धनिक (Dhanik) = Dhanik
धनिक ^१ वि॰ [सं॰]
१. धनी । जिसके पास धन हो ।
२. गुणयुक्त (को॰) । धनिक ^२ संज्ञा पुं॰
१. धनी मनुष्य ।
२. पति । स्वामी ।
३. रुपया उधार देनेवाला मनुष्य । महाजन । उत्तमर्ण ।
४. धनिया ।
५. ईमानदार बनिया । व्यापारी (को॰) ।
६. प्रियंगु का पेड़ (को॰) ।
धनिक ^१ वि॰ [सं॰]
१. धनी । जिसके पास धन हो ।
२. गुणयुक्त (को॰) ।
धनिक, नाट्यशास्त्र के ग्रंथ 'दशरूप' के टीकाकार हैं। दशरूप के प्रथम प्रकाश के अंत में 'इति विष्णुसूनोर्धनिकस्य कृतौ दशरूपावलोके' इस निर्देश से ज्ञात होता है कि धनिक दशरूपक के रचयिता, विष्णुसुत धनंजय के भाई थे। दोनों भाई मुंजराज के सभापंडित थे। मुँज (वाक्पतिराज द्वितीय) और उसके उत्तराधिकारी के शासनकाल के अनुसार इनका समय ईसा की दसवीं शताब्दी का अंत और ग्यारहवीं का प्रारंभ माना जाता है। दशरूप 'मुंजमहीशगोष्ठी' के विद्वानों के मन को प्रसन्नता और प्रेम से निबद्ध करनेवाला कहा गया है। धनिक द्वारा इसकी 'अवलोक' नाम की टीका मुंज के उत्तराधिकारी के शासनकाल में लिखी गई। दशरूप मुख्यत: भरतनाट्यशास्त्र का अनुगामी है और उसका एक प्रकार से संक्षिप्त रूप है। चार प्रकाशों में यह ग्रंथ विभक्त है। प्रारंभ के तीन प्रकाशों में नाट्य के भेद, उपभेद, नायक आदि का वर्णन है और चतुर्थ प्रकाश के रसों का। दशरूप में रंगमंच पर विवेचन नहीं किया गया है और न धनिक ने ही इसपर विचार किया है। धनिक की टीका गद्य में है और मूल ग्रंथ के अनुसार है। अनेक काव्यों और नाटकों से संकलित उदाहरणों आदि द्वारा यह मूल ग्रंथ को पूर्ण, बोधगम्य और सरल करती है। कुछ परवर्ती विद्वानों ने धनिक को ही 'दशरूप' का रचयिता माना है और उन्हीं के नाम से 'दशरूप' की कारिकाएँ उद्धृत की हैं, यह भ्रमात्मक है। धनिक अभिधावादी और ध्वनिविरोधी हैं। रसनिष्पत्ति के संबंध में वे भट्टनायक के मत को मानते हैं, पर उसमें भट्ट लोल्लट और शंकुक के मतों का मिश्रण कर देते हैं। इस प्रकार इनका एक स्वतंत्र मत हो जाता है। दशरूप के चतुर्थ प्रकाश में धनिक ने इसपर विस्तृत रूप से विचार किया है। नाटक में शांत रस को धनिक ने स्वीकार नहीं किया है और आठ रस ही माने हैं। शांत को ये अभिनय में सर्वथा निषिद्ध करते हैं, अत: शम को स्थायी भी नहीं मानते। धनिक कवि थे और इन्होंने संस्कृत-प्राकृत काव्य भी लिखा है। 'अव
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