अजान (Ajan) = nescience
अजान ^१ वि॰ [सं॰ अज्ञान, प्रा॰ अजाण [स्त्री॰ अजानी]
१. जो न जाने । अनजान । अबोध । अनभिज्ञ । अबूझ । नासमझ । उ॰—(क) तुम प्रभु अजित, अनादि लोकपति, हौं अजान मतिहीन । —सूर॰, १ । १८१ । (ख) भक्त अरु भगवत एक है बूझत नहीं अजान । —कबीर (शब्द॰) ।
२. न जाना हुआ । अपरिचित । अज्ञात । उ॰—उसे दिखाती जगती का सुख, हँसी और उल्लास अजान । —कामायनी पृ॰ ३० । अजान ^२ संज्ञा पुं॰
१. अज्ञानता । अनभिज्ञता । उ॰—(क) 'मुझसे यह काम अजान में हो गया । ' —(शब्द॰) । (ख) धीरे धीरे आती है जैसे मादकता आँखों के अजान में ललाई में ही छिपती । —लहर, पृ॰ ७४ । विशेष—इसका प्रयोग इस अर्थ में 'में' के साथ ही होता है और दोनों मिलकर क्रियाविशेषणवत् हो जाते हैं । कहीं कहीं इसका स्वतंत्र प्रयोग भी प्राप्त होता है; जैसे—'जान अजान नाम जो लेइ । हरि बैकुंठ बास तिहिँ देइ । —सूर॰, ६ । ४ ।
२. एक पेड़ जिसके नीचे जाने से लोग समझते हैं कि बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । उ॰—कोइ चंदन फूलहिं जनु फूली । कोइ अजान बीरउ तर भूली । —जायसी (शब्द॰) । विशेष—यह पीपल के बराबर ऊँचा होता है और इसके पत्ते महुए के से होते हैं । इसमें लंबे लंबे मौर लगते हैं । अजान ^३ संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ अजान] वह पुकार जो प्रायः मसजिद की मीनारों पर मुसलमानों को नमाज के समय की सूचना देने और उन्हें मसजिदों में बुलाने के लिये की जाती है । बाँग । मुहा॰—अजान देना = (१) किसी ऊँचे स्थान या मसजिद का मीनार से उच्चस्वर में नमाज करने के समय कीः सूचना देना । (२) प्रातःकाल मुर्गे का बोलना । मुर्गे का बाँग देना ।
अजान ^१ वि॰ [सं॰ अज्ञान, प्रा॰ अजाण [स्त्री॰ अजानी]
१. जो न जाने । अनजान । अबोध । अनभिज्ञ । अबूझ । नासमझ । उ॰—(क) तुम प्रभु अजित, अनादि लोकपति, हौं अजान मतिहीन । —सूर॰, १ । १८१ । (ख) भक्त अरु भगवत एक है बूझत नहीं अजान । —कबीर (शब्द॰) ।
२. न जाना हुआ । अपरिचित । अज्ञात । उ॰—उसे दिखाती जगती का सुख, हँसी और उल्लास अजान । —कामायनी पृ॰ ३० । अजान ^२ संज्ञा पुं॰
१. अज्ञानता । अनभिज्ञता । उ॰—(क) 'मुझसे यह काम अजान में हो गया । ' —(शब्द॰) । (ख) धीरे धीरे आती है जैसे मादकता आँखों के अजान में ललाई में ही छिपती । —लहर, पृ॰ ७४ । विशेष—इसका प्रयोग इस अर्थ में 'में' के साथ ही होता है और दोनों मिलकर क्रियाविशेषणवत
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