Pata = पाटा(noun) (Pata)
पाटा संज्ञा पुं॰ [हिं॰ पाट]
1. पीढा । मुहावरा—पाटा फेरना = पीढा़ बदलना । विवाह में वर के पीढे़ पर कन्या को और कन्या के पीढे़ पर वर को बिठाना ।
2. दो दीवारों के बीच बाँस, बल्ली, पटिया आदि देकर बनाया हुआ आधारस्थान जिसपर चीजें रखी जाती हैं । दासा ।
3. वह हाथ डेढ़ हाथ ऊँची दीवार जो रसोईंघर में चौके के सामने और बगल में इसलिये बनाई जाती है कि बाहर बैठकर खानेवालों को पकानेवाली स्त्री से सामना न हो ।
4. दे॰ 'पाट' । उ॰—ओही छाज छात औ पाटा । सब राजै मुइँ धरा लिलाटा । —जायसी ग्रं॰, पृ॰ 5 । †
5. दे॰ 'पट्ट' ।
पाट (स्त्री0 पाटी) अर्थात् बैठने के लिए प्रयुक्त पीढ़ा। प्रायः यह काठ का होता है किन्तु चाँदी आदि धातुओं के पात भी प्रयुक्त होते हैं। विवाह में कन्यादान के उपरांत वर के पीढ़े पर कन्या और कन्या के पीढ़े पर वर को बैठाया जाता है। राजस्थान में करीब पाँच सौ वर्षों से अधिक प्राचीन एवं दीर्घ कालावधि तक परकोटे में सिमटे रहे ऐतिहासिक एवं पारम्परिक शहर बीकानेर की अपनी विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान है। जातीय आधार पर विभिन्न चौकों/गुवाडों (मौहल्लों) में आबाद इस परकोटायुक्त शहर में आकर्षण का केन्द्र है विभिन्न चौकों/गुवाडों में अथवा घरों के बाहर पाय जाने वाले ’’पाटे‘‘ (तख्त)। ’’पाटियों‘‘ (लकडी की पट्टियों) से निर्मित ’’पाटे‘‘ सामान्यतः घरों के भीतर 1 बाई 1 या 2 बाई 2 वर्गफुट से लेकर मौहल्लों में 10 बाई 8 वर्गफुट के होते हैं। घरों के भीतर पाटों की बनावट एवं सुन्दरता की भिन्नता उनमें व्यक्त प्रतिष्ठा एवं सम्मान की भिन्नता के अर्थ लिये हुए होती है। अतिथियों के भोजन या आनुष्ठानिक सामग्री की थाली रखने, विवाह में दूल्हा-दुल्हन को बिठाने आदि के लिए इन पाटों का प्रयोग होता है। लकडी के साधारण पाटों की अपेक्षा चाँदी के कलात्मक पाटे उच्च स्तर, प्रतिष्ठा एवं सम्मान के द्योतक होते हैं। मोहल्लों में स्थित विशाल पाटे तीन प्रकार के हैं- पहला: अतीत में बीकानेर नरेश के कृपा-पात्र व्यक्तियों द्वारा निर्मित एवं स्थापित पाटे, जो उनके राजनीतिक व प्रशासनिक प्रभुत्व, सामाजिक प्रतिष्ठा, आर्थिक सम्पन्नता एवं सांस्कृतिक योगदानों के द्योतक रहे हैं। दूसरा: कतिपय जातियों द्वारा स्थापित पाटे, जो जाति विशेष की उच्च स्थिति को इंगित करने के साथ-साथ अन्तरजातीय संबंधों, जातीय सदस्यों
पाटा meaning in english