डुण्डास का इण्डियन बिल (अप्रैल 1783)
30 मई, 1782 ई. को डुण्डास के प्रस्ताव पर ब्रिटिश लोक सभा ने वारेन हेस्टिंग्स प्रशासन की निन्दा की और डायरेक्टरों से उसे वापस बुलाने के लिए कहा। परन्तु स्वामी मण्डल ने लोक सभा के आदेश की अवहेलना करते हुए हेस्टिंग्स को उसके पद पर बनाए रखा। कीथ के अनुसार, इस तरह स्पष्ट कर दिया गया कि कम्पनी के डायरेक्टर न तो अपने कर्मचारियों का नियंत्रित कर सकते थे और राज्यों को या कम्पनी को, जबकि कलकत्ता के विरूद्ध होने वाली मद्रास प्रेसीडेन्सी की कार्यवाहियों ने यह सिद्ध कर दिया कि मुख्य प्रेसीडेन्सी सहायक को अपने नियंत्रण में नहीं रखा सकती थी।
कम्पनी के संविधान में सुधार करने के लिए अप्रैल, 1783 में मि. डुण्डास ने एक बिल प्रस्तुत किया, जिसमें निम्नलिखित सुझाव दिए गए थे-
1. सम्राट को कम्पनी के प्रमुख अधिकारियों को वापस बुलाने का अधिकार दिया जाए।
2. कुछ महत्वपूर्ण मामलों में गवर्नर जनरल को अपनी कौंसिल के निर्णयों को रद्द करने की शक्ति दी जाए।
3. गवर्नर जनरल और उसकी कौंसिल का प्रादेशिक सरकारों पर नियंत्रण बढ़ा दिया जाए।
चूँकि डुण्डास विरोधी दल का सदस्य था, अतः उसके द्वारा प्रस्तावित वह बिल पास नहीं हो सका। फिर, भी उसका विधेयक इस दृष्टि से महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ कि इसने भारत में संवैधानिक परिवर्तन की आवश्यकता पर जोर दिया और मंत्रिमण्डल को कार्यवाही करने की प्रेरणा दी।
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