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= घिरनी() (Ghirni)
घिरनी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ घूर्णन]
१. गराड़ी । चरखी ।
२. चक्कर । फेरा ।
घिरनी (Pulleys) एक गोल रम्भ है, जिससे मशीन की शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है। यदि किसी खराद (lathe) को इंजन से चलाना है, तो इंजन की घिरनी और खराद की घिरनी पर पट्टा चढ़ाकर इंजन की शक्ति से खराद को चलाते हैं। घिरनी के व्यास से ही मशीनों की गति को कम या ज्यादा किया जा सकता है। मशीनों की शक्ति को बिना किसी हानि के तो दाँतोंवाले चक्रों (गीयर) से ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है, परन्तु जहाँ इन स्थानों में दूरी अधिक हो वहाँ इन चक्रों का उपयोग नहीं हो सकता। इन्हीं स्थानों पर घिरनियों का उपयोग होता है। इनपर चमड़े के पट्टों या रस्सों को चढ़ाकर एक घिरनी से दूसरी घिरनी को शक्ति दी जाती है। घिरनी केवल बल की दिशा में परिवर्तन करती है, बल के परिमाण में नहीं। (इसका यांत्रिक लाभ १ या १ से कम होगा)। यदि इंजन से किसी दूसरी मशीन को चलाया जा रहा है, तो इंजन की घिरनी चलानेवाली घिरनी कहलाएगी और मशीन की घिरनी चलनेवाली घिरनी होगी। घिरनियाँ प्राय: ढालवाँ लोहे की होती हैं, जिनमें बीच का भाग घिरनी के हाल से बाजुओं द्वारा जुड़ा होता है। ये बाजू संख्या में चार से लेकर छ: तक होते हैं। घिरनी के बीचवाले भाग के छेद में धुरी को डालकर कस दिया जाता है। घिरनी के हर भाग की नाप ऐसी रखी जाती है कि वह उसपर पड़नेवाले हर बल को सहन कर सके। घिरनी के हाल की चौड़ाई पट्टे की चौड़ाई से कुछ ही ज्यादा रखी जाती है। इसके हाल पर दो प्रकर के बल होंगे, एक तो पट्टे के खिंचाव के कारण और दूसरा इसके घूमने के कारण। यह देखा गया है कि एक वर्ग इंच परिच्छेद के हाल की घिरनी की गति 100 फुट प्रति सेकंड से अधिक होनी चाहिए। इसलिये ढलवाँ लोहे की घिरनी को इस गति से अधिक तेज नहीं चलाया जाता। जहाँ अधिक गति की आवश्यकता होती है वहाँ कच्चे और ढलवाँ लोहे को मिलाकर घिरनी बनाई जाती है। इसका ध्यान रहे कि अधिक गति से चलनेवाली घिरनियों को ढाला नहीं जाता, बल्कि इसके विभिन्न भागों को अलग बनाकर पेचों द्वारा जोड़ा जाता है। इस प्रकार की घिरनी का भार भी प्राय: अधिक नहीं होता और न उसके टूटने का इतना डर रहता है। घिरनी बनाने में इसका भी ध्यान रखा जाता है कि उसका आकर्षणकेन्द्र ठीक बीच में हो। यदि ऐसा न हुआ तो धुरी के घू
घिरनी meaning in english