औद्योगिक इकाइयों एवं घरेलू उपयोग में आने वाले जल की बड़ी मात्रा दूषित जल के रूप में निस्सारित होती है। ये दूषित जल किसी भी जलस्रोत में मिलने पर उसे प्रदूषित कर देते हैं। जिसके कारण जलस्रोत का जल, पीने अथवा अन्य मानवीय उपयोग के योग्य नहीं रह जाता है। अनेक बार जलस्रोत में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ जाता है कि मवेशी अथवा कृषि कार्य हेतु भी उसका उपयोग किया जाना सम्भव नहीं होता। अतः इस दूषित जल के किसी जलस्रोत में मिलने से पूर्व उसका समुचित उपचार आवश्यक है ताकि जलस्रोतों पर उसका दुष्प्रभाव कम से कम पड़े। जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1974 यथा संशोधित के अनुसार दूषित जल का निर्धारित मानदण्डों के अनुरूप उपचार किया जाना आवश्यक है।
विभिन्न औद्योगिक इकाइयों द्वारा दूषित जल की प्रकृति के अनुसार दूषित जल उपचार संयंत्र बनाये जाते हैं। सामान्य तौर पर दूषित जल उपचार संयंत्र में इक्विलीब्रियम टैंक, उदासीनीकरण टैंक, सेटलिंग टैंक, भौतिक/रासायनिक उपचार टैंक, फिल्ट्रेशन टैंक, सोलर इवैपोरेशन टैंक/लैगून आदि शामिल होते हैं। विशिष्ट प्रकार के औद्योगिक दूषित जल जैसे- अत्यधिक कार्बनिक पदार्थयुक्त दूषित जल उदाहरणार्थ डिस्टलरी, पेपर मिल आदि से निकलने वाले दूषित जल के उपचार हेतु बहुस्तरीय दूषित जल उपचार संयंत्र का निर्माण किया जाता है। जिसमें प्राथमिक उपचार, द्वितीयक उपचार एवं तृतीयक उपचार आदि शामिल हैं।
1. प्राथमिक उपचार :-
प्राथमिक उपचार के दौरान कुछ भौतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से जल में उपस्थित अशुद्धि को दूर किया जाता है। ये प्रक्रियाएँ निम्नानुसार हैं :-
अ. छनन :- प्राथमिक उपचार में यांत्रिक प्रक्रिया के दौरान दूषित जल को एक स्क्रीन या जाली से प्रवाहित किया जाता है, जिससे कुछ बड़े आकार के निलम्बित पदार्थ जैसे- बड़े आकार के रेशे, पत्थर एवं अन्य निलम्बित कण पृथक हो जाते हैं।
इस तरह छनन की प्रक्रिया से लगभग 60 प्रतिशत निलम्बित कण पृथक हो जाते हैं।
ब. सेडीमेंटेशन :- छनन के उपरान्त दूषित जल को एक बड़े टैंक में सेडीमेंटेशन के लिये रखा जाता है। जिसमें लगभग पाँच मीटर गहरे बड़े टैंक में दूषित जल को स्थिर छोड़ दिया जाता है। दूषित जल में उपस्थित भारी कण गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे बैठ जाते हैं तथा ऊपर का अपेक्षाकृत साफ जल आगे उपचार हेतु ले जाया जाता है। इस टैंक में दूषित जल को कम-से-कम 2-6 घण्टे तक रखा जाता है। दूषित जल में उपस्थित सूक्ष्म कणों अथवा कोलायडल कणों को पृथक करने हेतु इस जल में कुछ कोगुलेंट भी मिलाया जाता है ताकि अशुद्धियाँ आसानी से पृथक हो जाएँ।
स. फ्लोटेशन :- ऐसा दूषित जल जिसमें निलम्बित कणों का घनत्व जल से कम या जल के लगभग बराबर होता है, उन्हें सेडीमेंटेशन के माध्यम से पृथक नहीं किया जा सकता, इस हेतु फ्लोटेशन की प्रक्रिया अपनायी जाती है। इस प्रक्रिया में दूषित जल को एयरेट कर अथवा अच्छी तरह हिलाकर कुछ देर के लिये छोड़ दिया जाता है। जिससे ठोस कण जल की ऊपरी सतह पर आ जाते हैं, जहाँ से इन्हें पृथक कर लिया जाता है।
2. द्वितीय उपचार
कार्बनिक पदार्थ युक्त औद्योगिक दूषित जल के उपचार हेतु जल का द्वितीयक उपचार किया जाता है। इसमें जैविक रूप से अपघटित होने वाले कार्बनिक पदार्थों का सूक्ष्म जीवाणु द्वारा उपचार किया जाता है। इस तरह उपचार करने से लगभग 90 प्रतिशत कार्बनिक यौगिक आॅक्सीकरण के माध्यम से पृथक कर लिये जाते हैं। अपघटित पदार्थ द्वितीय सेटलिंग टैंक में नीचे बैठ जाते हैं। नीचे बैठे सेडीमेंट में बड़ी मात्रा में सूक्ष्म जीव होते हैं। फलत: इस सेडीमेंट का कुछ भाग पुन: द्वितीयक उपचार में काम में लाया जाता है। जैविक उपचार हेतु आॅक्सी एवं अनाॅक्सी जैविक उपचार मुख्यत: प्रचलन में है।
1. आॅक्सी उपचार
अ. आॅक्सीडेशन पौंड- इस प्रक्रिया से उपचार में दूषित जल को एरोबिक बैक्टीरिया एवं शैवाल के माध्यम से बड़े आॅक्सीडेशन पौंड में उपचारित किया जाता है। एरोबिक बैक्टीरिया द्वारा कार्बनिक पदार्थों का अपघटन कर दिया जाता है तथा शैवाल इस अपघटित पदार्थ को भोज्य पदार्थ के रूप में ग्रहण कर समाप्त कर देते हैं। इस प्रकार दूषित जल की बीओडी कम हो जाती है। घरेलू (सीवेज) दूषित जल के उपचार हेतु यह प्रक्रिया अपनायी जाती है।
ब. एयरेटेड लैगून इस प्रक्रिया में प्राथमिक उपचार के दौरान दूषित जल को बड़े लैगूनों में एकत्र कर विद्युत चलित एयरेटरों के माध्यम से एयरेट किया जाता है। जिसमें वायुमंडलीय आॅक्सीजन को लैगून में डाले गये दूषित जल में मिलाया जाता है। इस प्रक्रिया में लगभग 90 प्रतिशत बीओडी समाप्त की जा सकती है। कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के पश्चात अपशिष्ट तलहटी में बैठ जाता है।
स. ट्रिकलिंग फिल्टर ट्रिकलिंग फिल्टर में पत्थरों, रेत, पीव्हीसी आदि की सघन परत बिछाई जाती है, जिस पर दूषित जल डाला जाता है। फिल्टर माध्यम पर एरोबिक बैक्टीरिया की परत बिछाई जाती है तथा उपयुक्त माध्यम से दूषित जल में वायु प्रवाहित की जाती है। इस विधि से बैक्टीरिया कार्बनिक पदार्थों को नष्ट कर देते हैं तथा फिल्ट्रेशन बेड से अपशिष्ट का स्वाभाविक रुप से छनन हो जाता है।
द. एक्टिवेटेड स्लज विधि एक्टिवेटेड स्लज विधि में दूषित जल में सूक्ष्म जीवाणुओं को अच्छी तरह मिलाकर एयरेट किया जाता है, जिससे सूक्ष्म जीवाणुओं की कार्बनिक पदार्थयुक्त दूषित जल में तीव्रता से वृद्धि होती है। फलस्वरूप इनकी गतिविधियाँ बढ़ जाती है और ये तेजी से कार्बनिक पदार्थों को अपघटित कर देते हैं। इस विधि से कार्बनिक पदार्थ का अपघटन तेजी से होता है एवं इससे 90-95 प्रतिशत बीओडी कम की जा सकती है।
2. अनाॅक्सी उपचार
इस प्रक्रिया में उपचार हेतु एनारोबिक बैक्टीरिया का उपयोग किया जाता है। इसमें कार्बनिक पदार्थ का 95 प्रतिशत भाग बायो गैस एवं 5 प्रतिशत बायो मास में बदल जाता है। यह उपचार दो प्रकार से किया जाता है।
अ. स्लज डाइजेस्टर इसमें जटिल कार्बनिक पदार्थ को जैव रासायनिक क्रिया के माध्यम से अपेक्षाकृत सरल यौगिकों में अपघटित किया जाता है। ये अभिक्रियाएँ एनारोबिक बैक्टीरिया की उपस्थिति में आॅक्सीजन की उपस्थिति में करवाई जाती है। एनारोबिक सूक्ष्म जीवाणु जैसे- एक्टिनोमाइसीटिस, एरोबा इलेक्टोबेसिलस आदि के माध्यम से दूषित जल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों को अपघटित किया जाता है। अपघटन के फलस्वरूप बनने वाली बायो गैस का उपयोग ईंधन के रूप में किया जा सकता है। दूषित जल के अपघटन के फलस्वरूप बड़ी मात्रा में मीथेन गैस उत्पन्न होती है। शेष बचे स्लज को खाद के रूप में उपयोग में लाया जाता है।
ब. सेप्टिक टैंक घरेलू दूषित जल के उपचार हेतु आज भी सेप्टिक टैंक बनाए जाते हैं। जिसमें अनाॅक्सी जीवाणुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों का अपघटन कर दूषित जल का उपचार किया जाता है। इस प्रक्रिया से घरेलू दूषित जल की बीओडी एवं विलंबित कणों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आती है।
3. तृतीयक उपचार
औद्योगिक एवं घरेलू दूषित जल के उपचार हेतु तृतीयक उपचार एक आधुनिक दूषित जल उपचार तकनीक है। जिसमें द्वीतीयक उपचार के उपरांत दूषित जल का पुन: विभिन्न विधियों से उपचार किया जाता है ताकि निस्सारित दूषित जल की गुणवत्ता में सुधार हो सके। तृतीयक उपचार के माध्यम से शेष बचे सूक्ष्म निलंबित कणों, सूक्ष्म जीवों, घुलित अकार्बनिक पदार्थों एवं कार्बनिक पदार्थों के अवशेषों का पृथक किया जाता है।
इस हेतु निम्नानुसार प्रक्रियाएँ अपनायी जाती हैं –
1. कोगुलेशन फिटकरी, फैरिक क्लोराइड आदि को मिलाने पर दूषित जल में उपस्थित सूक्ष्म निलंबित कण इनके साथ जटिल यौगिक बनाकर अवक्षेपित हो जाते हैं। इसे छानकर पृथक किया जा सकता है।
2. विसंक्रमण द्वीतीयक उपचार उपरांत दूषित जल का विसंक्रमण विभिन्न आक्सीकारकों जैसे- क्लोरीन, ओजोन आदि के माध्यम से किया जाता है। पानी में घुलकर क्लोरीन हाइपोक्लोरस अम्ल बनाती है जो एक जीवाणुनाशक है। इसी प्रकार ओजोन भी एक प्रभावकारी आॅक्सीकारक है, जो अनेक जटिल कार्बनिक यौगिकों को आॅक्सीकृत कर जल को विसंक्रमित करती है।
3. आयन एक्सचेंज रेजिन आयन एक्सचेंज रेजिन के माध्यम से दूषित जल की जल में उपस्थिति अनेक भारी धातुओं का पृथक्करण किया जाता है। इसी के साथ जल की कठोरता भी इस माध्यम से दूर हो जाती है। इस विधि का उपयोग दूषित जल में रंगों के पृथक्करण हेतु भी किया जाता है।
विभिन्न उद्योगों से निकलने वाले दूषित जल का उपचार उसकी प्रकृति के अनुसार किया जाता है। औद्योगिक क्षेत्र या क्लस्टर्स में स्थापित औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले दूषित जल के उपचार हेतु संयुक्त दूषित जल उपचार संयंत्र स्थापित किये जा सकते हैं। दो विभिन्न प्रकृतियों के दूषित जल निस्सारण को आपस में मिलाकर भी उनका उपचार किया जाना संभव है। जैसे- अम्लीय एवं क्षारीय प्रकृति के दूषित जल को आपस में मिलाकर उदासीन किया जा सकता है। इसी प्रकार उन्हें आपस में मिलाने पर अनेक धात्विक प्रदूषक अवक्षेपित हो जाते हैं।
दूषित जल के समुचित उपचार के उपरांत उनका पुनर्चक्रण, प्रक्रिया के अंतर्गत किया जा सकता है। आवश्यकतानुसार वृक्षारोपण आदि में भी इसका उपयोग किया जाना संभव है।
जल प्रदूषण
(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)
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1
पुस्तक भूमिका : जल और प्रदूषण |
2
जल प्रदूषण : कारण, प्रभाव एवं निदान |
3
औद्योगिक गतिविधियों के कारण जल प्रदूषण |
4
मानवीय गतिविधियों के कारण जल प्रदूषण |
5
भू-जल प्रदूषण |
6
सामुद्रिक प्रदूषण |
7
दूषित जल उपचार संयंत्र |
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