परशुराम (ParshuRam) = Parashurama
Category: god
परशुराम संज्ञा पुं॰ जमदग्नि ऋषि के एक पुत्र जिन्होंने 21 बार क्षत्रियों का नाश किया था । ये ईश्वर के छठे अवतार माने जाते हैं । 'परशु' इनका मुख्य शस्त्र था, इसी से यह नाम पड़ा । विशेष—महाभारत के शांतिपर्व में इनकी उत्पत्ति के संबंध में यह कथा लिखी है,—कुशिक पर प्रसन्न होकर इंद्र उनके यहाँ गाधि नाम से उत्पन्न हुए । गाधि को सत्यवती नाम की एक कन्या हुई जिसे उन्होंने भृगु के पुत्र ऋचीक को ब्याहा । ऋचीक ने एक बार प्रसन्न होकर अपनी स्त्री और सास के लिये दो चरु प्रस्तुत किए और सत्यवती से कहा 'इस चरु को तुम खाना' । इससे तुम्हें परम शांत और तेजस्वी पुत्र उत्पन्न होगा । इस दूसरे चरु को अपनी माता को दे देना । इससे उन्हें अत्यंत वीर और प्रबल पुत्र उत्पन्न होगा जो सब राजाओं को जीतेगा । पर भूल से सत्यवती ने अपनी मातावाला चरु खा लिया और गाधि की स्त्री, सत्यवती की माता ने सत्यवती का चरु खाया । जब ऋचीक को यह पता चला तब उन्होंने सत्यवती से कहा—'यह तो उलटा हो गया । तुम्हारे गर्भ से अब जो बालक उत्पन्न होगा वह बड़ा कूर और प्रचंड क्षात्रतेज से युक्त होगा और तुम्हारी माता के गर्भ से जो पुत्र होगा वह प्ररम शांत, तपस्वी और ब्राह्मण के गुणों से युक्त होगा' । सत्यवती ने बहुत विनती की कि मेरा पुत्र ऐसा न हो, मेरा पौत्र हो तो हो । महाभारत के वनपर्व में यही कथा कुछ दूसरे प्रकार से है । कुछ दिनों में सत्यवती गर्भ के जमदग्नि की उत्पत्ति हुई जो रूप और स्वाध्याय में अद्वितीय हुए और जिन्होंने समस्त वेद, वेदांग का तथा धनुर्वेद का अध्ययन किया । प्रसेनजित् राजा की कन्या रेणुका से उनका विवाह हुआ । रेणुका के गर्भ से पाँच पुत्र हुए—समन्वान्, सुषेण, वसु, विश्वावसु और राम या परशुराम । इसके आगे वनपर्व में कथा इस प्रकार है । एक दिन रेणुका स्नान करने के लिये नदी में गई थी । वहाँ उसने राजा चित्ररथ को अपनी स्त्री के साथ जलक्रीड़ा करते देखा और कामवासना से उद्विग्न होकर घर आई । जमदग्नि उसकी यह दशा देख बहुत कुपित हुए और उन्होंने अपने चार पुत्रों को एक एक करके रेणुका के बध की आज्ञा दी, पर स्नेहवश किसी से ऐसा न हो सका । इतने में परशुराम आए । परशुराम ने आज्ञा पाते ही माता का सिर काट डाला । इसपर जमदग्नि ने प्रसन्न होकर वर माँगने के लिये कहा । परशुराम बोले—'पहले तो मेरी माता को जिला दीजिए और
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