अविश्वास प्रस्ताव किस सदन में लाया जाता है
अविश्वास का प्रस्ताव (वैकल्पिक रूप से अविश्वास, निंदा प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव या विश्वास प्रस्ताव पर मतदान) एक संसदीय प्रस्ताव है, जिसे पारंपरिक रूप से विपक्ष द्वारा संसद
में एक सरकार को हराने या कमजोर करने की उम्मीद से रखा जाता है या दुर्लभ
उदाहरण के रूप में यह एक तत्कालीन समर्थक द्वारा पेश किया जाता है, जिसे
सरकार में विश्वास नहीं होता। यह प्रस्ताव नये संसदीय मतदान (अविश्वास का मतदान) द्वारा पारित किया जाता है या अस्वीकार किया जाता है।
ब्रिटिश संसद में आम तौर पर यह पहले दिन के प्रारंभ में पेश होने वाले
प्रस्ताव जैसा लगता है, हालांकि महारानी के अभिभाषण पर वोट भी किसी विश्वास
प्रस्ताव का गठन करता है।
आमतौर
पर जब संसद अविश्वास पर वोट करती है या वह विश्वास मत में विफल रहती है,
तो किसी सरकार को दो तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करनी होती है :
इस प्रक्रिया को या तो संवैधानिक परंपरा के माध्यम से औपचारिक रूप दिया जाता है, जैसा कि ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया[] जैसे वेस्टमिनिस्टर शैली की संसदों में होता है या जर्मनी और स्पेन जैसे देशों के मामलों में स्पष्ट रूप से लिखे गये संविधान के जरिये.[]
एक वेस्टमिनिस्टर प्रणाली
में, अगर सरकार खुद इस्तीफा देने का फैसला करती है या मजबूर होती है तो
सम्राट या वायसराय आधिकारिक विपक्षी दल से पूछ सकते हैं कि क्या वह सरकार
बनाने के लिए तैयार हैं। इसके लिए दलों के एक गंठबंधन या समर्थन के एक
समझौते की आवश्यकता हो सकती है, ताकि विपक्षी पार्टी को इतनी संसदीय सीटें
मिल जायें कि वह अपने खिलाफ लाये गये किन्हीं विश्वास संबंधी चुनौतियों को
झेल सके। अगर ऐसा नहीं किया जा सकता है तो संसद भंग कर दी जाती है और आम
चुनाव की घोषणा की जाती है। सम्राट या वायसराय किसी दूसरी सरकार के गठन की
पहल किये बिना संसद को भंग कर सकते हैं, हालांकि यह नये जनादेश के लिए
चुनावों तक, अन्य सरकार के गठन की तार्किक उम्मीद या बहुत दुर्लभ हालात में
अकेले रॉयल परमाधिकार जैसे कारकों पर निर्भर होता है।
जहां एक सरकार ने जिम्मेदार सदन का विश्वास खो दिया हो (यानी,
सीधे निर्वाचित निचला सदन, जो इसे चुन सकता हैं और भंग कर सकता है, है; कुछ
राज्यों में संसद के दोनों सदन जिम्मेदार होते हैं), तो राष्ट्र प्रमुख को
संसद भंग करने का अनुरोध ठुकराने का संवैधानिक अधिकार हो सकता है, इसलिए
तत्काल इस्तीफे के लिए मजबूर कर सकते हैं।
अक्सर, महत्वपूर्ण विधेयक विश्वास मत की तरह होते हैं, जब सरकार ऐसा
घोषित करे. इसका उपयोग असंतुष्ट संसद सदस्यों को इसके खिलाफ मतदान करने से
रोकने के लिए किया जा सकता है। कभी-कभी (देश के आधार पर) एक सरकार इस कारण
मतदान में हार सकती है, जब बहुत सारे सरकारी सदस्य बाहर हों और विपक्ष समय
से पहले बहस खत्म कर दे।
वेस्टमिनिस्टर प्रणाली
में, आपूर्ति बिल के गरिने (जो धन के खर्च से संबंधित होता है) से स्वत:
(परंपरागत रूप से) सरकार के इस्तीफे या संसद को भंग करने की आवश्यकता होती
है, बहुत कुछ अविश्वास मतदान की तरह, क्योंकि जो सरकार पैसा नहीं खर्च कर
सकती, वह पंगु हो जाती है। इसे आपूर्ति में कमी कहा जाता है।
जहां वेस्टमिनिस्टर प्रणाली वाले देश के ऊपरी सदन को आपूर्ति से इनकार
करने का अधिकार है, जैसा कि ऑस्ट्रेलिया में 1975 की घटनाओं के दौरान हुआ
था, वहां परंपरा एक मोटे तौर पर परिभाषित क्षेत्र बन जाता है, क्योंकि
वेस्टमिनिस्टर सरकारों से आम तौर पर ऊपरी सदन में विश्वास बहाल रखने की
उम्मीद नहीं की जाती.
इस प्रक्रिया में बहुत सारे बदलाव होते हैं।
उदाहरण के लिए जर्मनी, स्पेन व इसराइल
में एक अविश्वास मत में इस बात की आवश्यकता होती है कि विपक्ष उसी मतपत्र
पर खुद के अपने उम्मीदवार का प्रस्ताव रखें, जिसकी वे राज्य का प्रमुख होने
के लिए संबंधित राष्ट्र प्रमुख द्वारा नियुक्ति चाहते हैं। इस तरह
अविश्वास का प्रस्ताव भी उसी समय पेश किया जाता है, जब नये उम्मीदवार (इस
बदलाव को अविश्वास के लिए रचनात्मक मतदान कहा जाता है) के लिए विश्वास मत
पेश होता है। यह विचार देश पर किन्हीं संकटों को आने से रोकने के लिए होता
है, जैसा कि जर्मन वेमर गणराज्य के अंत के समय पैदा हुआ था और यह सुनिश्चित
किया जाता है कि सरकार का मुखिया कौन हो, जिसके पास शासन करने के लिए
पर्याप्त समर्थन है। ब्रिटिश प्रणाली के विपरीत विश्वास मत कि गिरने से
जर्मन चांसलर को इस्तीफा नहीं देना होता है, बशर्ते कि यह खुद उनके द्वारा
पेश किया गया हो, संसदीय विपक्ष द्वारा नहीं। इसके बदले संघीय राष्ट्रपति
को आम चुनाव कराने के लिए कह सकते हैं- जिस अनुरोध को राष्ट्रपति मान भी
सकते हैं और नहीं भी.
सरकार में कोई अविश्वास प्रस्ताव सामूहिक रूप से या प्रधानमंत्री सहित किसी व्यक्तिगत सदस्य द्वारा प्रस्तावित किया जा सकता है। स्पेन
में यह परामर्श के बाद प्रधानमंत्री द्वारा पेश किया जाता है। कभी-कभी
अविश्वास प्रस्ताव तब भी रखे जाते हैं, जब यह पता होता कि यह पारित नहीं हो
पायेगा और साधारण तौर पर इसका मकसद सरकार पर दवाब डालना या अपने स्वयं के
आलोचकों को लज्जित करने के लिए होता है, जो राजनीतिक कारणों की वजह से इसके
खिलाफ वोट करना नहीं चाहते. कई संसदीय लोकतंत्रों में मतदान के लिए
अविश्वास प्रस्ताव रखने की एक सख्त समय सीमा होती है और हर तीन, चार या छह
महीने में एक बार ही इसकी अनुमति मिलती है। इस प्रकार अविश्वास मत प्रस्ताव
का उपयोग कब किया जाये, यह तय करना राजनीतिक निर्णय की बात है, क्योंकि क
अपेक्षाकृत छोटे मामले पर अविश्वास प्रस्ताव का उपयोग अपने प्रस्तावक के
लिए उल्टा साबित पड़ सकता है, जब एक और महत्वपूर्ण मुद्दा अचानक उभर जाये,
जिससे कि अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की जरूरत पड़े, क्योंकि कोई दूसरा
प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जा सकता, अगर किसी प्रस्ताव पर हाल ही में
मतदान हुआ हो और फिर कई महीनों तक इसे फिर से पेश नहीं किया जा सकता.
कनाडा के नॉर्थवेस्ट टेरीटॉरिज एंड नूनावुट कनाडा
के आम सहमति वाली सरकारी प्रणाली में, जहां प्रधानमंत्री को गैर-दलीय
विधायिका के सदस्यों के बीच में से व उनके द्वारा चुना जाता हैं, अविश्वास
प्रस्ताव पर मतदान कर प्रधानमंत्री और कैबिनेट को हटाया जा सकता है और इसके
सदस्यों को नए प्रधानमंत्री के चुनाव की अनुमति होती है। (सीबीसी (CBC))
राष्ट्रपति
प्रणाली में विधायिका कभी-कभी अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकती है, जैसा कि
1950 में संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश सचिव डीन एचेसन के खिलाफ किया गया
था और हाल में अमेरिकी अटार्नी जनरल अल्बर्टो गोंजालिस के खिलाफ सोचा गया
था, लेकिन इन प्रस्तावों का केवल प्रतीकात्मक प्रभाव ही है। राष्ट्रपति
प्रणाली में भी आम तौर पर महाभियोग की प्रक्रिया होती है, जिसके द्वारा एक कार्यकारी या न्यायिक अधिकारी को हटाया जा सकता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा[] और वेनेजुएला
के कुछ भागों में वापस बुलाने वाले चुनाव के जरिये अलोकप्रिय सरकार को
हटाने की समान भूमिका अदा करता है, लेकिन, अविश्वास प्रस्ताव के विपरीत इस
मतदान में सारे मतदाता शामिल होते है।
कई राज्य विधानसभाओं को ऐसे ही प्रस्तावों के जरिये अपने सदस्यों को नेतृत्व वाले पदों से हटाने की शक्ति प्राप्त है। न्यूयॉर्क राज्य
ने हाल ही में कम से कम दो बार ऐसा किया है। 1994 में न्यूयॉर्क सीनेट ने
जोसफ ब्रूनो के पक्ष में राल्फ मैरिनो को बेदख़ल कर दिया था और अभी हाल में
2009 में न्यूयॉर्क राज्य सीनेट नेतृत्व संकट के दौरान एक अविश्वास
प्रस्ताव पर मतदान के जरिये मैल्कम स्मिथ को पद से हटा दिया गया था,
क्योंकि बहुसंख्यक नेता पेड्रो एस्पाडा जूनियर के पक्ष में थे।[]
पहला अविश्वास प्रस्ताव मार्च 1782 में पेश किया गया था, जब पिछले
अक्टूबर में अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध में योर्कटाउन में ब्रिटिश की हार
की खबर मिली थी और ग्रेट ब्रिटेन की संसद ने वोट दिया है कि वे "वर्तमान
मंत्रियों में अब और विश्वास नहीं करते". प्रधानमंत्री लॉर्ड नार्थ को किंग
जार्ज तृतीय से उनका इस्तीफा स्वीकार करने के लिए कहा था। इससे तुरंत कोई
संवैधानिक परंपरा नहीं बनी। 19 वीं शताब्दी के शुरुआती दौर में तथापि,
राबर्ट पील जैसे प्रधानमंत्रियों को संसदीय बहुमत के बिना शासन करने के
प्रयास असफल साबित हुए और 19 वीं सदी के मध्य तक ब्रिटेन में अविश्वास
प्रस्ताव से सरकार को तोड़ने की क्षमता मजबूती से स्थापित हो चुकी थी।
यूनाइटेड किंगडम में कुल 11 प्रधानमंत्रियों को अविश्वास प्रस्ताव के
माध्यम से हराया गया। 1925 के बाद से केवल एक (जेम्स कैलेघान के खिलाफ)
मामला ऐसा हुआ है।
आधुनिक समय में दो दलीय लोकतांत्रिक देशों में एक अविश्वास प्रस्ताव का
पारित होना एक अपेक्षाकृत दुर्लभ घटना है। लगभग सभी मामलों में एक
बहुसंख्यक दल के लिए अविश्वास प्रस्ताव को पराजित करने हेतु पार्टी का
अनुशासन ही पर्याप्त होता है और अगर सरकारी दल को संभावित दलबदल का सामना
करना पड़े तो सरकार अविश्वास मत हारने के बजाय अपनी नीतियों में बदलाव कर
सकती है। जिन मामलों में अविश्वास प्रस्ताव पारित किया जाता है, उनमें आम
तौर पर वे मामले होते हैं जिनमें सरकारी पार्टी को बहुत थोड़ा बहुमत हो और
जो उप-चुनाव या दलबदल के जरिये गिराई जा सके, जैसा कि 1979 में ब्रिटेन की
कैलेघान सरकार एक वोट से गिर गई थी, जिससे मजबूरन ब्रिटेन में आम चुनाव
कराने पड़े और मार्गरेट थैचर सरकार चुनी गई थी।
अविश्वास प्रस्ताव बहुदलीय प्रणालियों में ज्यादा आम हैं, जिनमें एक
अल्पसंख्यक दल को गंठबंधन सरकार बनानी पड़ती है। यह एक ऐसी स्थिति पैदा कर
सकता है, जिसमें कई अल्पकालिक सरकारें बनें, क्योंकि दलीय ढा़चा छोटे दलों
को सरकार बनाने के साधन के बिना एक सरकार को गिराने की अनुमति देता है।
फ्रांस के चौथे गणराज्य और जर्मनी के वेमर गणतंत्र की अस्थिरता के लिए ऐसी
ही स्थितियों को कारण माना गया। इस हकीकत की हाल की मिसालें 1950 के दशक से
और 1990 के दशक के बीच इटली, इसराइल और जापान में दिखीं.
इस स्थिति से निपटने के लिए फ्रांसीसियों ने फ्रांस के राष्ट्रपति को
भारी कार्यकारी शक्तियां दीं, जिससे कि उन्हें अविश्वास प्रस्ताव से
प्रतिरक्षा हासिल हो सके।
2008 में कनाडा की फिर से निर्वाचित अल्पमत सरकार के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर
ने कनाडा के गवर्नर जनरल माइकल जीन से संसद को स्थगित करने का अनुरोध
किया। अनुरोध को मान लिया गया और इससे कनाडा के प्रधानमंत्री को विपक्ष
द्वारा प्रस्तुत होने वाले अविश्वास प्रस्ताव पर संभावित मतदान में देरी
करने में सुविधा मिली। (देखें 2008-2009 कनाडा के संसदीय विवाद)
Avishwas prastav Sansad me kis din laya
jata hai
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