1857 का सैनिक विद्रोह
ईस्ट इंडिया कंपनी को साम्राज्य विस्तार के लिए एक विशाल सेना की आवश्यकता थी। जैसे-जैसे ब्रितानियों के साम्राज्य का विस्तार होता चला गया, वैसे-वैसे उनकी सैनिक भर्ती की आवश्यकताओं में वृद्धि होती चली गई। भारतीय ब्रिटिश सेना में वेतन भोगी भारतीय सैनिक थे, जो बहुत स्वामिभक्त थे, परंतु उनका वेतन तथा भत्ता ब्रिटिश सैनिकों की तुलना में बहुत कम था। अतः भारतीय सैनिकों में कंपनी सरकार के विरुद्ध रोष व्याप्त था। अतएव समय-समय पर बहुत से विद्रोह हुए, जो प्राय: स्थानीय रूप के ही थे।
1764 :बक्सर के युद्ध में हैक्टर मुनरो की एक बटालियन बंगाल के शासक मीरकासिम से जा मिली थी।
1806 :कंपनी सरकार ने भारतीय सैनिकों के माथे पर जाति सूचक तिलक लगाने अथवा पगड़ी पहनने पर प्रतिबंध लगा दिए, जिसके विरोध में वेल्लौर के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया तथा मैसूर के राजा का झंडा फहरा दिया।
1824 : में जब बैरकपुर रेजिमेंट को समुद्र मार्ग से बरमा जाने का आदेश दिया गया (समुद्र यात्रा जातीय परंपराओं के विरुद्ध थी) ; तब उस रेजिमेंट ने विद्रोह कर दिया।
1824 : वेतन के प्रश्न पर बंगाल की सेना ने विद्रोह कर दिया।
1825 : असम की रेजिमेंट ने विद्रोह कर दिया।
1838 :शोलापुर स्थित एक भारतीय टुकड़ी को जब पुरा भत्ता नहीं दिया गया, तो उसने विद्रोह कर दिया।
1844 : 34वीं N. I. 64वीं रेजिमेंट ने कुछ अन्य लोगों की सहायता से पुराना भत्ता न दिए जाने तक सिंध के अभियान में भाग लेने से इनकार कर दिया।
1849-50 : पंजाब पर अधिकार करने वाली कंपनी की सेना में विद्रोह की भावना पनप रही थी। अतः 1850 में गोविन्दगढ़ की रेजिमेंट ने विद्रोह कर दिया।
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