Sanskrit Natak Script संस्कृत नाटक स्क्रिप्ट

संस्कृत नाटक स्क्रिप्ट

Pradeep Chawla on 18-09-2018

मृच्छकटिकम् संस्कृत साहित्य की एक चर्चित नाट्यरचना है जिसकी चर्चा मैं पहले कभी कर चुका हूं (देखें ‘संस्कृत नाट्यकृति …’) । इस रचना में चोरी का एक प्रकरण है, जिसमें चोरी के धंधे से जीवनयापन करने वाले चोर के मन में घुप अंधेरी रात में सेंध लगाते समय क्या-क्या विचार उपजते हैं इसका वर्णन किया गया है । शर्विलक नामक वह चोर स्वयं से कहता है कि समाज में चोरी की निःसंदेह निंदा की जाती है, लेकिन वह इस मत को अस्वीकार करता है, क्योंकि याचक की भांति किसी की चाकरी करने से भला तो स्वतंत्र होकर चोरी करना है । लोग कुछ भी मानें, मैं तो इसी कार्य में लगना ठीक मानता हूं । देखिए उसके उद्गार:


कामं नीचमिदं वदन्तु पुरुषाः स्वप्ने तु यद्वर्द्धते


विश्वस्तेसु च वञ्चनापरिभवश्चौर्यं न शौर्यं हि तत् ।


स्वाधीना वचनीयतापि हि वरं वद्धो न सेवाञ्जलिः


मार्गो ह्येष नरेन्द्रसौप्तिकवधे पूर्वं कृतो द्रोणिना ॥


(मृच्छकटिकम्, तृतीय अंक, 11)


(यत् तु स्वप्ने वर्द्धते, विश्वस्तेसु च वञ्चना-परिभवः तत् चौर्यम् शौर्यम् न हि, पुरुषाः इदम् कामम् नीचम् वदन्तु, स्वाधीना वचनीयता अपि हि वरम्, वद्धः सेवा-अञ्जलिः न, पूर्वम् एषः मार्गः हि द्रोणिना नरेन्द्र-सौप्तिक-वधे कृतः ।)


अर्थ – जो लोगों की निद्रावस्था में किया जाता है, अनिष्ट के प्रति अशंकित लोगों का जिस चोरी से तिरस्कार हो जाता है, उसे किसी शूरवीर का कार्य तो नहीं माना जा सकता है । लोग इस कार्य की निंदा करते रहें, परंतु मैं तो निंद्य होने के बावजूद स्वतंत्र वृत्ति होने के कारण इसे श्रेष्ठ मानता हूं; यह किसी के समक्ष सेवक की भांति बद्धहस्त होने से तो बेहतर है । इतना ही नहीं, पहले भी इस मार्ग को द्रोणाचार्य-पु़त्र ने महाराज के पुत्रों के बध हेतु अपनाया था ।


चोर शर्विलक के मतानुसार किसी के आगे हाथ जोड़ने से अच्छा तो स्वतंत्र रूप से संपन्न किया जाने वाला चौर्यकार्य बेहतर है । लोग इसकी निंदा करते हैं, किंतु चर्चित लोगों ने तक चोरी का रास्ता अपनाया है । इस प्रकरण में महाभारत की उस घटना का उल्लेख चोर करता है जिसमें द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने रात में पांडवों के शिबिर में चोरी से घुसकर द्रौपदी-पुत्रों का बध किया थाजयद्रथ का वध भी श्रीकृष्ण ने धोखे से ही करवाया था । असल में देखा जाए तो चोरी से अपना मकसद सिद्ध करने की तमाम घटनाओं का जिक्र पौराणिक कथाओं में मिलता है । चोरी का मतलब है किसी को धोखा देकर कुछ भी हासिल करना । रामायण में सीताहरण एवं बालीबध ऐसे ही कृत्य थे । इंद्र ने चोरी से ही गौतम-पत्नी अहिल्या का सतीत्व लूटा था ।


आजकल तो ‘चोरी’ आम बात हो गई है । अपने महान् देश में जिधर देखो उधर संभ्रांत कहे जाने वाले अनेकों राजनेता और शासकीय कर्मचारी चोरी में लिप्त पाए जा रहे हैं ।


नाटक में अन्यत्र स्थल पर चोर शर्विलक अपनी प्रेमिका को समझाता है कि चोरी की भी उसकी कुछ मर्यादाएं हैं । वह कहता है:


नो मुष्णाम्यबलां विभूषणवतीं फुल्लामिवाहं लतां


विप्रस्वं न हरामि काञ्चनमथो यज्ञार्थमभ्युद्धृतम् ।


धात्र्युत्सङ्गगतं हरामि न तथा बालं धनार्थी क्वचित्


कार्य्याकार्य्यविचारिणी मम मतिश्चौर्ये9पि नित्यं स्थिता ॥


(मृच्छकटिकम्, चतुर्थ अंक, 6)


(फुल्लाम् लताम् इव विभूषण-वतीम् अबलाम् धनार्थी अहम् नो मुष्णामि, विप्रस्वम् अथो यज्ञार्थम् अभि-उुद्-धृतम् काञ्चनम् न हरामि, तथा धात्रि-उत्सङ्ग-गतम् बालम् न क्वचित् हरामि, चौर्ये अपि कार्य्य-अकार्य्य-विचारिणी मम मतिः नित्यम् स्थिता ।)


अर्थ – सुपुष्पित लता की भांति आभूषणों से लदी स्त्री के आभूषण मैं नहीं छीनता, ब्राह्मण की संपदा और यज्ञकर्म के लिए सुरक्षित सोने पर हाथ साफ नहीं करता, धाय या उपमाता की गोद में स्थित बच्चे की चोरी नहीं करता; दरअसल चोरी के काम में भी मेरी मति करणीय एवं अकरणीय के विवेक पर टिकी रहती है ।


चोर का मंतव्य है कि वह हर प्रकार की, हर किसी की चोरी नहीं करता है । कदाचित् वह कमजोर से छीनाछपटी नहीं करता, गरीब की चोरी नही करता, धर्मकर्म से जुड़ी चीजों की चोरी नहीं करता । चोरी के भी उसके कुछ उसूल हैं ।


आज की सामाजिक स्थिति देखिए । सर्वत्र चोरी और लूटपाट चल रही है । न किसी की उम्र का लिहाज है, न किसी की आर्थिक स्थिति का विचार है, न किसी प्रकार को शर्मोहया है । वस्तुतः चौर्य में संलिप्त मृच्छकटिकम् के पात्र शर्विलक का चरित्र आज के सफेदपोश चोरों से कहीं ऊपर है । – योगेन्द्र जोशी



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Comments गरिमा on 23-08-2018

संस्कृत में लघु नाटिका


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