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= त्रिशंकु() (Trishanku)
त्रिशंकु संज्ञा पुं॰ [सं॰ तिशङ्कु]
१. बिल्ली ।
२. जुगुनू ।
३. एक पहाड़ का नाम ।
४. पपीहा ।
५. एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा का नाम जिन्होंने सशरीर स्वर्ग जाने की कामना से यज्ञ किया था पर जो इंद्र तथा दूसरे देवताओं के विरोध करने के कारण स्वर्ग न पहुँच सके । विशेष—रामायण में लिखा है कि सशरीर स्वर्ग पहुँचने की कामना से त्रिशांकु ने अपने गुरु वशिष्ठ से यज्ञ कराने की प्रार्थना की पर वशिष्ठ ने उनकी प्रार्थना स्वीकार न की । इसपर वह वशिष्ठ के पुत्रों के पास गए; पर उन लोगों ने भी उनकी बात न मानी, उलटे उन्हें शाप दिया कि तुम चाँडाल हो लाओ । तदनुसार राजा चाँडाला होकर विश्वामित्र की शारण में पहुँचे और हाथ जोड़कर उनसे अपनी अभिआषा प्रकट की । इसपर विश्वामित्र ने बहुत से ऋषियों को बुलाकर उरसे यज्ञ करने के लिये कहा । ऋषियों ने विश्वामित्र के कोप से डरकर यज्ञ आरंभ किया जिसमें स्वयं विश्वामित्र अध्वर्यु बने । जब विश्वामित्र ने देवताओं को उनका हवि- र्भाग देना चाहा तब कोई देवता न आए । इसपर विश्वा- मित्र बहुत बिगड़े और केवल अपनी तपस्या के बल से ही त्रिशंकु को लशरीर स्वर्ग भेजने लगे । जब इंद्र ने त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग की और लाते हुए देखा तब उन्होंने वहीं से उन्हें मर्त्यलोक की ओर लौटाया । त्रिशंकु जब उलटे होकर नीचे गिरने लगे तब बड़े जोर से चिल्लाए । विश्वामित्र ने उन्हें आकाश में ही रोक दिया और क्रुद्ब होकर दक्षिण क ी और दूसरे सप्तर्षियों ओर नक्षत्रों की रचना आरंभ की । सब देवता भयभीत होकर विश्वामित्र के पास पहुँचे । तब विश्वा- मित्र ने उनसे कहा कि मैने त्रिशुंकु को सशरीर स्वर्ग पहुँ- चाने की प्रतिज्ञा की है । अत: अब वह जहाँ के तहाँ रहेंगे और हमारे बनाए हुए सप्तर्षि और नक्षत्र उनके चारों ओर रहेंगे । देवताओं ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली । तब से त्रिशंकु वहीं आकाश में नीचे सिर किए हुए लटके हैं और नक्षत्र उनकी परिक्रमा करते हैं । लेकिन हरिवंश में लिखा है कि महाराज त्रयारुण का सत्यव्रत नामक एक पुत्र बहुत ही पराक्रमी राजा था । सत्यव्रत ने एक पराई स्त्री को घर में रख लिया था । इससे पिता ने उन्हें शाप दे दिया कि तुम चांडाल हो जाओ । तदनुसार सत्यव्रत चांडाल होकर चांडालों के साथ रहने लगे । जिस स्थान पर सत्यव्रत रहते थे उसके पास ही विशवामित्र ऋषि भी वन में तपस्य
त्रिशंकु meaning in english