पुर्तगालियो का आगमन
रथम यूरोपीय पुर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा 90 दिन की समुद्री यात्रा के बाद अब्दुल मनीक नामक गुजराती पथ प्रदर्शक की सहायता से 149७ ई. को कालीकट (भारत) के समुद्री तट पर उतरा।
कालीकट के शासक जमोरिन ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया। लेकिन कालीकट के समुद्री तट पर व्यापार कर रहे अरबों ने इसका विरोध किया।
वास्कोडिगामा ने भारत में कालीमिर्च के व्यापार से 60 गुना से अधिक मुनाफा कमाया, जिससे अन्य पुर्तगाली व्यापारियों को प्रेरणा मिली। पुर्तगाली शासकों द्वारा भी पूर्वी व्यापार को विशेष प्रोत्साहन तथा शाही एकाधिकार प्रदान किया गया। पुर्तगाली साम्राज्य को एस्ताडो द इण्डिया नाम दिया गया।
वास्कोडिगामा के बाद भारत आने वाला दूसरा पुर्तगाली यात्री पेड्रो अल्ब्रेज कैब्राल था। जो 1500 ईसवी में यहां आया। वास्कोडिगामा भी दूसरी बार 1502 में यहां आया।
पूर्वी जगत के काली मिर्च और मसालों के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से पुर्तगालियों ने 1503 में कोचीन में अपने पहले दुर्ग की स्थापना की।
भारत में प्रथम पुर्तगाली वायसराय के रूप में फ्रांसिस्को डी अल्मीडा की तैनाती 1505 में की गई जो 1509 तक रहा। अल्मीडा ने इसके पहले 1703 में टर्की, मिस्र और गुजरात की संयुक्त सेना को पराजित कर दीव पर अधिकार कर लिया। दीव पर कब्जे के बाद पुर्तगाली हिन्द महासागर में सबसे अधिक शक्तिशाली हो गए।
अल्फांसो डी अल्बुकर्क 1503 में स्क्वाड्रन कमाण्डर के रूप में भारत आया था। 1509 में इसे भारत में वायसराय नियुक्त कर दिया गया। अल्बुकर्क को भारत में पुर्तगाली साम्राज्य का प्रथम वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
अल्बुकर्क ने 15१0 में बीजापुर के शासक आदिलशाह युसुफ से गोवा को छीन लिया, जो आगे चलकर भारत में पुर्तगाली व्यापारिक केंद्रों की राजधानी बन गई। अल्बुकर्क ने 15१1 ई. में दक्षिण पूर्व एशिया की व्यापारिक राजधानी मलक्का और हरमुज पर अधिकार कर लिया। इसके समय में पुर्तगाली भारत में शक्तिशाली नौसैनिक शक्ति के रूप में स्थापित हुए। अल्फांसो डी अल्बुकर्क ने भारत में पुर्तगालियों की संख्या में वृद्धि करने और इनकी स्थायी बस्तियां बसाने के उद्देश्य से निम्नवर्गीय पुर्तगालियों को भारतीय महिलाओं के साथ विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया। अल्बुकर्क ने अपनी सेना में भारतीयों की भी भर्ती की।
15२८ में नीनू डी कून्हा को भारत का वायसराय बनाया गया, जिसने 15३0 में कोचीन की जगह गोवा को भारत में पुर्तगाली साम्राज्य की राजधानी बनाया।
डी कून्हा ने सैनथोमा मद्रास, हुगली बंगाल, और दीव काठियावाड़ में पुर्तगाली बस्तियों की स्थापना की।
पुर्तगाली वायसराय जोवा डी कैस्ट्रो ने पश्चिमी भारत के चाउल, दीव, सॉलमेट और बेसिन तथा बंबई पर अधिकार कर लिया।
पुर्तगाली पूर्वीतट के कोरोमण्डल समुद्रीतट के मसुलीपट्टम आर पुलिकट शहरों से वस्त्र एकत्र करते थे। मलक्का और मनीला आदि पूर्वी देशों से व्यापार के लिए नागपट्टनम बंदरगाह का प्रयोग करते थे।
बंगाल के शासक महमूदशाह द्वारा 15३४ में पुर्तगालियों को चटगांव और सतगांव में अपनी व्यापारिक फैक्ट्री खोलने की अनुमति मिली। चटगांव के बंदरगाह को पुर्तगाली महान बंदरगाह की संज्ञा देते थे।
पुर्तगालियों ने अकबर की अनुमति से हुगली में तथा शाहजहां की अनुमति से चंदेल में कारखाने स्थापित किए। पुर्तगालियों ने हिन्दमहासागर में होने वाले व्यापार पर एकाधिपत्य प्रात्प कर यहां से गुजरने वाले अन्य जहाजों से कर वसूली की। कार्टज्-आर्मेडा पद्धति के माध्यम से भारतीय और अरबी जहाजों को कार्टज या परमिट के बिना अरब सागर में प्रवेश वर्जित कर दिया। एेसे जहाजों को भी काली मिर्च और गोला बारूद ले जाने की अनुमति नहीं थी। पुर्तगालियों ने काफिला प्रणाली के अंतर्गत छोटे स्थानीय व्यापारियों के जहाजों के समुद्री यात्राओं के समय संरक्षण प्रदान किया, हालांकि इसके लिए उन्हें चुंगी अदा करनी होती थी। यहां तक कि मुगल सम्राट अकबर को भी इन क्षेत्रों से व्यापार करने के लिए कार्टज या परमिट लेना पड़ा।
16३2 में शाहजहां ने हुगली को पुर्तगालियों के अधिकार से छीन लिया। बाद में औरंगजेब ने चटगांव के समुद्री लुटेरों का सफाया किया।
गोवा, दमन और दीव पर पुर्तगाली 156१ तक शासन करते रहे।
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पुर्तगालियों ने भारत या पूर्व देशों के साथ व्यापार में वस्तु विनिमय का सहारा नहीं लिया। यहां से वस्तुओं की खरीद में पुर्तगाली सोना, चांदी या अन्य बहुमूल्य रत्नों का प्रयोग करते थे। वे मालाबार और कांेकण तट से सर्वाधिक काली मिर्च का निर्यात करते थे। मालाबार तट से अदरख, दालचीनी, चंदन, हल्दी, नील आदि का निर्यात होता था।
उत्तर पश्चिम भारत से वे राफ्टा (वस्त्र), जिंस आदि ले जाते थे। बंगाल से जटामांसी और दक्षिण पूर्व एशिया से लाख लौंग, कस्तूरी आदि का क्रय करते थे।
भारत से केवल कालीमिर्च की खरीद के लिए पुर्तगाली प्रतिवर्ष 1 70 000 क्रूजेडो भारत लाते थे।
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पुर्तगाली गवर्नर अल्फांसो डिसूजा 15४2-४५ के साथ प्रसिद्ध जेसुइट संत फ्रांसिस्को जेवियर भारत आया।
पुर्तगालियो के भारत आगमन से भारत में तम्बाकू की खेती, जहाज निर्माण (गुजरात व कालीकट) तथा प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत हुई।
15५6 में गोवा में पुर्तगालियों ने भारत का प्रथम प्रिंटिंग प्रेस स्थापित किया। भारतीय जड़ी-बूटियों और औषधीय वनस्पतियों पर यूरोपीय लेखक द्वारा पहले वैज्ञानिक ग्रंथ का 156३ में गोआ से प्रकाशन प्रारंभ हुआ।
पुर्तगालियों के साथ ही भारत में गोथिक स्थापत्यकला का आगमन हुआ।
मुगल शासक अकबर के दरबार में फादर एकाबिवा और मांसरेत के नेतृत्व में ईसाई धर्म का प्रवेश भी हुआ।
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