Guru Granth Sahib Ki Rachana Kisne Ki गुरु ग्रंथ साहिब की रचना किसने की

गुरु ग्रंथ साहिब की रचना किसने की

Pradeep Chawla on 27-09-2018

सिखों का पवित्र धर्मग्रंथ जिसे उनके पाँचवें गुरु अर्जुनदेव ने सन्‌ 1604 ई. में संगृहीत कराया था और जिसे सिख मतानुयायी 'गुरूग्रंथ साहिब जी' भी कहते एवं गुरुवत्‌ मानकर सम्मानित किया करते हैं।

नक़्शे में गुरू ग्रन्थ साहिब के विभिन्न बानीकारों के जन्म स्थान दर्शाए गए हैं।

'आदिग्रंथ' के अंतर्गत सिखों के प्रथम पाँच गुरुओं के अतिरिक्त उनके नवें गुरु और 14 'भगतों' की बानियाँ आती हैं। ऐसा कोई संग्रह संभवत: गुरु नानकदेव के समय से ही तैयार किया जाने लगा था और गुरु अमरदास के पुत्र मोहन के यहाँ प्रथम चार गुरुओं के पत्रादि सुरक्षित भी रहे, जिन्हें पाँचवें गुरु ने उनसे लेकर पुन: क्रमबद्ध किया तथा उनमें अपनी ओर कुछ 'भगतों' की भी बानियाँ सम्मिलित करके सबको भाई गुरुदास द्वारा गुरुमुखी में लिपिबद्ध करा दिया। भाई बन्नों ने फिर उसी की प्रतिलिपि कर उसमें कतिपय अन्य लोगों की भी रचनाएँ मिला देनी चाहीं जो पीछे स्वीकृत न कतिपय अन्य लोगों की भी रचनाएँ गोविंदसिंह ने उसका एक तीसरा 'बीड़' (संस्करण) तैयार कराया जिसमें, नवम गुरु की कृतियों के साथ-साथ, स्वयं उनके भी एक ' सलोक' को स्थान दिया गया। उसका यही रूप आज भी वर्तमान समझा जाता है। इसकी केवल एकाध अंतिम रचनाओं के विषय में ही यह कहना कठिन है कि वे कब और किस प्रकार जोड़ दी गई।


'ग्रंथ' की प्रथम पाँच रचनाएँ क्रमश: (1) 'जपुनीसाणु' (जपुजी), (2) 'सोदरू' महला1, (3) 'सुणिबड़ा' महला1, (4) 'सो पुरखु', महला 4 तथा (5) सोहिला महला के नामों से प्रसिद्ध हैं और इनके अनंतर 'सिरीराग' आदि 31 रागों में विभक्त पद आते हैं जिनमें पहले सिखगुरूओं की रचनाएँ उनके (महला1, महला2 आदि के) अनुसार संगृहीत हैं। इनके अनंतर भगतों के पद रखे गए हैं, किंतु बीच-बीच में कहीं-कहीं 'बारहमासा', 'थिंती', 'दिनरैणि', 'घोडीआं', 'सिद्ध गोष्ठी', 'करहले', 'बिरहडे', 'सुखमनी' आदि जैसी कतिपय छोटी बड़ी विशिष्ट रचनाएँ भी जोड़ दी गई हैं जो साधारण लोकगीतों के काव्यप्रकार उदाहत करती हैं। उन रागानुसार क्रमबद्ध पदों के अनंतर सलोक सहस कृती, 'गाथा' महला 5, 'फुनहे' महला 5, चउबोलें महला 5, सवैए सीमुख वाक्‌ महला 5 और मुदावणी महला 5 को स्थान मिला है और सभी के अंत में एक रागमाला भी दे दी गई है। इन कृतियों के बीच-बीच में भी यदि कहीं कबीर एवं शेख फरीद के 'सलोक' संगृहीत हैं तो अन्यत्र किन्हीं 11 पदों द्वारा निर्मित वे स्तुतियाँ दी गई हैं जो सिख गुरुओं की प्रशंसा में कही गई हैं ओर जिनकी संख्या भी कम नहीं है। 'ग्रंथ' में संगृहीत रचनाएँ भाषावैविध्य के कारण कुछ विभिन्न लगती हुई भी, अधिकतर सामंजस्य एवं एकरूपता के ही उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।


आदिग्रंथ को कभी-कभी ' गुरुबानी' मात्र भी कह देते हैं, किंतु अपने भक्तों की दृष्टि में वह सदा शरीरी गुरूस्वरूप है। अत: गुरू के समान उसे स्वच्छ रेशमी वस्त्रों में वेष्टित करके चांदनी के नीचे किसी ऊँची गद्दी पर 'पधराया' जाता है, उसपर चंवर ढलते हैं, पुष्पादि चढ़ाते हैं, उसकी आरती उतारते हैं तथा उसके सामने नहा धोकर जाते और श्रद्धापूर्वक प्रणाम करते हैं। कभी-कभी उसकी शोभायात्रा भी निकाली जाती है तथा सदा उसके अनुसार चलने का प्रयत्न किया जाता है। ग्रंथ का कभी साप्ताहिक तथा कभी अखंड पाठ करते हैं और उसकी पंक्तियों का कुछ उच्चारण उस समय भी किया करते हैं जब कभी बालकों का नामकरण किया जाता है, उसे दीक्षा दी जाती है तथा विवाहदि के मंगलोत्सव आते हैं अथवा शवसंस्कार किए जाते हैं। विशिष्ट छोटी बड़ी रचनाओं के पाठ के लिए प्रात: काल, सायंकाल, शयनवेला जैसे उपयुक्त समय निश्चित हैं ओर यद्यपि प्रमुख संगृहीत रचनाओं के विषय प्रधानत: दार्शनिक सिद्धांत, आध्यात्मिक साधना एवं स्तुतिगान से ही संबंध रखते जान पड़ते हैं, इसमें संदेह नहीं कि 'आदि ग्रंथ' द्वारा सिखों का पूरा धार्मिक जीवन प्रभावित है। गुरु गोविंदसिंह का एक संग्रहग्रंथ ' दसम ग्रंथ' नाम से प्रसिद्ध है जो 'आदिग्रंथ' से पृथक एवं सर्वथा भिन्न है।



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Comments Sombir on 03-12-2023

Guru granth sahib ki rachna kis na ki hai

Indar jeet singh. on 07-01-2023

Guru Granth Sahib me darj 53 up ragon ke Nam batain.

Bhausaheb salunke on 27-10-2021

Guru granth sahib kisaki racana hai

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विपिन on 22-10-2021

गुरुग्रथ को किसने लिखा ओर वो लिखने वाला सिख था या हिन्दू

Mukesh on 10-09-2021

Gurunanak ji ke guru kon the

Poonam Tolani on 10-06-2021

Guru Arjan dev ji

Akash on 13-04-2021

Gurubani m kiss kiss rachana shami hai

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Guru Granth Sahib ke lekhak on 15-03-2021

Guru Granth Sahib ke lekhak


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