शैक्षिक तकनीकी का महत्व
विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में नए अविष्कारों ने लोगों की दैनिक जीवन-शैली को आधुनिक और उन्नत बनाने में महान भूमिका निभाई है। विद्यार्थियों को वर्तमान से जोड़े रखने और नए अविष्कारों के बारे में उनके सामान्य ज्ञान का परीक्षण करने के लिए, उन्हें विज्ञान और तकनीकी के विषय पर निबंध लिखने को दिया जा सकता है। हम यहाँ विद्यार्थियों की निबंध प्रतियोगिता में बेहतर निबंध लिखने में मदद करने के उद्देश्य से विज्ञान और तकनीकी पर कुछ सरल और आसान निबंध उपलब्ध करा रहे हैं।
विज्ञान और तकनीकी पर निबंध (साइंस एंड टेक्नोलॉजी एस्से)
Find here essay on science and technology in Hindi language in 100, 150, 200, 250, 300, and 400 words.
विज्ञान और तकनीकी पर निबंध 1 (100 शब्द)
बहुत से क्षेत्रों में विज्ञान और तकनीकी की उन्नति ने लोगों के जीवन को प्राचीन समय से अधिक उन्नत बना दिया है। विज्ञान और तकनीकी की उन्नति ने एक तरफ लोगों की जीवन-शैली को प्रत्यक्ष और सकारात्मक रुप से प्रभावित किया है हालांकि, दूसरी ओर इसने लोगों के स्वास्थ्य पर अप्रत्यक्ष और नकारात्मक प्रभाव भी डाला है। इस आधुनिक दुनिया में एक देश के लिए दूसरे देशों से मजबूत, ताकतवर और अच्छी तरह से विकसित होने के लिए विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में नए अविष्कार करना बहुत आवश्यक है। इस प्रतियोगी समाज में, हमें आगे बढ़ने और जीवन में सफल व्यक्ति बनने के लिए अधिक तकनीकियों की जरुरत है।
विज्ञान और तकनीकी
विज्ञान और तकनीकी पर निबंध 2 (150 शब्द)
विकास, चाहे वो देश का हो या फिर व्यक्ति का, यह बहुत तरीकों से तकनीकियों की उचित वृद्धि और विकास से जुड़ा हुआ है। तकनीकी उन्नति वहाँ होती है, जहाँ विज्ञान में उच्च कौशल और पेशेवर वैज्ञानिकों के द्वारा नए अविष्कार होते हैं। हम यह कह सकते हैं कि तकनीकी, विज्ञान और विकास में एक दूसरे की समान भागीदारी है। विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में विकास किसी भी देश के लोगों के लिए दूसरे देश के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए बहुत अधिक आवश्यक है। विज्ञान और तकनीकी का विकास तथ्यों के विशलेषण और उचित समझ पर निर्भर करता है। प्रौद्योगिकी का विकास सही दिशा में विभिन्न वैज्ञानिक ज्ञान के आवेदन के तरीकों पर निर्भर करता है।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और लोगों के जीवन को बेहतर करने के लिए, नवीनतम ज्ञान, प्रौद्योगिकी, विज्ञान और अभियंता (इंजीनियरिंग) आवश्यक मौलिक वस्तुएं हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अभाव में एक देश पिछड़ जाता है और उसके विकसित करने की संभावनाएं कम से कम हो सकती हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर निबंध 3 (200 शब्द)
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि, हम विज्ञान और तकनीकी के समय में रह रहे हैं। हम सभी का जीवन वैज्ञानिक अविष्कारों और आधुनिक समय की तकनीकियों पर बहुत अधिक निर्भर है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने लोगों के जीवन को बड़े स्तर पर प्रभावित किया है। इसने जीवन को आसान, सरल और तेज बना दिया है। नए युग में, विज्ञान का विकास बैलगाड़ी के युग को समाप्त करके मोटर चलित वाहनों की प्रवृत्ति लाने के लिए बहुत अधिक आवश्यक हो गया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधुनिकीकरण के हर पहलू को प्रत्येक राष्ट्र में लागू किया गया है। जीवन के हरेक क्षेत्र को सही ढ़ंग से संचालित करने और लगभग सभी समस्याओं को सुलझाने के लिए आधुनिक उपकरणों की खोज की गई है। इसे चिकित्सा, शिक्षा, बुनियादी ढांचा, उर्जा निर्माण, सूचना प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों में लागू किए बिना सभी लाभों को प्राप्त करना संभव नहीं था।
हमने अपने दैनिक जीवन में जो कुछ भी सुधार देखे हैं, वो सब केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के कारण है। देश के उचित विकास और वृद्धि के लिए, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का साथ-साथ चलना बहुत आवश्यक है। गाँव अब कस्बों के रुप में और कस्बें शहरों के रुप में विकसित हो रहे हैं और इस प्रकार से अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों में भी विकास हुआ है। हमारा देश भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दृष्टि से तेजी से विकास करता हुआ देश है।
विज्ञान और तकनीकी (प्रौद्योगिकी) पर निबंध 4 (250 शब्द)
समाज में विज्ञान और तकनीकी वाद-विवाद का विषय बन गए हैं। एक तरफ तो यह अधुनिक जीवन के लिए आवश्यक है, जहाँ अन्य देश तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में निरंतर विकास कर रहे हैं, वहीं यह अन्य देशों के लिए भी आवश्यक हो जाता है कि, वे भी इसी तरह से भविष्य में सुरक्षा के लिए ताकतवर और अच्छी तरह से विकसित होने के लिए वैज्ञानिक विकास बहुत अधिक जरुरी हो गया है। ये विज्ञान और प्रौद्योगिकी ही है, जिन्होंने अन्य कमजोर देशों को भी विकसित और ताकतवर बनने में मदद की है। मानवता के भले के लिए और जीवन के सुधार के लिए हमें हमेशा विज्ञान और प्रौद्योगिकी की मदद लेनी होगी। यदि हम तकनीकियों की मदद नहीं लेते जैसे- कम्प्यूटर, इंटरनेट, विजली, आदि तो हम भविष्य में कभी भी आर्थिक रुप से मजबूत नहीं होगें और हमेशा पिछड़े हुए ही रहेगें यहाँ तक कि, हम इस प्रतियोगी और तकनीकी संसार में जीवित भी नहीं रह सकते हैं।
चिकित्सा, शिक्षा, अर्थव्यवस्था, खेल, नौकरियाँ, पर्यटन आदि विज्ञान और प्रौद्योगिकियों के उदाहरण है। ये सभी उन्नति हमें दिखाती हैं कि, कैसे दोनों हमारे जीवन के लिए समानरुप से आवश्यक है। हम अपनी जीवन-शैली में प्राचीन समय के जीवन के तरीकों और आधुनिक समय के जीवन के तरीकों की तुलना करके स्पष्ट रुप में अन्तर देख सकते हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में उच्च स्तर की वैज्ञानिक और तकनीकी उन्नति ने बहुत सी खतनाक बीमारियों के इलाज को सरल बना दिया है जो पहले संभव नहीं था। यह बीमारी का इलाज दवाईयों और ऑपरेशन के माध्यम से करने में चिकित्सकों (डॉक्टरों) की प्रभावी ढ़ंग से मदद करने के साथ ही भंयकर बीमारियों, जैसे- कैंसर, एड्स, मधुमेह (डायबीटिज़), एलज़ाइमर, लकवा आदि के टीकों के शोध में भी मदद करता है।
विज्ञान और तकनीकी पर निबंध 5 (300 शब्द)
विज्ञान और तकनीकी का लोगों के जीवन में लागू करना बहुत ही पुराना तरीका है, जो सिंधु घाटी सभ्यता के समय से प्रचलन में है। यह पाया गया है कि, आग और पहिये की खोज करने के लिए लगभग पाँच अविष्कार किए गए थे। दोनों ही अविष्कारों को वर्तमान समय के सभी तकनीकी अविष्कारों का जनक कहा जाता है। आग के अविष्कार के माध्यम से लोगों ने ऊर्जां की शक्ति के बारे में पहली बार जाना था। तभी से, लोगों में रुचि बढ़ी और उन्होंने जीवन-शैली को सरल और आसान बनाने के लिए बहुत से साधनों पर शोध के और अधिक कठिन प्रयास करने शुरु कर दिए।
भारत प्राचीन समय से ही पूरे संसार में सबसे अधिक प्रसिद्ध देश है हालांकि, इसकी गुलामी के बाद, इसने अपनी पहचान और ताकत को खो दिया था। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, इसने भीड़ में अपनी खोई हुई ताकत और पहचान को दुबारा से प्राप्त करना शुरु कर दिया है। वो विज्ञान और प्रौद्योगिकी ही थे, जिन्होंने पूरे विश्व में भारत को अपनी वास्तविक पहचान को प्रदान किया है। भारत अब विज्ञान और उन्नत तकनीकी के क्षेत्र में अपने नए अविष्कारों के माध्यम से तेजी से विकास करने वाला देश बन गया है। विज्ञान और तकनीकी आधुनिक लोगों की आवश्यकता और जरुरतों को पूरा करने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
तकनीकी में उन्नति के कुछ उदाहरण, रेलवे प्रणाली की स्थापना, मैट्रो की स्थापना, रेलवे आरक्षण प्रणाली, इंटरनेट, सुपर कम्प्यूटर, मोबाइल, स्मार्ट फोन, लगभग सभी क्षेत्रों में लोगों की ऑलाइन पहुँच, आदि है। भारत की सरकार बेहतर तकनीकी विकास के साथ ही देश में विकास के लिए अंतरिक्ष संगठन, और कई शैक्षणिक संस्थाओं (विज्ञान में उन्नति के लिए भारतीय संगठन) में अधिक अवसरों का निर्माण कर रही है। भारत के कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिक जिन्होंने भारत में (विभिन्न क्षेत्रों में अपने उल्लेखनीय वैज्ञानिक शोध के माध्यम से) तकनीकी उन्नति को संभव बना दिया, उनमें से कुछ सर जे.सी. बोस, एस.एन. बोस, सी.वी. रमन, डॉ. होमी जे. भाभा, श्रीनिवास रामानुजन, परमाणु ऊर्जा के जनक डॉ. हर गोबिंद सिंह खुराना, विक्रम साराभाई आदि है।
विज्ञान और तकनीकी पर निबंध 6 (400 शब्द)
विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधुनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसने मानव सभ्यता को गहराई में जाकर प्रभावित किया है। आधुनिक जीवन में तकनीकी उन्नति ने पूरे संसार में हमें बहुत अधिक उल्लेखनीय अंतर्दृष्टि दी है। वैज्ञानिक क्रान्तियों ने 20वीं शताब्दी में अपनी पूरी गति पकड़ी और 21वीं सदी में और भी अधिक उन्नत हो गई। हमने नए तरीके और लोगों के भले के लिए सभी व्यवस्थाओं के साथ नई सदी में प्रवेश किया है। आधुनिक संस्कृति और सभ्यता विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर निर्भर हो गई है क्योंकि वे लोगों की जरुरत और आवश्यकता के अनुसार जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं।
भारत रचनात्मक और मूलभूत वैज्ञानिक विकास और सभी दृष्टिकोणों में दुनिया भर में का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। सभी महान वैज्ञानिक खोजों और तकनीकी उपलब्धियों ने हमारे देश में भारतीय आर्थिक स्थिति को सुधारा है और तकनीकी रूप से उन्नत वातावरण को विकसित करने के लिए नई पीढ़ी के लिए कई नए तरीकों का निर्माण किया है। गणित, आर्किटेक्चर, रसायन विज्ञान, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, धातुकर्म, प्राकृतिक दर्शन, भौतिक विज्ञान, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, फार्मास्यूटिकल्स, खगोल भौतिकी, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, आवेदन, रक्षा आदि के क्षेत्र में कई नए वैज्ञानिक शोध और विकास संभव हो गए हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में वैज्ञानिक शोध, विचारों और तकनीकों का परिचय नई पीढ़ी में बड़े स्तर पर सकारात्मक परिवर्तन लाया है और उन्हें अपने स्वयं के हित में काम करने के लिए नए और अभिनव के अवसरों की विविधता प्रदान की है। भारत में आधुनिक विज्ञान ने लोगों को वैज्ञानिकों ने अपने निरंतर और कठिन प्रयासों से जागृत कर दिया है। भारत के वैज्ञानिक महान है, जिन्होंने उच्चतम अंतर्राष्ट्रीय कैलिबर की वैज्ञानिक प्रगति को संभव किया है।
किसी भी क्षेत्र में तकनीकी विकास किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाता है। भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की शक्ति में सुधार के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1942 में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद और 1940 में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान के बोर्ड का निर्माण किया। देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास पर जोर देने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान संस्थानों की एक श्रृंखला स्थापित की है।
आजादी के बाद, देश के राष्ट्रीय विकास के लिए हमारे देश ने विज्ञान के प्रसार और विस्तार को बढ़ावा देना शुरु किया है। सरकार द्वारा बनाई गई विभिन्न नीतियों ने पूरे देश में आत्मनिर्भरता और टिकाऊ विकास और वृद्धि पर जोर दिया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी दोनों ने ही देश में असाधारण ढंग से आर्थिक विकास और सामाजिक विकास पर असर डाला है।
तकनीकी शिक्षा कुशल जन शक्ति का सृजन कर, औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाकर और लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करके देश के मानव संसाधन विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। तकनीकी शिक्षा में इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, वास्तुकला, नगर योजना, फार्मेसी, अनुप्रयुक्त कला एवं शिल्प, होटल प्रबंधन और केटरिंग प्रौद्योगिकी के कार्यक्रमों को शामिल किया गया हैं।
तकनीकी शिक्षा – एक ऐतिहासिक परिपेक्ष्य
आजादी से पूर्व इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी शिक्षा
तकनीकी प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना भारत के ब्रिटिश शासकों के समय सार्वजनिक भवनों, सड़कों, नहरों और बंदरगाहों के निर्माण और रखरखाव के लिए ओवरसियर के प्रशिक्षण तथा थल सेना, नेवी एवं सर्वेक्षण विभाग के लिए उपकरणों के प्रयोग के लिए शिल्पकारों एवं कलाकारों के प्रशिक्षण की आवश्यकता के कारण महसूस की गई। अधीक्षण अभियंताओं की भर्ती मुख्य तौर पर ब्रिटेन के कूपरहिल कॉलेज से की जाती थी और यही प्रक्रिया फोरमेन और शिल्पकारों के लिए अपनाई जाती थी परंतु यह प्रक्रिया निम्न ग्रेड – शिल्पकार, कलाकार और उप-निरीक्षक, जो स्थानीय रूप से भर्ती किए जाते थे, के मामलों में नहीं अपनाई जाती थी। इनको पढ़ने, लिखने, गणित, रेखागणित और मैकेनिक्स में अधिक कुशल बनाने की आवश्यकता के कारण आयुध कारखानों और अन्य इंजीनिरिंग स्थापनाओं से जुड़े हुए औद्योगिक स्कूलों की स्थापना की गई।
जबकि यह कहा जाता है कि 1825 से पूर्व भी कलकत्ता और बम्बई में ऐसे स्कूल थे, परंतु हमारे पास प्रथम प्रमाणिक जानकारी वर्ष 1842 में गन कैरेज फैक्ट्ररी के नजदीक गुइंडी, मद्रास में एक औद्योगिक स्कूल स्थापित किए जाने के संबंध में है। ओवरसीयर के प्रशिक्षण के लिए वर्ष 1854 में एक प्रशिक्षण स्कूल की जानकारी भी मिलती है।
इसी दौरान यूरोप और अमेरिका में इंजीनियरिंग कॉलेजों का विकास हो रहा था, जिससे उनके नागरिकों को अच्छी शिक्षा और गणित विषयों में विशेष दक्षता हांसिल हुई। इससे भारत के सरकारी क्षेत्रों में तत्संबंधी विचार-विमर्श शुरू हुआ और प्रेजीडेंसी शहरों में ऐसे ही संस्थानों की स्थापना के बारे में विचार किया जाने लगा।
प्रथम इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना सिविल इंजीनियरों के लिए वर्ष 1847 में रूड़की, उत्तर प्रदेश में की गई, जिसमें अपर गंगा केनाल के लिए स्थापित बड़ी कार्यशालाओं और सार्वजनिक भवनों का प्रयोग किया गया। रूड़की कॉलेज (अथवा इसे थॉमसन इंजीनियरिंग कालेज के आधिकारिक नाम से जाना जा सकता है) किसी भी विश्वविद्याजय से सम्बद्ध नहीं था, लेकिन इसके द्वारा डिग्री के समकक्ष डिप्लोमा प्रदान किए जाते थे। सरकारी नीति के अनुसरण में वर्ष 1956 में तीन प्रेजिडेंसियों में तीन इंजीनियरिंग कॉलेज खोले गए। बंगाल में नवंबर 1856 में राईटर भवन में कलकत्ता सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज खोला गया, जिसका नाम वर्ष 1857 में बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज किया गया और यह कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बद्ध था। इसने सिविल इंजीनियरिंग में पाठ्यक्रम प्रदान किए। वर्ष 1865 में इसका विलय प्रेजिडेंसी कॉलेज के साथ किया गया। तदुपरांत वर्ष 1880 में इसे प्रेजिडेंसी कॉलेज से अलग कर दिया गया और इसे अपने वर्तमान क्षेत्र शिवपुर में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसके लिए बिशप कॉलेज के परिसर और भवनों का प्रयोग किया।
बम्बई शहर में इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित करने का प्रस्ताव कुछ कारणों से निरस्त कर दिया गया, अंतत: पूना स्थित ओवरसियर स्कूल को पूना इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में परिवर्तित कर दिया गया और वर्ष 1858 में बम्बई विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कर दिया गया। काफी लम्बे समय तक पश्चिमी प्रेजिडेंसी में केवल यही एकमात्र इंजीनियरिंग कॉलेज था।
मद्रास प्रेजिडेंसी में गन कैरिज फैक्टरी के नजदीक स्थित औद्योगिक स्कूल को अंतत: गुइंडी इंजीनियरिंग कॉलेज के रूप में परिवर्तित कर दिया गया और इसे मद्रास विश्वविद्यालय से सम्बद्ध किया गया (1858)।
शिवपुर, पूना और गुइंडी के तीन कॉलेजों में शैक्षिक कार्य लगभग समान ही था। इन सभी में वर्ष 1880 तक लाईसेंस प्राप्त सिविल इंजीरियरिंग पाठ्यक्रम थे, वे केवल इसी शाखा में डिग्री कक्षाओं का आयोजन करते थे। वर्ष 1880 के बाद मैकेनिकल, इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की आवश्यकता महसूस हुई परंतु इन इंजीनियरिंग कॉलेजों ने इन विषयों में केवल प्रशिक्षुता कक्षाएं ही प्रारंभ की। विक्टोरिया जुबली तकनीकी संस्थान, जिसे वर्ष 1887 में बम्बई में शुरू किया गया था, का उद्देश्य इलैक्ट्रिकल, मैकेनिकल और टैक्सटाईल इंजीनियरिंग में लाईसंस धारकों को प्रशिक्षण देना था। वर्ष 1915 में भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलौर ने डा. एलफ्रेड हे के नेतृत्व में प्रमाणपत्र और एसोसिशटशिप प्रदान करने के लिए इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की कक्षाएं प्रारंभ की, बाद में इन्हें डिग्री के समकक्ष माना गया।
बंगाल में, वर्ष 1907 में आयोजित स्वदेशी आंदोलन के नेताओं ने राष्ट्रीय शिक्षा परिषद का आयोजन किया, जिन्होंने सही अर्थो में राष्ट्रीय विश्वविद्यालय का आयोजन किया था। इनके द्वारा प्रारंभ की गई कई संस्थाओं में से जादवपुर स्थित इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी कॉलेज ही शेष रहा। इसने 1908 में मैकेनिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम और 1921 में रसायन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा देना प्रारंभ किया।
कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग ने मैकेनिकल और इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिग्री पाठ्यक्रमों को प्रारंभ करने की लाभ-हानि पर चर्चा आरंभ की। सर थामसन (हॉलैंड) की अध्यक्षता में भारतीय औद्योगिक कमीशन (1915) की सिफारिशों में से उद्धृत एक कारण इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को शुरू करने के विरूद्ध था, जो उनकी रिपोर्ट में इस प्रकार उल्लिखित है – हमने इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रशिक्षण का विशेष संदर्भ नहीं दिया है क्योंकि भारत में अभी तक बिजली उत्पादन शुरू नहीं हुआ है, यहां केवल चल रही बिजली की मशीनों को चार्ज करने के लिए और हाइड्रो इलैक्ट्रिक और भाप से चलाए जाने वाले स्टेशनों के प्रबंधन और उन्हें नियंत्रित करने के लिए सामान्य मरम्मत कार्य करने का रोजगार क्षेत्र ही है। इन तीन श्रेणियों के लिए आवश्यक लोग मैकेनिकल इंजीनियरिंग में अपेक्षित विभिन्न ग्रेडों के लिए प्रशिक्षण हेतु चलाए जा रहे प्रस्तावों से उपलब्ध कराए जाऐंगे। इन्हें इलैक्ट्रिक मामलों में विशेष अनुभव अतिरिक्त तौर पर प्राप्त करना होगा परंतु चूंकि इंजीनियरिंग की इस शाखा का निर्माण विकास निर्माण स्थलों के लिए किया गया है और इलैक्ट्रिकल मशीनों का निर्माण हाथों से किया जाता है इसलिए इलैक्ट्रिकल उपक्रमों के प्रबंधकों को अपने लोगों को प्रशिक्षण प्रदान करना होगा और इंजीनियरिंग कॉलेजों तथा भारतीय विज्ञान संस्थान में निर्देश हेतु विशेष सुविधाओं के रूप में इनका प्रयोग करना होगा।
मैकेनिकल और इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और मैटरलर्जी में डिग्री कक्षाओं को सर्वप्रथम प्रारंभ करने का श्रेय बनारस विश्वविद्यालय को जाता है। पंडित मदन मोहन मालवीय (1917) इसके महान संस्थापक, की दूर-दृष्टि को हम नमन करते है। लगभग 15 साल बाद वर्ष 1931-32 में शिवपुर, बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज द्वारा मैकेनिकल और इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग एक ही साथ शुरू किया गया।
लगभग 15 वर्ष बाद वर्ष 1931-32 में शिबपुर स्थित बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज में वर्ष 1935-36 में मैकेनिकल एवं इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम तथा वर्ष 1939-40 में धातु-विज्ञान में पाठ्यक्रम प्रारंभ किया गया। इसी दौरान गुइन्डी एवं पूना में भी इन विषयों को प्रारंभ किया गया।
इस अवधारणा के साथ की भारत एक बड़ा औद्योगिक देश है, और पुराने संस्थानों द्वारा तैयार किए गए इंजीनियरों से कहीं अधिक इंजीनियरों की आवश्यकता होगी, के साथ 15 अगस्त 1947 से कई इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थापना की जा चुकी है
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शैक्षिक तकनीकी के महत्व
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शैषिक तकनीकी का महतव सार
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Notes on teaching teacher and technology
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