हिंदी में लोकतंत्र के दोष
अभी गोवा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और मणिपुर राज्यों के चुनाव की प्रकिया पूर्ण हुई है । चुनाव आने पर, अनेक उलटी-सीधी बातें आरंभ होती हैं । अपने विरोधी दल और प्रत्याशी के दोष और त्रुटियां बढा-चढा कर कहने के लिए राजनीतिक दल प्रतीक्षा ही करते रहते हैं । आजकल के राजनेताआें के खाने के दांत और दिखाने के दांत अलग-अलग हैं । इसलिए जब वे अपने प्रत्याशी पर लगे आरोप, अपराध, संपत्ति आदि का विवरण देते हैं, तब वह महत्त्वपूर्ण होती है । मतदाताआें को अपने नेता के विषय में जानने का यह सबसे अच्छा अवसर होता है । भारतीय समाज पापभीरु है । इसलिए, समाज नहीं चाहता कि किसी अपराधी प्रवृत्ति के प्रत्याशी को चुनाव लडने का अवसर मिले । ऐसे प्रत्याशियों की संख्या १-२ नहीं है । सर्वेक्षण से पता चला है कि ४०४ सदस्यों के लिए होनेवाले उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों में आपराधिक पृष्ठभूमि के १४३ प्रत्याशियों ने आवेदनपत्र जमा किया है । असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के प्रतिवेदन से पता चला है कि इन प्रत्याशियों के विरुद्ध हत्या, हत्या का प्रयत्न, अपहरण, महिलाआें से अभद्रता, इस प्रकार के गंभीर अपराध पंजीबद्ध हैं । ४० सदस्यों की गोवा विधानसभा चुनाव में ३८ प्रत्याशी आपराधिक पृष्ठभूमि के थे और १९ प्रत्याशियों के नाम पर गंभीर अपराध पंजीकृत थे ।
अपराधियों का सज्जनों पर राज्य करना कष्टदायक है ।
अपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को राजनीतिक दल प्रत्याशी बनाते हैं, चुनाव आयोग उन्हें चुनाव लडने देता है और जनता भी इनमें से कुछ को चुनती है । यह, लोकतंत्र की विफलता के अनेक कारणों में से एक है । जब हम लोकतंत्र के विषय में कहते हैं कि यह जनताद्वारा जनता के लिए चलाया जानेवाला शासन है, तब आशा रहती है कि इसमें हमें शुद्ध जनहितकारी शासन मिलेगा । परंतु पिछले ७० वर्षों से हम इस लोकतंत्र का जो आचरण देख रहे हैं, उससे लगता है कि लोकतंत्र, अर्थात व्यक्तिगत लाभ के लिए की जानेवाली राजनीति है । इस लोकतंत्र में स्वार्थी और आपराधिक प्रवृत्ति के प्रत्याशियों को चुनाव लडने से रोकने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है । किसी सामान्य व्यक्ति पर केवल आरोप लग जाने पर, उसे समाज में मुंह दिखाना कठिन हो जाता है । अपराध पंजीबद्ध होने पर उसकी समाज में छी-थू होती है, सेवा (नौकरी) से निकाल दिया जाता है, परिजनों को भी अपमान सहना पडता है । फिर भी, इतने संवेदनशील समाज पर शासन करने के लिए आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को चुनाव लडने की अनुमति दी जाती है । यह अनुचित है । जिन पर हत्या, बलात्कार, अपहरण जैसे गंभीर अपराध पंजीबद्ध हों, ऐसे प्रत्याशी समाज में सिर उठकर चलते हैं, उन्हें मान-सम्मान दिया जाता है । चुनकर आने पर पुलिस की सुरक्षा, सरकारी सुविधाएं, शासन की ओर से मिलनेवाले वेतन-भत्ते, इन सब बातों के आधार पर एक अपराधी मौज करता रहता है और ऐसी स्थिति में सामान्य व्यक्ति पूर्णतः टूट जाता है । यह लोकतंत्र का अत्यंत घिनौना और अन्यायकारी रूप है । जिस समाज को केंद्रबिंदु मानकर लोकतंत्र की रचना की गई है, उसकी इस लोकतंत्र में दुर्गति होती है, उसके सामने अपराधी को आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया जाता है
लोकतंत्र की दुर्भाग्यपूर्ण व्यवस्थाएं
राजनीति इस देश का अकेला ऐसा क्षेत्र है, जिसमें प्रवेश पाने के लिए पढाई-लिखाई की आवश्यकता नहीं होती । जो कुछ नहीं कर सकता, वह राजनीति में आ सकता है । वर्षों से लोकतंत्र के वैधानिक संशोधनों का दुरुपयोग किया जा रहा है । अनपढ राबडीदेवी बिहार की मुख्यमंत्री बन सकती हैं, वर्षों तक जिनका शिक्षाक्षेत्र से संबंध नहीं, वे आज प्रभावशाली नेता हैं इसलिए शिक्षामंत्री हो सकते हैं, जिसे चिकित्सा क्षेत्र का ज्ञान नहीं, वह स्वास्थ्यमंत्री होता है । सामान्य जीवन में, संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों को ही उस क्षेत्र का दायित्व दिया जाता है । जिस लोकतंत्र के पास देश चलाने का दायित्त्व है, उसमें न्यूनतम सामाजिक कर्तव्यों का पालन न होना, दुर्भाग्यपूर्ण है ।
लोकतंत्र की त्रुटियां सुस्पष्ट रूप से समाज के सामने रखना अनिवार्य
सामान्य व्यक्ति यह सब निराशाभरी दृष्टि से चुपचाप देखता रहता है क्योंकि उसमें इसका विरोध करने की क्षमता नहीं होती । उसके पास कोई विकल्प नहीं होता । परंतु, यह सब बदलने के लिए, सामाजिक संघर्ष करने के लिए मन को तैयार करना, सुराज्य का मूलभूत अधिकार जनता को दिलवाने के लिए जनमत को प्रवृत्त करना, संगठित करना एवं लोकतंत्र की त्रुटियां सुस्पष्ट उदाहरण सहित जनता के सामने रखना, यह तो अवश्य किया जा सकता है । ईश्वर की योजनानुसार समाज को रामराज्य की अनुभूति देनेवाला हिन्दू राष्ट्र समीप आ रहा है । उस कार्य की आधारशिला के रूप में एक राष्ट्रप्रेमी के नाते इतना तो अवश्य कर सकते हैं
राजधर्म का ज्ञान नहीं और धर्मसत्ता का आधार नहीं
राजा से जब चूक होती है, तब उसे धर्मसत्ता मार्ग दिखाती है । यह हिन्दुआें की परंपरा है । परंतु, आज के धर्मनिरपेक्ष भारत ने इस परंपरा को अस्पृश्य माना है । इसका दुष्परिणाम हम देख ही रहे हैं । हमारे वर्तमान भारतीय राजनीतिज्ञों की अवस्था ऐसी है कि उन्हें न तो राजधर्म का ज्ञान है और न धर्मसत्ता का आधार है । यह स्थिति परिवर्तित करने के लिए और राजसत्ता पर धर्मसत्ता का अकुंश रखकर भारत को एक बार पुनः सुरक्षित और सुजला सुफला बनाने के लिए हिन्दू राष्ट्र ही चाहिए
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