कंपनी का समापन क्या है
Meaning of winding up
Company Ka samapan ky hai
Company samapan ki paribhaasha kya h???
कापनीकेसमापन से आप क्या समझते हैं एक निस्तारक के कतरवयो एवं दायितयो का विवेचन कीजिऐ
Rajistrar
Company ka smapn kya h
Company ke sampan se kya sashay hai
कम्पनी के समापन से आप क्या समझते.हे
Company agar nclt ke bad liquition mai jati hai to worker ka kya hota hai.
कंपनी का रजिस्ट्रेशन कैसे किया जाता है
Company ka smapan
Company ka samapan kya hai
Cte ka samapan parikirya kayse karte hi.
Aantarik purdnirman ky h
का परिसमापन (Liquidation or winding up) एक ऐसी कार्यवाही है जिससे कंपनी का वैधानिक अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इसमें कंपनी की संपत्तियों को बेचकर प्राप्त धन से ऋणों का भुगतान किया जाता है तथा शेष धन का अंशधारियों के बीच वितरण कर दिया जाता है।
कंपनी का समापन तीन प्रकार का हो सकता है :
न्यायालय द्वारा समापन के लिए प्रार्थनापत्र देने का अधिकार स्वयं कंपनी, उसके ऋणदाताओं, धनदाताओं (contributories) तथा कुछ स्थितियों में रजिस्ट्रार अथवा केंद्रीय सरकार द्वारा अधिकृत व्यक्ति को होता है।
न्यायालय द्वारा समापन के मुख्य कारण हैं : कंपनी के सदस्यों की संख्या में कंपनी अधिनियम द्वारा निर्धारित निम्नतम संख्या में कमी तथा ऋणों के भुगतान करने में कंपनी की असमर्थता। न्यायालय को समापन के विस्तृत अधिकार प्राप्त हैं और वह जब भी कंपनी का समापन उचित एवं न्यायपूर्ण समझे इसके लिए आदेश दे सकता है। मुख्यत: प्रबंध में गतिरोध उत्पन्न होना, कंपनी का आधार समाप्त होना तथा कंपनी के बहुमत अंशधारियों के अल्पमत अंशधारियों के प्रति दमन व कपट करने की स्थिति में कंपनी का समापन उचित एवं न्यायपूर्ण माना गया है।
न्यायालय द्वारा कंपनी का परिसमापन, समापन के लिए याचिका के प्रस्तुत करने के समय से ही समझा जाता है। याचिका चाहे किसी ने भी दी हो, समापन का आदेश सभी ऋणदाताओं तथा धनदाताओं के प्रति इस प्रकार लागू होता है जैसे यह उन सबकी संयुक्त याचिका हो।
कंपनी के संबंध में समापन आदेश होने पर सरकारी समापक इसका मापक बन जाता है। वह इसकी संपत्तियाँ बेचकर ऋणदाताओं का ठीक क्रम में भुगतान करके शेष को अंशधारियों के अधिकारानुसार वितरण करता है।
कंपनी का ऐच्छिक समापन निम्नलिखित परिस्थितियों में हो सकता है-
ऐच्छिक परिसमापन दो प्रकार का होता है - सदस्यों का अथवा ऋणदाताओं का।
जब कंपनी अपने ऋणों का भुगतान करने में समर्थ हो और उसके सदस्य समापन का निश्चय करें तो यह सदस्यों का ऐच्छिक समापन कहलाता है। ऐसी परिस्थिति में कंपनी के संचालकों को यह घोषणा करनी पड़ती है कि कंपनी में अपने ऋणों का भुगतान करने की समर्थता है। ऐसे समापन में कंपनी की साधारण सभा में एक या अधिक समापकों की नियुक्ति की जा सकती है तथा उनका पारिश्रमिक भी निर्धारित किया जाता है। समापक की नियुक्ति पर संचालक मंडल, प्रबंध अभिकर्ता या एजेंट, सचिव, कोषाध्यक्ष तथा प्रबंधकों के सभी अधिकारों का अंत हो जाता है, वह केवल रजिस्ट्रार को समापक की नियुक्ति तथा उसके स्थान की रिक्ति की सूचना देने का कार्य अथवा साधारण सभा वा समापक द्वारा अधिकृत कार्यों को कर सकते हैं।
किंतु जब कंपनी अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ हो तथा संचालक इसकी शोधक्षमता की घोषणा न कर सकें, ऐसी परिस्थिति में किए जानेवाले समापन को ऋणदाताओं का ऐच्छिक समापन कहते हैं। ऐसे समापन में यह आवश्यक है कि जिस दिन समापन संबंधी प्रस्ताव पास करने के लिए साधारण सभा बुलाई जाए उसी या उसके अगले दिन ऋणादाताओं की सभा बुलाई जाए। कंपनी के सदस्य एवं ऋणदाता अपनी अपनी सभाओं में समापक का मनोनयन कर सकते हैं। यदि सदस्यों तथा ऋणदाताओं द्वारा मनोनीत व्यक्ति भिन्न भिन्न हों तो ऋणदाताओं द्वारा मनोनीत व्यक्ति ही कंपनी का समापक नियुक्त किया जाता है। ऋणदाता अपनी उक्त सभा या किसी आगामी सभा में पाँच सदस्यों तक की एक निरीक्षण समिति नियुक्त कर सकते हैं। समापक का पारिश्रमिक निरीक्षण समिति द्वारा, इसके अभाव में ऋणदाताओं द्वारा तथा ऋणदाताओं के भी अभाव में न्यायालय द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
का परिसमापन (Liquidation or winding up) एक ऐसी कार्यवाही है जिससे कंपनी का वैधानिक अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इसमें कंपनी की संपत्तियों को बेचकर प्राप्त धन से ऋणों का भुगतान किया जाता है तथा शेष धन का अंशधारियों के बीच वितरण कर दिया जाता है।
कंपनी का समापन तीन प्रकार का हो सकता है :
न्यायालय द्वारा समापन के लिए प्रार्थनापत्र देने का अधिकार स्वयं कंपनी, उसके ऋणदाताओं, धनदाताओं (contributories) तथा कुछ स्थितियों में रजिस्ट्रार अथवा केंद्रीय सरकार द्वारा अधिकृत व्यक्ति को होता है।
न्यायालय द्वारा समापन के मुख्य कारण हैं : कंपनी के सदस्यों की संख्या में कंपनी अधिनियम द्वारा निर्धारित निम्नतम संख्या में कमी तथा ऋणों के भुगतान करने में कंपनी की असमर्थता। न्यायालय को समापन के विस्तृत अधिकार प्राप्त हैं और वह जब भी कंपनी का समापन उचित एवं न्यायपूर्ण समझे इसके लिए आदेश दे सकता है। मुख्यत: प्रबंध में गतिरोध उत्पन्न होना, कंपनी का आधार समाप्त होना तथा कंपनी के बहुमत अंशधारियों के अल्पमत अंशधारियों के प्रति दमन व कपट करने की स्थिति में कंपनी का समापन उचित एवं न्यायपूर्ण माना गया है।
न्यायालय द्वारा कंपनी का परिसमापन, समापन के लिए याचिका के प्रस्तुत करने के समय से ही समझा जाता है। याचिका चाहे किसी ने भी दी हो, समापन का आदेश सभी ऋणदाताओं तथा धनदाताओं के प्रति इस प्रकार लागू होता है जैसे यह उन सबकी संयुक्त याचिका हो।
कंपनी के संबंध में समापन आदेश होने पर सरकारी समापक इसका मापक बन जाता है। वह इसकी संपत्तियाँ बेचकर ऋणदाताओं का ठीक क्रम में भुगतान करके शेष को अंशधारियों के अधिकारानुसार वितरण करता है।
कंपनी का ऐच्छिक समापन निम्नलिखित परिस्थितियों में हो सकता है-
ऐच्छिक परिसमापन दो प्रकार का होता है - सदस्यों का अथवा ऋणदाताओं का।
जब कंपनी अपने ऋणों का भुगतान करने में समर्थ हो और उसके सदस्य समापन का निश्चय करें तो यह सदस्यों का ऐच्छिक समापन कहलाता है। ऐसी परिस्थिति में कंपनी के संचालकों को यह घोषणा करनी पड़ती है कि कंपनी में अपने ऋणों का भुगतान करने की समर्थता है। ऐसे समापन में कंपनी की साधारण सभा में एक या अधिक समापकों की नियुक्ति की जा सकती है तथा उनका पारिश्रमिक भी निर्धारित किया जाता है। समापक की नियुक्ति पर संचालक मंडल, प्रबंध अभिकर्ता या एजेंट, सचिव, कोषाध्यक्ष तथा प्रबंधकों के सभी अधिकारों का अंत हो जाता है, वह केवल रजिस्ट्रार को समापक की नियुक्ति तथा उसके स्थान की रिक्ति की सूचना देने का कार्य अथवा साधारण सभा वा समापक द्वारा अधिकृत कार्यों को कर सकते हैं।
किंतु जब कंपनी अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ हो तथा संचालक इसकी शोधक्षमता की घोषणा न कर सकें, ऐसी परिस्थिति में किए जानेवाले समापन को ऋणदाताओं का ऐच्छिक समापन कहते हैं। ऐसे समापन में यह आवश्यक है कि जिस दिन समापन संबंधी प्रस्ताव पास करने के लिए साधारण सभा बुलाई जाए उसी या उसके अगले दिन ऋणादाताओं की सभा बुलाई जाए। कंपनी के सदस्य एवं ऋणदाता अपनी अपनी सभाओं में समापक का मनोनयन कर सकते हैं। यदि सदस्यों तथा ऋणदाताओं द्वारा मनोनीत व्यक्ति भिन्न भिन्न हों तो ऋणदाताओं द्वारा मनोनीत व्यक्ति ही कंपनी का समापक नियुक्त किया जाता है। ऋणदाता अपनी उक्त सभा या किसी आगामी सभा में पाँच सदस्यों तक की एक निरीक्षण समिति नियुक्त कर सकते हैं। समापक का पारिश्रमिक निरीक्षण समिति द्वारा, इसके अभाव में ऋणदाताओं द्वारा तथा ऋणदाताओं के भी अभाव में न्यायालय द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
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