प्राचीन और आधुनिक शिक्षा प्रणाली
देश का विकास और उन्नति तब ही हो सकती है जब शिक्षा व्यवस्था सही हो. जीवन में सफल होने और कुछ अलग करने के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है. जीवन की कठिन चुनौतियों को इसके जरिये कम किया जा सकता है. शिक्षा अवधि में प्राप्त ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के बारे में आश्वस्त करता है.
प्राचीन काल से हमारे देश में शिक्षा को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. हमारे भारत में गुरुकुल परम्परा सबसे पुरानी व्यवस्था है. गुरुकुलम वैदिक युग से ही अस्तित्व में है. प्राचीन काल में गुरुकुल शिक्षा पद्दति से ही शिक्षा दी जाती थी. भारत को विश्व गुरु इस पद्धति के कारण ही तो कहा जाता था.
अब इस परम्परा का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं कि गुरुकुल परम्परा क्या है, किस प्रकार से पहले शिक्षा दी जाती थी और आज के युग की आधुनिक शिक्षा गुरुकुल पद्धति से कैसे भिन्न है.
गुरुकुल परम्परा क्या है?
गुरुकुल का अर्थ है वह स्थान या क्षेत्र, जहां गुरु का कुल यानी परिवार निवास करता है. प्राचीन काल में शिक्षक को ही गुरु या आचार्य मानते थे और वहां शिक्षा ग्रेह्ण करने वाले विद्यार्थियों को उसका परिवार माना जाता था.
आचार्य गुरुकुल में शिक्षा देते थे. गुरुकुल में प्रवेश करने के लिए आठ साल का होना अनिवार्य था और पच्चीस वर्ष की आयु तक लोग यहां रहकर शिक्षा प्राप्त और ब्रह्मचर्य का पालन करते थे.
गुरुकुल में छात्र इकट्ठे होते हैं और अपने गुरु से वेद सीखते हैं. सामाजिक मानकों के बावजूद हर छात्र के साथ समान व्यवहार किया जाता था यानी यहां पर हर वर्ण के छात्र पढ़ते थे चाहे वे क्षत्रिय हो या शूद्र परिवार से, किसी प्रकार का भेदभाव नही था. जितना पढ़ने का अधिकार ब्राह्मणों को था उतना ही शुद्र को भी था. गुरुकुल का मुख्य उदेश्शय ज्ञान विकसित करना और शिक्षा पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना होता था.
यहां पर धर्मशास्त्र की पढाई से लेकर अस्त्र की शिक्षा भी सिखाई जाती थी. इसमें कोई संदेह नहीं है कि योग साधना और यज्ञ के लिए गुरुकुल को एक अभिन्न अंग माना जाता है. यहां पर हर विद्यार्थी हर प्रकार के कार्य को सीखता है और शिक्षा पूर्ण होने के बाद ही अपना काम रूचि और गुण के आधार पर चुनता था.
उपनिषदों में लिखा गया है कि मातृ देवो भवः ! पितृ देवो भवः ! आचार्य देवो भवः ! अतिथि देवो भवः !
अर्थात माता-पिता, गुरु और अतिथि संसार में ये चार प्रत्यक्ष देव हैं, इनकी सेवा करनी चाहिए.
इनमें भी माता का स्थान पहला, पिता का दूसरा, गुरु का तीसरा और अतिथि का चौथा है.
गुरुकुल में सबको समान सुविधाएं दी जाती थी. मनुस्मृतिमें मनु महाराज ने कहा है किहर कोई अपने लड़के लड़की को गुरुकुल में भेजे, किसी को शिक्षा से वंचित न रखें तथा उन्हें घर मे न रखें.
गुरुकुल प्रणाली के गुण
1. गुरुओं को विशाल जानकारी थी और उन्हें पता था कि किस प्रकार से चीजों को कैसे निर्देशित किया जाए यानी कैसे शिक्षा दी जाए.
2. इस परम्परा को जितना समय चाहिए होता था उतना ही समय लगता था और इसके कारण, छात्र एक सूक्ष्म रूप में बाहर निकलते थे.
3. छात्र एक हासिल करने और दक्षता के उच्च स्तर पर प्रयुक्त होते थे.
4. छात्र गुरु का सम्मान करते थे और उन्हें अनुशासन पालन करना सिखाया जाता था.
5. अधिकांश शिक्षण व्यावहारिक था और शिक्षा की इस शैली के कई फायदे थे.
6. छात्र को इस प्रकार का वातावरण दिया जाता था कि व्यक्ति अपने पसंद के काम के साथ एक सफल व्यक्ति बन जाए.
परन्तु गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में छात्र को बहुत अधिक अनावरण नहीं मिल पाता है क्योंकि वह एक ही गुरु के प्रशिक्षण में रहता है, पाठ्यक्रम के लिए नामित कोई दिन और उम्र नहीं थी. गुरुकुल में आश्रय जीवन के साथ बाहरी दुनिया के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाती है.
आधुनिक शिक्षा प्रणाली और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली
आधुनिक शिक्षा प्रणाली समय के साथ विकसित हुई है और पश्चिमी प्रणाली से प्रभावित है. यह प्रौद्योगिकी में बदलाव और प्रगति से प्रभावित हुई है. इस शिक्षा प्रणाली में ईबुक, वीडियो व्याख्यान, वीडियो चैट, 3-डी इमेजरी आदि तकनीक शामिल हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली, तकनीकी विकास को शामिल करने के लिए विकसित हुई है. इन तकनीकों के माध्यम से छात्रों को घर बैठकर और बेहतर तरीके से ज्ञान को समझने में मदद मिलती है जिससे स्मृति में बढ़ोतरी होती हैं. उन्नत अनुसंधान और विकास के अनुसार शिक्षण विधियों को लगातार अपग्रेड किया जा रहा है.
इस शिक्षा प्रणाली की एकमात्र कमी यही है कि इसमें व्यावहारिक भाग के बजाय सैद्धांतिक भाग पर जोर दिया जाता है. जब प्रतिधारण, समझ और अवसरों की बात आती है तो कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि आधुनिक शिक्षा अधिक प्रभावी है. साथ ही इस शिक्षा प्रणाली को सबको उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार इसे इस्तेमाल कर सके.
इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं हैं की दोनों शिक्षा प्रणालियों का एकीकरण करने की जरुरत है. हमें गुरुकुल को समझने की जरुरत है कि वह कैसे काम करता है, अतीत में समाज कैसा दिखता था और वर्तमान में गुरुकुल प्रशिक्षण का उद्देश्य को कैसे पूरा किया जा सकता है. यह सिर्फ अतीत को जानने के लिए ही नहीं है. दोनों शिक्षा प्रणाली का समन्वय होना अनिवार्य है. हमें ये नहीं भूल सकते हैं कि गुरुकुल प्रणाली उस समय की एकमात्र शिक्षा प्रणाली थी. छात्रों ने इस प्रणाली के जरिये शिक्षा के साथ सुसंस्कृत और अनुशासित जीवन के लिए आवश्यक पहलुओं को भी पढ़ाया गया था. छात्र मिलकर गुरुकुल छत के नीचे रहते थे और वहां एक अच्छी मानवता, प्रेम और अनुशासन था. यहां पर छात्रों को बुजुर्गों, माता, पिता और शिक्षकों का सम्मान करने की अच्छी आदतें सिखाई जाती हैं.
प्राचीन काल की गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को भुलाया ही नहीं जा सकता है जहाँ संस्कार, संस्कृति और शिष्टाचार और सभ्यता सिखाई जाती हो.
देश का विकास और उन्नति तब ही हो सकती है जब शिक्षा व्यवस्था सही हो. जीवन में सफल होने और कुछ अलग करने के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है. जीवन की कठिन चुनौतियों को इसके जरिये कम किया जा सकता है. शिक्षा अवधि में प्राप्त ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के बारे में आश्वस्त करता है.
प्राचीन काल से हमारे देश में शिक्षा को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. हमारे भारत में गुरुकुल परम्परा सबसे पुरानी व्यवस्था है. गुरुकुलम वैदिक युग से ही अस्तित्व में है. प्राचीन काल में गुरुकुल शिक्षा पद्दति से ही शिक्षा दी जाती थी. भारत को विश्व गुरु इस पद्धति के कारण ही तो कहा जाता था.
अब इस परम्परा का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं कि गुरुकुल परम्परा क्या है, किस प्रकार से पहले शिक्षा दी जाती थी और आज के युग की आधुनिक शिक्षा गुरुकुल पद्धति से कैसे भिन्न है.
गुरुकुल परम्परा क्या है?
गुरुकुल का अर्थ है वह स्थान या क्षेत्र, जहां गुरु का कुल यानी परिवार निवास करता है. प्राचीन काल में शिक्षक को ही गुरु या आचार्य मानते थे और वहां शिक्षा ग्रेह्ण करने वाले विद्यार्थियों को उसका परिवार माना जाता था.
आचार्य गुरुकुल में शिक्षा देते थे. गुरुकुल में प्रवेश करने के लिए आठ साल का होना अनिवार्य था और पच्चीस वर्ष की आयु तक लोग यहां रहकर शिक्षा प्राप्त और ब्रह्मचर्य का पालन करते थे.
गुरुकुल में छात्र इकट्ठे होते हैं और अपने गुरु से वेद सीखते हैं. सामाजिक मानकों के बावजूद हर छात्र के साथ समान व्यवहार किया जाता था यानी यहां पर हर वर्ण के छात्र पढ़ते थे चाहे वे क्षत्रिय हो या शूद्र परिवार से, किसी प्रकार का भेदभाव नही था. जितना पढ़ने का अधिकार ब्राह्मणों को था उतना ही शुद्र को भी था. गुरुकुल का मुख्य उदेश्शय ज्ञान विकसित करना और शिक्षा पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना होता था.
यहां पर धर्मशास्त्र की पढाई से लेकर अस्त्र की शिक्षा भी सिखाई जाती थी. इसमें कोई संदेह नहीं है कि योग साधना और यज्ञ के लिए गुरुकुल को एक अभिन्न अंग माना जाता है. यहां पर हर विद्यार्थी हर प्रकार के कार्य को सीखता है और शिक्षा पूर्ण होने के बाद ही अपना काम रूचि और गुण के आधार पर चुनता था.
उपनिषदों में लिखा गया है कि मातृ देवो भवः ! पितृ देवो भवः ! आचार्य देवो भवः ! अतिथि देवो भवः !
अर्थात माता-पिता, गुरु और अतिथि संसार में ये चार प्रत्यक्ष देव हैं, इनकी सेवा करनी चाहिए.
इनमें भी माता का स्थान पहला, पिता का दूसरा, गुरु का तीसरा और अतिथि का चौथा है.
गुरुकुल में सबको समान सुविधाएं दी जाती थी. मनुस्मृतिमें मनु महाराज ने कहा है किहर कोई अपने लड़के लड़की को गुरुकुल में भेजे, किसी को शिक्षा से वंचित न रखें तथा उन्हें घर मे न रखें.
बुद्ध की विभिन्न मुद्राएं एवं हस्त संकेत और उनके अर्थ
गुरुकुल प्रणाली के गुण
1. गुरुओं को विशाल जानकारी थी और उन्हें पता था कि किस प्रकार से चीजों को कैसे निर्देशित किया जाए यानी कैसे शिक्षा दी जाए.
2. इस परम्परा को जितना समय चाहिए होता था उतना ही समय लगता था और इसके कारण, छात्र एक सूक्ष्म रूप में बाहर निकलते थे.
3. छात्र एक हासिल करने और दक्षता के उच्च स्तर पर प्रयुक्त होते थे.
4. छात्र गुरु का सम्मान करते थे और उन्हें अनुशासन पालन करना सिखाया जाता था.
5. अधिकांश शिक्षण व्यावहारिक था और शिक्षा की इस शैली के कई फायदे थे.
6. छात्र को इस प्रकार का वातावरण दिया जाता था कि व्यक्ति अपने पसंद के काम के साथ एक सफल व्यक्ति बन जाए.
परन्तु गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में छात्र को बहुत अधिक अनावरण नहीं मिल पाता है क्योंकि वह एक ही गुरु के प्रशिक्षण में रहता है, पाठ्यक्रम के लिए नामित कोई दिन और उम्र नहीं थी. गुरुकुल में आश्रय जीवन के साथ बाहरी दुनिया के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाती है.
आधुनिक शिक्षा प्रणाली और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली
आधुनिक शिक्षा प्रणाली समय के साथ विकसित हुई है और पश्चिमी प्रणाली से प्रभावित है. यह प्रौद्योगिकी में बदलाव और प्रगति से प्रभावित हुई है. इस शिक्षा प्रणाली में ईबुक, वीडियो व्याख्यान, वीडियो चैट, 3-डी इमेजरी आदि तकनीक शामिल हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली, तकनीकी विकास को शामिल करने के लिए विकसित हुई है. इन तकनीकों के माध्यम से छात्रों को घर बैठकर और बेहतर तरीके से ज्ञान को समझने में मदद मिलती है जिससे स्मृति में बढ़ोतरी होती हैं. उन्नत अनुसंधान और विकास के अनुसार शिक्षण विधियों को लगातार अपग्रेड किया जा रहा है.
इस शिक्षा प्रणाली की एकमात्र कमी यही है कि इसमें व्यावहारिक भाग के बजाय सैद्धांतिक भाग पर जोर दिया जाता है. जब प्रतिधारण, समझ और अवसरों की बात आती है तो कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि आधुनिक शिक्षा अधिक प्रभावी है. साथ ही इस शिक्षा प्रणाली को सबको उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी रुचि के अनुसार इसे इस्तेमाल कर सके.
इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं हैं की दोनों शिक्षा प्रणालियों का एकीकरण करने की जरुरत है. हमें गुरुकुल को समझने की जरुरत है कि वह कैसे काम करता है, अतीत में समाज कैसा दिखता था और वर्तमान में गुरुकुल प्रशिक्षण का उद्देश्य को कैसे पूरा किया जा सकता है. यह सिर्फ अतीत को जानने के लिए ही नहीं है. दोनों शिक्षा प्रणाली का समन्वय होना अनिवार्य है. हमें ये नहीं भूल सकते हैं कि गुरुकुल प्रणाली उस समय की एकमात्र शिक्षा प्रणाली थी. छात्रों ने इस प्रणाली के जरिये शिक्षा के साथ सुसंस्कृत और अनुशासित जीवन के लिए आवश्यक पहलुओं को भी पढ़ाया गया था. छात्र मिलकर गुरुकुल छत के नीचे रहते थे और वहां एक अच्छी मानवता, प्रेम और अनुशासन था. यहां पर छात्रों को बुजुर्गों, माता, पिता और शिक्षकों का सम्मान करने की अच्छी आदतें सिखाई जाती हैं.
प्राचीन काल की गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को भुलाया ही नहीं जा सकता है जहाँ संस्कार, संस्कृति और शिष्टाचार और सभ्यता सिखाई जाती हो.
Aaj ke samaj mein Hindi ka sthan kya hai
Aaj aaj ke samaj mein Hindi ka sthan kya hai
Prachin kal mein ladkiyon ko kyu nahi padhya jata thaa
Aur pale kya nahi tha ki ab hota hai
आप कहां रहते हैं ?
आप कोन हैं ?
Hi mahiti Marathit sanga
Carben atomic mass
{{{हर वर्ण के छात्र पढ़ते थे चाहे वे क्षत्रिय हो या शूद्र परिवार से, किसी प्रकार का भेदभाव नही था. जितना पढ़ने का अधिकार ब्राह्मणों को था उतना ही शुद्र को भी था}}}
ये क्या बकवास है क्या आपको नहीं पता शुद्रो को और नारी को पढ़ने का अधिकार नहीं था कितनी यातनाये झेलनी पड़ी। क्यों ढोंग रचते हो समानता का।।।
Ftyyujjjhtr
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