भारद्वाज गोत्र की कुलदेवी
भारद्वाज: बन्धुकशानिदेवी
भारद्वाज गोत्र के तीन प्रवर हैं- आंगिरस बार्हस्पत्य भारद्वाज ।
1. आंगिरस- ये अंगिरावंशी देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं । इनके दो भाई उतथ्य और संवर्त ऋषि तथा अथर्वा जो अथर्व वेद के कर्त्ता हैं ये भी आंगिरस हैं । ये ऋषि कोटि में पहँचे थे । ये मनुष्य जाति के प्रथम आदि पुरूष हैं जिन्होंने अग्नि उत्पत्र की भाषा और छन्द विद्या का आविष्कार किया ऋग्वेद के नवम मण्डल के मन्त्रों के द्दष्टा अपने वंशधरों को एक मण्डल में स्थापित किया, ब्रह्मदेव से ब्रह्मविद्या प्राप्त कर समस्त ऋषियों को ब्रह्माज्ञान का तत्व दर्शन उपदेश किया । अथर्ववेद का एक कल्प आंगिरस कल्प है । आत्मोपनिषद में इनकी ब्रह्मज्ञान विद्या का निर्देशन है । इन्होंने आदित्यों से स्वर्ग में पहले कौन पहुचे ऐसी शर्त लगाई और स्वर्गकाम यज्ञ किया किन्तु आदित्य स्वयं तेजधारी होने से पहिले पहुंचे तथा ये उनसे 60 बर्ष पश्चात स्वर्ग की गौ (कामधेनु) दी । ये सर्वप्रथम गोस्वामी बने परन्तु इन्हें गौ दोहन नहीं आता था जिसे इन्होंने अर्यमा सूर्य से प्राप्त किया । ये समस्त भूमण्डल में भ्रमण करने वाले पृथ्वी पर्यटक थे । जिन्होंने विश्व की सभी मानव जातियों को जो महामुनि कश्यप से उत्पत्र थे यथा स्थान बसाया तथा 9400 वि0पू0 में उन्हें मानव जीवन के लिए उपयोगी अनेक विद्याओं का प्रशिक्षण दिया । ये अपने समय के समस्त भूमण्डल में स्थापित तीर्थों के ज्ञाता थे । जिनकी बहिर्मडल यात्रायें इन्होंने प्रहलाद बलि जामवन्त हनुमान सुग्रीव को करायी थी ।
आंगिरसों के कुल में अनेक प्रतापी यशस्वी पुरूष हुए हैं, जिनमें से कुछ के यनाम इस प्रकार हैं- देवगुरु बृहस्पति, अथर्वेवेद कर्ता अथर्वागिरस, महामान्यकुत्स, श्री कृष्ण के ब्रह्माविद्या गुरु घोर आंगिरस मुनि । भर ताग्नि नाम का अग्निदेव, पितीश्वरगण, गौत्तम, बामदेव, गाविष्ठर, कौशलपति कौशल्य(श्रीराम के नाना), पर्शियाका आदि पार्थिव राज, वैशाली का राजा विशाल, आश्वलायन (शाखाप्रवर्तक), आग्निवेश(वैद्य) पैल मुनि पिल्हौरे माथुर(इन्हें वेदव्यास ने ऋग्वेद प्रदान किया), गाधिराज, गार्ग्यमुनि, मधुरावह(मथुरा वासी मुनि), श्यामायनि राधाजी के संगीत गुरु, कारीरथ (विमान शिल्पी) कुसीदकि (ब्याज खाने वाले ) दाक्षि (पाणिनि व्याकरण कर्त्ता के पिता), पतंजलि(पाणिनि अष्टाध्यायी के भाष्कार), बिंदु (स्वायंम् मनु के बिंदु सरोवर के निर्माता), भूयसि( ब्रह्माणों को भूयसि दक्षिणा बाँटने की परम्परा के प्रवर्तक), महर्षिगालव (जैपुर गल्ता तीर्थ के संस्थापक), गौरवीति(गौरहे ठाकुरो के आदि पुरूष), तन्डी (शिव के सामने तांडव नृत्य कर्ता रूद्रगण), तैलक (तैलंगदेश तथा तैलंग ब्रह्मणों के आदि पुरूष), नारायणि (नारनौलखन्ड वसाने वाले), स्वायंभूमनु(ब्रहषि देश ब्रह्मावर्त के सम्राट मनुस्मृति के आदि मानव धर्म के समाज रचना नियमों के प्रवर्तक), पिंगलनाग(वैदिक छन्दशास्त्र प्रवर्तक), माद्रि (मद्रदेश मदनिवाणा के सावित्री (जव्यवान) के तथा पांडु पाली माद्री के पिता अश्वघोषरामा बात्स्यायन (स्याजानी औराद दक्षिण देश के काम सूत्र कर्ता), हंडिदास (कुवेर के अनुचर ऋण बसूल करने वाले हुँडीय यक्ष हूड़ों के पूर्वज), बृहदुक्थ (वेदों की उक्थ भाषा के विस्तारक भाषा विज्ञानी), वादेव (जनक के राज पुरोहित), कर्तण (सूत कातने वाले), जत्टण (बुनने वाले जुलाहे) बिष्णु सिद्ध (खाद्यात्र (काटि) कोठारों के सुरक्षाधिकारी), मुद्गल मुदगर बड़ी गदा) धारी, आग्नि जिव्ह (अग्नि मन्त्रों को जिव्हाग्र रखने वाले ) देव जिव्ह (इन्द्र के मन्त्रों को जिव्हाग्र धार), हंसजिव्ह (प्रजापति ब्रह्मा के मन्त्रों के जिव्हाग्र धारक). मत्स्य दग्ध (मछली भूनने वाले), मृकंडु मार्कडेय, तित्तिरि तीतर धर्म से याज्ञवल्क्य मुनि के वमन किये कृष्ण्यजु मन्त्रों को ग्रहण करने वाले तैतरेय शाखा के ब्राह्मण), ऋक्ष जामवंत, शौंग(शुंगवन्शीतथा माथुर सैगंवार ब्राह्मण) दीर्घतमा ऋषि (दीर्घपुर डीगपुर ब्रज के बदरीवन में तप करने वाले) हविष्णु (हवसान अफ्रीका देश की हवशी प्रजाओं के आदि पुरूष) अयास्य मुनि ( अयस्क लोह धातु के अविष्कर्ता) कितव (संदेशवाहक पत्र लेखक किताब पुस्तकें तैयार करने वाले देवदूत) कण्व ऋषि(ब्रज कनवारौ क्षेत्र के तथा सौराष्ट्र के कणवी जाति के पुरूष) आदि अनेक महानुभावों ने आंगिरस कुल में जन्म लेकर अथवा इनका शिष्यत्व रूप अंग बनकर भारतीय धर्म और संस्कृति को विश्व विख्यात गौरव माथुरी गरिमा के अनुरूप् प्रदान किया है। बृहस्पति का जन्म स्थान द्युलोक के शीर्ष स्थल घौसेरस में है ।
2. बार्हस्पत्य- बृहस्पति तारा से उत्पत्र 7 आग्नि देव पुत्र तथा प्रधान पुत्र कच(कछपुरा तथा कुचामन राजस्थान) ही वार्हस्पत्य हैं । तारा के पुत्र भुगु निश्च्यवन विश्वभुज विश्वजित बड़वाग्नि जातवेदा (स्पिष्ट कृत) हैं । ये सभी वेदों में वर्णित और यज्ञों में पूजित हैं । बच ने देवयानी शुक्र कन्या से प्रेम सम्बन्ध स्थापित कर शुक्राचार्य की मृत संजीवनी विद्या मरू देश में वृषपर्वादानव (फरवासी) के राज्य में कचारण्य (कुचामन) में रह कर प्राप्त की तथा दैत्य दानवों द्वारा अनेक बार इसका घात करने पर भी यह इस से विद्या जीवित हो उठे । यह देवों से पूज्य यज्ञ भाग प्राप्त कर्त्ता ऋषियों में परम आदरणीय हुए हैं । देवयानी पीछे शर्मिष्ठा के साथ ब्रज में ययाति के पुर(जतीपुरा) में आकर शर्मिष्ठा के उपवन(श्याम ढाक) में आकर रही और ययाति 6033 वि0पू0 से देवयानी बन(जान अजानक बन) में यदु तुर्वसु पुरू जिनका वर्णन ऋग्वेद में है । अपने पुत्रों के साथ रहे । शर्मिष्ठा से (श्यामढाक बन) दुह्मु अनु(आन्यौर) और पुरू हुए । ययातिने सुरभी गौ नाम की अप्सरा से सुरभी बन पर (अप्सराकुन्ड) अलका से अलकापुरी अलवर में, विश्वाची अप्सरा से अप्सरा सरोवर वन में विहार किया । बृहस्पति की एक पत्नि जुहू(जौहरा) भी थी जिससे जौहर करने वाले जुहार शब्द से अभिवादन करने वाले यहूदी वंश तथा जौहरी कायस्थ तथा युद्ध में आगे लड़ने वाला हरावल दस्ता जुझाइऊ वीर उत्पत्र हुए । ये सब बार्हस्पत्य थे । भारद्वाज वंशजों मत्स्य पुराण में कुलीन वंश कहा गया है ।
भारद्वाज की अल्लैं
भारद्वाज गोत्र में सर्वाधिक अल्ल या अड़कैं हैं ।
1. पाँडे- ये सर्वाधिक प्रभाव और प्रतापशाली तेजस्वी और सम्मान प्राप्त थे । मथुरा में इनका निवास स्थान हाथी वारी गली तथा गोपाचल में शंकरपुर है । पांडे शिक्षा कर्म के आचार्य सुप्रसिद्ध व्याकरण कर्त्ता पाणिनि अष्टाधारी ग्रन्थ रचयिता के वंशज हैं । विद्यार्थियों को आरम्भ से ही भाषा शास्त्र का अध्ययन कराने के कारण ये पांडे नाम से प्रतिष्ठित हुए हैं । पांड़े(अध्यापक) और चट्टा (विद्यार्थी) जो चट या चटाई पर बैठकर गुरु के चरणों में श्रद्धा रखकर विद्या ग्रहण करता है यह दोनों शब्द माथुरी संस्कृति में लोक प्रसिद्ध हैं । पांड़ेजी की पाठशाला चट सार कहलाती रही है, जो माथुरें के मुहल्लों में प्राय: अथाइयों (अस्थाचल सूर्य काल की बैठकों ) में उनके आस-पास के देव मन्दिरों में स्थापित होती थीं । झम्मा पांड़े रघुनाथ पांड़ गणेशीलाल चौधरी दौलतराम पाँडे़ आदि अनेक अध्यापक पाँड़े कर्म में विख्यात रहे हैं । पौराणिक प्राचीन साहित्य के अनुसार सबसे प्राचीन व्यारणकार भारद्वाज के भारद्वाजीय व्याकरण ग्रन्थों के आधार पर पाणिनि ने अपना अष्टध्यायी व्याकरण ग्रन्थ तथा भाषा उच्चारण का ग्रन्थ पाणिनि शिक्षा की रचना की थी । शिक्षकों को पांड़े पाणियां, राजस्थान आदि प्रान्तों में भी कहा जाता है । पाणिनी मथुरा के निवासी पांड़े अख्याधारी थे । भारतीय प्राचीन साहित्य के अनुसार इन्होंने ऋग् प्रतिशाख्य भारद्वाजीय व्याकरण आदि ग्रन्थों के आधार पर अपना अष्टाध्यायी ग्रंथ रचा था । ये मौर्य शासन काल में वर्तमान थे । इनका छोटा भाई पिगंल छन्द शास्त्र कर्त्ता ग था) व्याडि नाम का व्याकरण विद्वान भी इनका सहाध्यायी था । व्याडि(बाढ़ा उझानी) दक्ष गोत्री दाक्षायण थे और इनके मामा थे तथा इनकी माता दाक्षी होने से इन्हें दाक्षीपुत्रो पाणिनेय: पिंगलनाग कहा गया है । पाणिनि का ग्राम पानी कौ इनके गाँव तथा शालातुरी परिवार का क्षेत्र यमुना तट का स्यारये कौ घाट मथुरा अंचल में है । पिंगल का पिगोरा भी इसी क्षेत्र में है । घोर आश्चर्य है कि इतने पुष्ट आधारों के होते हुए आधुनिक विद्वान पाणिनी को तक्षशिला तथा पेशावर का निवासी अफ़ग़ान पठान बिना किसी प्राचीन प्रमाण के लिखते चले जा रहे हैं । पठानों में कोई पाणिन वन्श पांडी पांडुल्ला पाडुनुद्दीन नहीं है तथा पाणिनी ने पुश्तों अरबी फारसी का कोई ग्रन्थ नहीं रचा है । यदि वे पठान वंशी होते तो पैशाची पुश्तों का व्याकरण रचते और उनकी अफ़ग़ानी अरबी फारसी ईरानी तुर्की के विद्वानों में गणना अवश्य ही होती । केवल तथा शिला में शिक्षा की कल्पना से वे कंधारी पेशावरी नहीं हो सकते । पाणिनी ने अपने पूर्वाचार्यों में कौत्स शिष्य मांडव्य, पाराशर्य, शिलालि, कश्यप, गर्ग, गालब, भारद्वाज, चक्रवर्म (चकेरी), शाकटायन, स्फोटायन सेनुक आदि के नाम लिखे हैं जिनमें कोई भी अफ़ग़ान या पठान नहीं था ।
पाणिनि का दक्ष दौहित्र होना उन्हें प्रबल रूप से मथुरा का माथुरा ब्रह्मण होना सिद्ध करता है क्योंकि दक्ष गोत्र माथुरों के अतिरिक्त और किसी ब्रह्मण वर्ग में नहीं है तथा इनके मामा व्याड़ि को स्पष्ट ही तत्र भवान् दाक्षायणा: दाक्षिर्वा कहा गया है । मत्स्य पुराण में दाक्षी ऋषि को अंगिरा वंश में स्थापित किया गया है । सम्राट समुद्र गुप्त की प्रशन्ति में व्याडि को रसाचार्य कवि और शब्द ब्रह्म व्याकरणज्ञाता पुन: भी कहा है-
रसाचार्य: कविर्व्याडि: शब्द ब्रह्मैकवाड् मुनि: । दाक्षी पुत्र वचो व्याख्या पटुमिंमांसाग्रणी ।।
शोध तथ्यों के अनुसार पाणिनी ने कृष्ण चरित्र तथा व्याडि ने बलराम चरित्र काव्यों की रचना भी की थी ं पाणिनि ने अष्टाध्यायी में नलंदिव नाम के स्थान का उल्लेख किया है जो मथुरा नगर का प्राचीन टीला नकती टेकरा ही है । अष्टाध्यायी पर माथुरी वृत्ति भी है । पाणिनि के भाष्यकार परम विदुष महर्षि पतंजलि धौम्य गोत्रिय श्रोत्रिय (सोती) माथुरा वंश विभूषण थे । वे पुष्यमित्र शुंग (भारद्वाज गोत्री सौगरे) के द्वारा आयोजित अश्वमेध यज्ञ के आचार्य थे । नागवंशी होने से ये कारेनाग तिवारी शाखा में थे । ये अंगिरा कुल कुत्स गोत्रियों के शिष्य थे । पातंजलि शुंगकाल से चन्द्रगुप्तमौर्य काल तक थे तथा इनके समय उत्तर भारत पर यवनों के आक्रमण होने लगे थे । पातंजलि सामवेदी कौथुम शाखा के थे तथा इनका निवास गोनन्द गिरि नदवई ब्रज में था । पांड़े वंश की यह कितनी महान ऐतिहासिक परम्परा है । पांड़े वंश की प्रशाखाओं में खैलावंश, घरवारी, कुइया, बुचईबन्श, मारियाँ, डुगहा, काजीमार, होली पांडे़, शंकर गढ़ के पांड़े आदि उल्लेखनीय हैं । कारेनाग, दियोचाट (सद्योजात वामदेव रूद्रत्रण), चौपौरिया, जैमिनी वंश भी इनके प्राचनी वंश हैं ।
जैमिनी महर्षिवेदव्यास के सामवेदाध्यायी शिष्य थे ये कौत्स के वंशज थे । ये युधिष्ठ के राजसूय में तथा जनमेजय के सर्पसव में व्यास शिष्य वैशम्पायन के साथ सम्मिलित थे । इनने मथुरा में व्यास आश्रम कृष्ण गंगा पर निवास कर साम वेद उपलब्ध किया था जैमन, जैमाचूठी जौंनार इनके प्रिय संस्कृति सूत्र हैं । इनके सहाध्यायी महर्षि पैल थे जिन्हैं वेदव्यास ने ऋग्वेद दिया था । और आज थे पिल्हौरे माथुर कहे जाते हैं ।
पाठक- ये वैदिक संहिताओं के यज्ञ समारोहों में ससवर पाठ करने वाले वैदिक महर्षि थे । ब्रह्मण ग्रन्थों में पाठसक भाग इन्हीं के अनुभव के संकलन हैं । यह भी प्रभावशाली वर्ग है । अन्य अल्लौं में रावत (पारावत) मावले (महामल्ल), अझुमिया (अजमीढ यादव प्रोहित, यज्ञ में अग्न्याधाम होने पर प्रथम आज्य की आहुतियाँ डालकर अग्नि देव को चैतन्य करते थे), कोहरे (कहोल वंशज), चौपौलिया (चौपालों पर बैठकर माथुर आवासों की चौंकसी और रक्षा करने वाले), रिली कुमारिल मट्ट के वेदौद्धारक प्रयासों के प्रबल सहायक (आरिल्ल नाम के वीर रस के छन्दों के अग्रगायक), वीसा (विश्वासवसुगंधर्वराज के प्रोहित), सद्द (धर्मनिर्णायक परिषदों के संचालक), तिबारी (त्रिवेदी), लौहरे (लोहबन के निवासी), नसवारे(कनिष्क कंसासुरवंश के याजक, नशेबाज), सिकरौलिया (सिकरौल वासी ), मैंसरे (महिष वंश भौसले भुसावल महिसाना, मैंसूर, मस्कत, मसूरी आदि क्षेत्रों की प्रजाओं के प्रोहित, उचाड़े (उचाड़वासी), गुनारे (फाल्गुनी यज्ञ होलीकोत्सव के आयोजक, मिश्र (वेद और तन्त्र दोनों की मिश्रित विद्याओं से यज्ञ कराने वाले, जनुष्ठी (जन्हु यादव के पुरोहित (जुनसुटी निवासी) चतुर (युक्तिचतुर), डुंडवारिया(गंगडुंवारा के ) पैठवाल पैठागाँव वाले) दरर(विधाधरों के ) पूरबे (पुरूरवा के) हलहरे (हालराज के) मारौठिया (मारौठवासी) जिखनियाँ (जिखन गाँव के) अगरैंया, (आगरा के), दुसाध (दुसाध निषादों के सहवासी) सुमेरधनी (सुमेरू युक्त बड़ी सुमिरनी माला पर जाप करने वाले) आदि इनमें कुछ बहुत एतिहासिक महत्व की सूचनायें देने वाली भी अल्लैं हैं जैसे- बाबले (बाबर के सेवाश्रमी) बहरामदे (अकबर के फूफा बैरम ख़ाँ के आश्रर्यजीवी) दाहरे (सिंध के धार्मिक राजा दाहर के सभासद 769 वि0 में यह यवन खलीफा के सेनापति इव्नफासिम के आक्रमण से पराजित होकर ब्रह्मर्षि देशों में भाग आया था और धर्मचर्या तथा त्याग रूप जीवन में उपराम लिया था, दारे (शाहजहां का वेद वेदांत धर्म चिन्तक शाजजादा दारा के सहायक, दारा को शाहजहां ने पंजाब और दिल्ली मथुरा का इलाका दिया था, वह केशवनारायन श्री यमुनाजी और माथुर ब्रह्मणों का परम भक्त था । औरंगजेब के हाथों छत्रसाल के पिता चंपतराय के द्वारा इसका धौलपुर के युद्ध में परामव और वध हुआ), साजने (शाहजहां बादशाह के राजकर्म चारी गण) जहांगीर बादशाह के (जहांगीरपुर गाँव के निवासी) आदि ।
सौश्रवस गोत्र
ये विश्वामित्र के बंशज हैं । इनका समय 2857 वि0पू0 है । ये मथुरा के क्षेत्र में सौश्रबस आश्रम (सौंसा साहिपुरा) में रहने थे । इनके तीन प्रवर विश्वामित्र देबराट् औदले हैं । सौश्रबस सुश्रबा महर्षि के पुत्र थे । इनका कथन अनेक प्राचनी ग्रन्थों में है । पंचबिश ब्राह्मण 14-6-8 के अनुसार ये और्व राजर्षि के पुरोहित थे । अपने पिता सुश्रवा की अवमानना करने पर सुश्रवा के निर्देश पर और्व ने इनका सिरच्छेद कर दिया जिसे विप्र भक्ति से प्रभावित इन्द्र ने पुन: संधाधित किया ।
1. विश्वामित्र- इनके प्रथम प्रतापी प्रबर पुरूष थे जिनका परिचय पर्याप्त रूप में हो चुका है । इनका समय 5408 वि0पू0 तथा स्थान मथुरा में कुशिकपुर (कुशकगली) था ।
2. देवराट- ये विश्वामित्र के उपेक्षित पुत्र थे । मूलत: इनका नाम शुन:शेष (कुत्ते की पूँछ) था । ये अपने पिता के उपेक्षित पुत्र थे । अयोध्यापति महाराज हरिचन्द ने जब बरूण देवता की मान्यता करके भी अपना पुत्र रोहिताश्व उसे बलि नहीं दिया तब बरूण ने उसके उदर में जलरोग (जलोदर) उत्पत्र किया । इस संकट से मुक्त होने को ऋषियों ने राजा को किसी अन्य कुमार को अपने पुत्र के प्रतिनिधि रूप में बलि अर्पित करने की सलाह दी ।
प्रयत्नों के बाद ब्राह्मणकुमार शुन: शेष को उसका पिता द्रव्य के बदले देने को राजी हो गया । जब ब्राह्मणकुमार बलि हेतु यज्ञ यूप से बांधा गयां तो वक भयार्त होकर रूदन करने लगा, इस पर विश्वामित्र को करूणा उत्पत्र हुई और उनने शुन: शेष के समीप जाकर उसे वरूण स्तुति के कुछ अति प्रभावोत्पादक दीनता सूचक मन्त्र बताकर पाठ करवाये । वरूण देव इन मन्त्रों से दयाद्रवित हो गये और शुन:शेष को बलि मुक्त कर दिया । विश्वामित्र ने तब चरणों में लिपटे बित्रकुमार को छाती से लगाया और उसका शुन:शेष (कुत्ते की पूँछ) जैसे हीन नाम से देवराट् (देवों का राजा इन्द्र) जैसा नाम दिया तथा अपने 100 पुत्रों में सबसे श्रेष्ठ मानकर सबको उसका मान करने की आज्ञा दी । विश्वामित्र ने वेद विद्या पढ़ाकर देवराट को वैदिक ऋषियों में स्थान दिलाया । उसके मन्त्र ऋग्वेद में हैं । यह शुन:शेष देवराट् माथरों के उत्तम ब्राह्मण बन्श में प्रविष्ठ हुआ और सौश्रवसों का प्रवरीजन स्वीकृत हुआ । इसका समय हरिश्चन्द्र काल 5262 वि0पू0 है ।
औदले-यह महर्षि उछालक के पुत्र थे । इनका मूलनाम आरूणी पांचाल था ता मथुरा निवासी धौम्य आचार्य (आपोद धौम्य) के शिष्य थे । इनकी गुरु भक्ति की कथा सर्वोपरि है । एक बार अपने मथुरा के धौस्य आश्रय (धामला बाग) में समीप के खेत पर वर्षा के पानी को रोकने हेतु गुरु ने इन्हैं भेजा । पानी किसी भी प्रकार न रूकने पर आरूणी ने जल धारा के बीच लेटकर पानी बन्द किया काफ़ी रात गये गुरुजी आरूणी को खोजने निकले तो आवाज लगाने पर उसे जल प्रवाह के बीच लेटा हुआ पापा(इस महान गुरुभक्ति से प्रभावित होकर उन्होंने उसे ह्दय से लगा लिया तथा सभी वेद, ब्रह्म विद्यायें उसे प्रदान कीं तथा उसका आरूणी के स्थान पर उद्दालक नाम रखा ।
आगे चलकर यह महान ब्रह्मवेत्ता ज्ञानी हुआ । इसका महर्षि याज्ञवल्क्य से ब्रह्मविद्या पर संवाद हुआ । इसने अपनी आध्यात्म विद्या परम्परा वेदगर्भ ब्रह्म से आरम्भ की तथा इनद्रद्युम्न, सत्ययज्ञ, जनक, तक दी है । वुडिल इससे ब्रह्म ज्ञान पाने को आये थे । इसने कुशिक वंश की कन्या से विवाह किया जिससे इसे श्वेत केतु नचिकेता (नासिकेत) तथा सुजाता पुत्री हुई । यह सुजाता कहोल ऋषि(काहौ माथुर वंश) को व्याही जिससे अष्टावक्र पुत्र हुआ । श्वेतकेतु ने जनक सभा में याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ किया । इसके पिता उद्दालक ने इसेतत्वम नाम की विद्या का उपदेश किया । श्वेतकेतु माथुर ने कुरू पांचाल (काख पचावर) में निवास कर जावली गाँव के राना प्रवाहल जैविली से ब्रह्म विद्या आगे सीखी । यह परमाणु विद्या का भी महान ज्ञाता था । श्वेत केतु को समाज व्यवस्थापक सामाजिक नियमों की स्थापत्र, विवाह संस्था, यज्ञ संस्था, ब्राह्मण को मद्यपान निषेध परस्त्रीगमन, विवाह के बाद कर्त्तव्य पालन, राज्यभिषेक के नियमों का कठोर विधान करने से इसे भारतवर्ष का सर्वप्रथम समाज सुधारक माना जाता है । उद्दालक पुत्र नचिकेता – पिता की भर्त्सना पर संदेह जीवित यमपुर गये और यमलोक दर्शन कर यमदेव से संवाद कर लौटकर आये तथा यमपुरी सारी व्यवस्था मनि मण्डल को सुनाई । इनका यात्रा वृत्तांत नसिकेत पुराण में विस्तार से वर्णित है । अष्टा वक्रने जनक की सभा विजय कर पिता का बदला लिया, तथा सब पराजित पंडित मुक्त किये ।
सौश्रवसों की अल्लैं
इनकी अल्लैं 14 हैं जो इस प्रकार हैं-
1.मिश्र- ये मिश्र देश के मग (मगोर्रा) और शाकल दीमी ब्राह्मणों में से है जो नेदिषाण्य और मिश्रिक मासध तीर्थों में ब्रह्मा के चक्र की नेमि (धुरा) टूटने के सीमा स्थान पर आयोजित यज्ञ में स्वीकृत किये गये । श्रीकृष्ण पुत्र सांख ने शाकद्वीप शक प्रदेश के कहोलपुर काहिरा में जब विशाल सूर्य मदिंर की स्थापना की तो वहां सूर्य पूजा के लिए मग ब्राह्मणों के बुलाकर नियुक्त किया जो मिश्र या मिश्री ब्राह्मण हैं । मिश्रों में छ: भेद हैं –
1. छिरौरा- अप्सरापुर (कोटा, छिरोरा गाँव मथुरा) के निवासी ।
2. गोरावार- गजनी गोर नगर के यवनों का पुर गोराओं राजस्थान के गौरी वंश के यवनों के अधिष्ठाता ।
3. परिदान- फारस पर्शिया तथा पेरिस( फ्रांस) की परियों की में रहने तथा परी कथायें सुनानेवाले। मुग़लों में इस वंश की फरीदवेगम, फरीदकोट, शेख फरोदू, फरीदाबाद प्रसिद्ध हुए तथा पारसियों बोहराओं की बड़ी संख्या इस्लामी अत्याचारों से त्रस्त्र भारत में आकर बसी हुई है । ये सूर्य और अग्नि के उपासक हैं ।
4. डवरैया- उवरा(ग्वालियर) के निवासी ।
5. चौथैया- पेशवाओं ने मुग़लबादशाह मुहम्मदशाह से 1765 वि0 में सारे मुग़ल साम्राज्य में लगे बादशाही भूमिकर में से चौथाई कर अपने लिए वसूल करने की सनद लेली और सारे देश में सर्वत्र चौथ जबरन बसूल करने लगे इस काल में उनके सहायक होने से वे माथुर चौथैया कहलाये ।
6. मथुरा तथा ब्रज में तीर्थ यात्रियों के दान में से तिहाब (तृतिया भाग) बसूल करने वाले तिहाब के या तिहैया कहे जाने लगे ।
2. प्रोहित- पौरोहित्य कर्म, कुल पुरोहित, तीर्थ पुरोहित, यज्ञ पुरोहित आदि में सर्वत्र सम्मान प्राप्त यह वर्ग प्रोहित है ।
3. जनुष्ठी- जन्दु राना यादव को यज्ञ इष्ठि कराकर उनके नाम से ब्रज में जान्हवी गंगा प्रसिद्ध करने वाले जन्हु क्षेत्र आनूऔ जनूथर जूनसुटी के निवासी ।
4. चन्दबारिया- चन्दवार के निवासी ।
5. वैसांधर-वैश्वान अग्नि जिसने समस्त विश्व में भ्रमण कर विश्व के जंगली(यूरोपियन,एशियन, अफ्रीकी अमरीकी अष्टेरियन), लोगों को आग्नि का उत्पादन संरक्षण और पाक विद्या में प्रयोग सिखाया ।
6. धोरमई- ध्रुवपुर धौरेरा के निवासी ।
7. चकेरी- श्रीकृष्ण की चक्र सेना के योद्धा ।
8. सुमावलौ- सोमनाथ शिव मथुरा के भक्त सोमराजा जो उत्तर दिशा से सोमबूटी मूंजबान पर्वत काश्मीर से मगवाकर सोमयज्ञ सम्पत्र कराने वाले थे । उनके प्रोहित ।
9. साध- निषाद जाति को उपनिषद विद्या प्रदान करने वाले तथा राजानल के निष्धदेश के प्रोहित ।
10. चौपौलिया – चार द्वारोंकर की पौरी चौपरा युक्त भवन बनवाकर रहने वाले ।
11. बुदौआ- बौद्धों के स्पूपों मठों बिहारों के निर्देशक बौद्धों को बौद्ध स्मारकों की तीर्थ यात्रा कराने वाले ।
12. तोपजाने- ये स्तूप ज्ञानी हैं जो जैनों बौद्धों को उनके स्तूपों चैत्यों बिहारों के दर्शन कराकर उनका महत्व और इतिहास बतलाकर नका पौरो दिव्य कर्म संवादन करते थे ।
13. चातुर- राजकाज में चतुर लोगों का वर्ग ।
14. छिरौरा- कहीं छिरौराओं को मिश्रों से अलग स्वतन्त्र अल्ल गिना जाता है ।
सौश्रवसो की शाखा आश्वलायनी वेद ऋग्वेद है ।
धौम्य गोत्र
ये महर्षि कश्यप के वंश में महा प्रतापी हुए हैं । पांडवों के रक्षक और पुरोहित होने से पांडवकुल में परम सज्मानित थे तथा महाभारत में सर्वत्र इनकी श्रेष्ठता वर्म निष्ठा और तेजस्विता का वर्णन है । इनका समय 3080 वि0पू0 तथा निवास स्थान मथुरा में धौम्य आश्रम धामला कूप और गोपाल बाग सूर्य क्षेत्र हैं । गोपाल बाग में ही श्री यमुना महारानी जी की बहिन सूर्यपुत्री तपतीदेवी (तत्तीमाता) विराजमान हैं तथा कार्वित शुक्ल गोपाष्ठमी को श्रीकृष्ण बलराम गौचारन का उत्सव (मेला) मनाते, सत्राजित को स्यमंतक मणि एवं पांडव पत्नि द्रोपदी को अक्षय पात्र प्रदाता, महाराज शान्तुन को भी ष्मपुत्र तथा सिद्ध मन्त्रायुर्वेद विधा प्रदाता भगवान सूर्य की सेवा में पधारते हैं । धौम्य कूप(धामला) का पानी बहुत शुद्ध और गुणकारी माना जाता है और उसे अनेक माथुर (चतुर्वेदी पहलवान) लोग स्वस्थ वृद्धि के लिए पीते है।
धौम्य के कश्यप वंश में 3 प्रतापी प्रवरजन हुए हैं जो 1. कश्यप- प्राचीन बर्हिवन्श 5222 वि0पू0 ।
2. आवत्सार कश्यप पुत्र 5154, वि0पू02. नैध्रुव आवत्मार पुत्र 5018 वि0पू0 हैं धौम्य का पूरा नाम आपोद धौम्य था । इनके वंश का बहुत महत्वपूर्ण बिस्तार रहा है । जिसमें कश्यप यजमान ऋते युराजा 5222 वि.पु. आसेत 5153 वि.पू. देवल 5016 वि.पू. सांडिल्य प्राचीन 5014 वि.पू. रैम्य 5017 वि.पू. कश्यपपुत्री ब्रह्मा की मानसी सृष्टि तथा नागपुरा की संरक्षिका मनसा देवी मानसी गंगातट गोवर्धन 5200 वि.पू. । महाभारत के अनुसार इसी वन्श में व्याघ्रपाद के पुत्र महर्षि और धौम्य हुए हैं ।
3. नैध्रुव- ये आवत्सार के पुत्र हैं । इनका समय 5018 वि.पू. है । ये ऋग्वेद के मन्त्रद्दष्टा(9-63) हैं । च्यवन भार्गव की कन्या सुमेधा इन को व्याही थी । ये प्राचीनकाल के 6 ब्रह्म वादियों 1.कश्यप
2 अवत्सार
3 नैध्रुव
4 रैम्य
5 आसित
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I belong to District Bulandshahr, my gotra is Tatras belongs to Vaish faimly. Please tell our kul Devata killer Devi
Mera gotra Ratenwal joshi hai or gour brahman hai hamari kuldevi kon hai or kha hai please btaye
Mera गौत्र भारद्वाज है. वेद ऋग्वेद टाइटल जोशी.. Please kindly reply our kuldevi कौन है
MERA NAAM SANJEEV KUMAR SAXENA HAI, MUJHE APNA GOTRA AUR KUL DEVI YA DEVTA KA NAAM PATA KRNA HAI. KRIPYA BATA DEJIE
Mera naam shailendra shukla hai mera gotra Bhardwaj gotra hain kripya kuldevi devta ka naam aur mandir ka patta batay kripya bahut bahut meharbani hogi mera phone number 9768649464 hai kripya kuldevi devta ka naam bataye
Brahmno में Kanis gotra होता है kya
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begusara,Bihar
bhumihar bramhan(bavan)
gotra-bhardwaj / चकबार samaj
..
who is my kuldevi and how to worship her?
Pargi mata devi
हम भारद्वाज ऋषि की संतान हैं तथा पदवी पांडे, अगरैंया गोत्र की कुलदेवी कौन है और कहाँ पर है। कृपया पूरी जानकारी विवरण सहित भेजनें का कष्ट करें, हम आपके आभारी रहेंगे फ़ोन न.9694669934
Mera nam Sumit Kumar hai aur may Lucknow say ho krips kar ke mere kuldevi kisn hai bataye ji
May bardwaj ho
भारद्वाज-पांडे अगरिया (हातीवाल)की कुलदेवी का नाम व स्थान बतायें
मेरा नाम किशन है कृपया मेरी कुलदेवी बतायेंऔर कहाँ पर है
ऋषि गोत्र -भारद्वाज अल्ले- अगरिया (हातीवाल)
Mujhe aapna gotra nhi pata h mujhe kabhi katyani ya fir madoriya gotra bateya jata h sahi gotra kya h kase pata Kare.
Mera Naam Lokesh Sharma board Brahman Bhardwaj Rishi bagandMishra gotra ke kuldevi bataen Rajasthan Kota
Anil Kumar Soni Kshatriya Swarnkar hu , Gotra bharadwaj hai Kripya Kuldevi ka Nam avm Jagah ke bare me bataye 09826074333
Bhardwaj Rishi me shroti gotra ki kuldevi btadijiye
Khede samaj
जगदाले समाज मध्य प्रदेश
कानकुब्ज दुबे ब्राह्मण गोत्र भरतद्वज हैं।
हमारे पुर्वजो अनुसार कुलदेवी बराई माता है जिनका एक स्थान जो देखा है वह गंजबसौदा जिला विदिशा मध्य प्रदेश में स्थित है जिसे हमारे पूर्वाजो ने बनवाया है।
आप सभी अपने पूर्वाजो या वरिष्ठ से सही जानकारी ले।
8518935372 मेरा मोबाइल नंबर है।
अन्य थोड़ी बहुत जानकारी जो आप सभी के काम आ सके।
Dr Lalit Shankar Sharma from Alwar Rajasthan,nikas Rajgarh Alwar se h,gotta Dodrawat Tiwari h,Rishi gotta Bhardwaj h,kripya kuldewta kuldevi ka nam stathn bataye
Hmara gotar bhardwaj hai or hum Punjab k Amritsar k rehne wale hai Bt hme hmari kulldevi nai Pta
bhardvaj gotra. Ke Rajasthan ke rajsamnd dist ke he hume humari kuldevi ka pta bataye plz
Who is kuldevi of Bhardwaj gotra
Bhardwaj mein kaun kaun se Brahman Mishra hai Pande Hain Shukla hai Tiwari Hain kripa karke spasht Karen
Bhardwaj gotta ki kuldevi tatha sthan batao.
Hum log aadi gaur hain. Gotra Bhardwaj shakha madwandni kuldevi sarangsai. Lekin ye nanhi pata in devi ka sthan kanha hai. Kripya vista se bataein
मैं हार्ले गोज्ञ है कुलदेवी,कुलदेवता बताते
Hamara gotr bhardwaj h kuldevta ki foto bheje tyacha nam btayein
i P D Puri having Bhardwaj Gotras, wish to name of Kuldevi and her place
Hum rajasthan ke alwar district ranged tahesil local village ke rehnewale hai bharadwaj gotra marwadi gaud brahmin alwarya joshi hamari sarkha hai plz hame hamari kuldevi ke bare mein bataye
अमर सिंह बनाफर
आल्हा ऊदल वंशज हूँ
क्या आल्हा ऊदल सूर्य वंशी हैं या चंद्रवंशी हैं।
जबकि मेरा गोत्र भरद्वाज है।
Bhardwaj bharmin ki kuldevi kon h or gujart me Kaha h temple unka...vo bataye
मेरा नाम प्रेम राज गौड है गौड भारद्वाज कुलदेवी कौन है कृपया, कई लोग बता रहे हैं शीतला
Gotra bhardwaj marathi hindu sutar kuldevata name kya hai
Me bhardwaaj risi ki santan h or guraba josi Tamara gotar h hamari kuldevi batman ka kast kare
mob.no 7690092347
7014517196
Mera name Neeraj Gouri hai or hamara gotra bhardwaj hai hamari kul Devi or devta kon hai ph no 9466719167
मेरा नाम प्रीति भट्ट है और भारद्वाज गोत्र है । हम लोग छलेसर से हैं। कृपया बताएं कि हमारी कुलदेवी कौन सी है और भेरुजी कौन से है। हमने बहुत प्रयास किया जानने का,पर पता नहीं चल सका। कृपा करके जल्दी बताएं हम आपके हमेशा आभारी रहेंगे।
हम ओडिशा के खुर्दा जिला के रहने वाले पाइका है हम भारद्वाज गोत्रो से हमारे कुलदेवी देवता कौन है
Vatan - latipar ( Dis- jamnagar).
Surname - Vyas
Gotra - Bharadwaja
Avditjalavadi Bhraman hamri kuldevi kon hye ?
मेरा नाम श्याम कुमार सक्सेना है मेरा भरद्वाज गौत्र है हमारी कुलदेवी और कुलभैरव कहाँ हैं क्रपया जनकारी देने का कष्ट करे
Hamara gotra bharadwaj hai, hamari kuldevi Kaun hsin
मेरा नाम अनुज पान्डेय है मेरा भारदाज गौत है मै अपने कुलदेवता या कुलदेबी के बारे मे कुछ नही जानता हूँ मुझे उन की एक फोटो भेजे उन केी इस्थापना की पूरी जानकारी दे क्या करे क्या न करे जो देवता नखुस हो जाये विस्तार से लिऑख कर जानकारी देने कि दया करे तो मै का आजीवन कर्जदार रहूगा मै आप से आशीर्बाद की मंगलकामना करता हूँ अनुज महाराज खरेला महोबा बुन्देलखन्ड
क्या आप भारद्वाज पापड़े गोत्र के बारे मे कुछ बता सकते हैं।
गोत्र भरतवाज है। कुदेवत कौन से है ।कृपया आप बताये। आप का आभारी रहुगा।
Mera dolya gotta h or hamari kuldevi konsi h bataye
Karela dube gotr ki kuldevi konsi hai tatha iska mandir kanha per hai
Karela dube bhardwaj gotr ki kuldevi konsi hai tatha iskamandir kanha peer hai
Mera gotra bhardwaj hn muje apni kuldevi ka naam janna hain
Bhardwaj ki Kuldevi kon he.
Mara naam bhavin pandit hai.... Mera gotra muje nahi pata.... Garoda Harijan bharman hu....
gotr bhardwaj h varn (paladiya joshi) h hame hamari kuldevi ka pata nhi h please help me sir ham bahut taklif me h koi h jo hame is taklif se nikal sake
कृपया भरद्वाज गोत्र की कुल देवी का नाम बताये एवं उनका स्थान कहँ हे
Hm कान्यकुब्ज ब्राहमण है गोत्र भारदबाज है हमारी कुलदेवी को हे आप बताने की कृपा करें
हमारा गोत्र भारद्वाज है
हम कौन से दूबे है
बताने की क्रिया करे
हम कौन से दूबे है हमारा गोत्र भारद्वाज है
Details
मेरा नाम दिवाकर दुबे बेलवाअकसौली दुबे मेरा भारदाज गौत है मै अपने कुलदेवता या कुलदेबी के बारे मे कुछ नही जानता हूँ मुझे उन की एक फोटो भेजे उन केी इस्थापना की पूरी जानकारी दे क्या करे क्या न करे जो देवता नखुस हो जाये विस्तार से लिऑख कर जानकारी देने कि दया करे तो मै का आजीवन कर्जदार रहूगा मै आप से आशीर्बाद की मंगलकामना करता हूँ
भारद्वाज गोत्र,बेलवाकस्वली दूबे का कुल देवी कहा पेर है
कुल देवी
भारद्वाज गोत्रके पचौरी ब्राह्मण का इतिहास बताये। कोतवान पचौरी का पूर्ण विवरण
हम अश्वलयन गोत्र के ब्राह्मण गाँव खाम्बी तहसील होडल जीकला पलवल हरयाणा के रहने वाले है । आपसे अनुरोध है की हमको हमारे गोत्र अश्वलयन के बारे मे विस्तृत जानकारी उपलब्ध करने की कृपा करे जैसे :
अश्वलयन ऋषि किस समय मे हुए इनके पिता कोण थे इनकी संतान कहाँ से उत्पत्ति हुई इस गोत्र के प्रवर कुलदेबी आदि कोण है। धन्यबद
हरी शंकर शर्मा
मोब: 9896651438
ए मेल hssharma@kribhco.net
mujhe meregotra pipdoda upadhyay ki kuldevi janna h so plz
महोदय कृपया तिवारी गोत्र के बारे में भी प्रकाश डालना चाहें तिवारी गोत्र किस ऋषि की संतान है और इनकी उत्पत्ति कहां से हुई
Me kanpur ka nivasi hu.mera gotra bhardwaj he me janna chahta hu ki meri kuldevi kon he or unka sthan kaha he me vaha jana chahta hu kripya pura pta bataye
Hello mera gotra bhargav hai aur mai punjab ce hu ky aap mera kuldevi ke bare mai info de sakte hai.
Hoshiarpur Punjab se hu hamara gotra bhardwaj hai hme apne kuldevi ke varre Mai bataye
mara name sakshi ha hamara gothr bk ha aur kast kashyap ha to hamara kuldavi khun ha please reply
Mera kuldevi kaun hai unka pic bhejay karpaya mera gotra attri hai
मेरा नाम jagdev singh मेरा भारदाज गौत है मै अपने कुलदेवता या कुलदेबी के बारे मे कुछ नही जानता हूँ मुझे उन की एक फोटो भेजे उन केी इस्थापना की पूरी जानकारी दे क्या करे क्या न करे जो देवता नखुस हो जाये विस्तार से लिऑख कर जानकारी देने कि दया करे तो मै का आजीवन कर्जदार रहूगा मै आप से आशीर्बाद की मंगलकामना करता हूँ
Hum Khandelwal Joshi hai Hum Apni Kuldevi ke baare mein jaana hai Ye Kaun Hai Hamari Kuldevi
Brambhtt
Samaj
Ki
Kuldevi/ gotra
Bataie
Gujarat
Kripaya indoriya aadi gaud brahmanon ki kuldevi batayen
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