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= पाट() (Paat)
पाट संज्ञा पुं॰ [सं॰ पठ्ट, पाट]
१. रेशम । उ॰—झूलत पाट की डोरी गहै पटुली पर बैठन ज्यौं उकुरु की । —भारतेंदु ग्रं॰, भा॰१, पृ॰ ३९१ । यौ॰— पाटंबर । पाटकृमि ।
२. बटा हुआ रेशम । नख ।
३. रेशम के कीडे का एक भेद ।
४. पटसन या पाटसन के रेशे । जैसे, पाट की धोती । विशेष— दे॰ 'पटसन' ।
५. राज्यासन । सिंहासन । गद्दी । यौ॰— राजपाट । पाटरानी । पाटमहादेइ । पाटमहिषी ।
६. चोडाई । फैलाव । जैसे, नदी का पाट, धोती का पाट ।
७. पल्ला । पीढा । तख्ता । उ॰—पौढ़ता झूला, पाट उलटि कै सरकि परत जब । —प्रेमघन॰, भा॰ १, पृ॰ १० ।
८. कोई शिला या पटिया ।
९. वह शिला जिसपर धोबी कपडे़ धोता है ।
१०. चक्की का एक ओर का भाग ।
११. वह चिपटा शहतीर जिसपर कोल्हू हाँकनेवाला बैठता है ।
१२. वह शहतीर जो कुएँ के मुँह पर पानी निकालनेवाले के खडे़ होने के लिये रखा जाता है ।
१३. मृदंग के चार वर्णों में से एक ।
१४. बैलों का एक रोग जिसमें उनके रोओं से रक्त बहता है । क्रि॰ प्र॰—फूटना ।
१५. वस्त्र । कपडा़ ।
१६. हल में का मछोतर जिसकी सहायता से हरिस में हल जुडा़ रहता है । यह मछली के आकार का होता है ।
जूट, पटसन और इसी प्रकार के पौधों के रेशे हैं। इसके रेशे बोरे, दरी, तम्बू, तिरपाल, टाट, रस्सियाँ, निम्नकोटि के कपड़े तथा कागज बनाने के काम आता है। 'जूट' शब्द संस्कृत के 'जटा' या 'जूट' से निकला समझा जाता है। यूरोप में 18वीं शताब्दी में पहले-पहल इस शब्द का प्रयोग मिलता है, यद्यपि वहाँ इस द्रव्य का आयात 18वीं शताब्दी के पूर्व से "पाट" के नाम से होता आ रहा था। जूट के रेशे साधारणतया छह से लेकर दस फुट तक लंबे होते हैं, पर विशेष अवस्थाओं में 14 से लेकर 15 फुट तक लंबे पाए गए हैं। तुरंत का निकाला रेशा अधिक मजबूत, अधिक चमकदार, अधिक कोमल और अधिक सफेद होता है। खुला रखने से इन गुणों का ह्रास होता है। जूट के रेशे का विरंजन कुछ सीमा तक हो सकता है, पर विरंजन से बिल्कुल सफेद रेशा नहीं प्राप्त होता। रेशा आर्द्रताग्राही होता है। छह से लेकर 23 प्रति शत तक नमी रेशे में रह सकती है। जूट की पैदावार, फसल की किस्म, भूमि की उर्वरता, अंतरालन, काटने का समय आदि, अनेक बातों पर निर्भर करते हैं। कैप्सुलैरिस की पैदावार प्रति एकड़ 10-15 मन और ओलिटोरियस की 15-20 मन प्रति एकड़ ह
पाट meaning in english