हिन्दी गद्य की विधाएँ
नाटक, एकांकी दोनों दृश्य विधा है. संस्कृत में नाटकों की समृद्धशाली परम्परा रही है. जिसमे महाकवि कालिदास, भवभूति उल्लेखनीय है. हिंदी नाटकों की परम्परा भारतेंदुयुग से मानी जाती है. भारतेंदु के अंधेर नगरी, नीलदेवी, भारत दुर्दशा, प्रेम योगिनी, बालकृष्ण भट्ट का वेणी संहार इस युग के प्रमुख नाटक है.
नाटकों में रूपक, प्रहसन, व्यायोग, नाटिका, भाण, सटटक जैसे नाट्यरूपों को भी अपनाया गया, साथ ही पारसी थियेटर सक्रिय था.
हिंदी गद्य की विधाएँ History in Hindi
जयशंकर प्रसाद का नाम नाट्यक्षेत्र मे अग्रणी है.उनके ध्रुवस्वामिनी, करुनालय, अजातशत्रु, स्कन्दगुप्त आदि नाटक एतिहासिक परिवेश पर आधारित थे. प्रसाद के अतिरिक्त उपेन्द्रनाथ अश्क, सेठ गोविन्ददास हरिकृष्ण प्रेमी, मोहन राकेश, लक्ष्मीनारायण लाल, भुवनेश्वर, राजकुमार वर्मा, जगदीशचन्द्र माथुर, धर्मवीर भारती का नाम उल्लेखनीय है.
वह दृश्य विधा है. जो एक अंक पर आधारित होती है. एकांकी में संकलन त्रय (काल, समय, स्थान) महत्वपूर्ण होते है. एकांकी विकास की दृष्टी से जयशंकर प्रसाद के एक घूँट (संवत 1983) को आधुनिक एकांकियों में प्रथम माना जाता है. इसके पश्चात डॉ. राजकुमार वर्मा, (चारुमित्र, रेशमी टाई, सप्तकिरण, दीपदान, उपेन्द्रनाथ अश्क, उदयशंकर भट्ट, विनोद रस्तोगी, सुरेन्द्र वर्मा के नाम उल्लेखनीय है).
नाट्य एकांकी में सामाजिक जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति तथा समस्याओं का सूक्ष्म समाधान मिलता है. रंगमंचीय सार्थकता इस विधा के लिए आवश्यक है. रेडियो रूपक, संगीत रूपक, एकल नाट्य (मोनोलाग) गीतिनाट्य भी इस विधा में सम्मिलित है.
हिंदी उपन्यास लेखन विधा (हिंदी गद्य की विधाएँ) का प्रारम्भ भारतेंदु युग से ही दिखाई पड़ता है. हिंदी का पहला मौलिक उपन्यास लाला श्री निवासदास का परीक्षा गुरु 1882 माना जाता है. भारतेंदु युग में अनुदित उपन्यासों के साथ सामाजिक, एतिहासिक, तिलिस्मी, ऐयारी, जासूसी उपन्यास भी लिखे गए. देवकीनंदन खत्री के उपन्यास चन्द्रकान्ता सन्तति (चोबीस भाग 1896) चन्द्रकान्ता (1882) बहुत अधिक प्रसिद्ध हुए.
द्विवेदी युग के लेखक प्रेमचन्द्र का नाम उल्लेखनीय है. गोदान, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, निर्मला जैसे प्रसिद्ध उपन्यासों में मध्यवर्ग व निम्नवर्ग की आर्थिक, सामाजिक स्थिति को आधार बनाकर प्रेमचन्द्र ने बिना किसी वर्ग भेद के मनुष्यता को सर्वोपरि मानकर अपना कथा साहित्य लिखा. उनके उपन्यास एवं कहानियों में सामान्य व्यक्ति के समान्य सरल भाषा में अभिव्यक्ति मिली. उनकी भाषा में सहजता है.
वे उर्दू में प्रारम्भ में लिखा करते थे. अत: हिंदी, उर्दू का प्रभाव उनकी भाषा में मौजूद है. प्रेमचन्द्र के अतिरिक्त यशपाल (झूठा सच) जयशंकर प्रसाद (कंकाल) जेनेन्द्र (त्याग पत्र), अज्ञेय (शेखर एक जीवनी), अमृतलाल नागर (मानस का हंस), भीष्म साहनी, निर्मल वर्मा (लाल टीन की छत) उल्लेखनीय उपन्यासकार है.
कथा सुनने की सामान्य प्रवृति ने ही कहानी को जन्म दिया है. प्राचीन काल से कहानियों की एक वृहद् परम्परा रही है. उपनिषद पुराण, रामायण, महाभारत, पंचतन्त्र की कहानियों के रूप में कहानी का आरम्भिक विकास देखा जा सकता है. मूलतः कहानी वह गद्य रचना है जो कहानीकार की कल्पना, अनुभव के माध्यम से पात्रो में जीवन की किसी एक घटना या चरित्र का सृजन करती है.
कहानी में कथावस्तु पात्र या चरित्रचित्रण, संवाद, वातावरण या देशकाल भाषाशैली व उद्देश्य प्रमुख तत्व के रूप में होते है. शैली की दृष्टी से एतिहासिक, आत्म कथात्मक, पत्रात्मक एवं डायरी शैली में भी कहानियाँ लिखी गई.
हिंदी के आरम्भिक काल में मनोरंजन को ध्यान में रखकर कहानियाँ लिखी गई. इनमे लल्लूलाल का प्रेम सागर, सदल मिश्र का नासिकेतोपाख्यान इंशाअल्ला खा की, रानी केतकी की कहानी, मौलिक आख्यान है.
सन 1990 में सरस्वती पत्रिका में श्री किशोरीलाल गोस्वामी की इंदुमती, दुलाई वाली, (बंगमहिला), ग्यारह वर्ष का समय रामचंद्र शुक्ल, टोकरी भर मिट्टी, माधवराव सप्रे, कहानियाँ आई. इनमे से किसी एक को हिंदी की प्रथम मौलिक कहानी सिद्ध करने का प्रयास हुआ है. इसके बाद चंद्रधर शर्मा, गुलेरी की उनसे कहा था. 1915 इस में प्रकाशित हुई. संवेदना और शिल्प की दृष्टी से यह कहानी बेजोड़ है.
1916 में प्रेमचन्द्र की कहानी पंचपरमेश्वर प्रकाशित हुई. प्रेमचन्द्र की कहानियाँ सामाजिक चेतना और सामान्य व्यक्ति की मानसिक स्थिति का बहुत सुन्दर व यथार्थ रूप में चित्रण करती है. उनकी प्रसिद्ध कहानियों में बूढी काकी, ईदगाह, रामलीला, दो बैलो की कथा, पूस की रात, और कफन है.
प्रेमचन्द्र के साथ ही जयशंकर प्रसाद ने भी वर्तमान के समाधान अतीत में खोजने के प्रयास में श्रेष्ठतम कहानियाँ लिखी. उनकी कहानियों में मार्मिक संवेदना, सामाजिकता की प्रधानता थी. उनकी प्रमुख कहानियाँ है, पुरस्कार, आकाशदीप मधुआ, गुंडा, प्रतिध्वनि, नीरा, ममता आदि.
इसके अतिरिक्त सुदर्शन की हार की जीत, विश्वभरनाथ शर्मा कोशिक ताई तथा पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी, सुभद्राकुमारी चौहान, भगवतीचरण वर्मा, जेनेद्र, यशपाल जैसे कहानीकार भी अलग-अलग भावसंवेदना व विचार शैली की कहानियाँ लिख रहे थे.
हिंदी कहानी का नवीन विकास भी दिखाई पड़ता है. इसमें मोहन राकेश, भीष्म साहनी, अमरकांत, ज्ञान प्रकाश, निर्मल वर्मा, ज्ञानरंजन, फनीश्वरनाथ रेणु, हरिशंकर परसाई का नाम उल्लेखनीय है.
स्वातत्र्योत्तर युग में कहानी के क्षेत्र में नई कहानी, अकहानी, सचेतन कहानी, समानांतर कहानी नामक विभिन्न आन्दोलन हुए. इस प्रकार हिंदी कहानी पर्याप्त समृद्ध और उर्जावान होकर निरंतर विकासशील है.
निबंध का धात्वर्थ है. सुगठित अथवा कसा हुआ बंध. इस प्रकार निबंध में आकार की लघुता तथा विचारों की कसावट अनिवार्य है.
निबंध वह गद्य रचना है जिसमे सीमित आकार में किसी विषय का प्रतिपादन एक विशेष निजीपन संगति व सम्बद्धता के साथ किया जाता है.
विधा का प्रारम्भ भारतेंदु युगीन पत्र पत्रिकाओ के माध्यम से माना जाता है. विविध विषयों पर लिखित भारतेंदु युग के निबंधो में गंभीर तथा व्यंग विनोद से पूर्ण भाषा, क्षेत्रीय मुहावरों, लोकोक्तियों, शब्दों का प्रयोग था. भारतेंदु के अतिरिक्त बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, बालमुकुन्द गुप्त, सर्वश्रेष्ठ निबंधकार थे. शिवशम्भू का चिट्ठा, यमलोक की यात्रा, बात आदि उल्लेखनीय निबंध है.
निबंधो की दृष्टी से महत्वपूर्ण काल है. इस काल में विचारात्मक और ललित निबंधो का बाहुल्य है. अंग्रेजी के निबंधो के अनुवाद भी आये. इस काल के प्रमुख निबंधकार थे महावीर प्रसाद द्विवेदी, चन्द्र धर शर्मा, गुलेरी अध्यापक पूर्ण सिंह, बाबू श्याम सुन्दर दास, गुलाबराय, पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी, पद्मसिंह शर्मा.
जैसे प्रेरणात्मक तथा विचारात्मक निबंध लिखे. अध्यापक पूर्ण सिंह ने आचरण को सभ्यता, मजदूरी और प्रेम, जैसे महत्वपूर्ण निबंध लिखे. इस काल के निबंधो की भाषा में विचार अभिव्यक्ति के लिए लक्षणा और व्यंजना शक्ति को महत्व मिला. निबंध प्रभावाभिव्यंजक शैली, ओजगुण से पूर्ण है.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी निबंध क्षेत्र के सर्वाधिक महत्वपूर्ण लेखक है. विचार बीथि और चिंतामणि, में संग्रहित शुक्लजी की निबंध न केवल विचार चिन्तन से पूर्ण थे वरण मनोवेज्ञानिक धरातल पर भी खरे थे. सरसता और गाम्भीर्य की विशेषता लिए शुक्लजी वैज्ञानिक की तरह विषय का विश्लेषण करते है.
भाव मनोविकारों पर लिखे उनके निबंध भय, क्रोध, इर्ष्या, उत्साह, श्रद्धा भक्ति, लोभ और प्रीति 1912 से 1919 ई में नागरी प्रचारिणी पत्रिका में प्रकाशित हुए थे. जो बाद में चिंतामणि भाग एक से संग्रहित हुए. इन निबंधो में शुक्लजी मनोवैज्ञानिक की तरह भावों की व्याख्या कर उन्हें परिभाषित करते है.
शुक्लजी के अतिरिक्त जयशंकर प्रसाद विचारपरक व गंभीर निबंधकार है. उनके निबंध काव्य कला तथा अन्य निबंध नामक ग्रन्थ में संग्रहित है. प्रसाद के अतिरिक्त महादेवी वर्मा ने भी साहित्यिक विषय तथा नारी समस्याओं पर गहराई से विशलेषण कर निबंध लिखे जो श्रखंला की कड़ियाँ में संग्रहित है.
इसके अतिरिक्त पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी पंचमात्र में संग्रहित निबंध, शांतिप्रिय द्विवेदी का कवि और काव्य, शिवपूजन सहाय का कुछ निबंध संग्रह, रघुवीर सिंह (ताज) महत्वपूर्ण है.
भावात्मक शैली के निबंधकारो में रायकृष्णदास, माखनलाल चतुर्वेदी, भदन्त आनंद कोत्स्यायान, रामधारी सिंह दिनकर प्रमुख है. ललित निबंध की दृष्टी से आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध नाख़ून क्यों बढ़ते हिया. शिरीष के फूल, आम फिर बोरा गये, ठाकुर जी का बटोर, कुटज निबंध सांस्कृतिक चेतना का निर्माण करते है. इन निबंधो में मनुष्य की महत्ता पर जोर दिया गया है.
1940 के बाद प्रयोगवाद के प्रवर्तक अज्ञेय के निबंध आत्मनेपद और भवंती में मिलते है.
व्यंग निबंधकारों में हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, ज्ञान चतुर्वेदी, रविन्द्र नाथ त्यागी आदि का नाम बताये जा सकते है. ये सभी हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ व्यंग निबन्ध लेखक है. हिंदी निबंध के क्षेत्र में ललित निबंध महत्वपूर्ण विधा हिया. आचार्य हजारी प्रसाद दिविवेदी इस निबंध विधा के पुरोधा पुरुष है. डॉ. विघानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय, श्यामसुन्दर दुबे, रमेशचन्द्रशाह, अमृतराय, निर्मल वर्मा, श्री राम परिहार आदि निबंधकारों ने हिंदी ललित निबंध को समृद्ध किया है.
जीवनी साहित्य की रचना किसी विशिष्ट व्यक्ति अथवा महापुरुष को केंद्र में रखकर लिखी जाती है. जीवनी में जन्म से लेकर मृत्यु तक की महत्वपूर्ण घटनाओं के माध्यम से जीवनी नायक व चित्रण किया जाता है. जीवनी लेखन पूर्वाग्रह से मुक्त तटस्थ भाव से लिखना आवश्यक है.
कुछ प्रमुख जीवनियाँ है. गोपाल शर्मा शास्त्री कृत स्वामीदयानंद स्वामी, सुशीला नायर द्वारा जगमोहन वर्मा कृत बप्पारावल, बुद्धदेव, सम्पूर्णानन्द कृत हर्ष वर्धन, छत्रसाल, राजनितिक चरित्रों में लाला लाजपत राय, महात्मा गांधी, प जवाहरलाल नेहरु, सुभाषचन्द्र बॉस, जयप्रकाश नारायण, इंदिरागांधी की जीवनियाँ महत्वपूर्ण है. साहित्यक चरित्रों में अमृतराय कृत, कलम का सिपाही, विष्णुप्रभाकर कृत, आवारा मसीहा (शरद चन्द्र चटर्जी पर आधारित) उल्लेखनीय जीवनियाँ है.
जीवनी में जीवनवृत्तांत दुसरे व्यक्ति द्वारा लिखा जाता है. जबकि आत्मकथा में व्यक्ति स्वंय अपने जीवन की कथा स्मृतियों के आधार पर लिखता है. आत्मकथा में निष्पक्षता आवश्यक है. गुपा दोषों का तटस्थ विश्लेषण तथा काल्पनिक बातों घटनाओं से बचाना चाहिए. इसके अतिरिक्त प्रवाह व रोचकता भी आवश्यक है.
भारतेंदु कृत कुछ आप बीती कुछ जग बीती डॉ राजेन्द्र प्रसाद की आत्मकथा, राहुल सांकृत्यायन की मेरी जीवन गाथा के अतिरिक्त डॉ, हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथा जी चार खण्डों में है. क्या भूलूँ क्या याद करूँ. नींड का निर्माण फिर-फिर, बसेरे से दूर, दश द्वार से सोपान तक, प्रसिद्ध लोकप्रिय आत्मकथाए है.
अतीत के अनुभवों और प्रभाओं को शब्द के माध्यम से जब अभिव्यक्ति मिलती है. तो उसे संस्मरण कहा जाता है. सरस्वती में रामकुमार खेमका, रामेश्वरी नेहरु के यात्रा संस्मरण सुधा 1921 में वृन्दावनलाल वर्मा कृत कुछ संस्मरण झलक 1938 में हरिऔध की स्मृतियाँ, हंस 1937 का प्रेमचन्द्र स्मृति अंक संस्मरण की दृष्टी से उल्लेखनीय है. इसके अतिरिक्त आचार्य चतुर सेन शास्त्री, कन्हेयालाल मिश्र प्रभाकर महादेवी वर्मा के नाम प्रसिद्ध है.
इसमें लेखक शब्दों के माध्यम से व्यक्ति का पूर्ण चित्र उद्घाटित करता है. रेखाचित्र में कथा का आभास मिलता है. इसकी अलग अलग शैलियाँ मिलती है. कथा शैली, वर्णन शैली, आत्मकथात्मक शैली, डायरी शैली, सम्बोधन शैली, संवाद शैली.
इसके अतिरिक्त स्मृति की रेखाए, पथ के साथी, मेरा परिवार जिसमे पशु पक्षी को परिवार के अंग के रूप में चित्रित किया गया है. उनकी प्रमुख कृतियाँ है. बनारसीदास चतुर्वेदी ने देश विदेश के कई महान व्यक्तियों को रेखा चित्र द्वारा अंकित किया है. माखनलाल चतुर्वेदी का समय के पाव तथा कृष्णासोबती का हम हशमत भी उल्लेखनीय है.
राहुल सांकृत्यायन ने तो धुमक्कड़ शास्त्र लिखा जिसमे वे घुमक्कड़ी को रस की तरह बताते है. कुछ प्रमुख यात्रा वृत्तांत है. भगवत शरण उपाध्याय (वो दुनिया सागर की लहरों पर) अज्ञेय (अरे यायावर रहेगा याद) निर्मल वर्मा (चीड़ों पर चादनी) कमलेश्वर (खण्डित यात्राएँ) अमृतलाल बेगड़ (सोंदर्य की नदी नर्मदा) आदि.
पत्र आत्मप्रकाशन का महत्वपूर्ण माध्यम है. पत्र लेखन का व्यक्तित्व और उसकी आत्मप्रकाशन की क्षमता पत्र के विधायक तत्व है. डॉ, रामचंद्र तिवारी कहते है. पत्र साहित्य का महत्व इसलिए मान्य है कि उसमें पत्र लेखक मुक्त होकर अपने को व्यक्त करता है.
हिंदी गद्य की विधाएँ – बैजनाथ सिंह विनोद द्वारा संकलित दिविवेदी पत्रावली और दिविवेदी युग के साहित्यकारों के पत्र, हरिवंशराय बच्चन द्वारा सम्पादित पन्त के दो सौ पत्र के अतिरिक्त ज्ञानोदय का पत्र अंक के रूप में ज्ञान, विचार, चिंतन का रूप पत्रविधा के माध्यम से विकसित होता है. इन प्रमुख विधाओं के अतिरिक्त रिर्पोतार्ज, डायरी, साक्षात्कार भी गद्य विधाओं में सम्मिलित है.
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