द्वैध शासन व्यवस्था की कार्यप्रणाली
कम्पनी को दीवानी तथा निजामत के अधिकार मिल गए थे, परन्तु कम्पनी के कर्मचारियों को मालगुजारी वसूल करने तथा शासन चलाने का अनुभव नहीं था। क्लाइव शासन का प्रत्यक्ष उत्तरदायित्व कम्पनी के हाथों में नहीं लेना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अधिकारों का विभाजन किया। उन्होंने भारतीय अधिकारियों के माध्यम से दीवानी का काम चलाने का निश्चय किया। इस कारण उसने दो नायब दीवान की नियुक्ति की। एक बंगाल के लिए एवं दूसरा बिहार के लिए। बंगाल में मुहम्मद रजा खाँ तथा बिहार में सिताबराय को दीवान के पद पर नियुक्त किया गया। रजा खाँ का केन्द्र मुर्शिदाबाद और सिताबराय का केन्द्र पटना में रखा गया। इस प्रकार कम्पनी ने अपना उत्तरदायित्व दो भारतीय अधिकारियों पर डाल दिया। उसका उद्देश्य तो अधिक से अधिक धन प्राप्त करना था। अधिक आय को जुटाना ही इन दो नायब दीवानों कार्य था।
निजामत के अधिकार भी कम्पनी ने बंगाल के नवाब से प्राप्त कर लिए थे। इसके बदले में वह नवाब को 53 लाख रूपये प्रतिवर्ष बंगाल का शासन कार्य चलाने के लिए देती थी। यद्यपि शासन के समस्त कार्य नवाब के नाम से किए जाते थे, तथापि वह नाममात्र का शासक था और शासन की वास्तविक शक्ति कम्पनी के हाथ में थी। नवाब आन्तरिक और बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा के लिए कम्पनी पर निर्भर था। दूसरे शब्दों में, निजामत की सर्वोच्च शक्ति कम्पनी के पास थी, परन्तु उत्तरदायित्व नवाब का था। चूँकि इस समय बंगाल का नवाब अल्पायु था, इस कारण कम्पनी ने नवाब की ओर से उसके कार्यों की देखभाल करने के लिए नायब निजाम की नियुक्ति की थी और इस पद पर मुहम्मद रजा खाँ की नियुक्ति की गई, जो कम्पनी की ओर से बंगाल का नायब दीवान था। वह कम्पनी के हाथ की कठपुतली था। अतः प्रशासकों की सभी शक्तियाँ कम्पनी के हाथों में केन्द्रीत हो गईं।
क्लाइव की इस शासन व्यवस्था को दोहरा शासन इसलिए कहते हैं कि सिद्धांत में शासन का भार कम्पनी और नवाब में विभाजित किया गया था, परन्तु कम्पनी ने व्यावहारिक रूप में उन सूबों की जिम्मेवारी अपने ऊपर नहीं ली। वास्तविक शक्ति कम्पनी के हाथों में थी, परन्तु शासन भारतीयों के हाथों था और भारतीय, कम्पनी के हाथ की कठपुतली बने हुए थे। इस प्रकार, वास्तविक सत्ता प्राप्त होते हुए भी कम्पनी ने दूर रहकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया। इस प्रकार सूबों में दो सत्ताओं (एक भारतीय और दूसरी विदेशी सत्ता) की स्थापना हुई। विदेशी सत्ता वास्तविक थी, जबकि भारतीय सत्ता उसकी परछाई मात्र थी।
द्वैध शासन की व्यवस्था बंगाल, बिहार और उड़ीसा में 1765 में से 1772 ई. तक कायम रही। इसके अतिरिक्त शासन की जिम्मेवारी बंगाल के नवाब के सिर पर थी, परन्तु वह नाममात्र शासक थे। दूसरे शब्दों में, नवाब कम्पनी के हाथ का कठपुतला बन हुआ था। सम्पूर्ण प्रशासकीय शक्ति कम्पनी के हाथ में थी, परन्तु प्रत्यक्ष रूप से वह इन सूबों की शासन व्यवस्था के लिए उत्तरदायी थी।
सम्बन्धित महत्वपूर्ण लेख
भारत का संवैधानिक विकास ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना
यूरोपियन का भारत में आगमन
पुर्तगालियों का भारत आगमन
भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का कठोरतम मुकाबला
इंग्लैण्ड फ्रांस एवं हालैण्ड के व्यापारियों का भारत आगमन
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नीति में परिवर्तन
यूरोपियन व्यापारियों का आपसी संघर्ष
प्लासी तथा बक्सर के युद्ध के प्रभाव
बंगाल में द्वैध शासन की स्थापना
द्वैध शासन के दोष
रेग्यूलेटिंग एक्ट के पारित होने के कारण
वारेन हेस्टिंग्स द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य का सुदृढ़ीकरण
ब्रिटिश साम्राज्य का प्रसार
लार्ड वेलेजली की सहायक संधि की नीति
आंग्ल-मैसूर संघर्ष
आंग्ला-मराठा संघर्ष
मराठों की पराजय के प्रभाव
आंग्ल-सिक्ख संघर्ष
प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध
लाहौर की सन्धि
द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध 1849 ई.
पूर्वी भारत तथा बंगाल में विद्रोह
पश्चिमी भारत में विद्रोह
दक्षिणी भारत में विद्रोह
वहाबी आन्दोलन
1857 का सैनिक विद्रोह
बंगाल में द्वैध शासन व्यवस्था
द्वैध शासन या दोहरा शासन व्यवस्था का विकास
द्वैध शासन व्यवस्था की कार्यप्रणाली
द्वैध शासन के लाभ
द्वैध शासन व्यवस्था के दोष
रेग्यूलेटिंग एक्ट (1773 ई.)
रेग्यूलेटिंग एक्ट की मुख्य धाराएं उपबन्ध
रेग्यूलेटिंग एक्ट के दोष
रेग्यूलेटिंग एक्ट का महत्व
बंगाल न्यायालय एक्ट
डुण्डास का इण्डियन बिल (अप्रैल 1783)
फॉक्स का इण्डिया बिल (नवम्बर, 1783)
पिट्स इंडिया एक्ट (1784 ई.)
पिट्स इण्डिया एक्ट के पास होने के कारण
पिट्स इण्डिया एक्ट की प्रमुख धाराएं अथवा उपबन्ध
पिट्स इण्डिया एक्ट का महत्व
द्वैध शासन व्यवस्था की समीक्षा
1793 से 1854 ई. तक के चार्टर एक्ट्स
1793 का चार्टर एक्ट
1813 का चार्टर एक्ट
1833 का चार्टर एक्ट
1853 का चार्टर एक्ट
Dvaidh, Shashan, Vyavastha, Ki, KaryaPrannali, Company, Ko, Deewani, Tatha, Nizamat, Ke, Adhikar, Mil, Gaye, The,, Parantu, Karmchariyon, malgujari, Vasool, Karne, Chalane, Ka, Anubhav, Nahi, Tha, Clive, Pratyaksh, Uttardayitwa, Hathon, Me, Lena, Chahte, Isliye, Unhonne, Adhikaron, Vibhajan, Kiya, Indian, Adhikariyon, Madhyam, Se, Kaam, Nishchay, Is, Karan, Usane, Do, Nayab, Deewan, Niyukti, Ek, Bangal, Liye, Aivam, Doosra, Bihar, Muhammad, Rajaa, Khan, SitabRaay, Pad, Par, Niyukt, Gaya, Center,