जनसंख्या भूगोल की प्रकृति
जनसंख्या भूगोल की प्रकृति तथा विषय क्षेत्र (NATURE AND SCOPE OF POPULATION GEOGRAPHY)
आधुनिक युग में भूगोल का क्षेत्र (Scope) दिनोंदिन बढ़ते जा रहा है और उसमें भी जनसंख्या भूगोल का अपना विशेष महत्व है। विश्व में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है। 2012 के विश्व जनसंख्या आकड़ों पर दृष्टि डाले तो पता चलता है कि विश्व की जनसंख्या लगभग 7 अरब हो चुकी है। बढ़ती हुई जनसंख्या अनेक समस्याएँ लेकर हमारे सामने खड़ी है।
भूगोल विषय में मानव केन्द्रीय महत्व वाला मौलिक तत्व है। वह जीविकोपार्जन हेतु प्राकृतिक वातावरण से विभिन्न रूपों में सामन्जस्य स्थापित करता है तथा आवश्यकता पड़ने पर उसमें संशोधन एवं परिष्करण भी करता है। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप धरातल पर क्षेत्रीय भिन्नता पायी जाती है, जिसका अध्ययन भूगोल विषय का मुख्य उद्देश्य है। इस विषय का विशद विवेचन, 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन आदि के भूगोलवेत्ताओं द्वारा हआ। सन् 1830 ई. में रॉयल ज्योग्रैफिकल सोसायटी की स्थापना हुई, जिसके द्वारा किये गये कार्यों से तथा डॉर्विन के विकासवादी सिद्धांत के प्रतिपादन द्वारा भूगोल के विषय स्वरूप को विकसित होने का अवसर प्राप्त हुआ। भूगोल विषय प्राकृतिक व मानव दो भागों में बंटा हआ है। मानव भूगोल का उदगम प्राकृतिक भूगोल की अपेक्षा नवीनतम है। 18वीं शताब्दी के प्रमुख भूगोलवेत्ता जॉन रीनहाल्ड फास्टर, जॉन जार्ज फास्टर तथा जॉन कुक द्वारा प्रतिपादित अनेक मान्यताओं के आधार पर किया गया, मानव व प्रकृति के अन्तर्सबंध का विवेचन मानव भूगोल के विकास के लिये ठोस प्रयास सिद्ध हुआ। मानव के अध्ययन की प्रधानता को काण्ट, हम्बोल्ट, रिटर, पेशेल, रेटजल, हेटनर आदि विद्वानों ने स्वीकार किया। रेटजल के वाल्कर कुण्डे नामक ग्रंथ के प्रकाशन से मानवीय अध्ययन की ओर अधिक बल मिला। हेटनर की मृत्यु के उपरांत उनकी कृति “ए ज्योग्राफी ऑफ मैन” के प्रकाशन से मानव संबंधी अध्ययन का पक्ष अधिक गतिशील हुआ।
मानव का अध्ययन ही जनसंख्या अध्ययन है, जनसंख्या भूगोल, भूगोल की एक नवीन शाखा है जिसमें जनसंख्या संबंधी विशेषताएँ, वृद्धि, वितरण, घनत्व आदि और क्षेत्रीय वितरण की भिन्नता का अध्ययन किया जाता है। इस शाखा का विकास प्रथम विश्वयुद्ध के उपरांत जर्मनी में राष्ट्रोत्थान के साथ, उसके बाद फ्रांस व अन्य यूरोपीय देशों में हुआ। द्वितीय महायुद्ध के पश्चात इस विषय पर अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हुए। परन्तु जनसंख्या भूगोल को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने का श्रेय ट्रिवार्था को है जिन्होंने सन् 1953 ई. में अमेरिकी भूगोलविद परिषद के अध्यक्षीय भाषण में स्पष्ट रूप से मत व्यक्त किया कि क्रमबद्ध अध्ययन के रूप में जनसंख्या भूगोल एवं स्वतंत्र उपविषय के रूप में अध्ययन किया जाना चाहिये। ट्रिवार्था के विचारों के बाद ही 1954 में अमेरिका में जनसंख्या का भौगोलिक अध्ययन नामक विषय शुरू किया। इसके अनुसार, “जनसंख्या भूगोल केन्द्रीय महत्व का विषय है, जिसका उद्देश्य मनुष्य की संख्या व उसकी विशेषताओं का, एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्राप्त भिन्नता का अध्ययन करना है।"
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