भारत की बंजर और भूमि क्षरण एटलस के अनुसार इसरो 2007 राजस्थान में रेगिस्तान के तहत कुल क्षेत्रफल है
हमारे देश में कृषि की पैदावार के लिए मरुस्थलीय एवं भू-अपक्षयन मुख्य बाधाएं हैं। मरुस्थलीकरण एवं भू-अपक्षयन से जूझना, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा विनिर्दिष्ट मुख्य क्षेत्र है। 19 संबंधित भागीदार संस्थाओं के साथ , इसरो, अहमदाबाद ने भौगोलिक सूचना प्रणाली (जी.आई.एस.) पर्यावरण में भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आई.आर.एस.) के आंकड़े का उपयोग कर समूचे देश के लिए मरुस्थलीकरण की सूची तैयार कर मॉनीटरन किया है।राजस्थान के 58 प्रतिशत क्षेत्र में अलग-अलग तरह के रेतीले टीले पाए जाते हैं। इन्हें पुरानी और नई दो श्रेणियों के अन्तर्गत रखा जाता है। बारचन और श्रब कापिस टीले नए टीलों की श्रेणी में आते हैं और सबसे अधिक समस्या वाले हैं। अन्य रेतीले टीले पुरानी श्रेणी के हैं और फिर से सक्रिय होने के विभिन्न चरणों में हैं। केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान ने अब रेतीले टीलों को स्थिर बनाने के लिए उपयुक्त टेक्नोलॉजी विकसित की है जिसमें ये बातें शामिल हैं: (1) जैव-हस्तक्षेप से रेतीले टीलों का संरक्षण; (2) टीलों के आधार से शीर्ष तक समानांतर या शतरंज की बिसात के नमूने पर वायु अवरोधकों का विकास; (3) वायु-अवरोधकों के बीच घास और बेल आदि के बीजों का रोपण तथा 5×5 मीटर के अंतर से नर्सरी में उगाए पौधों का रोपण। इसके लिए सबसे उपयुक्त पेड़ और घास की प्रजातियों में इस्राइली बबूल (प्रासोफिस जूलीफ्लोरा), फोग (कैलीगोनम पोलीगोनोइड्स), मोपने (कोलोफोस्पर्नम मोपने), गुंडी (कोर्डिया मायक्सा), सेवान (लासिउरस सिंडिकस), घामन (सेंक्रस सेटिजेरस) और तुम्बा (साइट्रलस कोलोसिंथिस) शामिल हैं।
इसरो संबंधित मानचित्र एवं विशिष्ट लक्षणों को एटलस के रूप में संकलित किया गया, जिसे पर्यावरण, वन एवं जल वायु परिवर्तन मंत्रालय तथा जोधपुर, राजस्थान स्थित शुष्क क्षेत्र वन अनुसंधान संस्था (ए.एफ.आर.आई.) द्वारा संयुक्त रूप से 17 जून, 2016 को “विश्व मरुस्थलीकरण विरोध दिवस” के अवसर पर विमोचित किया गया।
इस एटलस में भूमि उपयोग अपक्षयन की प्रक्रिया तथा गंभीरता के स्तर को दर्शाती राज्यवार मरुस्थलीकरण एवं भू-अपक्षयन की स्थिति के मानचित्र दर्शाये गए हैं। इसे जी.आई.एस. पर्यावरण में 2011-13 एवं 2003-05 की समयावधि में आई.आर.एस. उन्नत व्यापक क्षेत्र संवेदन (एविफ्स) के आंकड़े का उपयोग करते हुए तैयार किया गया है। दोनों समयावधियों तथा परिवर्तनों के लिए राज्य-वार तथा समूचे देश के लिए मरुस्थलीकरण/भू-अपक्षयन के अधीन क्षेत्र दर्शाये गए हैं। मरुस्थलीकरण तथा भू-अपक्षयन के प्रभाव को कम करने हेतु क्षेत्रों को प्राथमिकता देने में ये परिणाम उपयोगी हैं।
यह ध्यान रहे कि भारत मरुस्थलीकरण से जूझने हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ का हस्ताक्षरकर्ता है। देश मरुस्थलीकरण एवं भू-अपक्षयन से जूझने के लिए कटिबद्ध है और वर्ष 2030 तक भू-अपक्षयन की तटस्थ स्थिति प्राप्त करने के लिए अभिप्रेत है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय यू.एन.सी.सी.डी. के कार्यान्वयन हेतु नोडल मंत्रालय है। भारत की मरुस्थलीकरण एवं भू-अपक्षयन स्थिति यू.एन.सी.सी.डी. को दी गई भारत की रिपोर्ट महत्वपूर्ण योगदान है। इसके अलावा, संबंधित नीति निर्माता, क्षेत्रीय योजना बनाने वाले तथा अनुसंधानकर्ता भी इस एटलस का तुरंत संदर्भ के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
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