनेरेशन सॉफ्टवेयर(आरआरजीएस) निर्माण आदि के कार्य कर भाषायी एकता के क्रम में योगदान कर रहा है।
हिंदी के बड़े बाजार के नब्ज़ को देखते हुये माइक्रोसॉफ्ट ने अपने सॉफ्टवेयर उत्पादों से संबंधित सहायक साहित्य तथा मार्गदर्शक सूत्रों को विशेषज्ञों की सहायता से हिंदी में उपलब्ध कराने के प्रयत्न शुरू किया गया है । बहुप्रचलित विंडोज़ विस्टा व विडोंज 7 जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ एमएस वर्ड , पावर प्वाइंट, एक्सेल, नोटपैड , इंटरनेट एक्सप्लोरर, जैसे प्रमुख सॉफ्टवेयर उत्पाद अब हिंदी में कार्य करने की सुविधा प्रदान करते हैं। माइक्रोसॉफ्ट का लैंग्वेंज इंटर्फेस पैकेज स्थानीयकरण का बेहतर उदाहरण है ।
गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने अपनी वेबसाइट http://www.rajbhasha.nic.inपर राजभाषा हिंदी में कार्य करने को आसान बनाने के उद्देश्य से हिंदी में कई सॉफ्टवेयर उपलब्ध कराये हैं , जिसमें से निम्नलिखित प्रमुखहैं-
3.श्रुतलेखन एक सतत स्पीकर इंडीपेंडेंट हिंदी स्पीच रिकगनिश्न सिस्टम है , जिसका विकास सीडैक , पुणे के एलाइड ए.आइ ग्रुप ने राजभाषा विभाग , गृह मंत्रालय , भारत सरकार के सहयोग से किया गया है । यह स्पीच टू टेक्सट टूल है , इस विधि में प्रयोक्ता माइक्रोफोन में बोलता है तथा कंप्यूटर मेंमौजूद स्पीच टू टेक्स्ट प्रोग्राम उसे प्रोसेस कर पाठ/ टेक्स्ट में बदल कर लिखता है ।
5.सीडैक पुणे के तकनीकी सहयोग से ई-महाशब्दकोश का निर्माण किया गया जो की राजभाषा की साइट पर निशुल्क उपलब्ध है । यह एक द्विभाषी –द्विआयामी उच्चारण शब्दकोश हैं जिसके द्वारा हिंदी या अंग्रेज़ी अक्षरों द्वारा शब्द की सीधी खोज किया जा सकता है।
अनुवाद दो भाषाओं के बीच सेतु का कार्य करता है। तकनीकी के उत्तरोत्तर विकास द्वारा मशीनी अनुवाद टूल बनाना संभव हो सका। आज विश्व के कई देशों के पास अत्यंत ही सक्षम अनुवाद टूल हैं। इनकी सहायता से वैश्विक मंचों पर विभिन्न देशों का आपसी मिलन आसानी से संभव हुआ है। भारत में भी अनुवाद टूल बनाने की दिशा में कई सॉफ्टवेयर बनाए गए हैं जिनमें सी-डैक, आईआईटी कानपुर, आईआईटी मुंबई जैसी संस्थाओं की अहम भूमिका है।
इसके अलावा हिंदी में शब्द संसाधन के लिये विशेष रूप से तैयार ई-पुस्तक , राजभाषा विभाग की साइट पर उपलब्ध है ।भाषायी परस्पर आदान प्रदान के क्रम में भी तकनीकी विकास हुआ है। गूगल ट्राँसलेट के माध्यम से विभिन्न भाषाओं का अनुवाद किया जा सकता है । आज हमारे पास लिपियों को बदलने का सॉफ्ट्वेयर गिरगिट उपलब्ध है। भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद करने हेतु अनुसारक नाम का सॉफ्टवेयर मौजूद है। हिंदी ऑप्टिकल कैरेक्टर के माध्यम से हिडी ओसीआर इंपुट करके ओसीआर आउटपुट में 15-16 वर्ष के पहले की सामाग्री को भी परिवर्तित किया जा सकता है। सीडैक के श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर से भाषण/स्पीच से पाठ रूप में पहुँचा जा सकता है। गूगल के टूलों में वाचक, प्रवाचक, गूगल टेक्स्ट टू स्पीच के जरिये पाठ से भाषन की सुविधा उपलब्ध है व गूगल के वायस टाइपिंग के जरिये स्पीच को टेक्स्ट में बदलने की सुविधा उपलब्ध है।गूगल वाइस टाइपिंग में हम गूगल डॉक्स के द्वारा हम अपनी आवाज के माध्यम टाइपिंग करने का आनंद उठा सकते हैं ।
माइक्रोसॉफ्ट इंडिक लैंग्वेज़ इनपुट टूल भारतीय भाषाओं हेतु एक सरल टाइपिंग टूल है। वास्तव में यह एक वर्चुअल की बोर्ड है जो कि बिना कॉपी-पेस्ट के झंझट के विंडोज में किसी भी एपलीकेशन में सीधे हिंदी में लिखने की सुविधा प्रदान करता है । यह सेवा दिसंबर 2009 में प्रारंभ हो गयी थी । यह टूल शब्दकोश आधारित ध्वन्यात्मक लिप्यांतरण विधि का प्रयोग करता है अथार्त हमारे द्वारा जो रोमन में टाइप किया जाता है , यह उसे अपने शब्दकोश से मिलाकर लिप्यांतरित करता है तथा मिलते-जुलते शब्दों का सुझाव करता है।इस कारण से प्रयोक्ता को लिपयंतरण स्कीम को याद नहीं रखना पड़्ता है जिससे पहली बार एवंशुरुआती हिंदी टाइप करने वालों के लिये काफी सुविधाजनक रहता है ।
आज चारों तरफ ‘डिजिटल भारत’ की बात हो रही है। प्रत्येक इंसान तक इन्टरनेट को पहुंचाने की चाहत रखने वाले महज 30 वर्षीय व्यक्ति व सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग के एजेंडे में भी गाँवों को डिजिटल दुनिया से जोड़ना प्रमुखता पा रहा है। हाल ही में (9-10 अक्टूबर 2014) दिल्ली में आयोजित ‘इंटरनेट ओआरजी समिट’ में उन्होंने कहा, “फेसबुक अपने कंटेंट को क्षेत्रीय भाषाओं में देने पर फोकस कर रहा है.”। यह ध्यातव्य है कि एक बिलियन यूजर्स में से फेसबुक के दूसरे सबसे बड़े मार्केट भारतहै जहाँ करीब 108 मिलियन एफ़बी यूजर्स हैं। मार्क जुकरबर्ग ने इस समिट में ‘कनेक्टिंग द अनकनेक्टेड’ अर्थात् ‘वैसे लोगों को इंटरनेट से जोड़ना जो इससे दूर तथा अनभिज्ञ हैं’ जैसा उद्देश्य रखते हुए पूरे समाज के लिए टेक्नोलॉजी की जरूरत बताई। यहाँ भी तकनीकी विकास में भाषायी एकता दिखती है। जब विभिन्न गाँव डिजिटल दुनिया से जुड़ेंगे तो वैश्विक व भारतीय परिक्षेत्र में विभिन्न गाँवों की विभिन्न भाषाएँ भी तकनीकी का हिस्सा होंगी और उनके बीच संप्रेषणीय आदान-प्रदान होगा जिसमें हम भाषायी एकता देख सकेंगे।
भाषायी परिप्रेक्ष्य में तकनीकी विकास की बात प्रिंटिंग प्रेस की बात के बिना अधूरी है। प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार ने सूचना एवं ज्ञान के प्रसार में क्रांति ला दी। वैसे तो विश्व की पहली प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी 11वीं सदी में चीन में विकसित हुई परंतु चलित प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी 13वीं सदी में ही विकसित हो सकी. उसके बाद जर्मनी के जोहानस गुटेनबर्ग द्वारा विकसित प्रिंटिंग प्रेस ने मुद्रण संसार नयी ऊर्जा दी। पुनर्जागरण काल के इस प्रेस के माध्यम से प्रतिदिन 3600 पृष्ठ तक की छपाई की जा सकती थी जो कि पिछली मशीनों की 2000 पृष्ठ प्रतिदिन की तुलना में काफी अधिक थी। पुनर्जागरण काल में हुए इस अनोखे आविष्कार ने जनसंचार (Mass Communication) की आधारशिला रखी। यूरोप में शिक्षा संपन्न एवं विशिष्ट लोगों की गोद से निकलकर जन सामान्य के बीच पहुंची और शिक्षित जनता की संख्या तीव्र गति से बढ़ी तथा मध्यवर्ग का उदय हुआ। पूरे यूरोप में अपनी संस्कृति के प्रति सजगता और राष्ट्रवाद की भावना के विकास के कारण उस समय के यूरोप की लिंगुआ फ्रैंका (लैटिन) की स्थिति कमजोर हुई तथा स्थानीय भाषाओं की स्थिति मजबूत हुई. प्राचीन और प्रतिष्ठित भाषाओं के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं को भी सम्मान मिला। भारत के मुद्रण इतिहास में श्रीरामपुर प्रेस का उल्लेखनीय योगदान है, जिसमें हिंदी अक्षरों को विकसित किया गया तथा मिशनरियों के प्रचार सामग्री के रूप में बाइबिल का हिंदी अनुवाद बड़े स्तर पर छापा गया। स्वाधीनता आंदोलन में विभिन्न भारतीय भाषाओं में समाचार-पत्र निकालने वाले ये प्रेस आंदोलनकारियों के बहुत बड़े हथियार थे जिनकी समाप्ति के लिए ब्रिटिश सरकार ने वर्नाकुलर प्रेस एक्ट जैसे कानून बनाए। ऐसा माना जाता है कि पहले भाषा का प्रयोग, उसके बाद लिपि एवं लेखन का प्रयोग एवं उसके बाद प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार गुणात्मक रूप से दुनिया के तीन सबसे बड़े आविष्कार हैं जिन्होंने ज्ञान एवं विद्या के प्रसार एवं विकास में भारी योगदान किया। इसी कड़ी में चौथा आविष्कार इंटरनेट को माना जाता है।
तकनीकी विकास शब्द जेहन में आते ही हमारा ध्यान इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति की ओर चला जाता है। यही वह दौर था जब मशीनों की वजह से इंसानों के जीवन और जीवन-शैली में व्यापक बदलाव आए। उत्पादन के सभी क्षेत्रों में मशीनों को विकसित किया जाने लगा और हमारी मशीनों पर निर्भरता बढ़ी। औद्योगिक क्रांति से उत्पादित माल के लिए बाजार की जरूरतों ने दुनिया भर के विभिन्न देशों के बीच की दूरियाँ कम कर दी जिसकी वजह से दुनिया भर की भाषाओं के लिए एक नया द्वार खुला। इसी दौरान 19वीं सदी की शुरुआत में कागज बनाने वाली मशीनों का आविष्कार हुआ जो भाषायी दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण थीं। इससे पूर्व लेखन के लिए प्रयुक्त होने वाले कागज का उत्पादन एक दुरूह कार्य था जिसमें वांछित गुणवत्ता प्राप्त करना काफी कठिन होता था। कागज उद्योग विकसित होने से लेखन और पठन का प्रचलन बढ़ा जो कि तमाम भाषाओं और साहित्य को अनंत काल तक लिखित रूप में सहेजने का माध्यम बना।
आधुनिक युग कंप्यूटर का युग है जिसने मनुष्य की कागज पर निर्भरता को काफी हद तक कम कर दिया है। कंप्यूटर के आगमन, प्रसार तथा इसपर हमारी बढ़ती निर्भरता ने कुछ समय तक के लिए भारत जैसी तीसरी दुनिया के देश के लिए स्थानीय भाषाओं के हास का संकट पैदा कर दिया था परंतु नित-नए तरीके से विकसित होते इस यंत्र ने ऐसी बाधाओं को पार कर लिया है और अब यह सभी भारतीय भाषाओं के प्रसार के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यम उपलब्ध करा रहा है। कंप्यूटर ने टाइपिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले टाइपराइटर को चलन से बाहर किया परंतु शुरुआत में यह स्थानीय भाषाओं के लिए सहज नहीं था। इस समस्या का समाधान यूनिकोड के आगमन से हुआ जिसने हिन्दी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भी कंप्यूटर पर काम करने के लिए आसान प्लेटफॉर्म निर्मित किया। इसके माध्यम से हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में ब्लॉग लिखे जाने लगे, जो कि अब तक केवल कंप्यूटर के आविष्कारक देशों की भाषाओं में लिखे जा रहे थे। आज हिंदी में अनेकों ब्लॉग लिखे और पढे जा रहे हैं, इतना ही नहीं समाचार पत्रों ने भी अब नियमित रूप से ब्लॉग छापने शुरू कर दिए हैं। यूनिकोड ने स्थानीय भाषाओं में टाइपिंग को आसान बनाकर इन्हें सोशल नेटवर्किंग साइट जैसे- ट्विटर, फेसबुक पर भी स्थापित कर दिया है।
निजी सैटेलाइट टीवी चैनलों के प्रसार ने भाषाई एकता को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनके फ्री टु एयर से डिश कनेकश्न और उसके बाद डाइरेक्ट टु होम तक के तकनीकी विकास ने जनता को उनकी भाषा में मनोरंजन व ज्ञान की पहुंच सुनिश्चित की है । यही बात रेडियो के निजी एफ़एम चैनलों के प्रसार एवं संचालन के साथ भी लागू होती है। आज भारत में 800 से ज्यादा टीवी चैनल और 250 तक एफ़एम चैनल उपलब्ध हैं । साथ ही ई समाचार-पत्रों के चलन ने पत्रकारिता को एक नया स्वरूप दिया है। आज अपनी मातृभाषा में समाचार-पत्र पढ़ने के लिए उस क्षेत्र विशेष में अनिवार्यतः उपस्थित रहना आवश्यक नहीं रहा। लगभग सभी प्रमुख समाचार-पत्रों के ई संस्करण इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। इनके अलावा हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में ई-बुक्स, ई-मैगजीन, ई-कॉमिक्स आदि का प्रसार भी काफी तेज गति से हो रहा है।
समेकित रूप से यह कहा जा सकता है कि आज हम तकनीकी युक्त वस्तुओं से चारों ओर से घिरे हुए हैं। तकनीकी विकास ने हमारी जीवन-शैली और समाज के ढांचे को भी प्रभावित किया है और भाषा भी इससे अछूती नहीं है।आज सूचना प्रौद्योगिकी की इस युग में हिंदी का महत्व पहले से अधिक हो गया है और यह महज राजकाज की संवैधानिक बाध्यता से निकलकर व्यवसायिक भाषा के रूप में उभर कर सामने आयी है ।
सुचना प्रौघोगिकी के क्षेत्र मे हिन्दी भाषा का महत्त्व पर निबंध
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