जैविक व अजैविक घटक क्या है
पारिस्थितिक तंत्र किसी स्थान विशेष पर उपस्थित विभिन्न जैविक तथा अजैविक कारकों से बनी ऐसी प्राकृतिक इकाई है जिसके विभिन्न कारक पारस्परिक क्रिया द्वारा एक स्थिर तंत्र का निर्माण करते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
इसमें जैविक तथा अजैविक कारकों के मध्य एक चक्रीय पक्ष द्वारा विभिन्न पदाथों का विनिमय होता है । पारिस्थितिक तंत्र विशाल तथा छोटा दोनों ही हो सकता है । ओडम के अनसुार ”पारिस्थितिक तत्र पारिस्थितिकी की एक आधारभूत इकाई है ।
जिसमें जैविक समुदाय तथा अजैविक पर्यावरण एक दूसरे को प्रभावित करते हुये पारस्परिक क्रियाओं द्वारा ऊर्जा तथा रासायनिक पदार्थो के निरन्तर प्रवाह से तत्र की कार्यात्मक गतिशीलता बनाये रखते है ।” पारिस्थितिक तंत्र की संरचना |
पारिस्थितिक तत्र निम्नलिखित दो घटकों का बना होता है:
(i) अजैविक घटक:
अजैविक घटक ये ऐसे घटक हैं जिनमें जीवन नहीं होता है और इनके अन्तर्गत निम्नलिखित कारक आते हैं:
1. भौतिक कारक
ADVERTISEMENTS:
2. रासायनिक कारक
1. भौतिक कारण:
वे सभी भौतिक कारक जो किसी न किसी रूप में जैविक क्रियाओं को प्रभावित करते हैं तथा भौतिक वातावरण का निर्माण करते है जैसे ताप, प्रकाश, वर्षा, आर्द्रता इत्यादि ।
2. रासायनिक कारक:
ADVERTISEMENTS:
ऐसे कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ जो पारिस्थितिक तत्र को पूर्ण करने में सहयोग प्रदान करते हैं । इनमें अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ सम्मिलित हैं ।
3. अकार्बनिक पदार्थ:
इसके अन्तर्गत जल तत्व, गैसें आती हैं । तत्वों में महापोषी तत्व जैसे कार्बन, हाइड्रोजन ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फासफोरस, सल्फर इत्यादि तथा सूक्ष्मपोषी तत्व में जिंक, मैंगनीज, कापर, बोरान इत्यादि है । गैसों में ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन कार्बनडाय-आक्साइड तथा अमोनिया सम्मिलित हैं ।
4. कार्बनिक पदार्थ:
ADVERTISEMENTS:
इन पदार्थो की जैविक तथा अजैविक घटकों में सम्बन्ध स्थापित करने में सहायता मिलती है । जैसे प्रोटीन्स, लिपिड्स, कार्बोहाइड्रेट्स ।
5. जैविक घटक:
किसी भी पारिस्थितिक तंत्र की पोषण रचना का ज्ञान जैविक घटकों से होता है । ये प्रकृति के कार्यात्मक खण्ड हैं । ये पोषण के प्रकार तथा ऊर्जा के स्त्रोत पर आधारित होते हैं ।
(ii) जैविक घटक:
जैविक घटकों को पोषण सम्बन्धों के आधार पर निम्न दो प्रकार में विभक्त किया गया है:
1. स्वपोषित घटक:
स्वपोषित घटक पारिस्थितिक तंत्र में स्वपोषित घटक, उत्पादक कहलाते हैं । स्वपोषिक घटक सौर ऊर्जा का स्थिरीकरण करके साधारण पदार्थो से जटिल पदार्थो का निर्माण करते है । इसके अन्तर्गत हरे पौधे, प्रकाश संश्लेषी जीवाणु तथा रसायन संश्लेषी जीवाणु आते है ।
2. परपोषित घटक:
ये घटक स्वपोषित घटकों द्वारा निर्मित जटिल यौगिकों का उपयोग पुनर्व्यवस्था तथा अपघटन करते हैं ।
इसीलिये इन्हें उपभोक्ता तथा अपघटनकर्ता दो श्रेणियों में रखा गया है:
(i) उपभोक्ता:
ऐसे जीव जो उत्पादकों द्वारा निर्मित भोज्य पदार्थो का उपभोग करते है, उपभोक्ता कहलाते हैं । खाद्य श्रंखला के क्रमानुसार ये शाकाहारी, मांसाहारी या सर्वाहारी होते हैं ।
ये उपभोक्ता भी निम्न तीन श्रेणियों में विभक्त किये गये हैं:
(a) प्राथमिक उपभोक्ता:
ये अपना भोजन सीधे उत्पादकों से प्राप्त करते हैं, तथा शाकाहारी होते हैं । जैसे कीट, चूहे, हिरण, खरगोश, बकरी इत्यादि ।
(b) द्वितीयक उपभोक्ता:
ये मांसाहारी अथवा सर्वाहारी होते हैं तथा अपना भोजन शाकाहारी जन्तुओं का शिकार कर प्राप्त करते हैं । जैसे मेंढक, मछलियां, पक्षी, भेड़िया इत्यादि ।
(c) तृतीयक उपभोक्ता:
ये मांसाहारी होते हैं तथा द्वितीयक श्रेणी के उपभोक्ताओं का भक्षण करते है । ये स्वयं शिकार नहीं बनते अत: ये उच्च उपभोक्ता भी कहलाते हैं । जैसे बड़ी मछलियां, बाज, चील, शेर, अजगर, मनुष्य तृतीयक उपभोक्ता की श्रेणी मे आते हैं ।
(ii) अपघटनकर्ता:
ये मृतोपजीवी होते हैं जैसे: जीवाणु एक्टिनोमाइसिटीज तथा कवक । ये जीवद्रव्य तथा मृत जीवों के जटिल यौगिकों को अपघटित कर सरल घटकों में तोड़ देते हैं । इस सरल पदार्थ का कुछ भाग अपघटनकर्ताओं द्वारा पुन: अवशोषित कर लिया जाता है तथा शेष वातावरण में पुनर्चक्रण के लिये छोड़ दिया जाता है । अपघटनकर्ताओं को लघु उपभोक्ता के रूप में भी मान्यता दी गई है ।
A. मृदा, वायु तथा जल में प्रदूषण फैलाने वाले कारकों का अध्ययन:
प्रदूषण, वायु, भूमि एवं जल की भौतिक रासायनिक एवं जैविक विशेषताओं में होने वाला वह अवांछनीय परिवर्तन है जो मानव जीवन को वांछित प्रजातियों की औद्योगिक प्रक्रियाओं को, जीवन दशाओं को एवं सांस्कृतिक सम्पदाओं को हानिकारक रूप में प्रभावित करता है । प्रदूषण का मूल कारण मानव है । प्राय: मानव एवं जन्तुओं के अपशिष्टों के कारण प्रदूषण होता है ।
1. वायु प्रदूषण:
पृथ्वी के चारों ओर वायुमण्डल का सुरक्षात्मक आवरण पाया जाता है । जो कवच जैसा कार्य करता है । यदि वायु मण्डल दूषित होगा या वायु प्रदूषण होगा तो हमारा जीवन खतरे में है ।
वायु प्रदूषण के कारण:
वायुमण्डल में वायु प्रदूषण के निम्न प्रमुख कारण हैं:
(i) जीवाश्म ईधन का प्रयोग
(ii) उद्योग
(iii) कारखाने
(iv) जंगली आग
(v) पेट्रोल, डीजल, मिट्टी के तेल के, प्रयोग उपरान्त धुआं ।
(vi) कार्बन डाय ऑक्साइड
(vii) सल्फर डाय ऑक्साइड
(viii) तापिय बिजली घरों के कारण
(ix) सभी प्रकार के मिलों द्वारा छोड़े गये धुएं से
(x) कीटनाशक कारखाने इत्यादि
(xi) एयरोसोल
(xii) फोटो केमिकल स्मोग
(xiii) अम्ल वर्षा
इत्यादि कारक वायु को प्रदूषित कर वायु प्रदूषण पैदा करते हैं ।
2. जल प्रदूषण:
जल में किसी पदार्थ के मिलाने अथवा किसी भी प्रकार से जल के भौतिक एवं रासायनिक लक्षणों में ऐसा परिवर्तन करना, जिससे जल की उपयोगिता प्रभावित हो, जल प्रदूषण कहलाता है । ऐसा कहा जाता है कि जल ही जीवन है ।
कई ऐसे कारक हैं जो जल प्रदूषण फैलाते हैं जैसे:
(i) वाहित मल
(ii) औद्योगिक बहि:स्त्रावी पदार्थ
(iii) कृषि विसर्जित पदार्थ
(iv) भौतिक प्रदूषण
(v) जल में उतराने (Floating) वाले अपशिष्ट पदार्थ जैसे: कचरा, कागज आदि ।
(vi) रसायन, कीटनाशक ।
3. मृदा प्रदूषण:
धरती की ऊपरी परत प्राय: जीवन का संभरण करने के उपयोग में आती है । मृदा कहलाती है । ऐसे सभी पदार्थ जो मृदा तंत्र का हिस्सा न हो और जो मृदा की उत्पादकता को हानिकारक रूप से प्रभावित करते हैं, मृदा प्रदूषक कहलाते हैं । और मृदा प्रदूषण हो जाता है ।
मृदा प्रदूषण फैलाने में निम्नलिखित कारकों का हाथ होता है:
(i) रासायनिक उर्वरक
(ii) पीड़कनाशी
(iii) ठोस अपशिष्ट
(iv) मृदा लवणीयता
मृदा प्रदूषण से मृदा उर्वरकता का क्षरण हो जाता है ।
B. मृदा-मृदा के भौतिक एवं रासायनिक गुण, पी.एच. एवं जल रोधक क्षमता का अध्ययन:
परिचय:
सामान्य रूप से शैलों के विघटन तथा वियोजन से प्राप्त होने एवं संगठित भूपदार्थो को मृदा (मिट्टी) कहते हैं । मृदा वास्तव में जैवमंडल का प्रमुख भाग है जिसमें पौधों के पोषक तत्वों का उत्पादन एवं रखरखाव होता है तथा ये पोषक तत्व पौधों को उनकी जड़ों के माध्यम से सुलभ होते हैं ।
इस तरह मृदा-तंत्र जैवमंडल में ऊर्जा के स्थानान्तरण मार्ग, पोषक तत्वों के परिवहन, संचरण एवं चक्रण के लिए महत्वपूर्ण होता है । मृदा की बनावट एवं संगठन के आधार पर इसकी अनेक विशेषताएं होती है ।
मृदा के भौतिक गुण:
प्रयोग:
मृदा के भौतिक गुणों का अवलोकन विभिन्न प्रकार की मृदा एकत्रित करके किया जाता है । मृदा के रंगों के पहचान के लिए विभिन्न स्थानों जैसे खेल मैदान, नदी के किनारे, बगीचे आदि के नमूने एकत्रित करें तथा इन नमूनों को एक कार्डशीट पर एक जैसा फैला लें ।
इन मिट्टी के कणों की साइज नापकर एवं रंगों का अवलोकन करें तथा जानकारी नोट करें ।
कणों की साइज के आधार पर मृदा कणों को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है:
मृदा कणों का व्यास (मि.मी.) मृदा कणों का नाम:
मृदा को पालिथिन गैस में थोडी सी मात्रा में एकत्र करें । मृदा कणों के व्यास नापने के लिए अलग-अलग साइज की छोटी परखनलियों अथवा स्केल का उपयोग करें ।
मृदा के रासायनिक गुण:
(i) मृदा में कार्बोनेट को उपस्थिति ज्ञात करना:
प्रयोग:
सर्वप्रथम विभिन्न प्रकार की थोडी सी मृदा अलग-अलग परखनली में लें । इन परखनलियों में थोड़ा सा तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (Dil HCI) डालें तथा निकलने वाले बुलबुलों की तीव्रता ज्ञात करें । यह तीव्रता अलग-अलग नमूनों में दर्शाई गई टेबिल के अनुसार नोट करें ।
नोट:
उपरोक्त प्रयोग मृदा घोल तैयार करके भी किया जा सकता है । मृदा घोल तैयार करने के लिए 10 ग्राम मृदा को 50 मि.मी. जल में डालकर घोल तैयार करें तथा इस घोल को फिल्टर पेपर से छान लें ।
इस मृदा घोल को विभिन्न परीक्षणों में उपयोग कर सकते हैं तथा परीक्षण के लिए 20 मिमी. मृदा घोल का उपयोग करें । (मृदा 1 भाग: 5 भाग जल)
(ii) मृदा में नाइट्रेट की उपस्थिति ज्ञात करना:
प्रयोग:
प्रयोगशाला में अलग-अलग नमूनों के मृदा घोल (लगभग 20 मि.ली.) परखनलियों में लेकर उसमें 2-3 बूंद डाइफिनाइल अमीन की डालें । परखनली को हिला ले तथा अब सावधानीपूर्वक 2 बूंद सान्द्र सल्फ्यूरिक एसिड डालें । मृदा घोल में नीले रंग की तीव्रता का अवलोकन कर टेबिल अनुसार नोट करें । नीले रंग की गहराई अथवा तीव्रता मृदा में नाइट्रेट की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति प्रदर्शित करती है ।
(iii) मृदा का पी.एच. ज्ञात करना:
मृदा के घोल के विभिन्न नमूनों को लेकर (20-25 मि.ली.) इसमें थोड़ा सा बेरियम क्लोराइड घोल डालें । उसे थोड़ी देर रखा रहने दें । अब इसमें 2-3 बूंद यूनिवर्सल इंडीकेटर डालें । मृदा घोल के रंग परिवर्तन का अवलोकन करें तथा यूनिवर्सल इंडीकेटर में दिये गये चार्ट से उपस्थित रंग का मिलान कर पी.एच. नोट करें ।
(iv) मृदा की जल रोधक क्षमता ज्ञात करना:
मृदा के अलग-अलग नमूनों को एक जैसी परखनलियों में डालें । अब इन परखनलियों में थोड़ा सा जल डालें तथा अवलोकन करें । अवलोकन करने पर ज्ञात होगा कि जिस मृदा के कण छोटे एवं सघन होंगे उनमें जल रोधक क्षमता अधिक होगी तथा मृदा के कण यदि बड़े एवं ढीले होंगे उनमें जल रोधक क्षमता कम होगी ।
C. जल-जल पी.एच. तथा जल में उपस्थित लवणों का परीक्षण:
परिचय:
जल ही जीवन का आधार है । जैविक प्रक्रियाओं को सुचारु रूप से चलाने के लिए जल अत्यंत आवश्यक है । जल के कई भौतिक एव रासायनिक गुण होते हैं ।
(i) जल का पीएच ज्ञात करना:
प्रयोग:
जल के पी.एच. परीक्षण का करने के लिए अलग-अलग नमूने जैसे नदी का जल, पोखर, तालाब का जल, घर की टंकी का जल, किसी स्थान का गंदा जल । परखनलियों में थोड़ा सा जल लेकर इसमें यूनीवर्सल इंडीकेटर की 2-3 बूंद डालें ।
जल के रंग में होने वाले परिवर्तन का मिलान यूनीवर्सल इंडीकेटर के चार्ट से करें तथा जल की अम्लीयता / क्षारीयता / उदासीनता को नोट करें । सामान्य जल का पी.एच. 7-0 होता है तथा 70 से कम आम्लीयता, 7-0 से ऊपर क्षारीयता को प्रदर्शित करता है । (उदाहरण के रूप में)
(ii) जल में कार्बोनेट की उपस्थिति ज्ञात करना:
प्रयोग:
उपरोक्त विवरण के अनुसार जल के अलग-अलग नमूने एकत्र करें । इन नमूनों को (20-25 मि.ली.) परखनलियों में लेकर इसमें तनु हाइड्रोक्लोरिक एसिड (Dil-HCI) की कुछ बूंदें सावधानीपूर्वक डालिए । इसके बाद परखनलियों में निकलने वाले बुलबुलों का अवलोकन करें । बुलबुलों की तीव्रता के आधार जल में कार्बोनेट की उपस्थिति नोट करें ।
(iii) जल में नाइट्रेट की उपस्थिति ज्ञात करना:
प्रयोग:
उपरोक्त अनुसार परखनलियों में जल के अलग-अलग नमूने लेकर उसमें 2-3 बूंद डाइफिनाइल अमीन की डालें । जल में होने वाले रग परिवर्तन का अवलोकन करें । जल का रंग नीला दिखाई देगा । नीले रंग की तीव्रता के आधार पर नाइट्रेट की उपस्थिति नोट करें ।
(iv) जल में सल्फेट की उपस्थिति ज्ञात करना:
प्रयोग:
जल के अलग-अलग नमूनों को परखनलियों में लेकर इसमें तनु हाइड्रोक्लोरिक ऐसिड की 2-3 बूंद सावधानीपूर्वक डालें । परखनली को स्पिट लैंप अथवा बर्नर की सहायता से थोड़ा सा गर्म करें । अब इसमें 2-3 बूंद बेरियम क्लोराइड घोल डालें । सफेद अवक्षेप दिखाई देगा तथा इसकी तीव्रता के आधार पर सल्फेट की उपस्थिति नोट करें ।
(v) जल में क्लोराइड की उपस्थिति ज्ञात करना:
प्रयोग:
जल के अलग-अलग नमूनों को परखनलियों के लेकर इसमें 2-3 बूदें सिल्वर नाइट्रेट घोल की डालें । सफेद अवक्षेप की तीव्रता के आधार पर क्लोराइड की उपस्थिति नोट करें ।
D. वायु-वायु में उपस्थित सूक्ष्मकण का अध्ययन:
परिचय:
वायु में अनेक सूक्ष्मकण तैरते रहते है । अलग-अलग स्थानों में ये सूक्ष्मकण, अलग-अलग मात्रा में विभिन्न होते हैं । औद्योगिक क्षेत्र, खुले मैदान, सघन यातायात के मार्ग, खेतों आदि के सूक्ष्मकणों में विभिन्नता होती है । ये सूक्ष्मकण धूल के कण, धुएं की राख, परागकण आदि के रूप में पाये जाते है ।
प्रयोग:
उपरोक्त अलग-अलग क्षेत्रों में काँच की एक पट्टी अथवा स्लाइड पर ग्लिसरीन की 2-3 बूंद डालकर करीब 30 मिनट रखा रहने दें । अब ब्रुश की सहायता से ग्लिसरीन को फैला लें तथा आवर्धक अथवा क्ष्मदर्शी से अवलोकन कर जानकारी नोट करें । औद्योगिक क्षेत्र एवं यातायात के मार्गो पर वायु में सूक्ष्मकणों की उपस्थिति खुले मैदान अथवा कृषि क्षेत्र की अपेक्षा अधिक होगी ।
Bfjfif
जैविक घटक और अजैविक घटक अन्तर
वायु क्या है इसकी जैविक एवं अजैविक प्रदूषक ओं का वर्णन कीजिए
CH3COOH ka IUPAC Name likhia?
CH3COOH ka IUPAC name lihkiye
कौन कौन से जैवज व अजैविक घातक हैं?
Jaivik aur ajaivik ghatak me sambangh batiste
Paryabaran ke jaivik or ajaivik ghatak me nirbharta.
Bacteria क्या अजैविक घटक या जैविक घटक होता है?
Which among the following is not abiotic component of the environment? 1 air 2 soil 3 water 4 plant
किस प्रकार जैविक व अजैविक को किस प्रकार उपयोगी बनाया जा सकता है।
अपने आस पास के परिवारो से उनके द्वारा पालिथीन के
उपयोग संबंधी जानकारी प्राप्त कर इसके उपयोग को समाप्त करने के लिए किए जा रहे प्रयासो का अध्ययन करना?
आप यहाँ पर gk, question answers, general knowledge, सामान्य ज्ञान, questions in hindi, notes in hindi, pdf in hindi आदि विषय पर अपने जवाब दे सकते हैं।
नीचे दिए गए विषय पर सवाल जवाब के लिए टॉपिक के लिंक पर क्लिक करें
Culture
Current affairs
International Relations
Security and Defence
Social Issues
English Antonyms
English Language
English Related Words
English Vocabulary
Ethics and Values
Geography
Geography - india
Geography -physical
Geography-world
River
Gk
GK in Hindi (Samanya Gyan)
Hindi language
History
History - ancient
History - medieval
History - modern
History-world
Age
Aptitude- Ratio
Aptitude-hindi
Aptitude-Number System
Aptitude-speed and distance
Aptitude-Time and works
Area
Art and Culture
Average
Decimal
Geometry
Interest
L.C.M.and H.C.F
Mixture
Number systems
Partnership
Percentage
Pipe and Tanki
Profit and loss
Ratio
Series
Simplification
Time and distance
Train
Trigonometry
Volume
Work and time
Biology
Chemistry
Science
Science and Technology
Chattishgarh
Delhi
Gujarat
Haryana
Jharkhand
Jharkhand GK
Madhya Pradesh
Maharashtra
Rajasthan
States
Uttar Pradesh
Uttarakhand
Bihar
Computer Knowledge
Economy
Indian culture
Physics
Polity
इस टॉपिक पर कोई भी जवाब प्राप्त नहीं हुए हैं क्योंकि यह हाल ही में जोड़ा गया है। आप इस पर कमेन्ट कर चर्चा की शुरुआत कर सकते हैं।