marriage = विवाह(noun) (Vivah)
विवाह संज्ञा पुं॰ एक प्रथा जिसके अनुसार स्त्री और पुरूष आपस में दांपत्य सूत्र में बँधते है । कहीँ यह प्रथा सामजिक होती है, कहीं धार्मिक और कहीं कानून के अनूसार होती है । यह हिदुओं के सोलह संस्कारों में से एक संस्कार है । शादी । ब्याह । विशेष—मनुष्य जाति जब आदिम असभ्यावस्था में थी, उस समय उसमें विवाह या पतिसंवरण की प्रथा न थी । केवल कामवेग के कारण स्त्री पुरूषों का समागम हुआ करता था । यह प्रथा अब भी कुछ असभ्य जातियों में प्रचलित है । महाभारत में लिखा है । —'प्राचीन काल में स्त्रियाँ नंगी रहती थीं । वे स्वतंत्र और विहरिणी होती थीं और बिना ब्याह किए ही अनेक पुरुषों से समागम करती थी । ' उनका यह कृत्य अधर्म नहीं समझा जाता था । सभ्यता बढ़ने पर लोगों को घर बनाने और एक ऐसे व्यक्ति को अपने यहाँ रखने की आवश्यकता हुई जो उसका प्रबंध कर सके । इसके लिये स्त्रियाँ उपयुक्त समझी गई । अतःलोगों ने उनको फुसलाकर अथवा बलात् अपने यहाँ रखना आरंभ किया । उन दिनों स्त्री एक पुरूष के अधिकार में तबतक रहती थी जबतक कोई दूसरा उससे बली पूरूष उसे बलपूर्वक छीन न ले जाता था । अतः अब ऐसा नियम बनाने की आवश्यकता हुई कि एक दूसरे की स्त्री को हरण न कर सके । पर स्त्रीस्वतंत्रता में बाधा नहीं थी । जब आयों की सभ्यता बढी और उनमें वर्णधर्म स्थापित हो चला, तब लोग संभुक्त स्त्री को अपने यहाँ रखने की अपेक्षा असंभुक्त या कन्या को अच्छा समझते थे । कन्या के लिये कभी कभी युद्ब भी हुआ करते थे । धीरे सभ्यता बढ़ती गई और लोगों में स्त्री पुरूष की ममता अधिक होती गई । पर स्त्रियों की स्वतं- त्रता बनी रही । वे एक पुरुष के अधिकार में रहते हुए भी अन्य की कामना करती थीं । उस समय यह व्यभिचार नहीं समझा जाता था । महाभारत से पता चलता है कि इस प्रथा को उद्दालक ऋषि के पुत्र श्वेतकेतु ने उठा दिया । उन्होने यह मर्यादा बाँधी कि पति के रहते हुए कोई स्त्री उसकी आज्ञा के विरुद्ध अन्य़ पुरूष से संभोग न करे । पर उस समय भी पति की अयोग्यता की अवस्था में उसके रहते स्त्रियाँ दुसरा पति कर लेती थीं । महर्षि दीर्घतमा ने यह प्रथा निकाली कि 'यावत् जीवन स्त्रियाँ पति के अधीन रहें । पति के जीवनकाल में तथा उसके मरने पर भी वे कभी परपुरुष का आश्रय न लें और य़दि आश्रय लें, तो पतित समझी जायँ । धीरे धीरे स्त्रियों की स्वतंत्र
विवाह meaning in english