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= अगवानी() (Agwaani)
अगवानी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अग्र + हिं॰ वान]
१. अपने यहाँ आते हुए किसी अतिथि से निकट पहुँचने पर सादर मिलना । आगे बढ़कर लेना । अभ्यर्थना । पेशवाई ।
२. विवाह में जब बारात लड़कीवाले के घर के पास आती है, तब कन्यापक्ष के लोग सज धजकर बाजे गाजे के साथ आगे जाकर उससे मिलते हैं । इसी को अगवानी कहते हैं । उ॰—नियरानि नगर बरात हरषी लेन अगवानी गए । —तुलसी ग्र॰, पृ॰ १३५ । अगवानी ^२पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ अग्रगामी] आगे पहुँचनेवाला व्याक्ति । दूत । उ॰—(क) सखी री पूरनता हम जानी । याही तै अनुमान करति हैं षट्पद से अगवानी । —सूर॰, १० । ४०३९ । (ख) अगवानी तो आइया ज्ञान विचार विवेक । पीछे हरि भो आयँगे भारी सौंज सभेक । —कबीर (शब्द॰) । अगवानी ^३ संज्ञा पुं॰ आगे रहनेवाला । अगुवा । पेशवा । उ॰— बिरह अथाह होत निसि हम कोँ, बिनु हरि समुद समानी । क्यों करि पावहि बिरहिनि पारहि बिनु केवट अगवानी । — सूर॰, १० । ३२७१ ।
अगवानी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अग्र + हिं॰ वान]
१. अपने यहाँ आते हुए किसी अतिथि से निकट पहुँचने पर सादर मिलना । आगे बढ़कर लेना । अभ्यर्थना । पेशवाई ।
२. विवाह में जब बारात लड़कीवाले के घर के पास आती है, तब कन्यापक्ष के लोग सज धजकर बाजे गाजे के साथ आगे जाकर उससे मिलते हैं । इसी को अगवानी कहते हैं । उ॰—नियरानि नगर बरात हरषी लेन अगवानी गए । —तुलसी ग्र॰, पृ॰ १३५ । अगवानी ^२पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ अग्रगामी] आगे पहुँचनेवाला व्याक्ति । दूत । उ॰—(क) सखी री पूरनता हम जानी । याही तै अनुमान करति हैं षट्पद से अगवानी । —सूर॰, १० । ४०३९ । (ख) अगवानी तो आइया ज्ञान विचार विवेक । पीछे हरि भो आयँगे भारी सौंज सभेक । —कबीर (शब्द॰) ।
अगवानी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अग्र + हिं॰ वान]
१. अपने यहाँ आते हुए किसी अतिथि से निकट पहुँचने पर सादर मिलना । आगे बढ़कर लेना । अभ्यर्थना । पेशवाई ।
२. विवाह में जब बारात लड़कीवाले के घर के पास आती है, तब कन्यापक्ष के लोग सज धजकर बाजे गाजे के साथ आगे जाकर उससे मिलते हैं । इसी को अगवानी कहते हैं । उ॰—नियरानि नगर बरात हरषी लेन अगवानी गए । —तुलसी ग्र॰, पृ॰ १३५ ।
अगवानी meaning in english